ब्रह्मा विष्णु की सृष्टि का वर्णन ,शिव-शिवा की स्तुति ,मैथुनी सृष्टि की उत्पत्ति ,Description of the creation of Brahma Vishnu, praise of Shiva, origin of Maithuni creation.

ब्रह्मा विष्णु की सृष्टि का वर्णन ,शिव-शिवा की स्तुति ,मैथुनी सृष्टि की उत्पत्ति

ब्रह्मा विष्णु की सृष्टि का वर्णन

ऋषि बोले- हे वायुदेव! सृष्टि का आरंभ होने पर पहले महेश्वर ब्रह्मा और विष्णु को उत्पन्न करते हैं। फिर अपनी लीला के अनुसार संसार की रचना करते हैं फिर प्रलय आने पर सबका विनाश कर देते है। इस अनुसार तो महेश्वर ही सर्वशक्तिमान है फिर वे ब्रह्माजी के पुत्र किस प्रकार हो सकते हैं? कृपा कर हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। ऋषियों के वचन सुनकर वायुदेव बोले- हे मुनियो ! महेश्वर ने इस सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार के लिए ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र को उत्पन्न किया। यह सब तो उनकी लीलाएं हैं, जो कि विभिन्न कल्पों में बदलती रहती हैं किसी कल्प में ब्रह्मा विष्णु और रुद्र को उत्पन्न करते हैं तो किसी में विष्णु ब्रह्मा और रुद्र को प्रकट करते हैं। किसी कल्प में तीनों एक-दूसरे को प्रकट करते हैं। मेघ वाहन कल्प में श्रीहरि विष्णु ने मेघ रूप में दस हजार वर्षों तक पृथ्वी को धारण किए रखा। तब प्रसन्न होकर महेश्वर ने विष्णुजी को अव्यय शक्ति प्रदान की। यह देखकर ब्रह्माजी के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो गई। उन्होंने विष्णुजी को वहां से भेज दिया और स्वयं भगवान महेश्वर की शरण में पहुंच गए। महेश्वर को प्रणाम करके उनकी स्तुति करने लगे और बोले- प्रभु! आपने ही अपने वाम अंग से विष्णु और दक्षिण अंग से मुझ ब्रह्मा को पैदा किया है। फिर हम दोनों शक्ति और सामर्थ्य में भिन्न क्यों है? क्या विष्णु मुझसे अधिक आपके भक्त हैं? भगवन्! कृपा कर इस अंतर को दूर करें। ब्रह्माजी की प्रार्थना और स्तुति से प्रसन्न होकर महेश्वर ने उन्हें विष्णुजी के समान शक्ति प्रदान कर दी। प्रसन्न होकर ब्रह्माजी विष्णुजी के पास पहुंचे। उस समय विष्णु जी क्षीर सागर में योगनिद्रा में शयन कर रहे थे। ब्रह्माजी ने उन्हें योगनिद्रा से जगाने का बहुत प्रयत्न किया, परंतु वे न जागे। तब क्रोधित होकर ब्रह्माजी विष्णु जी की शय्या में चढ़कर उन्हें अपनी छाती से लगाने लगे। उसी समय विष्णुजी वहां से अंतर्धान हो गए। जब लक्ष्मीजी को विष्णुजी कहीं न दिखाई दिए तो वे भी अंतर्धान हो गई। तब ब्रह्माजी की भृकुटियों के मध्य से विष्णुजी प्रकट हो गए और फिर उनमें द्वंद्व युद्ध होने लगा। यह सब भगवान शिव भी बिना प्रकट हुए देखने लगे परंतु जब ब्रह्मा-विष्णु का युद्ध किसी भी तरह समाप्त नहीं हुआ तब वे उन दोनों के मध्य प्रकट हो गए। शिवजी की कृपा से उन दोनों के क्रोध का निवारण हो गया।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) तेरहवां अध्याय

