निश्राम वर्णन,शिव ध्यान एवं पूजन ,वर्ण- पूजा Description of trust, Shiva meditation and worship, caste worship

निश्राम वर्णन ,शिव ध्यान एवं पूजन ,वर्ण- पूजा

निश्राम वर्णन

भगवान शिव बोले- ऋषिगण ! कमल की रचना कर शक्ति कमल की रचना करें और चतुर्थी विभक्ति सहित अंत में नमः लगाकर 'शक्ति कमलाय नमः' का उच्चारण करते हुए वस्तुओं को धारण करके गुरु को नमस्कार करें। बाहर की ओर त्रिकोण व्रत क्रम से शंख की पूजा करें और शुद्ध सुगंधित जल से सात बार गंध, पुष्प से 'ॐ' की पूजा-अर्चना कर धेनु मुद्रा दिखाएं। फिर शंख मुद्रा दिखाएं। यह कहकर अपनी आत्मा को शुद्ध करें। प्राणायाम करके ऋषि का स्मरण करें। अंगन्यास करने के बाद अस्त्र मंत्र से अग्निकोण के कमल का प्रेक्षण करें। दक्षिण में स्थापित कमल का पूजन सफेद वस्तुओं से ही करें। तत्पश्चात इसकी चारों तरफ से पूजा करें। इसके बाद सौर योग पीठ को पूजें । सिंहासन पर मूल मंत्र से मूलाधार में आसन पर बैठकर पिंगला नाड़ी के प्रवाह से शक्ति उठाएं, जिस स्थान पर परमेश्वर शिव देवी पार्वती सहित शोभित हैं। उन्होंने रुद्राक्ष की माला, पाश खट्वांग, कपाल, अंकुश कमल और शंख को धारण किया हुआ है। चार मुख और बारह नेत्र उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। तत्पश्चात सूर्य देवता का आवाहन करें और मुद्रा दिखाएं। फिर बीज मंत्रों से अंगन्यास करें। अग्नि, ईश्वर, राक्षस और वासु की चार मूर्तियाँ बनाकर उनका पूजन करें। पूरब से लेकर उत्तर में मूल कमल दल से आदित्य, भास्कर, भानु और रवि के नाम से क्रमश: सूर्य, ब्रह्मा, में विष्णु, महेश और ईशान का पूजन करें। फिर शिव भक्ति में रत हो उनका स्मरण कर भस्म धारण करें। तत्पश्चात गुरु की नम्रतापूर्वक पंचोपचार से पूजा कर उन्हें नमस्कार करें। पूजन को विधि के अनुसार आगे बढ़ाते हुए ईशान का न्यास कर पंचकला क्रम से सद्योजात की कल्पना करें। इस प्रकार प्रणव न्यास करके देवाधिदेव महादेव परमात्मा शिव को बांधकर हंस न्यास करें।
शिव पुराण श्रीकैलाश संहिता छठा अध्याय 

शिव ध्यान एवं पूजन

शिवजी बोले- मुनिश्वरो ! अपनी बाईं ओर चौकोर मंडल बनाकर ॐ का पूजन-अर्चन करें। ॐ को अस्त्र मंत्र से शोभित करें। इसी प्रकार प्रणव का भी पूजन करें। फिर उसे चंदन, धूप, सुगंधित जल से पूर्ण करें। उसके आगे शंख, मुद्रा, अर्द्धचंद्र, चतुर्कीण, त्रिकोण मुद्रा एवं षट्कोण मुद्रा आदि स्थापित करें। फिर ओंकार को गंध एवं पुष्प आदि से पूजें और उसमें पवित्र गंगाजल भरें। गुरु द्वारा बताई गई विधि के अनुसार गुरु मूर्ति की स्थापना करें। 'गुरुभ्यो नमः' मंत्र का जाप करते हुए गुरु की प्रदक्षिणा लें। गुरु द्वारा दी गई दीक्षा का बैठकर ध्यान करें। तत्पश्चात स्थापित मूर्ति में देवता का आवाहन करें। एकाग्रचित्त होकर मन में उसका ध्यान करें। गणेशजी का षोडशोपचार से पूजन कर उस पर फल और फूल माला चढ़ाएं। नमस्कार कर स्कंद को पूजें और गग्नेय मंडल में सूर्य, चंद्रमा का ध्यान करें। कमल के आसनों पर सुंदर सफेद पुष्प रखें और ॐकार सहित चतुर्थी विभक्ति के अंत में नमः लगाकर मंत्र बोलते हुए सविधि ईशान आदि पांच ब्रह्म की पूजा-अर्चना करें। इसके बाद देवी गौरी की पूजा करें। इस प्रकार सविधि पूजन और ध्यान करके जो भी मनुष्य एवं देवता मेरी और देवी पार्वती की उपासना करते हैं और शंख के जल से स्नान कर ॐकार से मोक्षण करते हैं, उन्हें परम सिद्धि प्राप्त होती है। उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। मोक्ष भी उनके लिए दुर्लभ नहीं है।
शिव पुराण श्रीकैलाश संहिता सातवां अध्याय

