अशोक अष्टमी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है जानिए व्रतविधि कथा Ashok Ashtami is celebrated in Shukla Paksha of Chaitra month Know the story of fasting

अशोक अष्टमी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है जानिए व्रतविधि कथा

अशोकाष्टमी व्रत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। अगर इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो तो अशोकाष्टमी व्रत और शुभ माना जाता है। इस दिन अशोक वृक्ष से जुड़ा पूजा का विधान बताया गया है। अशोक कलिका प्राशन की प्रधानता होती है जिसकी वजह से इसे अशोकाष्टमी कहा जाता है। अशोका अष्टमी व्रत के बारे में गरुड़ पुराण में भगवान ब्रह्मा जी द्वारा बताया गया है, इस वजह से भी इसकी बेहद ही विशिष्ठ महत्ता है।
अशोकाष्टमी का त्यौहार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन अशोक वृक्ष के पूजन का विधान बताया गया है।
 Ashok Ashtami is celebrated in Shukla Paksha of Chaitra month Know the story of fasting

अशोक अष्टमी का महत्त्व

अशोक अष्टमी का व्रत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है यदि अशोक अष्टमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र पड रहा हो तो यह और भी अधिक शुभ माना जाता है. शास्त्रों में अशोक अष्टमी के दिन अशोक वृक्ष की पूजा करने का विधान बताया गया है. इस व्रत में अशोक-कलिका-प्राशन की प्रधानता होती है इसी वजह से इस व्रत को अशोक अष्टमी कहा जाता है. गरुण पुराण के अनुसार अशोक अष्टमी व्रत का वर्णन भगवान ब्रह्मा जी के मुखारविन्द से हुआ है, इसलिए इस व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है

गरुण पुराण में अशोका अष्टमी की महिमा

अशोककलिका ह्यष्टौ ये पिबन्ति पुनर्वसौ । 
चैत्रे मासि सिताष्टम्यां न ते शोकमवाप्नुयुः ॥ १,१३३.१ ॥

गरुण पुराण में भी अशोक वृक्ष के बारे में बहुत ही सुंदर वर्णन प्राप्त होता है। इसके अनुसार चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो तो इस दिन अशोका अष्टमी का व्रत बहुत ही शुभ दायक होता है। इस दिन व्रत करने से सभी शोक दूर हो जाते हैं। अशोकाष्टमी व्रत के दिन अशोक की मञ्जरी की आठ कलियों का सेवन
करने से सभी शोक दूर होते हैं। अशोक की मंजरियों का सेवन करते समय
इस मंत्र का उचारण करना चाहिए - 
"त्वामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव ।
पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु ।।"

शोक अष्टमी व्रतविधि

  • चैत्र मॉस की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को प्रातः काल में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए.
  • अगर आपके घर के आस पास कोई पवित्र नदी नहीं है तो आप अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं. 
  • स्नान करने के पश्चात् व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए.
  • संकल्प लेने के बाद विधिवत अशोक के वृक्ष का पूजन करके उसकी परिक्रमा करनी चाहिए.
  • अशोक वृक्ष की पूजा करने के बाद पूरा दिन व्रत करना चाहिए.
  • अशोक अष्टमी का उपवास करके अशोक वृक्ष की पूजा करने तथा अशोक के आठ पत्तों को पात्र में जल में डालकर उसका जल पीने से मनुष्य के सभी दुःख दूर हो जाते है.
  • जो भी मनुष्य अशोक अष्टमी का व्रत करता है उसे प्रातःकाल उठकर नित्यक्रियाओं से निवृत होने के पश्चात् स्नान करके अशोक वृक्ष की पूजा करनी चाहिए.
  • अशोक वृक्ष की पूजा करने के बाद अशोक की पत्तियों का सेवन करते हुए नीचे दिए गए मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए.
त्वामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव। 
पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु।।
कथा- 
कहते हैं कि इस दिन हनुमान्जी ने माता सीता को लंका में अशोक वाटिका में भगवान् राम का संदेश व अंगूठी दी थी। इस दिन अशोक वृक्ष की कलिकाओं का रस निकालकर पीना चाहिए। इससे शरीर के रोगों का समूल नाश हो जाता है।

