गुरु पूर्णिमा का अर्थ और महत्व 2024 आषाढ़ पूर्णिमा कब है जानिए Meaning and significance of Guru Purnima 2024 Know when is Ashadh Purnima

गुरु पूर्णिमा का अर्थ और महत्व 2024 आषाढ़ पूर्णिमा कब है जानिए

गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमा)

हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने पूर्णिमा आती है। लेकिन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा इनमें अपना विशेष महत्व रखती है। इसे गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा से जुड़ा बड़ा ही दिलचस्प इतिहास है। ऐसा कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। व्यास जी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। शास्त्रों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों की रचना की थी। इसी कारण से उनका नाम वेदव्यास पड़ा था। माना जाता है कि गुरु पूर्णिमा का दिन इन्हीं को समर्पित किया गया है। वेदव्यास जी को आदिगुरु के नाम से भी जाना जाता है। मालूम हो कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इसकी वजह भी उपरोक्त वर्णन ही है।
Meaning and significance of Guru Purnima 2024 Know when is Ashadh Purnima

गुरु शब्द की उत्पत्ति

संस्कृत मूल गु का अर्थ हैं अंधेरा या अज्ञानता और रू का अर्थ हैं अंधेरा या अज्ञान को हटाने वाला या उसका निरोधक (प्रकाश, तेज)। गुरु वह है जो हमारे अज्ञान के अंधकार को हटाकर हमें ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाए।

आषाढ़ पूर्णिमा: 21 जुलाई 2024 पूर्णिमा व्रत

21 जुलाई 2024, रविवार को आषाढ़, शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा)
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 05:57 पी एम, जुलाई 20 से समाप्त – 03:44 पी एम, जुलाई 21 तक 

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है

भारत में गुरु पूर्णिमा के मनाये जाने का इतिहास काफी प्राचीन है। जब पहले के समय में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली हुआ करती थी तो इसका महत्व और भी ज्यादे था। शास्त्रों में गुरु को ईश्वर के समतुल्य बताया गया है, यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में गुरु को इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा मनाने को लेकर कई अलग-अलग धर्मों के विभिन्न कारण तथा सारी मान्यताएं प्रचलित है, परंतु इन सभी का अर्थ एक ही है यानी गुरु के महत्व को बताना।

गुरु पूर्णिमा के पूजन का लाभ

यह आषाढ़ माह के पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस दिन वेदो के रचनाकार महर्षि वेद व्यास जी के जन्म के उपलक्ष्य में गुरु पूर्णिमा व व्यास जयंती मनाई जाती है। जिन व्यक्तियों की कुण्डली में गुरु से सम्बन्धित कोई दोष हो तो गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा करने से यह दोष खत्म हो जाता है। पूजन से भाग्योदय होता है और जीवन में सुख समृद्धि का वास रहता है तथा नौकरी व्यापार और करियर मे फायदा होता है।

गुरु ईश्वर स्वरुप है

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः
हिंदी अर्थ - 
"गुरु ब्रह्मा है (नव जीवनदाता, सृष्टिकर्ता), गुरु विष्णु हैं (रक्षक) और गुरु देव महेश्वर हैं (शिव, बुराई का संहारक), गुरु साक्षात् परम ब्रह्म (परमेश्वर), ऐसे श्रीगुरु को मेरा नमन है।

