देवताओं का शिवजी के पास जाना "शिव से विवाह करने का उनुरोध,Gods go to Lord Shiva and request him to marry Lord Shiva

देवताओं का शिवजी के पास जाना "शिव से विवाह करने का उनुरोध

देवताओं का शिवजी के पास जाना

ब्रह्माजी कहते हैं  मुनिश्वर! भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती को तपस्या करते-करते अनेक वर्ष बीत गए। परंतु भगवान शिव ने उन्हें वरदान तो दूर अपने दर्शन तक न दिए। तब पार्वती के पिता हिमाचल, उनकी माता मैना और मेरु एवं मंदराचल ने आकर पार्वती को बहुत समझाया तथा उनसे वापस घर लौट चलने का अनुरोध किया।तब उन सबकी बात सुनकर देवी पार्वती ने विनम्रतापूर्वक कहा ;- हे पिताजी और माताजी! क्या आप लोगों ने मेरे द्वारा की गई प्रतिज्ञा को भुला दिया है? मैं भगवान शिव को अवश्य ही अपनी तपस्या द्वारा प्राप्त करूंगी। आप निश्चिंत होकर अपने घर लौट जाएं। इसी स्थान पर महादेव जी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया था और वनों को अपनी क्रोधाग्नि में भस्म कर दिया था। उन त्रिलोकीनाथ भगवान शंकर को मैं अपनी तपस्या द्वारा यहां बुलाऊंगी। आप सभी यह जानते हैं कि भक्तवत्सल भगवान शिव को केवल भक्ति से ही वश में किया जा सकता है। अपने पिता, माता और भाइयों से ये वचन कहकर देवी पार्वती चुप हो गईं। उन्हें समझाने आए उनके सभी परिजन उनकी प्रशंसा करते हुए वापस अपने घर लौट गए। अपने माता-पिता के लौटने के पश्चात देवी पार्वती दुगुने उत्साह के साथ पुनः तपस्या करने में लीन हो गईं। उनकी अद्भुत तपस्या को देखकर सभी देवता, असुर, मनुष्य, मुनि आदि सभी चराचर प्राणियों सहित पूरा त्रिलोक संतृप्त हो उठा।देवता समझ नहीं पा रहे थे कि पूरी प्रकृति क्यों उद्विग्न और अशांत है। यह जानने के लिए इंद्र व सब देवता गुरु बृहस्पति के पास गए। तत्पश्चात वे सभी मुझ विधाता की शरण में सुमेरु पर्वत पर पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम किया तथा मेरी स्तुति की। तब वे मुझसे पूछने लगे कि प्रभु! इस जगत के संतृप्त होने का क्या कारण है? उनका यह प्रश्न सुनकर मैंने त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के चरणों का ध्यान करते हुए यह जान लिया कि जगत में उत्पन्न हुआ दाह देवी पार्वती द्वारा की गई तपस्या का ही परिणाम है। अतः सबकुछ जान लेने के उपरांत मैं इस बात को श्रीहरि विष्णु को बताने के लिए देवताओं के साथ क्षीरसागर को गया । वहां श्रीहरि सुखद आसन पर विराजमान थे। मुझ सहित सभी देवताओं ने विष्णुजी को प्रणाम कर उनकी स्तुति करना आरंभ कर दिया। तत्पश्चात मैंने श्रीहरि से कहा- हे हरि! देवी पार्वती के उग्र तप से संतृप्त होकर हम सभी आपकी शरण में आए हैं। हम सबकी रक्षा कीजिए। भगवन् हमें बचाइए।
हमारी करुण पुकार सुनकर शेषशय्या पर बैठे श्रीहरि बोले ;- आज मैंने देवी पार्वती की इस घोर तपस्या का रहस्य जान लिया है परंतु उनकी इच्छा को पूरा करना हमारे वश की बात नहीं है। अतः हम सब मिलकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के पास चलते हैं। केवल वे ही हैं जो हमें इस विकट स्थिति से उबार सकते हैं। देवी पार्वती तपस्या के माध्यम से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना चाहती हैं। इसलिए भगवान शिव से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि वे देवी पार्वती से विधिवत विवाह कर लें। हम सभी को इस विश्व का कल्याण करने के लिए भगवान शिव से पार्वती का पाणिग्रहण करने का अनुरोध करना चाहिए। 
