दक्ष यज्ञ का वर्णन ,श्रीहरि विष्णु एवं वीरभद्र का युद्ध , मंदराचल पर निवास ,Description of Daksh Yagya, war between Shri Hari Vishnu and Veerbhadra, residence at Mandarachal

दक्ष यज्ञ का वर्णन ,श्रीहरि विष्णु एवं वीरभद्र का युद्ध , मंदराचल पर निवास

दक्ष यज्ञ का वर्णन

वायुदेव बोले- हे ऋषिगण! वीरभद्र अपने गणों के साथ प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पहुंच गए। उस समय वेद मंत्रों के घोष से पूरा यज्ञ मंडप गूंज रहा था। वहां पहुंचकर वीरभद्र ने सिंह गर्जना की। वीरभद्र की इस भीषण गर्जना से हाहाकार मच गया। देवता एवं ऋषि-मुनि अपनी प्राण रक्षा के लिए इधर-उधर भागने लगे। सारी भीड़ तितर-बितर हो गई परंतु दक्ष पूर्ववत ही यज्ञ में बैठा रहा। वीरभद्र जब प्रजापति दक्ष के सामने पहुंचा तो वह क्रोध भरे स्वर में बोले- तुम कौन हो? और यहां पर क्यों आए हो? यहां से शीघ्र ही चले जाओ अन्यथा अच्छा नहीं होगा। हैं। प्रजापति दक्ष के वचन सुनकर वीरभद्र बोला- ऐ मूर्ख दक्ष! तुम्हें अत्यधिक विद्वान मानते तुम वेद-शास्त्र के ज्ञाता हो। लेकिन मुझे तो ऐसा नहीं लगता। मुझे तो तुम अहंकार का मूर्तरूप दिखाई दे रहे हो। इस अहंकार ने तुम्हारी सोचने-विचारने की शक्ति को हर लिया है। तुम्हारी उसी बुद्धि को सही करने आया हूँ। जिस मंत्र द्वारा तुमने देवाधिदेव, सर्वेश्वर, कल्याणकर्ता भगवान शिव का पूजन नहीं किया, अब उसका उच्चारण बार-बार क्यों कर रहे हो? फिर वह फुफकारता हुआ विष्णुजी एवं अन्य देवताओं की ओर मुख करके बोला- क्या तुम देवताओं की भी मति मारी गई है या तुम्हें भी अपने बल का अभिमान हो गया है, जो त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का अनादर देखकर भी चुपचाप मूकदर्शक बने खड़े हो । दक्ष को समझाने की जगह तुम भी उसकी 'हां' में 'हां' मिला रहे हो। यहां में तुम्हारा घमंड नष्ट करने के लिए ही आया हूं। यह कहकर वीरभद्र ने अपनी आंखों से अग्नि प्रकट की, जिससे यज्ञमंडप जलने लगा। उसने वहां उपस्थित सभी यज्ञकर्ताओं को रस्सी से बांध दिया। यज्ञ पात्र तोड़ डाले। वीरभद्र के अन्य गण देवताओं को मारने लगे और यज्ञ भूमि में उपद्रव करने लगे उन्होंने पूरा यज्ञ तहस-नहस कर दिया। सभी अपनी प्राण रक्षा के लिए इधर-उधर भागने लगे।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) बीसवां अध्याय

श्रीहरि विष्णु एवं वीरभद्र का युद्ध

वायुदेव बोले- हे मुनियो ! वीरभद्र एवं उनके गणों का उपद्रव देखकर सभी देवता भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे परंतु वीरभद्र का संकेत समझकर उनके गणों ने सभी को चारों ओर से घेर लिया। सब भागने में असमर्थ थे। वीरभद्र हाथों में त्रिशूल लेकर सब देवताओं पर प्रहार कर रहे थे। वीरभद्र ने सरस्वती की नासिका, अदिति का हाथ, अग्नि की बाहु, भगदेव की आंखें, पूषा के दांत तोड़कर घायल कर दिया। इस प्रकार का दृश्य देखकर सभी भयभीत थे। दक्ष ने श्रीहरि विष्णु से यज्ञ की रक्षा करने की प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु वीरभद्र के साथ युद्ध करने के लिए आगे आए। तभी वीरभद्र के सामने एक दिव्य रथ आ गया। उसी समय शंख बजने लगे युद्ध का आरंभ होने पर सब देवता एवं ऋषिगण वहां वीरभद्र और श्रीहरि विष्णु का युद्ध देखने लगे। श्रीहरि ने शार्ग धनुष पर बाण चढ़ाकर वीरभद्र पर प्रहार किया तो वीरभद्र ने भी अपने धनुष पर टंकार की। दोनों ओर से भयानक बाण वर्षा होने लगी। वीरभद्र द्वारा चलाए गए एक भयानक तीर ने श्रीहरि विष्णु को मूर्च्छित कर दिया। वे पृथ्वी पर गिर पड़े। कुछ देर पश्चात होश में आने पर वे पुनः युद्ध करने लगे। वीरभद्र ने विष्णुजी के सभी वारों को बेकार कर दिया। फिर विष्णुजी व उनके वाहन गरुड़ को भी घायल कर दिया। तब क्रोधित होकर विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र उठा लिया और उसे वीरभद्र पर चलाया, परंतु शिवजी की कृपा से वह चल ही नहीं पाया।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) इक्कीसवां अध्याय

