आकाशवाणी और उसे कौन करता था आकाशवाणी का उदाहरण रामचरितमास लक्ष्मण के लिए ,Akashvani and who used to do it. Example of Akashvani for Ramcharitamas Laxman

आकाशवाणी और उसे कौन करता था आकाशवाणी का उदाहरण रामचरितमास लक्ष्मण के लिए

  • हिंदू धर्म में आकाशवाणी क्या है?
संज्ञा। आकाशवाणी (बहुवचन आकाशवाणी) (पौराणिक कथा) स्वर्ग से एक उपहार या संदेश । हिंदू, जैन और बौद्ध पौराणिक कथाओं में, आकाशवाणी को अक्सर कहानियों में स्वर्ग से मानव जाति तक संचार के माध्यम के रूप में दर्शाया जाता है।
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आकाशवाणी क्या होती और उसे कौन करता था

हम सबने कभी ना कभी "आकाशवाणी", इस शब्द को अवश्य सुना है। हमारे धर्मग्रंथों एवं पुराणों में कई प्रसिद्ध आकाशवाणी का वर्णन है। सुनने में तो ये शब्द बड़ा सरल लगता है कि आकाशवाणी अर्थात आकाश की वाणी, किन्तु वास्तव में इसका रहस्य बहुत गूढ़ है। तो इससे पहले हम आकाशवाणी के बारे में जानें, हमें "आकाश" के विषय में समझना होगा। ये तो हम सभी जानते हैं कि इस जगत में जो कुछ भी दिखता है वो सभी पंचतत्वों से मिलकर बना है। हमारा शरीर भी पंचतत्व से ही मिलकर बना है। ये पांच तत्व हैं - धरती, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश। इन पांच तत्वों में से चार तो वे हैं जिन्हे हम देख अथवा अपने शरीर में महसूस कर सकते हैं। ये है भूमि, जल, अग्नि एवं वायु। किन्तु कई लोग पूछते हैं कि हमारे शरीर अथवा अन्य तत्वों में आकाश कहाँ है? तो उत्तर ये है कि "आकाश" हमारे शरीर में उपस्थित शून्य को प्रदर्शित करता है। इस जगत में जहाँ-जहाँ भी शून्य है (अर्थात कुछ नहीं है), वो सभी आकाश तत्व ही है। तो इस प्रकार यदि हम आकाशवाणी की बात करें तो हमारी अंतरात्मा की जो वाणी होती है वही आकाशवाणी होती है। आकाशवाणी कभी असत्य नहीं होती। आपने स्वयं अनुभव किया होगा कि हम शरीर से चाहे कितने भी पाप कर्म करें, हमारी अंतरात्मा सदैव ये जानती है कि वो कर्म ठीक नहीं है। जो भी उस अंतरात्मा की वाणी, अर्थात आकाशवाणी को सुन कर उसका अनुसरण करता है वो कभी भी अनुचित कार्य नहीं करता। अब आते हैं उस आकाशवाणी पर जो हमें सदा से पढ़ी अथवा सुनी है। इसका अर्थ वही है जो इस शब्द का अर्थ है, अर्थात आकाश की वाणी। वास्तव में प्राचीन काल और युगों में जब कोई श्रेष्ठ व्यक्ति अज्ञानता वश किसी कार्य को पुण्य समझ कर कर रहा हो किन्तु वास्तव में वो पास कर्म हो, तब उस व्यक्ति को उस पाप से बचाने के लिए आकाशवाणी के माध्यम से उसे सचेत किया जाता था।

