सभी 18 पुराणों में शिवजी के जन्म को लेकर क्या कथाएं कही गई हैं What stories are told about the birth of Lord Shiva in all the 18 Puranas?

सभी 18 पुराणों में शिवजी के जन्म को लेकर क्या कथाएं कही गई हैं 


भगवान शिव आदि अनंत हैं। वह कभी किसी योनि में जन्म नहीं लेते। अर्थात् उनके जन्म से संबंधित कोई भी कहानी मौजूद होने का प्रश्न ही नहीं उठता। संसार में सभी देवी-देवताओं की उत्पत्ति दर्शाई गई है लेकिन शिव मात्र एसे भगवान हे जिसे अनादि माना गया है अर्थात जो हमेशा से था जिसके जन्म की कोई तिथि नही है जिसके कोई माता-पिता नहि हे ओर संसार के किसी भी धर्म के कोईभी ग्रंथ या पुराणो में महादेव के जन्म या उत्पत्ति का कोई प्रमाण नहि हे अर्थात शिव एक एसी शक्ति हे जिसकी कोई सीमा नहि, वे अनंत है.
What stories are told about the birth of Lord Shiva in all the 18 Puranas?

शिव पुराण और शिव महापुराण में क्या अंतर हैं ?

शिव पुराण (Shiv Puran) में भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया गया है। इस पुराण का संबंध शैव मत से माना जाता है। इसमें भगवान शिव को प्रसन्न करने की पूजा विधियों और ज्ञान से भरे आख्यान भी सम्मिलित हैं। हिंदू धर्म में भगवान शिव त्रिदेवों में से एक हैं और इन्हें संहार का देवता भी माना जाता है।

भगवान शिव के पहले अवतार कौन थे

शिवमहापुराण में भैरव बाबा को शिवजी का अवतार बताया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा तथा विष्णु स्वयं को एक-दूसरे से श्रेष्ठ मानने लगे थे। उस समय वहां पर एक ज्योति पुंज प्रकट हुआ जिसमें एक पुरूषाकृति दिखाई दी उसे देखकर अभिमानवश ब्रह्मा जी ने कहा चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो सो मेरी शरण में आओ। ऐसा वचन सुनकर शंकर जी को क्रोध आ गया तथा उन्होंने भैरव रूप धारण करके जो की काल और क्रोध का स्वरूप है से ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया। ऐसा करने से वे ब्रह्म हत्या के पाप के दोषी हो गये। ऐसी मान्यता है कि काशी में ही भैरव को इस पाप से मुक्ति मिली थी।

शिव पुराण का दूसरा नाम क्या है?

स्कन्द पुराण मूल रूप में एक शतकोटि पुराण है, जिसमें शिव की महिमा का वर्णन किया गया है। उसके सारभूत अर्थ का व्यासजी ने स्कन्दपुराण में वर्णन किया है। स्कन्द पुराण इक्यासी हजार श्लोकों से युक्त है एवं इसमें सात खण्ड हैं

महादेव को बुलाने का मंत्र क्या है?

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात्॥
का अर्थ है
हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो सुगंधित हैं, और हमारा पोषण करते हैं.
जैसे फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है, वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं.
भगवान शिव ही हर सांस में जीवन शक्ति का संचार करने के साथ-साथ सम्पूर्ण जगत का पालन पोषण करते हैं.भगवान शिव से हमारी प्रार्थना है कि वो हमें मृत्यु रुपी बंधनों से मुक्त करें, जिससे हमे मोक्ष की प्राप्ति हो

शिव का असली नाम क्या है?

शिव को कई नामों से जाना जाता है जैसे विश्वनाथ (ब्रह्मांड के स्वामी), महादेव, महानदेव, महासू, महेश, महेश्वर, शंकर, शंभु, रुद्र, हर, त्रिलोचन, देवेंद्र (देवताओं के प्रमुख), नीलकंठ, शुभंकर, त्रिलोकीनाथ ( तीनों लोकों के स्वामी), और घृणेश्वर (करुणा के स्वामी)।

भगवान शिव की बहन कौन है?

भगवान शिव के परिवार के बारे में हम सभी जानते हैं। उनकी पत्नी देवी पार्वती, पुत्र कार्तिकेय एवं गणेश तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही साथ उनकी पुत्री अशोकसुन्दरी के बारे में भी जानने को मिलता है। इसके अतिरिक्त उनके अन्य चार पुत्रों (सुकेश, जालंधर, अयप्पा और भूमा) के विषय में भी पुराणों में जानकारी मिलती है। लेकिन क्या आपको महादेव की बहन के बारे में पता है? पुराणों और लोक कथाओं में भगवान शिव की बहन "असावरी देवी" के बारे में भी वर्णन मिलता है जिन्हे स्वयं महादेव ने देवी पार्वती के अनुरोध पर उत्पन्न किया था। तो आइये आज महादेव की बहन के विषय में जानते हैं।पार्वती ने उत्साह से बताया - "स्वामी! अगर मेरी कोई ननद होती तो दोनों बहनें आपस में हंस-बोल लिया करती।" तब महादेव ने पूछा कि - "क्या तुम अपनी ननद के साथ निभा पाओगी।" तब देवी पार्वती ने कहा - "अवश्य। मैं उनकी इतनी सेवा करुँगी कि मनमुटाव का कोई प्रश्न ही नहीं आएगा।" 
तब महादेव ने हँसते हुए अपने तेज से स्त्री की रचना की। उन्होंने उसे "असावरी" नाम दिया और अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया। असवारी देवी का स्वरुप बड़ा भयानक था। उनकी काया अत्यंत स्थूल, रंग काला, होंठ बड़े और लाल थे और उनके पैरों में बड़ी-बड़ी दरारें थी। उन्होंने उत्पन्न होते ही भगवान शिव को प्रणाम किया और उनसे अपनी उत्पत्ति का कारण पूछा। तब महादेव ने उनका परिचय देवी पार्वती से कराया और कहा कि अब दोनों बहनों की तरह प्रेम भाव से कैलाश में रहें।
भगवान शिव की बहन कौन थीं, कैसे हुई इनका नाम असावरी देवी है. देवी पार्वती अपनी ननद को देखकर बहुत खुश हुईं. उहोंने तुरंत अपनी ननद देवी असावरी के लिए भोजन बनाने लग !

