शास्त्रनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं पर शिव के तीन नेत्र हैं जानिए According to the scriptures, all the gods have two eyes but Shiva has three eyes. Know
शास्त्रनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं पर शिव के तीन नेत्र हैं जानिए
शिव के तीन नेत्र
त्वं ब्रह्मा सृष्टिकर्ता च त्वं विष्णुः परिपालकः।
त्वं शिवः शिवदोऽनन्तः सर्वसंहारकः॥
भगवान शंकर का एक नाम त्रिलोचन भी है। त्रिलोचन का अर्थ होता है तीन आंखों वाला क्योंकि एक मात्र भगवान शंकर ही ऐसे हैं जिनकी तीन आंखें हैं। शिव के दो नेत्र तो सामान्य रुप से खुलते और बंद होते रहते हैं, शिव के दो नेत्रों को शास्त्रों ने चंद्रमा व सूर्य कहकर संबोधित किया है परंतु तीसरा नेत्र कुछ अलग संज्ञा लिए हुए होता है। वेदों ने शिव के तीसरे नेत्र को प्रलय की संज्ञा दी है। वास्तविकता में शिव के ये तीन नेत्र त्रिगुण को संबोधित है। दक्षिण नेत्र अर्थात दायां नेत्र सत्वगुण को संबोधित है। वाम नेत्र अर्थात बायां नेत्र रजोगुण को संबोधित है तथा ललाट पर स्थित तीसरा नेत्र तमोगुण को संबोधित करता है। इसी प्रकार शिव के तीन नेत्र त्रिकाल के प्रतीक है ये नेत्र भूत, वर्तमान, भविष्य को संबोधित करते हैं। इसी कारण शिव को त्रिकाल दृष्टा कहा जाता है। इनहीं तीन नेत्रों में त्रिलोक बस्ता है अर्थात स्वर्गलोक, मृत्युलोक व पाताललोक अर्थात शिव के तीन नेत्र तीन लोकों के प्रतीक हैं। इसी कारण शिव त्रिलोक के स्वामी माने जाते हैं।
According to the scriptures, all the gods have two eyes but Shiva has three eyes. Know |
त्रीद्लं त्रिगुनाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम।
त्रीजन्म पापसंहारम एक बिल्व शिवार्पणनम्॥
शिव को परमब्रह्म माना जाता है। संसार की आंखें जिस सत्य का दर्शन नहीं कर सकतीं, वह सत्य शिव के नेत्रों से कभी ओझल नहीं हो सकता क्योंकि सम्पूर्ण संसार शिव की एक रचना मात्र है। इसी कारण तीन लोक इनके अधीन हैं। शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान चक्षु है। यह विवेक का प्रतीक है। ज्ञान चक्षु खुलते ही काम जल कर भस्म हो जाता है। जैसे विवेक अपना ऋषित्व स्थिर रखते हुए दुष्टता को उन्मुक्त रूप में विचारने नहीं देता है तथा उसका मद- मर्दन करके ही रहता है। इसी कारण शिव के तीसरे नेत्र खुलने पर कामदेव जलकर भस्म हो गए थे। शिव का तीसरा चक्षु आज्ञाचक्र पर स्थित है। आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है। तृतीय नेत्र खुल जाने पर सामान्य बीज रूपी मनुष्य की सम्भावनाएं वट वृक्ष का आकार ले लेती हैं। धार्मिक दृष्टि से शिव अपना तीसरा नेत्र सदैव बंद रखते हैं। तीसरी आंख शिव जी तभी खोलते हैं जब उनका क्रोध अपने प्रचुरतम सीमा से परे होता है। तीसरे नेत्र के खुलने का तात्पर्य है प्रलय का आगमन।
सूर्यस्त्वं सृष्टिजनक आधारः सर्वतेजसाम्।
सोमस्त्वं सस्यपाता च सततं शीतरश्मिना॥
वास्तवक्ता में परमेश्वर शिव ने यह तीसरा नेत्र प्रत्येक व्यक्ति को दिया है। यह विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस जरुरत है उसे जगाने की। शिव के ज्ञान रुपी तीसरे नेत्र से ये प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य धरती पर रहकर ज्ञान के द्वारा अपनी काम और वासनाओं पर काबू पाकर मुक्ति प्राप्त कर सके।अगर सांसरिक दृष्टि से देखा जाए तो नेत्रों का कार्य होता है मार्ग दिखाना व मार्ग में आने वाली मुसीबतों से सावधान करना। जीवन में कई बार ऐसे संकट भी शिव जी द्वारा दिए तीनों नेत्र संयम से प्रयोग में लेने चाहिए। काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह व अहंकार इसी तीसरे नेत्र से हम में प्रवेश करते हैं तथा इसी तीसरे नेत्र से हम इन्हे भस्म भी कर सकते है तात्पर्य है इस आज्ञा चक्र को जाग्रत करके सही मार्ग पर ले जाने की।