आकाशवाणी का उदाहरण रामचरितमास लक्ष्मण को सचेत करने के लिए-

इसका सबसे अच्छा उदाहरण रामचरितमास में की गयी वो आकाशवाणी है जो लक्ष्मण को सचेत करने के लिए की गयी थी। जब लक्ष्मण को ये पता चला कि भरत सेना सहित चित्रकूट पहुंच गया है तो उन्हें ऐसा मिथ्या बोध हो गया कि भरत श्रीराम पर आक्रमण करने आ रहे हैं। उन्हें सत्य का पता नहीं था कि भरत अपने बड़े भाई को वापस लौटाने के लिए आ रहे हैं। इसी भ्रम में उन्होंने भरत के वध का संकल्प कर लिया और अपने धनुष को धारण किया। तभी उन्हें सत्य से अवगत कराने के लिए आकाशवाणी हुई -
  • तात प्रताप प्रभाउ तुम्हारा। को कहि सकइ को जाननिहारा॥
  • अनुचित उचित काजु किछु होऊ। समुझि करिअ भल कह सबु कोऊ।
  • सहसा करि पाछे पछिताहीं। कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं॥
अर्थात आकाशवाणी हुई कि "हे लक्ष्मण! तुम्हारे प्रताप और प्रभाव को कौन जान सकता है? (अर्थात तुम भरत का वध करने में सर्वथा समर्थ हो)। किन्तु किसी भी कार्य को बिना सोचे विचारे नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति बिना सोचे विचारे घोर कर्म करते हैं उन्हें पीछे पछताना पड़ता है। तो इस प्रकार आकाशवाणी द्वारा लक्ष्मण को सचेत किया गया कि वो बिना सत्य जाने ही भरत का अहित करने जा रहा है। उस आकाशवाणी को सुनकर लक्ष्मण को सत्य का ज्ञान हुआ और तब उन्होंने अपना धनुष रख दिया।

श्रीरामचरितमानस - अयोध्याकाण्ड में आकाशवाणी दोहा संख्या २३० से आगे

चौपाई :
जगु भय मगन गगन भइ बानी। लखन बाहुबलु बिपुल बखानी॥
तात प्रताप प्रभाउ तुम्हारा। को कहि सकइ को जाननिहारा॥१॥
भावार्थ:-
सारा जगत्‌ भय में डूब गया। तब लक्ष्मणजी के अपार बाहुबल की प्रशंसा करती हुई आकाशवाणी हुई- हे तात! तुम्हारे प्रताप और प्रभाव को कौन कह सकता है और कौन जान सकता है?॥१॥

अनुचित उचित काजु किछु होऊ। समुझि करिअ भल कह सबु कोऊ।
सहसा करि पाछे पछिताहीं। कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं॥२॥
भावार्थ:-
परन्तु कोई भी काम हो, उसे अनुचित-उचित खूब समझ-बूझकर किया जाए तो सब कोई अच्छा कहते हैं। वेद और विद्वान कहते हैं कि जो बिना विचारे जल्दी में किसी काम को करके पीछे पछताते हैं, वे बुद्धिमान्‌ नहीं हैं॥२॥
कही तात तुम्ह नीति सुहाई। सब तें कठिन राजमदु भाई॥३॥
भावार्थ:-
देववाणी सुनकर लक्ष्मणजी सकुचा गए। श्री रामचंद्रजी और सीताजी ने उनका आदर के साथ सम्मान किया (और कहा-) हे तात! तुमने बड़ी सुंदर नीति कही। हे भाई! राज्य का मद सबसे कठिन मद है॥३॥

जो अचवँत नृप मातहिं तेई। नाहिन साधुसभा जेहिं सेई॥
सुनहू लखन भल भरत सरीसा। बिधि प्रपंच महँ सुना न दीसा॥४॥
भावार्थ:-
जिन्होंने साधुओं की सभा का सेवन (सत्संग) नहीं किया, वे ही राजा राजमद रूपी मदिरा का आचमन करते ही (पीते ही) मतवाले हो जाते हैं। हे लक्ष्मण! सुनो, भरत सरीखा उत्तम पुरुष ब्रह्मा की सृष्टि में न तो कहीं सुना गया है, न देखा ही गया है॥४॥
दोहा :
भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ॥२३१॥
भावार्थ:-
अयोध्या के राज्य की तो बात ही क्या है) ब्रह्मा, विष्णु और महादेव का पद पाकर भी भरत को राज्य का मद नहीं होने का! क्या कभी काँजी की बूँदों से क्षीरसमुद्र नष्ट हो सकता (फट सकता) है?॥२३१॥

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  • दूसरी परिस्थित आकाशवाणी कंस को
दूसरी परिस्थित वो थी जब पाप कर्म अपनी सीमा को पार कर जाता था अथवा किसी प्राणी के पाप का घड़ा भर जाता था तब आकाशवाणी के द्वारा उसे चेतावनी दी जाती थी। इसके पीछे दो प्रयोजन होता था। पहला या तो इस आकाशवाणी को सुन कर वो व्यक्ति पाप कर्म करना बंद कर दे और दूसरा ये कि उस चेतावनी को सुनकर भी वो और पाप करे ताकि उसे उसके कर्मों का डंड शीघ्र अतिशीघ्र मिल सके।