वर्ण- पूजा

सर्वेश्वर शिव बोले- हे देवी! बुद्धिमान और विद्वान मनुष्य एवं देवगण को पूजा करते समय सर्वप्रथम गणेश और कार्तिकेय का पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात वेदों के आदि स्वरूप अर्थात शिव का आवाहन कर पूर्व दिशा में कमल कणिका के ऊपर चारों ओर पूजा करें। 'आवो राजानम्' मंत्र का उच्चारण करते हुए ऋवा से रुद्र की पूजा करें। फिर कणिका दलों में आवाहन करें। शिव को पूर्व में, हर को दक्षिण में, शिव को उत्तर में और भव की पश्चिम दिशा में यथाक्रम के अनुसार पूजा करें। ओं राँ, ओं पाँ, ओं ज्ञा, ओं ला, अर्पण पूर्णव अं, ओं, वां, ओं, साँ और वेद के इन दस मंत्रों से लोकपालों का पूजन करें। तत्पश्चात दक्षिण दिशा में ईशान देव की पूजा करें। ब्रह्मा और विष्णु का विधि-विधान के अनुसार षोडशोपचार से पूजन करें। फिर पांचवें आवरण में ओंकार रूपी शिव का स्मरण एवं ध्यान करते हुए सविधि पूजन करते हुए नैवेद्य चढ़ाएं और अर्घ्य दें। इसके बाद भोजन की सामग्री एवं तांबूल अर्पित करें। तब नीराजनादि क्रम से पूजा को विसर्जित कर देवी और देवता का शुद्ध हृदय से ध्यान करते हुए एक सौ आठ मंत्रों का जाप करें। इसके पश्चात पुष्पांजलि अर्पित करते हुए 'यो देवानागिति' उपनिषद की छः ऋचाओं का, जो कि नारायणीय कही गई हैं, जाप करें। फिर प्रदक्षिणा कर साष्टांग प्रणाम करें। आसन पर बैठकर शिव नाम को आठ बार जपें। यह सब क्रिया पूर्ण करने के पश्चात त्रिलोकीनाथ कल्याणकारी भगवान शिव से प्रार्थना करें, हे भगवान! हे शिव शंभो ! मैंने अपनी पूरी क्षमता एवं श्रद्धा से आपकी पूजा और आराधना की है। यह कहते हुए शंख के जल और पुष्पों को चढ़ाएं। फिर अर्घ्य देकर आठ बार नाम जपें।
शिव पुराण श्रीकैलाश संहिता आठवां अध्याय

शिव के अनेक नाम और ओंकार

शिवजी बोले-हे देवी! शिव, महेश्वर, रुद्र, पितामह, संसार, वैद्य, सर्वज्ञ और परमात्मा ये देवाधिदेव महादेव के मुख्य आठ नाम हैं। इन्हीं आठ नामों का प्रतिदिन जाप करना चाहिए। शिव, शंकर और महादेव ये सभी नाम शिव स्वरूप ही हैं। उपाधियुक्त होने के कारण शिव के अनेक नाम हैं। वे परिशुद्धात्मा हैं। शिव के विशाल और अनगिनत गुणों के कारण ही उन्हें ईश्वर की संज्ञा दी गई है। तेईस तत्वों से परे प्रकृति और प्रकृति से परे पच्चीसवां पुरुष है। इसी को वाच्य वाचक के भाव से वेद में 'ओंकार' कहते हैं। वेद में जानने योग्य आत्म स्वरूप वेदांत में प्रतिष्ठित ही परमेश्वर हैं। पुरुष और प्रकृति इन्हीं के अधीन है। वही अविनाशिनी माया के स्वामी हैं और त्रिगुण तत्व के रक्षक हैं। वे शिव ही मोक्ष प्रदान करने वाले और सबके दुखों को दूर करने वाले हैं। इसी कारण उनका नाम रुद्र पड़ा। इस प्रकार शिवजी के मुखारविंद से वेद से भरे अमृतमयी स्तोत्र को सुनकर देवी पार्वती मन में बहुत हर्षित हुईं और उन्होंने शिवजी को हाथ जोड़कर बार-बार प्रणाम किया। यह प्रणव अर्थ बहुत गुप्त है और समस्त दुखों का नाश करने वाला है। व्यास जी ने भक्तिभाव से पूरी कथा कही, जिसे सुनकर सभी ऋषिगणों ने उनकी पूजा और बहुत आदर-सत्कार किया। तब प्रसन्न हो ऋषियों ने अनेक अनुष्ठान किए। फिर व्यास जी कैलाश पर्वत को चले गए। ऋषिगण अपने आराध्य भगवान शिव का ध्यान करने लगे। यह कथा देवी पार्वती ने स्कंद को, स्कंद ने नंदी को, नंदी ने सनत्कुमार जी को और उन्होंने महर्षि वेदव्यास जी को सुनाई। यह कहकर पुराणवेत्ता गुरु सूत जी पुनः तीर्थ यात्रा पर चल पड़े।
शिव पुराण श्रीकैलाश संहिता नवां अध्याय

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