रुद्र की उत्पत्ति

वायुदेव बोले- हे ऋषिगण ! जब ब्रह्माजी ने विभिन्न कल्पों में यह देखा कि मेरे द्वारा रचित इस सृष्टि का विकास नहीं हो रहा है अर्थात वह बढ़ नहीं रही है, तब वे बहुत दुखी हुए। तब उनका दुख मिटाने के लिए महेश्वर की इच्छा से काल स्वरूप रुद्र भगवान ब्रह्मा के पुत्र के रूप में जन्मे। ब्रह्माजी की प्रार्थना पर उन्होंने ब्रह्माजी द्वारा रचित इस सृष्टि का विस्तार करना चाहा। ऐसा सोचकर रुद्रदेव ने अपने जटाधारी स्वरूप जैसे अनेक रुद्र प्रकट कर दिए। वे संख्या में अधिक होने के कारण पूरे विश्व पर छा गए। वे सभी रूप में बहुत भयानक थे। इन भयानक स्वरूप वाले रुद्रों का रूप देखकर ब्रह्माजी बहुत चिंतित हो गए और हाथ जोड़कर महेश्वर से बोले - हे देवाधिदेव ! ये आप क्या कर रहे हैं? हमें भयानक सृष्टि की रचना नहीं करनी है। हमें तो साधारण प्रजा की रचना करनी है जो पैदा होती रहे और मरती भी रहे। ब्रह्माजी के इन वचनों को सुनकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव हंसने लगे और बोले- ब्रह्माजी ! में तो ऐसी ही सृष्टि की रचना कर सकता हूं। यदि तुम्हें यह नापसंद है तो तुम स्वयं अपनी इच्छा के अनुसार प्रजा की रचना करो। यह कहकर कल्याणकारी भगवान शिव सृष्टि की रचना के कार्य से मुक्त होकर वहां से चले गए।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) चौदहवां अध्याय

शिव-शिवा की स्तुति

वायुदेव बोले- हे ऋषिगण! शिवजी के वहां से चले जाने के पश्चात ब्रह्माजी ने स्वयं सृष्टि की रचना की परंतु उस सृष्टि में प्रजा की वृद्धि नहीं हो रही थी। सृष्टि में वृद्धि न होती हुई देखकर ब्रह्माजी भी बहुत दुखी हुए। तब वे अपने आराध्य भगवान शिव और देवी शिवा की तपस्या करने लगे। ब्रह्माजी की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें दर्शन दिए। ब्रह्माजी ने उन्हें सृष्टि में प्रजा की वृद्धि न होने के विषय में बताया। भगवान शिव और देवी पार्वती ने मिलकर उनकी समस्या का निवारण किया। शिवजी ने उन्हें अपने अर्द्धनारीश्वर स्वरूप के दर्शन कराए भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप के दर्शन कर ब्रह्माजी की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा। वे हाथ जोड़कर भगवान शिव-शिवा की स्तुति करने लगे। ब्रह्माजी बोले- हे देवाधिदेव भगवान शिव! हे जगदंबा मां पार्वती। आप अमोघ लीलाएं करने वाले हैं। आपका वैभव निराला है। में आपकी शरण में आया हूं। कृपा कर मुझ दीन पर अपनी कृपादृष्टि करें। इस प्रकार ब्रह्माजी भगवान शिव शिवा की अनेकों स्तोत्रों से स्तुति करने लगे।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) पंद्रहवां अध्याय

मैथुनी सृष्टि की उत्पत्ति

वायुदेव बोले- हे ऋषिगण ! जब ब्रह्माजी ने विभिन्न स्तोत्रों से स्तुति की और भगवान शिव-शिवा को प्रसन्न कर लिया तब शिवजी बोले- ब्रह्मदेव ! में आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करूंगा। तब शिवजी ने अर्द्धनारीश्वर स्वरूप से देवी महेश्वरी को अलग कर दिया। साक्षात देवी जगदंबा को अपने सामने पाकर ब्रह्माजी ने उनसे प्रार्थना की। ब्रह्माजी बोले- हे देवी भगवती ! मैंने मन द्वारा देवताओं और ऋषियों की रचना की परंतु मेरे द्वारा रचित सृष्टि का विस्तार नहीं हो रहा है। इसलिए में मेथुनी सृष्टि रचना चाहता हूं। यह तभी संभव हो सकता है, जब सृष्टि में नारी का भी अंश हो मुझ पर कृपा कर आप मेरे पुत्र प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में जन्म लें और सृष्टि को वृद्धि प्रदान करें। ब्रह्माजी की प्रार्थना से संतुष्ट होकर देवी ने अपनी भृकुटियों के मध्य से एक शक्ति उत्पन्न की। देवी ने उस शक्ति को ब्रह्माजी की इच्छा पूरी करने का आदेश प्रदान किया और स्वयं महेश्वर जी में समा गई। तब भगवान महेश्वर अंतर्धान हो गए। इस प्रकार ब्रह्माजी को ब्रह्मरूप शक्ति प्राप्त हुई। उस शक्ति ने ब्रह्माजी की इच्छा के अनुसार दक्ष के घर जन्म लिया। तभी से मैथुनी सृष्टि का आरंभ हुआ।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) सोलहवां अध्याय

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