गुरु पूर्णिमा हिंदू इतिहास

हिंदू धर्म की सभी पवित्र पुस्तकें गुरु  और उनके  शिष्य के बीच के बंधन के बारे में बात करती हैं  । हमारी पौराणिक कथाएँ  गुरु-शिष्य  कथाओं और कहानियों से भरी पड़ी हैं। और वे सभी एक ही चीज़ को दर्शाते हैं: चाहे कुछ भी हो; एक  शिष्य को   गुरु के प्रति अत्यंत आदर और आदर का भाव रखना चाहिए । इसलिए, एक  शिष्य को  वह करना चाहिए जो  गुरु  उससे कहे, क्योंकि ऐसा करना उसका कर्तव्य है। यह हमारी संस्कृति और हमारे मूल्यों में समाहित है। यह एक परंपरा है जो आध्यात्मिक और शैक्षणिक दोनों तरह के सभी गुरुओं का जश्न मनाती है। हालाँकि सम्मान और सम्मान की यह भावना निरंतर और निरंतर बनी रहनी चाहिए, लेकिन एक विशिष्ट दिन होता है जब इस बंधन का जश्न मनाया जाता है। यह वह दिन है जब शिक्षकों को सम्मानित और स्वीकार किया जाता है और छात्र विभिन्न तरीकों से उनके प्रति अपनी कृतज्ञता और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। इस उद्देश्य के लिए चिह्नित दिन  गुरु पूर्णिमा का दिन है । नाम के दो भाग हैं;  गुरु  और  पूर्णिमा .  गुरु का  तात्पर्य शिक्षक से है, और  पूर्णिमा का  तात्पर्य उस दिन से है जिस दिन त्योहार मनाया जाता है। यह पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो  हिंदू महीने  आषाढ़  (जून-जुलाई) की पूर्णिमा का दिन है। इसलिए उत्सव के लिए चुना गया दिन वह दिन है जब चंद्रमा पृथ्वी को रोशन करता है। यह काफी हद तक उसी तरह है जैसे  गुरु  या शिक्षक अपने शिष्य के जीवन को रोशन करते हैं। चंद्रमा की रोशनी से जग जगमगा उठता है. उसी प्रकार,  गुरु के  व्यक्तित्व से निकलने वाली रोशनी शिष्य के जीवन को रोशन करती है, वह गुरु पूर्णिमा है। वह कितना सुंदर है! इस दिन को  व्यास पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि यह वेद व्यास , ऋषि, जिन्होंने वेदों का संकलन किया और  महाभारत के लेखक थे , का जन्मदिन भी मनाया जाता है  ।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

शास्त्रों में गुरु को पथ प्रदर्शित करने वाला तथा अंधकार को दूर करने वाला बताया गया है। गुरु का अर्थ ही है अंधकार को दूर करने वाला क्योंकि वह अज्ञानता का अंधकार दूर करके एक व्यक्ति को ज्ञान के प्रकाश के ओर ले जाते हैं। बच्चे को जन्म भले ही उसके माता-पिता द्वारा दिया जाता हो, लेकिन उसे जीवन का अर्थ समझाने और ज्ञान प्रदान करने का कार्य गुरु ही करते है।सनातन धर्म में मनुष्य को मोक्ष और स्वर्ग प्राप्ति बिना गुरु के संभव नही है। गुरु ही है जो एक व्यक्ति की आत्मा का मिलन परमात्मा से कराते है और उनके बिना यह कार्य दूसरा कोई नही कर सकता है। एक व्यक्ति को जीवन के इस बंधन को पार करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। यहीं कारण है कि हिंदू धर्म में गुरु को इतना महत्व दिया जाता है।

गुरु पूर्णिमा कथा

प्राचीन काल में महर्षि परासर भ्रमण कर रहे थे उनकी नजर एक महिला पर पड़ी जिनका नाम सत्यवती था। सत्यवती एक मछुआरे की पुत्री थी जो देखने में बेहद खूबसूरत थी लेकिन मछुआरे के घर में जन्म लेने के कारण उनके शरीर से मछली की गंध आती रहती थी। इसलिए उन्हे मत्स्यगंधा भी कहा जाता है। ऋषि परासर उन्हें देखकर व्याकुल हो गये लेकिन परासर ऋषि उन्हें देखकर सत्यवती से संतान प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की ये बात सुनकर सत्यवती को आश्चर्य हुआ  उन्होंने बोला की मै इस तरह का अनैतिक सम्बन्ध कैसे बना सकती हुं। इस तरह से संतान का जन्म लेना व्यर्थ है। तब परासर ऋषि ने कहा की तुम्हारी कोख से जन्म लेने वाला बच्चा संसार के लिए महान कार्य करेगा। अब सत्यवती मान गई लेकिन उसने ऋषि के सामने शर्त रखी। उनकी शर्ते तीन थी पहली शर्त ये थी- संभोग क्रीड़ा करते समय कोई ना देखे और दूसरी शर्त यह थी की- होने वाले बच्चा महान ज्ञानी होने के साथ मेरी कौमयता भंग ना हो और तीसरी शर्त थी की- मेरे शरीर से  आने वाली शरीर की गंध फूलो की खुश्बू में बदल जाएं। ऐसे मे ऋषि परासर ने तुरंत तथास्तु कह दिया सत्यवती की कोख में महर्षि वेद व्यास ने जन्म लिया और उन्ही के जन्मदिन को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है।

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