मनु की सृष्टि का वर्णन ,दक्ष का शाप ,वीरगण का यज्ञ में जाना,Description of Manu's creation, Daksha's curse, heroes going to sacrifice

मनु की सृष्टि का वर्णन ,दक्ष का शाप ,वीरगण का यज्ञ में जाना

मनु की सृष्टि का वर्णन

वायुदेव बोले- ऋषिगण ! भगवान महेश्वर की कृपा से ब्रह्माजी ने आधे शरीर से शतरूप नामक नारी उत्पन्न की और आधे से भुव मनु को पैदा किया। उसी कन्या ने यशस्वी मनु को पति के रूप में पाया। इन्होंने मैथुन द्वारा प्रियव्रत, उत्तानपाद नामक पुत्र एवं आकूति, देवहूति, प्रसूति नामक कन्याएं पैदा की आकृति और रुचि के दक्षिण और यज्ञपुरुष नामक दो पुत्र पैदा हुए और प्रसूति व दक्ष की चौबीस कन्याएं हुई जिनमें तेरह कन्याओं का विवाह धर्म के साथ हुआ तथा अन्य का विवाह दशा, भृगु, मरीचि, अंगिरा, पुलह, कृतु, पुलस्त्य, अत्रि, वशिष्ठ एवं अग्नि के साथ हुआ। ऊर्जा तीन पितरों को समर्पित हुई। धर्म को तेरह पुत्रों की प्राप्ति हुई। दक्ष प्रजापति की पुत्री के रूप में सती का जन्म हुआ और उसने देवाधिदेव भगवान शिव को पति रूप में पाया। अपने पिता के यज्ञ में पति का निरादर देखकर उसने योगाग्नि में अपने को भस्म कर लिया। फिर पुनः हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेकर शिवजी को प्राप्त किया। भृगु ऋषि के दो पुत्र हुए व उन दोनों के हजारों पुत्र हुए। ये सभी भार्गव वंशी कहलाए। ऋषि मरीचि को पौर्णमास नामक पुत्र की प्राप्ति हुई और इनका बहुत बड़ा वंश हुआ। इसी वंश में कश्यप ऋषि पैदा हुए। अंगिरा ऋषि के दो पुत्र व चार पुत्रियां हुई और उनकी बहुत सी संतानें हुई। पुलस्त्य के अग्नि पुत्र पैदा हुए और इसी वंश की संतानें पोलस्त्य कहलाई। इसी प्रकार कर्दम, वालखिल्य, अत्रि एवं मुनि वशिष्ठ के सैकड़ों अरब संख्या में संतानें हुई। ब्रह्माजी के मानस पुत्र रूद्र के पुत्र अग्नि को पावन पवमान, शुचि पुत्र हुए और इनके उनचास पुत्र हुए। ये नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य होने के कारण रुद्र परायण हैं। इसलिए अग्नि में होम की गई वस्तु रुद्र देव को प्राप्त होती है। पितृ वंश के वसंत आदि छः ऋषि पितरों के स्थान हैं। अग्निस्वंत, अज्यवान और यज्वान बर्हिषद है। स्वधा से मैना नामक पुत्री हुई, जिसका विवाह गिरिराज हिमालय से हुआ। उनके मैनाक और क्रौंच नामक दो पुत्र एवं उमा एवं पतित पावनी गंगा नामक दो पुत्रियां हुई। भगवान रुद्र के शाप से चाक्षुष मन्वंतर में दक्ष प्रजापति इनके पुत्र हुए। इस प्रकार मैंने धर्म आदि के वंश का वर्णन आपसे संक्षेप में किया।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) सत्रहवां अध्याय 

