क्षौर एवं स्नान विधि, एकादशी पद्धति,शिष्य वर्ग का वर्णन Description of Kshaur and bathing method, Ekadashi method, disciple class

क्षौर एवं स्नान विधि, एकादशी पद्धति,शिष्य वर्ग का वर्णन

क्षौर एवं स्नान विधि

भगवान स्कंद बोले—हे मुनिश्वर ! अब मैं आपको यतियों को शुद्धि प्रदान करने वाले क्षौर और स्नान की विधि बताता हूं। जब शिष्य योग पद को प्राप्त हो जाए तब व्रत करने से पूर्व क्षौर करना चाहिए। गुरु को नमस्कार कर उनकी आज्ञा से क्षौर कराएं। फिर नाई के कपड़े को मिट्टी और जल से धुलाएं। फिर शिव नाम का उच्चारण करते हुए हाथ की अनामिका और अंगूठे को अभिमंत्रित करें। आंखें बंद कर मंत्र का उच्चारण करें और दाहिनी ओर से क्षौर कराएं। आगे से पीछे की ओर सिर मुड़वाएं और फिर मूंछें भी साफ कराएं और नाखून काट लें। तत्पश्चात नदी में बारह डुबकी लगाकर स्नान करें। बेल, पीपल या तुलसी के नीचे की मिट्टी लेकर उसका प्रोक्षण कर अभिमंत्रित करें। उस मिट्टी के तीन भाग करें। एक भाग से बारह बार हाथ मलकर साफ करें। दूसरे भाग की मिट्टी को सिर से मुंह तक लेप करके बारह बार जल में डुबकी लगाएं। फिर सोलह बार कुल्ला कर दो बार आचमन करें। बची हुई मिट्टी का पूरे शरीर पर लेप करें। मन में ॐकार का भक्तिपूर्वक जाप करते हुए सोलह बार प्राणायाम करें। फिर ज्ञान देने वाले गुरु का ध्यान करते हुए तीन बार साष्टांग प्रणाम करें। तत्पश्चात तीर्थस्थान के जल में डुबकी लगाते हुए त्रिलोकीनाथ कल्याणकारी भगवान शिव का स्मरण करें। वे देवाधिदेव महादेव ही संसार को तारने वाले हैं। वे ही सबका कल्याण करते हैं। इस प्रकार मैंने आपको स्नान की पूर्ण विधि बताई।
शिव पुराण श्रीकैलाश संहिता बीसवां अध्याय 

योगियों को उत्तरायण प्राप्ति

मुनि वामदेव बोले- हे भगवान स्कंद जी ! मैंने सुना है कि योगियों का दाह कर्म नहीं किया जाता। उन्हें तो शुद्ध भूमि में स्थापित कर दिया जाता है। क्या यह सच है? तब मुनिवर के प्रश्न का उत्तर देते हुए असुर निकंदन स्कंद जी बोले- हे मुनिवर ! यह प्रश्न एक बार महान शिव योगी भृगु ने स्वयं सर्वज्ञ त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से किया था। उस समय जो शिवजी ने बताया था वही मैं तुम्हें बताता हूं।यह परम ज्ञान सब साधारण मनुष्यों के लिए नहीं है। इस ज्ञान को शांतचित्त वाले परम् शिवभक्त शिष्य को ही बताना चाहिए क्योंकि महा धैर्यवान योगीजन ही समाधि अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं और वे ही शिवरूप से परिपूर्ण होते हैं। परंतु जो योगी-मुनि अपने चित्त अर्थात मन को स्थिर करने में असमर्थ होते हैं और जल्द ही अधीर हो उठते हैं, जिन्हें समाधि की अवस्था का ज्ञान प्राप्त नहीं है, ऐसे योगियों को गुरु मुख से शिवजी का ज्ञान जानकर ध्यान करना चाहिए। प्रतिदिन प्रणव मंत्र का जाप करें और भगवान शिव का स्मरण करें। तभी योगीजनों को उत्तरायण की प्राप्ति होती है।
शिव पुराण श्रीकैलाश संहिता इक्कीसवां अध्याय