राम और एकराम की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, लंका में लंकापति रावण और श्रीराम के बीच हुए भीषण युद्ध के दौरान श्रीराम उसे मारने में असमर्थ रहे। तब विभीषण ने सुझाव दिया कि श्री राम देवी शक्ति की पूजा करें और रावण का वध करने के लिए उनका आशीर्वाद लें। इस प्रकार श्री राम ने सात दिनों तक एकाम्र क्षेत्र के लिंगराज मंदिर में भगवान शिव और देवी शक्ति की पूजा की। चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को, देवी शक्ति ने श्री राम को रावण के साथ उनके आगामी युद्ध में सफलता का आशीर्वाद दिया। इसके बाद श्री राम युद्ध के मैदान में रावण का विनाश करने में सक्षम हुए। भगवान राम ने अष्टमी के दिन रथ पर भगवान शिव और देवी शक्ति की बारात निकालकर इस जीत का जश्न मनाया। उस दिन से, चैत्र शुक्ल अष्टमी को अशोक अष्टमी के रूप में मनाया जाता है जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। उड़ीसा में, चैत्र के शुक्ल पक्ष के दौरान 8वें दिन - चंद्रमा के बढ़ते चरण, राम नवमी से एक दिन पहले, अशोक अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमारे जीवन में दुःख की अनुपस्थिति का जश्न मनाता है। असोआ वृक्ष की किंवदंतियाँ अशोकालिका ह्लाष्टयौ ये पिबन्ति पुनर्वसौ। चैत्रे मासि सीताष्टम्यं न ते शोकमवाप्नुयुः ॥ त्वामशोक हराभीष्ट मधुमासमुद्भव। पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु।। अशोककालिका ह्याष्टौ ये पिबंति पुनर्वसौ। चैत्रे मासि सीताष्टमयां न ते विश्वपाप्नुयु सि त्वामशोक हराभष्ट मधुमासमुद्भव पिबामि शोकसंतप्तो मामशोकं सदा कुरु गरुड़ पुराण अर्थ - (चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का दिन पुनर्वसु नक्षत्र से भी युक्त होता है, इसलिए इस दिन व्रत करना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और इस दिन अशोक वृक्ष की आठ कलियों का सेवन करने से व्यक्ति को उसके सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है।) इस दिन अशोक वृक्ष की कलियों का सेवन करते समय उपरोक्त मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है। उसके सारे दुःख. अशोक का पेड़ - साराका असोका एक मध्यम आकार का सदाबहार पेड़ है जिसके तने और शाखाओं पर नारंगी रंग के फूलों के गुच्छे लगते हैं। चैत्र के महीने में, ज्यादातर मार्च से मई के बीच, फूल खूब खिलते हैं। अशोक वृक्ष का महाकाव्य रामायण में उल्लेखनीय उल्लेख है। रावण द्वारा अपहरण के बाद देवी सीता को अशोक वाटिका - अशोक के पेड़ों से भरा एक बगीचा - में एकांत में रखा गया था। सीता अशोक वृक्ष के नीचे घंटों तक विलाप करती रहीं, लेकिन एक दिन श्री हनुमान ने उन्हें वहां देख लिया और फिर उनके बचाव की योजना बनाई गई। . ऐसा माना जाता है कि अशोक का पेड़ देवी सीता की पीड़ा से मुक्ति का साधन बना, इसलिए इस पेड़ को दुखों से मुक्ति दिलाने का गुण दिया गया। देवी सीता के साथ अशोक वृक्ष के जुड़ाव के कारण इसे सीता-अशोक नाम भी दिया गया है।

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