कंस को आकाशवाणी के माध्यम से चेतावनी मिलना

इसका सबसे अच्छा उदाहरण कंस को आकाशवाणी के माध्यम से चेतावनी मिलना है। जब कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव से किया तब आकाशवाणी ने उसे सचेत किया कि देवकी के गर्भ से पैदा होने वाला आठवां पुत्र ही उसका वध करेगा। इस आकाशवाणी के पीछे उद्देश्य ये था कि या तो कंस अत्याचार करना बंद कर दे अथवा वो अत्याचार की सारी सीमाओं को लाँघ जाये ताकि उसका अंत जल्द से जल्द हो। यही हुआ भी। उस आकाशवाणी को सुनकर कंस इतना भयभीत हो गया कि उसने अत्याचार की सारी सीमाओं को पार कर दिया। उसने देवकी और वसुदेव को बंदी बना कर उनके ६ पुत्रों का वध कर दिया। इसी कारण श्रीकृष्ण ने उसका वध कर संसार को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई।
अब यहाँ एक प्रश्न आता है कि आकाशवाणी वास्तव में करता कौन था? क्यूंकि आकाश यदि शून्य है तो उसमें ध्वनि तो हो सकती है किन्तु वो वाणी का रूप नहीं ले सकती। तो इसका उत्तर ये है कि आकाशवाणी वास्तव में स्वर्ग में रहने वाले देवताओं द्वारा की जाती थी और इसी कारण इसे "देववाणी" या "दिव्यवाणी" भी कहा जाता है। चूँकि देवता अदृश्य रूप में केवल वाणी के रूप में मनुष्यों को सचेत करते थे इसी कारण ऐसा लगता था कि ये वाणी आकाश से ही आ रही है और इसका नाम आकाशवाणी पड़ गया। देवताओं के अतिरिक्त केवल कुछ सिद्ध ऋषि ही मानवमात्र को सचेत करने के लिए आकाशवाणी कर सकते थे। ब्रह्म संप्रदाय की मान्यताओं के अनुसार आकाशवाणी वास्तव में परमपिता ब्रह्मा ही करते थे क्यूंकि वही सभी प्राणियों के भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं। ब्रह्माजी द्वारा कही गयी वाणी को ब्रह्मवाणी भी कहा जाता है। आप सबने सुना होगा कि ब्रह्मवाणी अमोघ होती है।

