Arrival of Saptarishis to Shiva 'Sending the Lagna Patrika of Himalayas,सप्तऋषियों का शिव के पास आगमन 'हिमालय का लग्न पत्रिका भेजना
सप्तऋषियों का शिव के पास आगमन 'हिमालय का लग्न पत्रिका भेजना
सप्तऋषियों का शिव के पास आगमन
ब्रह्माजी बोले—हे मुनिश्रेष्ठ नारद! शैलराज हिमालय और मैना से विदा लेकर सप्तऋषि भगवान शिव के निवास स्थल कैलाश पर्वत पर पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर शिवजी को प्रणाम किया और उनकी भक्तिभाव से स्तुति की। तत्पश्चात उन्होंने कहना आरंभ किया। हे देवाधिदेव ! महादेव! परमेश्वर ! महाप्रभो ! महेश्वर! हमने गिरिराज हिमालय और मैना को समझा दिया है। वे इस संबंध को स्वीकार कर चुके हैं। उन्होंने पार्वती का वाग्दान कर दिया है। हे प्रभु! अब आप अपने पार्षदों तथा देवताओं के साथ बारात लेकर हिमालय के यहां जाइए और देवी पार्वती का पाणिग्रहण संस्कार करिए। भगवन्, आप वेदोक्त रीति से पार्वती को अपनी पत्नी बना लीजिए। सप्तऋषियों का यह वचन सुनकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और बोले – हे ऋषिगण ! मैं विवाह के रीति-रिवाजों के संबंध में कुछ नहीं जानता। आप लोगों ने पूर्व में विवाह की जो रीति देखी हो अथवा इस विषय में आप जो कुछ जानते हो कृपया मुझे बताएं। भगवान शिव के इस शुभ वचन को सुनकर सप्तऋषि बोले- भगवन्! आप सर्वप्रथम श्रीहरि विष्णु एवं सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी को उनके पुत्रों एवं पार्षदों सहित यहां बुला लीजिए। सभी ऋषि-मुनियों, यक्ष, गंधर्वों, किन्नरों, सिद्धगणों एवं देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं और अप्सराओं को अपने विवाह में आमंत्रित करें। वे सब मिलकर इस विवाह का सफल आयोजन करेंगे। ऐसा कहकर सप्तऋषि भगवान शिव से आज्ञा लेकर उनकी भक्तिभाव से स्तुति करते हुए प्रसन्नतापूर्वक अपने धाम को चले गए।
श्रीरुद्र संहिता (तृतीय खण्ड) छत्तीसवां अध्याय
हिमालय का लग्न पत्रिका भेजना
नारद जी ने पूछा- हे तात! महाप्राज्ञ ! कृपा कर अब आप मुझे यह बताइए कि सप्तऋषियों के वहां से चले जाने पर हिमालय ने क्या किया? ब्रह्माजी बोले- नारद! जब वे सप्तऋषि हिमालय से विदा लेकर कैलाश पर्वत पर चले गए तो हिमालय ने अपने सगे-संबंधियों एवं भाई-बंधुओं को आमंत्रित किया। जब सभी वहां एकत्रित हो गए तब ऋषियों की आज्ञा के अनुसार हिमालय ने अपने राजपुरोहित श्री गज से लग्न पत्रिका लिखवाई। उसका पूजन अनेकों सामग्रियों से करने के पश्चात उन्होंने लग्न पत्रिका भगवान शंकर के पास भिजवा दी। गिरिराज हिमालय के बहुत से नाते-रिश्तेदार लग्न-पत्रिका को लेकर कैलाश पर्वत पर गए। वहां पहुंचकर उन्होंने त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के मस्तक पर तिलक लगाया और उन्हें लग्न पत्रिका दे दी। शिवजी ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। तत्पश्चात