भगवान शिव कर्मों स्वरूप से भी रहस्यमय
भगवान शिव अपने कर्मों से तो अद्भुत हैं ही अपने स्वरूप से भी रहस्यमय हैं। चाहे उनके भाल पर चंद्रमा हो या उनके गले में सर्पो की माला हो या मृग छाला हो, हर वस्तु जो भगवान शिव ने धारण कर रखी है। उसके पीछे बड़ा रहस्य है।
उनके भाल पर "चंद्रमा" मन का प्रतीक है. शिव का मन भोला, निर्मल, पवित्र, सशक्त है, उनका विवेक सदा जाग्रत रहता है। शिव का चंद्रमा उज्जवल है। "सर्प" जैसा क्रूर व हिसंक जीव महाकाल के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक वृत्ति का जीव है, जिसे शिव ने अपने अधीन कर रखा है। इसलिए उनके गले में सर्पो का हार है। शिव के हाथ में एक मारक "त्रिशूल" शस्त्र है। त्रिशूल सृष्टि में मानव के भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है। डम डम करता "डमरू" जिसे वे तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्म रुप है। शिव के गले में "मुंडमाला" है जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में कर रखा है। शिव के शरीर पर व्याघ्र "चर्म" है, व्याघ्र हिंसा व अंहकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा व अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।
शिव का वाहन वृषभ है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। महादेव इस चार पैर वाले बैल की सवारी करते है अर्थात् धर्म, अर्थ, काम मोक्ष उनके अधीन है। सार रूप में शिव का रूप विराट और अनंत है, शिव की महिमा अपरम्पार है। शिव की "तीसरी आंख" भी ऐसी ही है। धर्म शास्त्रों के अनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं पर शिव की तीन आंखें हैं। शिव को त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव के ये तीन नेत्र सत्व, रज, तम तीन गुणों, भूत, वर्तमान, भविष्य, तीन कालों स्वर्ग, मृत्यु पाताल तीन लोकों का प्रतीक है। शिवजी के तीनों नेत्र अलग अलग गुणों के प्रतीक हैं जिसमें दांए नेत्र सत्वगुण और बांए नेत्र रजोगुण और तीसरे नेत्र में तमोगुण का वास है। भगवान शिव ही एक ऐसे देव हैं जिनकी तीसरी आंख उनके ललाट पर दिखाई देती है, जिसके कारण इन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है।
भगवान शिव का यह तीसरा नेत्र ज्ञान चक्षु है। यह विवेकशीलता का प्रतीक है। इस ज्ञान चक्षु की पलके खुलते ही काम जल कर भस्म हो जाता है। यह विवेक अपना ऋषित्व स्थिर रखते हुए दुष्टता को उन्मुक्त रूप में विचरने नहीं देता है। अंतत उसका मद मर्दन करके ही रहता है। वस्तुत यह तृतीय नेत्र परमात्मा ने प्रत्येक व्यक्ति को दिया है, यह विवेक अन्तः प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस जरुरत है उसे जगाने की। भगवान शिव का तीसरा नेत्र आज्ञाचक्र का स्थान है। यह आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है। यदि यह तृतीय नेत्र खुल जाये, तो सामान्य बीज रूपी मनुष्य की सम्भावनाये वट वृक्ष का आकार ले सकती है।वास्तव में शिव की तीसरी आंख प्रतीकात्मक नेत्र है। आंखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में पढऩे वाली मुसीबतों से सावधान करना। जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं; जिन्हें हम अपनी दोनों आंखों से भी नहीं देख पाते। ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही गलत की पहचान कराता है।
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