एकादशी पद्धति

भगवान स्कंद बोले – मुनिवर ! अब मैं आपको एकादशी विधि बताता हूं। एक वेदी को लीपकर पांच मंडल बनाएं और उसमें पांच देवताओं की पूजा करें। भगवान शिव सर्वेश्वर हैं। उनकी कृपा से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं। इसलिए हमें उनकी कृपा को नहीं भूलना चाहिए। भगवान शिव का स्वरूप मानकर शिवात्म देवताओं का ध्यान करके उनके चरणों में शंख के जल को समर्पित करें। 'ॐ भूर्भुवः स्वः' मंत्र का जाप कर धूप दीप से प्रदक्षिणा कर नमस्कार करें। फिर हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि भगवन्! आप प्रसन्न होकर यति को शिव चरणों में रक्षित करें। प्रार्थना के पश्चात प्रसाद को कन्याओं को बांट दें। इसके पश्चात यति का पावन श्राद्ध करें क्योंकि यति का एकादिष्ट श्राद्ध नहीं होता। चार ब्राह्मणों को आमंत्रित करें। उनके चरण धोकर शिवजी की विधि-विधान के अनुसार पूजा कर उनके समक्ष ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। गोबर से लीपे स्थान पर रखे कुश के आसन पर बैठकर कहें कि मैं पिंडों को दान करता हूं। ऐसा संकल्प करके तीन मडलों का अपने परमात्मा, अंतरात्मा और आत्मा के लिए पूजा करें। मन में यह विचार करते हुए कि हमने आत्मा को पिंड दिया है, पिंड दान करें। कुश से जल छिड़ककर प्रदक्षिणा और नमस्कार करें। तत्पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा दें। ऐसा करने के बाद रक्षा के लिए श्रीहरि विष्णु की महापूजा करें और नारायण को बलि दें। अंत में वेदों और शास्त्रों को जानने वाले बारह ब्राह्मणों का गंध, अक्षत, और पुष्पों से पूजन करें और प्रार्थना करें। कुश आसन पर पायस बलि दें। मुनि वामदेव ! यह मैंने आपको एकादश की विधि बताई है।
शिव पुराण श्रीकैलाश संहिता बाईसवां अध्याय

शिष्य वर्ग का वर्णन

स्कंद देव बोले- मुनि वामदेव ! बारहवें दिन प्रातः उठकर स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें। मध्यान्ह में ब्राह्मणों को निमंत्रण देकर उन्हें भोजन कराएं। मन में गुरु पूजन का संकल्प करें। गुरु के चरण धोकर उन्हें आसन पर बैठाकर कुशाओं और धूप-दीप से आराधना करें। गुरु को नमस्कार कर मंत्र का जाप करते हुए अक्षत अर्पित करें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें आसन पर बैठाएं। फिर तांबूल देकर दक्षिणा में छतरी, पादुका, पंखा, चौकी और वेणुदण्ड देकर उनकी प्रदक्षिणा कर नमस्कार करें। उनके चरण छूकर आशीर्वाद पाकर उन्हें विदा करें। अन्य अतिथियों एवं दीन-अनाथों को भोजन कराएं। इसी प्रकार प्रतिवर्ष गुरु की पूजा करें। गुरु की उत्तम आराधना से निश्चय ही शिवलोक की प्राप्ति होती है। मुनिवर! वैशंपायन, पैल, जैमिनि और सुमंतु नामक चारों महामुनि तेजस्वी व्यास के शिष्य हैं। वामदेव, अगस्त्य, पुलस्त्य और क्रतु योगिवर सनत्कुमार जी के शिष्य हैं। ये सभी मुनि अद्भुत और भगवान शिव के परम भक्त हैं। इन्होंने ही पंच महाभूतों से आवृत्त वेदांत सिद्धांत का परम निश्चय किया है। यह मोहनाशक, ज्ञानदायक और संतोषदायक है। यह जगत का कल्याण करने वाला और लक्ष्मी प्रदान करने वाला है। त्रिलोकीनाथ कल्याणकारी भगवान शिव का ध्यान और स्मरण सदा करने से योगीजन शिव-स्वरूप हो जाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और शिव का भजन और ध्यान करने से मनुष्यों को मोक्ष प्राप्त होता है तथा उनकी सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं। कल्याणकारी देवाधिदेव महादेव जी की आराधना सभी दुखों का नाश कर सुख प्रदान करने वाली तथा भोग-मोक्ष देने वाली है। इस प्रकार वामदेव जी को उपदेश देकर और उनसे पूजित होकर स्कंद देव अपने माता- पिता का स्मरण करते हुए कैलाश पर्वत को चले गए। तब मुनिवर वामदेव भी भगवान स्कंद का अनुसरण करते हुए कैलाश पर गए। वहां पहुंचकर वामदेव मुनि ने भगवान शिव-पार्वती के चरणों में अपना शीश नवाया। फिर उनके समक्ष पृथ्वी पर लेटकर अपने आराध्य सर्वेश्वर शिव और देवी पार्वती की स्तुति की तथा उनको शीश नवाया। तत्पश्चात भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा पाकर वहीं रहने लगे। इस प्रकार आपको ओंकार महेश्वर का अर्थ जानकर इस परम ज्ञान को प्राप्त करके सदा प्रभु के चरणों का स्मरण करना चाहिए। वे कल्याणकारी शिव ही भक्ति और मुक्ति के दाता हैं। हैं मुनिश्वरो ! मैंने आपको सबकुछ बता दिया। यह कहकर वे बद्रिकाश्रम को चले गए।
शिव पुराण श्रीकैलाश संहिता तेईसवां अध्याय
|| श्रीकैलाश संहिता संपूर्ण ॥
॥ ॐ नमः शिवाय ॥

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