कर्म निरूपण ,पूजन का न्यास निरूपण ,मानसिक पूजन Formulation of karma, formulation of belief of worship, mental worship

कर्मनिरूपण ,पूजन का न्यास निरूपण ,मानसिक पूजन

कर्म निरूपण

श्रीकृष्ण जी बोले- हे महर्षि ! अब आप मुझे कर्मकर्ता पुरुषों के नित्यकर्मों के बारे में बताइए। तब मुनिवर उपमन्यु बोले- श्रीकृष्ण ! सत्पुरुषों को प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। उठकर सर्वप्रथम भगवान शिव और देवी पार्वती का ध्यान करें। अरुणोदय होने पर घर से बाहर शौच से निवृत्त होकर स्नान करें। फिर आचमन कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। तीन मंडलों की रचना कर भगवान शिव के मंत्र का जाप करना आरंभ करें। घुटने के बल बैठकर शिवजी को प्रणाम करके अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के लिए जल में कुशा डालें। फिर शरीर पर भस्म धारण करें। मस्तक, छाती और दोनों भुजाओं पर त्रिपुण्ड धारण करें। तत्पश्चात गले, कानों और हाथों में रुद्राक्ष धारण करें। ब्राह्मणों को सफेद, लाल, पीत, रंगीन नए वस्त्र धारण कराएं। वस्त्र धारण करने के बाद पूजा के स्थान पर उत्तर की ओर मुख करके बैठे और हाथ जोड़कर अपने आराध्य देव त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का ध्यान करें। ध्यान से उठने पर शिष्य नामाष्टक का पाठ कर गुरु को श्रद्धावनत होकर प्रणाम करे।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध इक्कीसवां अध्याय

पूजन का न्यास निरूपण

उपमन्यु बोले- हे कृष्णजी ! न्यास गृहस्थियों के क्रमानुसार तीन प्रकार का होता है। ब्रह्मचारियों के लिए उत्पत्ति न्यास, संन्यासियों के लिए लय न्यास और गृहस्थियों के लिए स्थित न्यास का विधान है। अंगूठे से लेकर कनिष्का उंगली तक स्थित न्यास होता है। लय न्यास वाम अंगुष्ठ से दक्षिण अंगुष्ठ तक है। बिंदु के साथ नकारादि वर्णों का न्यास करना चाहिए। तल और अनामिका में शिवजी का न्यास करें। दसों दिशाओं में अस्त्र न्यास होना चाहिए। पांच भूतों के स्वामी एवं पांच कलाओं को अपने हृदय के मध्य ब्रह्मरंध्र में धारण करें। पंचाक्षर मंत्र का जाप करें। प्राणवायु को रोककर अस्त्र मुद्राओं से भूत ग्रंथि का छेदन कर सुषुम्ना नाड़ी द्वारा जप करें। फिर वायु द्वारा शरीर शोषण करें। फिर कलाओं का संहार करें। दुग्ध कलाओं का स्पर्श कर अमृत द्वारा सिक्त कर शरीर को उचित स्थान पर स्थापित करें। तत्पश्चात भौतिक शरीर को भस्म द्वारा स्नान कराएं। हृदय में स्थित भगवान शिव का ध्यान करते हुए अमृत वर्षा से विधात्मक देह को सींचें। अपने शरीर को शुद्ध करके शिव तत्व प्राप्त कर ईश्वर का पूजन करें। मातृ न्यास, ब्रह्म न्यास, प्रणव न्यास और हंस न्यास करें। हकार हृदय से सकार भृकुटि मध्य में पचास वर्ण रुद्र मार्ग के द्वारा न्यास करें। फिर क्रमशः अघोर, वामदेव, प्रणाम, हंस, न्यास, पंचाक्षरी मंत्र का न्यास करें। भगवान शिव का परम भक्त और शिव पूजन और ध्यान करने वाला मनुष्य संसार सागर से पार हो जाता है। इसी के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध बाईसवां अध्याय

मानसिक पूजन

उपमन्यु बोले - कृष्णजी ! अंगन्यास आदि कार्यों को पूरा करें। फिर अपने मन द्वारा पूजन सामग्री की कल्पना करें। सामग्री को जुटाकर उससे विधिपूर्वक विघ्न विनाशक श्री गणेश का पूजन करें। दक्षिण तथा उत्तर में क्रमशः नंदी एवं सुभद्रा का पूजन करें। कमल के सुंदर और कोमल आसन पर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव व देवी पार्वती को उस पर स्थापित करें। शिव-पार्वती की स्थापना कमलासन पर करने के बाद भक्तिपूर्वक विधि-विधान के अनुसार उनका पूजन करें। पुष्प अर्पित करें। ध्यान करें और भावनामय समिधा घृत से परमेश्वर की नाभि में होम करें। भृकुटि के मध्य में परम पवित्र दीप ज्योति के आकार वाले भगवान शिव का ध्यान करें। यही वानप्तिक भावनामय आराधना है। इसे पूर्ण करने के बाद अग्नि या स्थण्डिल लिंग में पूजन करें।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध तेईसवां अध्याय

पूजन निरूपण

उपमन्यु बोले-हे श्रीकृष्णजी ! पूजन स्थान को गंध, चंदन, फूलों और जल से पवित्र कर प्रोक्षण करें। अस्त्रों द्वारा विघ्नों का निवारण कर कवच से सारी दिशाओं का अस्त्र न्यास करें। कुशा बिछाकर उसे जल से मार्जित करें। प्रोक्षणी पात्र, अर्घ्य पात्र, पाद्य आचमन को शुद्ध कर उनमें जल, खम तथा चंदन डालें और आचमन के जल में कपूर, कंकोल, कीमता, तमाल व चंदन मिलाएं। चावल, कुशा, दूर्वा, जौ, अक्षर, तिल, घृत, सरसों, पुष्प और भस्म को मिलाकर मंत्र द्वारा रक्षित करें। विनायक देव का पूजन करें। फिर नंदीश्वर का पूजन करने के पश्चात षोडशोपचार से शिवलिंग का पूजन करें। ऊर्ध्व भाग में कमलासन रखें। कमल दल आठ प्रकार की सिद्धि देने वाला है। वामादिक शक्तियां बीज हैं। भगवान शिव का पूजन करें। पंचगव्य द्वारा स्नान कराएं। फिर आंवले और हल्दी से इसका लेप करें। देव स्नान कराकर सुंदर वस्त्र एवं यज्ञोपवीत धारण कराएं। पाद्य, अर्घ्य, आचमन, धूप, दीप, नैवेद्य, गंध, पुष्प, भूषण जल, मुखवास कर रत्नजड़ित मुकुट एवं आभूषण चढ़ाएं। फिर भगवान शिव-पार्वती की आरती उतारें। आरती की थाली को शिवलिंग के सामने तीन बार घुमाकर माथे पर सुगंधित भस्म धारण करें। फिर अपनी पूजा- अर्चना में रह गई त्रुटि के लिए भगवान से क्षमायाचना करें। इस प्रकार पूजन करने से परम फल की प्राप्ति होती है।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध चौबीसवां अध्याय

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