आकाशवाणी के विषय में कई मिथ्या धारणाएं हैं जिसे जानना अत्यंत आवश्यक है।

  • आकाशवाणी किसी लाउडस्पीकर की तरह होती थी जो सबको सुनाई देती थी: ये सत्य नहीं है। वास्तव में आकाशवाणी केवल उसी व्यक्ति/व्यक्तियों को सुनाई देती थी जिसके लिए वो आकाशवाणी की गयी होती थी।
  • कोई भी देवता आकाशवाणी कर सकते थे: ये भी सत्य नहीं है। आकाशवाणी केवल वही देवता कर सकते थे जिन्होंने कभी असत्य नहीं बोला और जिनके पास आकाशवाणी करने का सामर्थ्य होता था। कोई भी सामान्य देवता, उप-देवता, यक्ष, गन्धर्व, मरुत, वसु इत्यादि आकाशवाणी नहीं कर सकते थे। अर्थात देवताओं में भी केवल कुछ ही ऐसे थे जो आकाशवाणी कर सकते थे।
  • केवल देवता ही आकाशवाणी कर सकते थे मनुष्य नहीं: ऐसा नहीं है। मनुष्यों में भी कई ऐसे सिद्ध महर्षि थे जिन्होंने अपनी साधना से स्वयं को देवत्व तक उठा लिया हो। ऐसे सिद्ध मनुष्य भी आकाशवाणी कर सकते थे। उदाहरण के लिए सप्तर्षियों एवं अन्य प्रजापतियों को आकाशवाणी करने का अधिकार होता था।
  • कोई भी आकाशवाणी को सुन सकता था: ये भी असत्य है। जिस प्रकार आकाशवाणी केवल समर्थ देवता अथवा सिद्ध ही कर सकते थे, उसे सुना भी केवल श्रेष्ठ अथवा समर्थ मनुष्यों द्वारा जा सकता था। आम मनुष्य आकाशवाणी को नहीं सुन सकते थे।
  • केवल पुरुष ही आकाशवाणी कर सकते महिलाएं नहीं: ये भी सत्य नहीं है। देवियाँ एवं महिलाएं भी, यदि वे आकाशवाणी करने में सक्षम हो, तो वे आकाशवाणी कर सकती थी।
  • आकाशवाणी दुष्टों को भ्रमित करने के लिए की जाती थी: ये भी सत्य नहीं है। एक बात निश्चित है कि आकाशवाणी द्वारा जो कुछ भी कहा अथवा सूचित किया जाता था वो सत्य और केवल सत्य ही होता था चाहे वो पुण्यात्मा के लिए की गयी हो अथवा पापात्मा के लिए। आज तक एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जहाँ आकाशवाणी कुछ और हुई हो और वास्तव में कुछ और हुआ हो। इसी कारण आकाशवाणी इतनी महत्वपूर्ण मानी गयी है और उसपर अक्षरशः विश्वास किया जाता है।
  • किसी भी जानकारी को आकाशवाणी द्वारा बताया जा सकता था: ये भी असत्य है। आकाशवाणी केवल तभी की जाती थी जब कोई दूसरा मार्ग शेष ना हो। साथ ही केवल और केवल अत्यंत महत्त्व की सूचना ही आकाशवाणी द्वारा दी जाती थी।
  • जिनके पास आकाशवाणी की शक्ति होती थी वो कभी भी आकाशवाणी कर सकते थे: ये भी असत्य है। आकाशवाणी उचित मंत्रणा के बाद ही की जा सकती थी। कोई भी व्यक्ति अथवा देवता केवल अपनी इच्छा से आकाशवाणी नहीं कर सकता था। कुछ ग्रंथों में लिखा है कि आकाशवाणी केवल ब्रह्मदेव की स्वीकृति के पश्चात ही की जा सकती थी।
  • आकाशवाणी केवल सतयुग, त्रेतायुग एवं द्वापरयुग में की जा सकती है, कलियुग में नहीं: ऐसा भी नहीं है। कलियुग में भी भविष्यवाणियां हो सकती है। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान कल्कि के अवतरण का समय आएगा तो आकाशवाणी द्वारा दुष्ट मनुष्यों को उनके आगमन की सूचना दी जाएगी।
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कुछ लोगों का ये प्रश्न भी हो सकता है कि यदि कलियुग में भी आकाशवाणी हो सकती है तो हमें सुनाई क्यों नहीं देती? उसका उत्तर वही है जो इस लेख के प्रारम्भ में बताया गया है। आकाशवाणी केवल देववाणी ही नहीं होती। कई बार हमारी अंतरात्मा और छठी इंद्री भी हमें सचेत करती है जिसे आकाशवाणी का ही एक रूप समझा जाता है। इसके अतिरिक्त आकाशवाणी सबके लिए नहीं होती, जिसके लिए होती है उन्हें इसका आभास हो जाता है।
कई बार स्वप्न भी आकाशवाणी के रूप में हमें सचेत करते हैं। ऐसी असंख्य घटनाएं है जब स्वप्न साकार होते हैं। ऐसी मान्यता है कि दिवास्वप्न, अर्थात दिन में देखा गया सपना अधिकतर सत्य साबित होता है। वैसे तो इस प्रकार की भविष्वाणियों के कई उदाहरण है किन्तु एक उदाहरण अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के विषय में बड़ा प्रसिद्ध है। ऐसा लिखा गया है कि एक बार अब्राहम लिंकन ने अपने साथी वार्ड लेमन को अपने सपने के बारे में बताया कि उन्होंने स्वप्न देखा कि वाइट हाउस से रोने की आवाज आ रही थी और लोग एक शव को घेर कर रो रहे थे। जब मैंने पास जाकर देखा तो वो मेरा ही शव था। उनकी बात सुनकर लेमन हंसने लगे किन्तु इस घटना के केवल दो दिनों के बाद ही लिंकन की हत्या कर दी गयी। बाद में इसी वार्ड लेमन ने लिंकन की जीवनी लिखी और उसमें इस घटना का उल्लेख किया। तो आकाशवाणी हर युग में की जाती रही है। आवश्यकता केवल उनके रहस्यों को ठीक प्रकार से समझने की है।

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