साधारण नरकगति ,जलदान एवं तप की महिमा,Glory of simple hell-fire, water donation and penance

साधारण नरकगति ,जलदान एवं तप की महिमा

साधारण नरकगति

सनत्कुमार जी कहते हैं-जिस प्रकार सोने को अग्नि में तपाकर ही कुंदन बनाया जाता है । उसी प्रकार पापियों की जीवात्माओं को भी शुद्ध करने हेतु नरक की अग्नि में डाला जाता है। सर्वप्रथम पापियों के दोनों हाथों को रस्सियों से बांधकर उन्हें पेड़ पर उलटा लटका दिया जाता है। उनके पैरों में लोहा बांध दिया जाता है, ताकि दर्द से तड़पते हुए प्राणी अपने द्वारा किए गए पापों को याद करे। तत्पश्चात उन्हें तेल के उबलते हुए कड़ाहे में इस प्रकार भूना जाता है, जिस प्रकार हम बैंगन भूनते हैं। फिर उन्हें अंधकारयुक्त कुओं में धकेल दिया जाता है, जहां पर अनेकों प्रकार के कीड़े एवं भयानक जीव उन पर चिपट जाते हैं। उन्हें नोचते और खाते हैं। इस प्रकार पापी जीवों को अनेक प्रकार की यातनाएं भोगनी पड़ती हैं। फिर कुओं से निकालकर उन्हें पुनः नरक में फेंक दिया जाता है। वहां पर उनकी पीठ पर बड़े-बड़े हथौड़े से, जो कि तपाए हुए होते हैं, उनकी पीठ को छलनी कर दिया जाता है। कहीं उन पापी आत्माओं को आरी से चीरा जाता है। फिर उन पापात्माओं को मांस व रुधिर खाने के लिए बाध्य किया जाता है। इस प्रकार वे पापात्मा मनुष्य अनेकों कष्टों को भोगते हैं। उनका शरीर अनेक प्रकार की यातनाएं भोगता है। तत्पश्चात वे यमदूत पापियों को निरुध्वास नामक नरक में डाल देते हैं। यहां रेत के भवन होते हैं, जो कि भट्टी के समान तप कर उन्हें पीड़ा पहुंचाते हैं। वहीं पर पापी प्राणियों के हाथ, पैर, सिर माथे, छाती और शरीर के अन्य अंगों पर आग में तपते हुए हथौड़ों से एक के बाद एक अनगिनत प्रहार किए जाते हैं। तत्पश्चात उसे गरम रेत में फेंक दिया जाता है। फिर गंदे कीचड़ में फेंक दिया जाता है। कुंभीपाक नामक नरक में पापात्माओं को तेल के जलते हुए कड़ाहों में पकाया जाता है। फिर लाजाभक्ष सूची पत्र में डाल दिया जाता है। वहां इन्हें धधकती हुई अग्नि में फेंक दिया जाता है। फिर यमदूत अपने वज्र के समान कठोर प्रहारों से इन पापियों को छलनी करते हैं और उनके घावों पर नमक भर देते हैं। उनके मुहों में लोहे की कीलें डाल दी जाती हैं।
शिव पुराण श्रीउमा संहिता नवा अध्याय