दक्ष का शाप

वायुदेव बोले- हे ऋषिगण! एक बार की बात है सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान शिव के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत पर गए। उस समय देवाधिदेव महादेव जी देवी सती के साथ सिंहासन पर विराजमान थे। उसी समय दक्ष भी अपनी पुत्री से मिलने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचे परंतु देवी सती को अपने पिता के आगमन का ध्यान नहीं रहा। इसी कारण दक्ष क्रोधित हो उठे और उन्होंने महायज्ञ में अपनी पुत्री सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। देवर्षि नारद घूमते-घूमते कैलाश पर पहुंचे और देवी सती को उनके पिता के यज्ञ के विषय में बताया। उन्होंने देवी सती को यह भी कहा कि दक्ष ने इस यज्ञ में सभी ऋषि-मुनियों एवं देवताओं को आमंत्रित किया, परंतु आपको और भगवान शिव को नहीं बुलाया है। यह सुनकर देवी सती को बहुत दुख हुआ। उन्होंने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा किए जा रहे यज्ञ में जाने की आज्ञा मांगी। शिव ने सती को बहुत समझाया कि बिना बुलाए उनका अपने पिता के घर जाना भी व्यवहार की दृष्टि से उचित नहीं है। लेकिन सती ने तो वहां जाना ठान लिया था। वह शिव का अपमान करने के लिए अपने पिता को भी दंडित करना चाहती थी तब वे अपने पति की आज्ञा लेकर नंदी पर सवार होकर अपने पिता के यज्ञ में पहुंची। यज्ञ में सती को देखकर उसके पिता को बहुत क्रोध आया। सती बोलीं- हे पिताजी! में आपकी कन्या हूँ। आपने मुझे यज्ञ में क्यों नहीं बुलाया? मेरे पति शिव तो सबके स्वामी हैं, यह चराचर जगत उन्हीं की अनुकंपा से चलता है, उन्हें तो आपने पूछा भी नहीं। आपने उनका अपमान करके अच्छा नहीं किया। देवी सती के वचन सुनकर दक्ष अत्यंत क्रोधित होकर बोले-मेरी अन्य सभी कन्याएं व उनके पति सुपात्र एवं पूजनीय हैं। सब देवता तथा ऋषि-मुनि भी पूजनीय हैं। इसलिए वे सब यज्ञ में आमंत्रित किए गए हैं परंतु तुम और तुम्हारा पति इस यज्ञ में आने योग्य नहीं हो। अपने पिता के ऐसे वचन सुनकर सती को बहुत दुख हुआ और वे बोलीं- शिव निंदा सुनना शिवद्रोह करना है। में अपने पति की निंदा नहीं सुन सकती। यह कहकर उन्होंने योगाग्नि में अपने शरीर को भस्म कर दिया। उधर, जब शिवजी को पता चला कि उनकी पत्नी का यज्ञ में अपमान हुआ है, तब उन्होंने दक्ष को शाप दे दिया। उसी शाप के फलस्वरूप चाक्षुष मन्वंतर में दक्ष प्रचेता के पुत्र के रूप में जन्मे और दक्ष के अन्य जामाता वैवस्वत मन्वंतर में भी वरुण देहधारी के रूप में पैदा हुए।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) अट्ठारहवां अध्याय 

वीरगण का यज्ञ में जाना

ऋषिगण बोले- हे वायुदेव! प्रजापति दक्ष तो धर्म के कार्य में लगकर महायज्ञ कर रहे थे। फिर भगवान शिव ने उनका यज्ञ क्यों भंग किया? कृपा कर इस कथा को बताइए। तब ऋषिगणों की जिज्ञासा शांत करने के लिए वायुदेव बोले- हे ऋषियो! गिरिराज हिमालय की तपस्या के फलस्वरूप देवी जगदंबा ने उनके घर में जन्म लिया और श्री पार्वती का विवाह भगवान शिव से हो गया। प्रजापति दक्ष ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में वसु मरुद्गण, अश्विनी कुमार, पितर, आदित्य, विष्णु आदि सभी देवता एवं ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया परंतु भगवान शिव को नहीं बुलाया। जब परम शिव भक्त दधीचि ने उस यज्ञ में शिवजी को उपस्थित नहीं देखा, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि शिवजी को निमंत्रित नहीं किया गया है। वे क्रोधित होकर बोले- इस यज्ञ में जगत के स्वामी भगवान शिव को क्यों आमंत्रित नहीं किया गया? वह पूजनीयों के भी पूजनीय हैं। फिर तुम उनका पूजन क्यों नहीं कर रहे हो? दधीचि ऋषि के इन वचनों को सुनकर दक्ष बोले- हे ब्रह्मर्षे! यहां ग्यारह रुद्र तो उपस्थित हैं और अन्य रुद्रों को हम नहीं जानते। इस यज्ञ के अधिष्ठाता श्रीहरि विष्णु हैं। तब क्रोधित दधीचि यज्ञ को छोड़कर चले गए। उधर भगवान शिव ने यह जानकर कि उनकी प्राणवल्लभा का यज्ञ में अपमान हो रहा है, वीरभद्र नामक गण को उत्पन्न किया। वीरभद्र हाथ जोड़कर शिवजी को प्रणाम करके उनकी स्तुति करते हुए बोला- हे देवाधिदेव ! मेरे लिए क्या आज्ञा हे? भगवान शिव ने उसे आदेश देते हुए कहा- हे वीरभद्र! तुम अपने योद्धाओं के साथ प्रजापति दक्ष के यज्ञ में जाओ और यज्ञ का विध्वंस कर दो। फिर दक्ष को भी नए कर देना। देवाधिदेव की यह आज्ञा पाकर वीरभद्र ने अपने शरीर से हजारों करोड़ों गण उत्पन्न किए। फिर आनंदपूर्वक यज्ञ का विध्वंस करने के लिए सेना सहित चल पड़ा।
शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) उन्नीसवां अध्याय

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