अश्वत्थामा शिव का अवतार था?

नंदीश्वर बोले - हे सर्वज्ञ सनत्कुमार जी ! देवगुरु बृहस्पति के पुत्र मुनि भारद्वाज हुए और उनके पुत्र के रूप में द्रोण का जन्म हुआ। द्रोण बचपन से महान धनुर्धारी, महातेजस्वी और सब अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञाता थे। यही नहीं, धनुर्वेद और सभी वेदों के महाज्ञाता थे। अपने इन्हीं गुणों के कारण आप कौरवों और पाण्डवों के आचार्य बने और द्रोणाचार्य इस नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हीं द्रोणाचार्य ने अपने मन में पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर भगवान शिव की आराधना की और अपनी घोर तपस्या से त्रिलोकीनाथ भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए । शिवजी द्वारा वर मांगने के लिए कहने पर द्रोणाचार्य बोले - हे प्रभु! यदि आप मेरी आराधना से संतुष्ट होकर प्रसन्न हुए हैं तो भगवन्! मुझे अपने अंश से पैदा होने वाला पुत्र प्रदान कीजिए, जो वीर, पराक्रमी और अजेय हो । द्रोणाचार्य को उनका इच्छित वर प्रदान कर शिवजी अंतर्धान हो गए। तत्पश्चात मुनि द्रोण प्रसन्नतापूर्वक अपने घर को चल दिए और वहां जाकर उन्होंने अपनी पत्नी को वरदान प्राप्ति के बारे में बताया। जिसे सुनकर उनकी पत्नी बहुत प्रसन्न हुई । निश्चित समय पर मुनि द्रोण की पत्नी ने एक वीर बालक को जन्म दिया, जिसका नाम अश्वत्थामा रखा गया। अश्वत्थामा वीर और पराक्रमी योद्धा हुए और उन्होंने कौरव सेना का मान बढ़ाया। जब कौरव पाण्डवों का युद्ध हुआ तो अश्वत्थामा के कारण कौरव सेना अजेय हो गई और वह पाण्डव सेना पर हावी होने लगी। शिवजी के अंश से उत्पन्न होने के कारण ही अश्वत्थामा ने पाण्डव पुत्रों को युद्ध में मार डाला था। यह देखकर अर्जुन बहुत क्रोधित हुए और अपने पुत्रों का नाश करने वाले पर आक्रमण करने लगे। अर्जुन के सारथी के रूप में स्वयं श्रीकृष्ण थे। अर्जुन को अपनी ओर आता देखकर अश्वत्थामा ने उन पर ब्रह्मशिर नामक अस्त्र छोड़ दिया, जिससे सारी दिशाएं प्रचण्ड तेज से प्रकाशित हो उठीं। अश्वत्थामा के इस अस्त्र को देख अर्जुन एक पल के लिए विचलित हो गए। उन्होंने श्रीकृष्ण से इसका उपाय पूछा। तब श्रीकृष्ण बोले- हे अर्जुन! यह बहुत घातक शक्ति है। और इससे तुम्हारी रक्षा स्वयं भगवान शिव ही कर सकते हैं। तुम उन्हीं का स्मरण करके इस अस्त्र का नाश करो। तब अर्जुन ने हाथ जोड़कर भगवान शिव की मन से बहुत आराधना और स्तुति की। तत्पश्चात उन्होंने जल को छूकर शैवास्त्र छोड़ा। इसके प्रभाव से अश्वत्थामा द्वारा चलाया गया ब्रह्मशिर अस्त्र शांत हो गया। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन सहित सब पाण्डवों को अश्वत्थामा से आशीर्वाद लेने के लिए कहा। श्रीकृष्ण की आज्ञा मानते हुए सभी पाण्डवों ने अश्वत्थामा को प्रणाम किया। तब प्रसन्न होकर अश्वत्थामा ने पाण्डवों को अनेकों वर प्रदान किए और फिर अपने कर्तव्य को निभाते हुए कौरव सेना से मिलकर पुनः पाण्डवों से युद्ध करने लगे। इस प्रकार भगवान शिव ने परम भक्त द्रोण के घर पुत्र के रूप में जन्म लेकर अनेक लीलाएं रचीं।

भगवान शिव की शादी कब हुई थी?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिव विवाह हुआ था इसलिए इस दिन महाशिवरात्रि मनाई जाती है. हालांकि शिव पुराण की रुद्र संहित के अनुसार, शिव जी का विवाह मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था

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