 नरक गति भोग वर्णन

सनत्कुमार जी बोले- हे महामुने! पाखण्ड में लिप्त रहने वाले झूठ बोलने वाले या अन्य किसी भी प्रकार से दूसरों का अहित करने वाले नास्तिक मनुष्य, द्विज, हाख्य नरक में जाते हैं। इस नरक में उन पर आधे कोस लंबे पैने हल चलाए जाते हैं। ऐसे दुष्ट मनुष्य, जो अपने माता-पिता अथवा गुरुओं की आज्ञा को नहीं मानते, के मुंह में कीड़ों से युक्त विष्ठा भर दी जाती है। जो पापी मनुष्य शिवालय, बगीचे, बावड़ी, तालाब, कुएं या ब्राह्मणों के रहने के स्थान को नष्ट करते हैं, ऐसे प्राणियों को कोल्हू में पेला जाता है फिर उन्हें नरक की अग्नि में पकाया जाता है। भोग विलासी प्रवृत्ति के दुष्ट मानवों को यमदूत लोहे की गरम स्त्रीमूर्ति से चिपका देते हैं। महात्माओं की निंदा करने वाले पापियों के कानों में लोहा, तांबा व सीसा और पीतल को गलाकर भर दिया जाता है। जो पापी कामी पुरुष बुरी नजर से नारी को देखते हैं उनकी आंखों में सूई और गरम राख भर दी जाती है। जो पापी महात्माओं के दिए गए धर्म संबंधित उपदेशों की अवमानना करते हैं और धर्मशास्त्रों की निंदा करते हैं, उनकी छाती, कण्ठ, जीभ, होंठ, नाक और सिर में तीन नोकों वाली कीलें ठोक दी जाती हैं और उन पर मुद्गरों से चोट की जाती है। दूसरों का धन चुराने वाले, पूजन सामग्री को पैर लगाने वाले दुष्ट मनुष्यों को अनेक प्रकार की यातनाएं भोगने के लिए दी जाती हैं। जो पापी धनी होते हुए भी दान नहीं करते और घर आए भिखारी को खाली लौटा देते हैं, ऐसे पुरुषों को घोर यातनाएं सहनी पड़ती हैं। जो सत्पुरुष भगवान शिव का पूजन करके विधि-विधान से उनका हवन करने के पश्चात शिवमंत्र का जाप करके यममार्ग को रोकने वाले श्याम एवं शवल नामक श्वानों एवं पश्चिम, वायव्य, दक्षिण और नैर्ऋत्य दिशा में रहने वाले पुण्यकर्मों वाले कौओं को बलि देते हैं, उन मनुष्यों को कभी यमराज का दर्शन नहीं करना पड़ता है। चार हाथ लंबा मंडप बनाकर उसके ईशान में धन्वंतरि, पूर्व में इंद्र. पश्चिम में सुदक्षोम और दक्षिण में यम एवं पितरों के लिए बलि देनी चाहिए। तत्पश्चात कुत्तों एवं पक्षियों के लिए अन्न डालें। स्वाहाकार, स्वधाकर, वषट्कार एवं हंतकार धर्ममयी गाय के चार स्तन हैं, इसलिए गौ सेवा को आवश्यक माना जाता है और इसीलिए हम गोमाता की पूजा करते हैं। ऐसा न करने वाले पापी मनुष्यों की अवश्य ही दुर्गति होती है और वे नरक को भोगते हैं तथा अनेक दुखों का सामना करते हैं।
शिव पुराण श्रीउमा संहिता दसवां अध्याय

अन्नदान महिमा

व्यास जी बोले- प्रभो! पापी मनुष्यों को अनेक दुख भोगते हुए यमलोक का रास्ता तय करना पड़ता है। क्या ऐसा कोई उपाय है, जिससे यममार्ग की यात्रा सुखपूर्वक पूरी की जा सके? व्यास जी के प्रश्न को सुनकर सनत्कुमार जी बोले - हे महामुने ! ऐसे जीव बिना कष्ट के सीधे यमलोक पहुंच जाते हैं, जो दयालु होते हैं और सदा धर्म के मार्ग पर चलते हुए सदैव दूसरों की सहायता हेतु कार्य करते हैं। जो सत्पुरुष ब्राह्मणों को खड़ाऊं या जूते पहनाते हैं, वे घोड़े पर यमपुरी पहुंचते हैं। इसी प्रकार छाता और बिस्तर दान करने वाले आराम से आसन पर बैठकर, पेड़-पौधे लगाने वाले वृक्षों की छाया में यमपुर पहुंचते हैं। जो मनुष्य फूलों की वाटिका लगाते हैं, उन्हें ले जाने हेतु पुष्प विमान आता है। साधु-संतों के लिए मकान बनवाने वाले मनुष्यों को सुंदर भवन विश्राम करने के लिए मिलते हैं। इसी प्रकार माता-पिता, ब्राह्मण और गुरुओं की सेवा करने वाले पुरुषों का आदर होता है। अन्न और जल का दान करने वाले मनुष्यों को यमपुरी के रास्ते में अन्न-जल की कोई कमी नहीं होती। ब्राह्मणों के चरण दबाने वाले मनुष्य आरामपूर्वक घोड़े पर सवार होकर यमलोक जाते हैं। संसार में अन्न का दान सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि अन्न खाकर ही जीव का शरीर पुष्ट होता है। उस शरीर से धर्म पुष्ट होता है और शरीर ही धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष देने वाला उत्तम साधन है। इसलिए मनुष्य को अन्न का दान अवश्य ही करना चाहिए। अपने घर पर पधारे अतिथियों का उचित आदर-सत्कार अवश्य करना चाहिए और द्वार पर आए गरीब भूखों एवं भिखारियों को खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। अन्नदान करने वाले सज्जन पुरुष स्वर्ग में निवास करते हुए अनेकों सुखों को भोगते हैं व आनंद का अनुभव करते हैं।
शिव पुराण श्रीउमा संहिता ग्यारहवां अध्याय