वे सभी वापिस लौट आए। शैलराज हिमालय ने देश के विविध स्थानों पर रहने वाले अपने सभी भाई-बंधुओं को इस शुभ अवसर पर आमंत्रित किया। सबको निमंत्रण भेजने के पश्चात हिमालय ने अनेकों प्रकार के रत्नों, वस्त्रों और बहुमूल्य आभूषणों तथा विभिन्न प्रकार की बहुमूल्य देने योग्य वस्तुओं को संगृहीत किया। तत्पश्चात उन्होंने विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री - चावल, आटा, गुड़, शक्कर, दूध, दही, घी, मक्खन, मिठाइयां तथा पकवान आदि एकत्र किए ताकि बारात का उत्तम रीति से आदर-सत्कार किया जा सके। सभी खाद्य वस्तुओं को बनाने के लिए अनेकों हलवाई लगा दिए गए। चारों ओर उत्तम वातावरण था। शुभमुहूर्त में गिरिराज हिमालय ने मांगलिक कार्यों का शुभारंभ किया। घर की स्त्रियां मंगल गीत गाने लगीं। हर जगह उत्सव होने लगे। देवी पार्वती का संस्कार कराने के पश्चात वहां उपस्थित नारियों ने उनका शृंगार किया। विभिन्न प्रकार के सुंदर वस्त्रों एवं आभूषणों से विभूषित पार्वती देवी साक्षात जगदंबा जान पड़ती थीं। उस समय अनेक मंगल उत्सव और अनुष्ठान होने लगे। अनेकों प्रकार के साज-शृंगार से सुशोभित होकर स्त्रियां इकट्ठी हो गईं। शैलराज हिमालय भी प्रसन्नतापूर्वक निमंत्रित बंधु-बांधवों की प्रतीक्षा करने लगे और उनके पधारने पर उनका यथोचित आदर-सत्कार करने लगे। लोकोचार रीतियां होने लगीं। गिरिराज हिमालय द्वारा निमंत्रित सभी बंधु-बांधव उनके निवास पर पधारने लगे। गिरिराज सुमेरु अपने साथ विभिन्न प्रकार की मणियां और महारत्नों को उपहार के रूप में लेकर आए। मंदराचल, अस्ताचल, मलयाचल, उदयाचल, निषद, दर्दुर, करवीर, गंधमादन, महेंद्र, पारियात्र, नील, त्रिकूट, चित्रकूट, कोंज, पुरुषोत्तम, सनील, वेंकट, श्री शैल, गोकामुख, नारद, विंध्य, कालजर, कैलाश तथा अन्य पर्वत दिव्य रूप धारण करके अपने-अपने परिवारों को साथ लेकर इस शुभ अवसर पर पधारे। सभी देवी पार्वती और शिवजी को भेंट करने के लिए उत्तम वस्तुएं लेकर आए । इस विवाह को लेकर सभी बहुत उत्साहित थे। इस मंगलकारी अवसर पर शौण, भद्रा, नर्मदा, गोदावरी, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, विपासा, चंद्रभागा, भागीरथी, गंगा आदि नदियां भी नर-नारी का रूप धारण करके अनेक प्रकार के आभूषणों एवं सुंदर वस्त्रों से सज-धजकर शिव-पार्वती का विवाह देखने के लिए आई। शैलराज हिमालय ने उनका खूब आदर-सत्कार किया तथा सुंदर, उत्तम स्थानों पर उनके ठहरने का प्रबंध किया। इस प्रकार शैलराज की पूरी नगरी, जो शोभा से संपन्न थी, पूरी तरह भर गई। विभिन्न प्रकार के बंदनवारों एवं ध्वज- पताकाओं से यह नगर सजा हुआ था। चारों ओर चंदोवे लगे हुए थे। विभिन्न प्रकार की नीली-पीली, रंग-बिरंगी प्रभा नगर की शोभा को और भी बढ़ा रही थी।
श्रीरुद्र संहिता (तृतीय खण्ड)सैंतीसवां अध्याय
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