देवताओं पर शिव कृपा

तत्पश्चात वीरभद्र के अन्य गणों ने भी सभी देवताओं को बंदी बना लिया। तब ब्रह्माजी वीरभद्र से प्रार्थना करने लगे कि वे देवताओं को दण्ड न दें। तब वीरभद्र उन सब देवताओं को बांधकर शिवजी के पास ले गए। शिवजी के समक्ष पहुंचकर श्री विष्णु बोले- हे देवाधिदेव! आप सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण के स्वामी है। सब विद्याओं के भंडार है और अभिमानियों के अभिमान का नाश करने वाले हैं। आप ही दुखियों के दुखों को दूर करने वाले हैं। ब्रह्माजी बोले- हे कृपानिधान! आपके भक्त वीरभद्र ने दक्ष का यज्ञ पूरा तहस-नहस कर दिया है। उसने अनेक देवताओं को घायल कर दिया है। वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष को भी मार दिया है। प्रभु! हम सब हाथ जोड़कर आपकी शरण में आए हैं, हम सब पर कृपा करें। हमारे दुखों को दूर करें। हमारे अपराध को कृपा करके क्षमा करिए। ब्रह्माजी की इस प्रार्थना को सुनकर शिवजी ने उन पर कृपा की। शिवजी ने दक्ष के सिर पर बकरे का सिर लगाकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। जीवित होने पर दक्ष शिवजी से क्षमा याचना करने लगा और उनकी स्तुति करने लगा। तत्पश्चात त्रिलोकीनाथ शिव की कृपा से सभी देवताओं के सारे घाव सही हो गए और जो देवगण मर गए थे वे पुनर्जीवित हो गए। सब देवता सर्वेश्वर शिव की महिमा का गान करते हुए वापस लौट गए।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) बाईसवां अध्याय

 मंदराचल पर निवास

वायुदेव बोले- हे ऋषिगण! एक बार की बात है, मंदराचल पर्वत ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवी पार्वती सहित वहां निवास किया। उस समय मंदराचल पर्वत अनेक मणियों से चमकता हुआ अनेक गुफाओं से शोभायमान हो रहा था। शिवजी पार्वती जी के साथ वहां अनेक लीलाएं रचने लगे। इस तरह बहुत समय बीत गया। दूसरी ओर संसार में प्रजा का विकास तेजी से हो रहा था। उसी समय शुभ और निशुंभ नाम के दो दानवों ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या करके उनसे अवध्य रहने का वर मांग लिया था। ब्रह्माजी ने वर देते हुए कहा कि यदि तुम जगदंबा के अंश से उत्पन्न कन्या को पाने की अभिलाषा करोगे तो निश्चय ही तुम्हारा विनाश हो जाएगा। तब उन्हें वर देकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए। वरदान पाकर शुंभ-निशुंभ बलवान होने के साथ-साथ अभिमानी भी हो गए। थे। उन्होंने देवताओं पर आक्रमण करके देवताओं को हरा दिया और इंद्र के स्वर्गासन पर अपना कब्जा कर लिया। दोनों ने धर्म का नाश करना शुरू कर दिया। पूरा संसार उनके अत्याचारों से दुखी हो रहा था। सब देवता दुखी होकर भगवान शिव की शरण में गए। तब शिवजी ने उन्हें आश्वासन देकर भेज दिया। इस कार्य को करने के लिए देवी पार्वती को क्रुद्ध करना आवश्यक था। इसलिए शिवजी ने स्त्रियों की बुराई करनी शुरू कर दी। तब क्रोधित होकर देवी बोली- हे स्वामी! आपको मेरा सांवला रंग नहीं सुहाता है इसलिए आप ऐसी बातें कर रहे है। अब में जा रही हूं और ब्रह्माजी की तपस्या करूंगी। यह कहकर क्रोधित देवी पार्वती वहां से चली गई।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) तेईसवां अध्याय

Comments