जलदान एवं तप की महिमा  

सनत्कुमार जी कहते हैं- हे मुनि व्यास ! इस संसार में सभी प्राणियों को जीवन देने वाला जल है। जो मनुष्य पीने के जल के लिए कुआं खोदते हैं, उनका आधा पाप नष्ट हो  जाता है। तालाब बनवाने वाले पुरुष को कभी भी दुखों का सामना नहीं करना पड़ता। देव, दानव, गंधर्व, नाग और चर-अचर सभी जीव जल पर ही आश्रित होते हैं। जिस तालाब में बरसात का जल भर जाता है, उसे बनाने वाले को अग्निहोत्र का फल मिलता है। सर्दियों में जो तालाब जल से भरा रहता है, उसे बनाने वाले को एक हजार गौ-दान का पुण्य प्राप्त होता है। इसी प्रकार हेमंत और शिशिर ऋतु में भरे तालाब के निर्माण करने वाले को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। इसलिए तालाब खुदवाना पुण्यदायक और कल्याणदायक माना जाता है। इसी प्रकार मार्ग में वृक्ष और बगीचे लगवाने वाले प्राणियों के पूरे वंश का उद्धार हो जाता है। फल-फूल वाले वृक्ष बहुत उत्तम होते हैं। फूलों से देवता, फलों से पितृगण एवं उनकी छाया से वहां से आने-जाने वाले राहगीरों को राहत मिलती है। ये वृक्ष सर्प, किन्नर, राक्षस, देव, मनुष्यों को सुख देने वाले होते हैं। इस संसार में सत्य को सबसे उत्तम कहा गया है। यही सत्य ब्रह्म, तप, यज्ञ, शास्त्र, चेतन, धैर्य, देवता, ऋषि, पितरों का पूजन, जल, विद्यादान, ब्रह्मचर्य, परमपद सभी सत्यरूप हैं। सत्यभाषी मनुष्य तपस्वी, सत्यधर्म का अनुसरण करने वाला सिद्ध पुरुष होता है। वह विमान में बैठकर स्वर्ग जाता है। सदैव सत्य बोलना ही फल देने वाला है। तपस्या द्वारा स्वर्ग, यश, मुक्ति, कामना, ज्ञान, विज्ञान, संपत्ति, सौभाग्य, रूप और इनसे अधिक पदार्थ होते हैं। साथ ही मन की सभी कामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। तपस्या के बगैर किसी भी मनुष्य अथवा जीव को भगवान शिव के परम धाम की प्राप्ति नहीं हो सकती। शुद्ध हृदय से त्रिलोकीनाथ भक्तवत्सल देवाधिदेव महादेव की तपस्या करने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्ति मिल सकती है। तपस्या ही सारे संसार को सुख और शांति प्रदान करने वाली है। इसलिए सुखों की इच्छा करने वाले एवं भोग और मोक्ष चाहने वाले मनुष्यों को तप अवश्य करना चाहिए।
शिव पुराण श्रीउमा संहिता बारहवां अध्याय

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