शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (पंचम खंड) अट्ठाईसवां अध्याय से बत्तीसवां अध्याय तक

शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (पंचम खंड) अट्ठाईसवां अध्याय से बत्तीसवां अध्याय तक

शंखचूड़ का विवाह

सनत्कुमार जी बोले- हे महर्षे! भगवान श्रीहरि विष्णु के वरदान के फलस्वरूप दंभ को एक वीर पराक्रमी पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया। शंखचूड़ भी धार्मिक था। अपने परम पूज्य गुरु के अमृत वचनों का शंखचूड़ के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वह पुष्कर नामक तीर्थ में जाकर एकाग्र मन से तपस्या करने लगा। उसने अपनी इंद्रियों को अपने वश में कर लिया और अनेकानेक मंत्रों द्वारा ब्रह्माजी की साधना करने लगा। उसकी भक्तिभाव से की गई आराधना से शीघ्र ही ब्रह्माजी प्रसन्न हो गए। एक दिन जब शंखचूड़ प्रतिदिन की भांति तपस्या में मग्न था, ब्रह्माजी उसके सामने प्रकट हो गए। अपने आराध्य को एकाएक अपने सामने इस प्रकार खड़ा देखकर शंखचूड़ की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। वह ब्रह्माजी के चरणों में लेट गया और उनके पैरों पर अपना सिर रखकर उनकी स्तुति करने लगा। ब्रह्माजी ने शंखचूड़ को ऊपर उठाया और उससे कहा - हे वत्स! मैं तुम्हारी आराधना से बहुत प्रसन्न हूं। तुम जो चाहो मुझसे वरदान मांग सकते हो। मैं तुम्हारी सभी कामनाएं पूरी करूंगा। अपने आराध्य ब्रह्माजी के ये वचन सुनकर शंखचूड़ बोला- हे ब्रह्माजी ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि मुझे कोई भी जीत न सके। शंखचूड़ के इस वर को सुनकर ब्रह्माजी बोले- ऐसा ही होगा और फिर उसे भगवान श्रीकृष्ण का अक्षय कवच देते हुए वे कहने लगे कि शंखचूड़ अब तुम बद्रिकाश्रम चले जाओ। वहां सकामा तुलसी तपस्या कर रही है। तुम वहां जाकर धर्मराज की कन्या तुलसी से विवाह कर लो। यह कहकर ब्रह्माजी वहां से अंतर्धान हो गए। ब्रह्माजी के अंतर्धान होने पर शंखचूड़ बद्रिकाश्रम की ओर चल दिया। वहां जाकर वह तुलसी के पास पहुंचा। शंखचूड़ को अपने सामने खड़ा देखकर वह बोली- मैं धर्मराज की पुत्री तुलसी हूं। आप कौन हैं और यहां किसलिए आए हैं। कृपया आप यहां से चले जाएं। आप शायद नहीं जानते कि स्त्री जाति मोहिनी होती है। तुलसी के वचन सुनकर शंखचूड़ बोला- हे देवी! आपके वचन सत्य हैं परंतु यहां मैं अपने आराध्य भगवान ब्रह्माजी की आज्ञा से आया हूं। मैं दनु का वंशज, दानव दंभ का पुत्र शंखचूड़ हूं। पूर्व में राधिका के दिए शाप के कारण मैं दानव कुल में जन्मा हूं। यह सब कहकर शंखचूड़ चुप हो गया। तब तुलसी बोली- यह सत्य है कि इस संसार में वही पुरुष श्रेष्ठ है जो स्त्री से पराजित हो जाते हैं परंतु आज मैं भी तुम्हारी स्पष्टवादिता से अत्यंत प्रभावित हुई हूं। जब इस प्रकार शंखचूड़ और तुलसी आपस में बातें कर रहे थे तभी वहां ब्रह्माजी प्रकट हो गए। उन्हें देखकर, तुलसी और शंखचूड़ दोनों ने उन्हें प्रणाम किया। तुम दोनों यहां अभी तक बातें ही कर रहे हो? शंखचूड़! मैंने तुम्हें यहां तुलसी का पाणिग्रहण करने के लिए भेजा था। तुम निश्चय ही पुरुषों में श्रेष्ठ हो और तुलसी निःसंदेह ही स्त्रियों में रत्न है। तुम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हो। इसलिए तुम्हें शीघ्र ही एक-दूसरे का हो जाना चाहिए। शंखचूड़ और तुलसी को विवाह करने के लिए कहकर ब्रह्माजी वहां से चले गए। ब्रह्माजी का आदेश मानते हुए तुलसी और शंखचूड़ ने गंधर्व रीति से विवाह कर लिया। तत्पश्चात वे दोनों अनेक सुंदर मनोरम स्थानों पर अनेकों वर्षों तक विहार करते रहे। एक-दूसरे का साथ पाकर वे बहुत प्रसन्न थे।

शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (पंचम खंड) अट्ठाईसवां अध्याय  समाप्त

शंखचूड़ के राज्य की प्रशंसा

व्यास जी बोले – हे ब्रह्माजी के पुत्र सनत्कुमार जी ! जब संसार के सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी की - आज्ञा से तुलसी और शंखचूड़ ने गंधर्व रीति से विवाह कर लिया, तब फिर क्या हुआ ? उन दोनों ने क्या किया? व्यास जी के इस प्रकार के प्रश्न सुनकर सनत्कुमार जी बोले - हे महामुने! शंखचूड़ और देवी तुलसी ने ब्रह्माजी की आज्ञा से विवाह कर लिया और वह उसे अपने साथ लेकर अपने घर वापिस आ गया। जब दानवों को इस बात की सूचना मिली कि शंखचूड़ को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त हुआ है तो वे सभी बहुत प्रसन्न हुए। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने स्वयं वहां आकर शंखचूड़ को ढेरों आशीर्वाद प्रदान किए। तत्पश्चात उन्होंने शंखचूड़ को असुरों का आधिपत्य देते हुए उसका राज्याभिषेक कराया। राजसिंहासन संभालने के पश्चात शंखचूड़ बहुत प्रसन्न था। तब शुक्राचार्य बोले- हे असुरराज ! शंखचूड़ ! तुम निःसंदेह ही वीर और पराक्रमी हो । तुम्हें आज असुरों का राज्य सौंपकर मुझे बहुत हर्ष हो रहा है। अब इस राज्य का विस्तार करना और असुरों की रक्षा करने का दायित्व तुम्हारा है। मुझे तुम्हारी प्रतिभा पर पूरा विश्वास है।  यह कहकर दैत्यगुरु शुक्राचार्य वहां से चले गए। उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर शंखचूड़ राज्य करने लगा। उसने अपने राज्य का विस्तार करने के उद्देश्य से अपनी विशाल सेना को इंद्रलोक पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। वह स्वयं भी उस युद्ध में जा खड़ा हुआ । असुरों और देवताओं में बड़ा भयानक युद्ध शुरू हो गया। देवताओं ने अनेक असुरों को मार गिराया, अनेकों को घायल कर दिया। यह देखकर असुर सेना विचलित होकर इधर-उधर भागने लगी। इसे देखकर असुरराज शंखचूड़ का क्रोध सातवें आसमान पर जा पहुंचा। अपनी पूरी शक्ति से युद्ध करते हुए उसने देव सेना को खदेड़ दिया। दैत्यराज शंखचूड़ से डरकर देव सेना तितर-बितर हो गई और अपने प्राणों की रक्षा के लिए गुफाओं और कंदराओं में जाकर छुप गई। महाबली, वीर प्रतापी शंखचूड़ ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और स्वर्ग के सिंहासन पर विराजमान हो गया। सूर्य, अग्नि, चंद्रमा, कुबेर, यम, वायु आदि सभी देवता शंखचूड़ के अधीन हो गए। अनेक देवता शंखचूड़ के डर से भाग निकले। जो देवता वहां से भाग निकले थे वे अपने प्राणों की रक्षा के लिए इधर-उधर मारे-मारे फिर रहे थे। जब उन्हें यह समझ नहीं आया कि अब वे क्या करें और कहां जाएं, तब वे सब देवता मिलकर ऋषि-मुनियों को साथ लेकर ब्रह्माजी की शरण में गए।ब्रह्माजी के पास पहुंचकर देवताओं ने उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति की। तत्पश्चात उन्होंने शंखचूड़ के आक्रमण और स्वर्ग पर उसके आधिपत्य के बारे में सबकुछ ब्रह्माजी को बता दिया। ब्रह्माजी ने आश्वासन देते हुए कहा कि इस विषय में भगवान विष्णु ही हमें कोई सही मार्ग बता सकते हैं। अतः हम सभी को उनके पास चलना चाहिए। यह कहकर वे सब श्रीहरि से मिलने के लिए बैकुण्ठलोक को चल दिए। बैकुण्ठलोक पहुंचकर देवराज इंद्र और ब्रह्माजी सहित सभी देवताओं ने लक्ष्मीपति विष्णुजी की स्तुति की और उन्हें सारी बातों से अवगत कराया। देवताओं का दुख सुनकर विष्णुजी ने उन्हें ढाढ़स बंधाते हुए कहा- हे देवताओ! आप इस प्रकार दुखी न हों। मैं शंखचूड़ के बारे में सभी कुछ जानता हूं। पहले वह मेरा अनन्य भक्त था। इस बारे में हमें देवाधिदेव महादेव जी से विचार-विमर्श करना चाहिए क्योंकि वे ही इस समस्या का सही समाधान बता सकते हैं। यह कहकर वे ब्रह्माजी और अन्य देवताओं को अपने साथ लेकर शिवलोक की ओर चल दिए

शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (पंचम खंड) उन्तीसवां अध्याय समाप्त

देवताओं का शिवजी के पास जाना

सनत्कुमार जी बोले- हे व्यास जी ! इस प्रकार ब्रह्माजी और अन्य देवताओं को अपने साथ लेकर विष्णुजी भगवान शिव से मिलने के लिए शिवलोक पहुंचे। वहां शिवलोक में भगवान शिव के सभी गण उन्हें घेरकर खड़े हुए थे। भगवान शिव अपनी प्रिय देवी पार्वती के साथ सिंहासन पर बैठे हुए थे। भगवान शिव ने अपने शरीर पर भस्म धारण की हुई थी। उनके गले में रुद्राक्ष की माला थी। त्रिनेत्रधारी भगवान शिव शंकर देवी पार्वती के साथ बैठे वहां अद्भुत शोभा पा रहे थे।उनका वह अद्भुत और दिव्य रूप देखकर भगवान विष्णु, ब्रह्माजी, देवराज इंद्र सहित अन्य सभी देवताओं को बहुत प्रसन्नता हुई। उन्होंने देवाधिदेव, कृपानिधान भगवान शिव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और भक्तिपूर्वक उनकी स्तुति करनी आरंभ कर दी।  देवता बोले- हे करुणानिधान! हे भक्तवत्सल भगवान शिव ! आप सर्वेश्वर हैं। आप परम ज्ञानी हैं। आप सबकुछ जानने वाले हैं। प्रभु! आपकी आज्ञा से ही इस संसार में हर कार्य होता है। आपकी आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता । भगवन्! आप तो सबकुछ जानते हैं। हे भक्तवत्सल! आप सदा ही अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनकी सभी इच्छाओं को पूरा कर उनके अभीष्ट कार्यों को पूरा करते हैं। भगवन्! हम इस समय बड़े दुखी होकर अपने प्राणों की रक्षा के लिए आपकी शरण में आए हैं। दानवराज दंभ के पुत्र शंखचूड़ ने बलपूर्वक हमारे राज्य पर अपना अधिकार कर लिया है। उसने अनेक देवताओं को अपना बंदी बना लिया है और देवसेना को घायल कर कइयों को मौत के घाट उतार दिया है। किसी तरह हम अपनी जान बचाकर वहां से भाग निकले हैं। भगवन्! आप अपने भक्तों के रक्षक हैं। हम आपकी शरण में आए हैं। आप हम दुखियों के दुखों को दूर कीजिए। उस शंखचूड़ नामक दैत्य ने हमारा जीना मुश्किल कर दिया है। आप उसको दण्ड देकर हमें मुक्त कराइए और हमारा उद्धार कीजिए। यह कहकर सब देवता चुप होकर हाथ जोड़कर खड़े हो गए।

शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (पंचम खंड) तीसवां अध्याय समाप्त

शिवजी द्वारा देवताओं को आश्वासन

सनत्कुमार जी बोले – हे महामुने ! इस प्रकार देवताओं की करुण प्रार्थना और अनुनय- विनय सुनकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव बोले- हे श्रीहरि ! हे ब्रह्माजी और अन्य सभी देवताओ! मैं दैत्यराज शंखचूड़ के विषय में सबकुछ जानता हूं। असुरराज शंखचूड़ भले ही दे॒वताओं का शत्रु एवं प्रबल विरोधी हो गया हो परंतु वह अभी भी धार्मिक है और सच्चे हृदय से धर्म का पालन करता है परंतु फिर भी तुम लोग मेरे पास मेरी शरण में आए हो और शरणागत की रक्षा करना सभी का कर्तव्य है। इसलिए मैं तुम्हारी रक्षा करने का वचन देता हूं। तुम अपनी व्यर्थ की चिंताएं त्याग दो और प्रसन्न होकर अपने-अपने स्थान पर लौट जाओ। मैं निश्चय ही शंखचूड़ का संहार करके उसके द्वारा दिए गए कष्टों से तुम्हें मुक्ति दिलाकर तुम्हारा स्वर्ग का राज्य तुम्हें वापस दिलाऊंगा। भगवान शिव जब इस प्रकार से देवताओं को शंखचूड़ के वध का आश्वासन दे ही रहे थे, तभी उनसे मिलने के लिए राधा के साथ श्रीकृष्ण वहां पधारे। भगवान शिव को प्रणाम करके वे प्रभु की आज्ञा से उनके पास ही बैठ गए। श्रीकृष्ण और राधा ने महादेव जी की मन में बहुत स्तुति की। जब भगवान शिव ने उनसे उनके आने का कारण पूछा, तब श्रीकृष्ण बोले- हे कृपानिधान! दयानिधि! आप तो सबकुछ जानते हैं। आप ही इस जगत में सनाथ हैं। आप तो जानते ही हैं कि मैं और मेरी पत्नी दोनों ही शाप भोग रहे हैं। मेरा पार्षद सुदामा भी शाप के कारण दानव की योनि में अपना जीवन जी रहा है। आप भक्तवत्सल हैं। प्रभु! हम आपकी शरण में आए हैं। हम पर अपनी कृपादृष्टि करिए और हमें हमारे दुखों से मुक्ति दिलाइए। भगवन्! अब हमें इस शाप से मुक्ति दिलाइए। भगवान श्रीकृष्ण की इस प्रार्थना को सुनकर देवाधिदेव महादेव जी बोले- हे कृष्णा ! आपको डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। निश्चय ही आपका कल्याण होगा। आप शाप के अनुसार बारह कल्प तक इस शाप को भोगने के पश्चात ही राधा सहित अपने निवास बैकुण्ठलोक को प्राप्त होओगे। आपका सुदामा नामक पार्षद इस समय दानव योनि में शंखचूड़ के रूप में सभी को दुख दे रहा है। इस समय वह देवताओं का प्रबल विरोधी और शत्रु है। देवताओं को उसने बहुत कष्ट दिया है। उनका राज्य छीनकर उन्हें बंदी बना लिया है। तब भगवान शिव बोले कि मैं आपके दुखों और कष्टों को समझता हूं। अब आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः सबकुछ भुला दो । तब उन्होंने ब्रह्माजी और श्रीहरि विष्णु को आदेश दिया कि वे वहां से जाकर अन्य देवताओं को समझाएं कि वे निश्चिंत हो जाएं। मैं उनकी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा और उन्हें शंखचूड़ के भय से मुक्त कराऊंगा। भगवान शिव के ये अमृत वचन सुनकर श्रीकृष्ण राधा, ब्रह्माजी सहित श्रीहरि विष्णु को बहुत संतोष हुआ। तब वे उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम करने लगे। तत्पश्चात भगवान शिव से आज्ञा लेकर सभी प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने स्थान को चले गए।

शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (पंचम खंड) इकत्तीसवां अध्याय समाप्त

पुष्पदंत-शंखचूड़ वार्ता

व्यास जी बोले- हे ब्रह्मापुत्र सनत्कुमार जी ! जब देवाधिदेव महादेव जी ने ब्रह्मा, विष्णु और देवराज इंद्र सहित श्रीकृष्ण को शंखचूड़ के वध का आश्वासन दिया, तब सब देवता प्रसन्न होकर उनसे विदा लेकर अपने-अपने धाम को चले गए। तब आगे क्या हुआ? भगवान शिव ने क्या किया? व्यास जी का प्रश्न सुनकर सनत्कुमार जी बोले- हे महामुने ! भगवान शिव के आश्वास देने पर कि वे असुरराज शंखचूड़ का वध करेंगे, सभी देवता अपने-अपने स्थान को चले गए। तब भगवान शिव ने विचार किया कि क्या किया जाना चाहिए? तत्पश्चात उन्होंने गंधर्वराज चित्ररथ पुष्यदंत को स्मरण किया। स्मरण करते ही पुष्पदंत तुरंत वहां शिवजी के सामने उपस्थित हो गए। पुष्पदंत ने हाथ जोड़कर महादेव जी को प्रणाम किया और उनकी स्तुति की। तत्पश्चात पुष्पदंत हाथ जोड़कर बोले- हे देवाधिदेव ! कृपानिधान! करुणानिधान! मेरे लिए क्या आज्ञा है। मैं आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर उसे यथाशीघ्र ही पूरा करूंगा। यह सुनकर भगवान शिव ने पुष्पदंत को अपना दूत बनाकर शंखचूड़ के पास भेजा। अपने आराध्य भगवान शिव की आज्ञा पाकर पुष्पदंत तुरंत ही वहां से असुरराज शंखचूड़ के नगर की ओर चल दिया। पुष्पदंत शंखचूड़ के नगर पहुंचकर उनसे मिला और बोला- हे असुरराज! मैं त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का दूत बनकर उनका संदेश लेकर आपके पास आया हूं। उन्होंने कहा है कि आप यथाशीघ्र देवताओं को उनका राज्य वापस सौंप दें अन्यथा भगवान शिव के साथ युद्ध करें। युद्ध में उनके हाथों आपका वध निश्चित है। मैंने भगवान शिव के सभी व आपसे कह दिए हैं। आप जो संदेश उन्हें देना चाहें, मुझे बता दें। मैं आपका संदेश भगवान शिव तक पहुंचा दूंगा।  पुष्पदंत नामक दूत की बातें सुनकर असुरराज शंखचूड़ बोला- हे मूर्ख दूत ! क्या तुम मुझे बेवकूफ समझते हो? जाकर अपने स्वामी से कह दो कि मैं देवताओं को उनका राज्य वाप नहीं दूंगा। मैं वीर हूं, युद्ध से नहीं डरता। अब शिव और मेरा सामना युद्ध भूमि में ही होगा। असुरराज शंखचूड़ के ऐसे वचन सुनकर पुष्पदंत मन ही मन क्रोध की सारी सीमाएं पार कर गया। परंतु अपने स्वामी की आज्ञा के बिना वह कुछ नहीं करना चाहता था, इसलिए चुपचाप वापस शिवजी के पास लौट गया।

शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (पंचम खंड) बत्तीसवां अध्याय समाप्त

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