सूर्य भगवान की आरती और मंत्र रविवार व्रत की पूजन विधि और आरती Aarti and Mantra of Sun God, worship method and Aarti of Sunday fast

सूर्य भगवान की आरती और मंत्र रविवार व्रत की पूजन विधि और आरती

सूर्य भगवान

सूर्य आरोग्य के दाता हैं। इनकी प्रसन्नता के लिये रविवार के दिन व्रत को धारण करें। सूर्य आदि सभी देवताओं की पूजा पाँच प्रकार से की जाती है। 
  • एक तो सूर्य का मंत्र जपे, 
  • दूसरे उनके लिए होम करे,
  • तीसरे दान करे, 
  • चौथे तप करे 
  • पाँचवें किसी देव पर, 

सूर्य की प्रतिमा में, अग्नि में अथवा ब्राह्मण के शरीर में आराध्यदेव सूर्य की भावना कर षोडशोचार से उनकी पूजा करें। सूर्यवार (रविवार) के व्रत में नमक, तेल तथा अन्य किसी प्रकार का तामसी भोजन न करें। इस दिन के व्रत में फलाहार करे तो अच्छा है और नहीं तो गेहूँ का आटा, दूध और गुड़ ले सकते हैं। इस प्रकार दिन भर निराहार रहकर सायं के समय सूर्यास्त होने के पहले ही भोजन कर लेवें। यदि सूर्यास्त हो व्रत और त्यौहार जाय और भोजन न कर सके तो रातभर यों ही निराहार ही व्यतीत करें और दूसरे दिन प्रातः काल सूर्योदय होने पर सूर्य के दर्शन करके स्नान कर, उन्हें अर्घ्य देवे और पुनः भोजन करें। फल या अन्न का पारण एक बार से अधिक न लेवें। व्रत के अन्त में सूर्य भगवान् की पूजा कर अर्घ्य आदि देकर निम्नलिखित कथा को सुने। अर्घ्य से लेकर सोलहों प्रकार की पूजा तक जो भी सुलभ हो करें। एक के अभाव में अन्य का अवलम्बन करें। नेत्रों में दृष्टि, कुष्ट रोग की शान्ति के लिए भगवान् सूर्य की पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन कराये, और न हो सके तो नहीं कराये। रविवार का व्रत करने से अनेक प्रकार के विघ्न शान्त होते हैं। शत्रु नष्ट होते हैं और राजसभा में उसका मान होता है। एक दिन एक मास एक वर्ष अथवा तीन वर्ष तक लगातार ऐसा साधन करना चाहिये। इससे साधारण रोग तो नष्ट हो ही जाते हैं, मनुष्य के वृद्धता आदि रोग भी नष्ट हो जाते हैं। यदि रविवार को सूर्यदेव के लिये, अन्य देवताओं के लिये तथा ब्राह्मणों के लिये विशिष्ट वस्तु अर्पित करें तो यह साधन विशिष्ट फल देता है। इसके द्वारा विशेष रूप से पापों की शान्ति होती है। निर्धन मनुष्य तपस्या द्वारा और धनी व्यक्ति धन के द्वारा देवताओं की आराधना करें

श्री सूर्य देव की आरती

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता।
षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि दाता॥

जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

नभमंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।
निज जन हित सुखरासी, तेरी हम सबें सेवा॥

करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।
निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी॥

हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

॥ इति श्री सूर्य देव की आरती समाप्तम्॥

रविवार व्रत की पूजन विधि

  • यह व्रत व्रत एक वर्ष या 30 रविवारों तक अथवा 12 रविवारों तक करने का संकल्‍प लेकर प्रारम्‍भ करना चाहिए।
  • रविवार को सूर्योदय से पूर्व बिस्तर से उठकर शौच व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ लाल रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए।
  • इसके बाद किसी पवित्र एवं स्‍वच्‍छ स्थान पर भगवान सूर्य की स्वर्ण निर्मित मूर्ति या चित्र स्थापित करें। घर में एक स्‍थान ऐसा बना लें जहॉं स्‍वच्‍छता हो और नियमित पूजा की जा सकती हो।
  •  इसके बाद विधि-विधान से धूप, दीप, नैवेद्य, गंध-पुष्पादि से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए। 
  • पूजन के बाद व्रतकथा पढ़नी या सुननी चाहिए।
  • व्रतकथा के पश्‍चात भगवान सूर्य देव की आरती करनी चाहिए।
  • इसके उपरान्‍त सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:' इस मंत्र का 12 या 5 या 3 माला जप करें। यथाशक्ति एवं समय के अनुसार आप जप माला की संख्‍या बढ़ा या घटा सकते हैं। माला जप के पूर्व माला जप का संकल्‍प अवश्‍यक करें। संकल्‍प के लिए हाथ में कुश, अक्षत और जल लेकर भगवान सूर्यदेव का ध्‍यान करते हुए मनवांछित अभिलाषा की पूर्ति हेतु जप करने का संकल्‍प लें और जल को पृथ्‍वी पर छोड़ दें। यह प्रक्रिया प्रत्‍येक बार दोहरायें। 
  • जप के बाद शुद्ध जल, रक्त चंदन (रोली), अक्षत (चावल के सबूत दाने), लाल पुष्प और दूर्वा(दूब) से सूर्य को अर्घ्य दें।
  • इस दिन सात्विक भोजन व फलाहार करें। भोजन में गेहूं की रोटी, दलिया, दूध, दही, घी और चीनी खा सकते हैं। नमक का परहेज करें। 

॥ रविवार की आरती॥

कहूँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे॥
सात समुद्र जाके चरणानि बसे, कहा भयो जल कुंभ भरे हो राम।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मंदिर दीप धरे हो राम।
भार उठारह रोमावली जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवैद्य धरे हो राम।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झंकार करे हो राम।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रह्म वेद पढ़े हो राम।
शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम।
हिम मंदार जाको पवन झकोरें, कहा भयो चँवर ढुरे हो राम।
लख चौरासी बन्दे छुड़ाये, केवल हरियश नामदेव गाये। हो रामा
॥ इति रविवार की आरती समाप्तम्॥

दोनों हाथ जोड़ सूर्य नारायण का ध्यान करें:-

मंत्रों से सूर्य  नारायण को प्रणाम करे-
  • ध्येय: सदा सवितृमंडलमध्यवर्त नारायण: सरसिजासनसंनिविष्ट:।।
  • केयूरवान मकरकुंडलवान किरीटी हारी हिरण्मयवपुर्धृतशंक चक्र:।।
  • ॐ मित्राय नम:,
  • ॐ रवये नम:,
  • ॐ सूर्याय नम:,
  • ॐ भानवे नम:,
  • ॐ खगाय नम:,
  • ॐ पूष्णे नम:,
  • ॐ हिरण्यगर्भाय नम:,
  • ॐ मरीचये नम:,
  • ॐ आदित्याय नम:,
  • ॐ सवित्रे नम:,
  • ॐ अर्काय नम:,
  • ॐ भास्कराय नम:

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