भगवान विष्णु की बात सुनकर सभी देवता भयभीत होते हुए बोले ;- भगवन्! भगवान शिव बहुत क्रोधी और हठी हैं। उनके नेत्र काल की अग्नि के समान दीप्त हैं। हम भूलकर भी भगवान शंकर के पास नहीं जाएंगे। उनका क्रोध सहा नहीं जाएगा। उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया था। हमें डर है कि कहीं क्रोध में वे हमें भी भस्म न कर दें। हे नारद! इंद्रादि देवताओं की बात सुनकर लक्ष्मीपति श्रीहरि बोले ;- तुम सब मेरी बातों को ध्यानपूर्वक सुनो! भगवान शिव समस्त देवताओं के स्वामी और भयों का नाश करने वाले हैं। तुम सबको मिलकर कल्याणकारी भगवान शिव की शरण में जाना चाहिए। भगवान शंकर पुराण पुरुष, सर्वेश्वर और परम तपस्वी हैं। हमें उनकी शरण में जाना ही चाहिए। भगवान विष्णु के इन वचनों को सुनकर सब देवता त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का दर्शन करने के लिए उस स्थान की ओर चल पड़े, जहां महादेव जी तपस्या कर रहे थे।उस मार्ग में ही देवी पार्वती उत्तम तपस्या में लीन थीं। उनके तप को देखकर सभी देवताओं ने प्रसन्नतापूर्वक उन्हें दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया। तत्पश्चात उनके तप की प्रशंसा करते हुए मैं, श्रीहरि विष्णु और अन्य देवता भगवान शिव के दर्शनार्थ चल दिए। वहां पहुंचकर हम सभी देवता कुछ दूरी पर खड़े हो गए और हमने तुम्हें भगवान शिव के करीब यह देखने के लिए भेजा कि वे कुपित हैं या प्रसन्न । नारद! तुम भगवान शिव के परमभक्त हो तथा उनकी कृपा से सदा निर्भय रहते हो। इसलिए तुम भगवान शिव के निकट गए तथा तुमने उन्हें प्रसन्न देखा । फिर तुम वापस लौटकर हम सभी के पास आए तथा उनकी प्रसन्नता के बारे में हमें बताया। तब हम सब भगवान शिव के करीब गए। भगवान शिव सुखपूर्वक प्रसन्न मुद्रा में बैठे हुए थे। भक्तवत्सल भगवान शिव चारों ओर से अपने गणों से घिरे हुए थे और तपस्वी का रूप धारण करके योगपट्ट पर आसीन थे। मैंने, श्रीहरि और अन्य देवताओं ने भगवान शिव शंकर को प्रणाम करके वेदों और उपनिषदों द्वारा ज्ञात विधि से उनकी स्तुति की।
 श्रीरुद्र संहिता तृतीय खण्ड बाईसवाँ अध्याय 

शिव से विवाह करने का उनुरोध

ब्रह्माजी कहते हैं  हे नारद! देवताओं ने वहां पहुंचकर भगवान शिव को प्रणाम करके उनकी स्तुति की। 
वहां उपस्थित नंदीश्वर भगवान शिव से बोले ;- प्रभु! देवता और मुनि संकट में पड़कर आपकी शरण में आए हैं। सर्वेश्वर आप उनका उद्धार करें । दयालु नंदी के इन वचनों को सुनकर भगवान शिव ने धीरे-धीरे आंखें खोल दीं। समाधि से विरत होकर परमज्ञानी परमात्मा भगवान शंकर देवताओं से बोले - हे ब्रह्माजी! हे श्रीहरि विष्णु ! एवं अन्य देवताओ, आप सब यहां एक साथ क्यों आए हैं? आपके आने का क्या प्रयोजन है? आप सभी को साथ देखकर लगता है कि अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण बात है। अतः आप मुझे उस बात से अवगत कराएं।भगवान शंकर के ये वचन सुनकर सभी देवताओं का भय पूर्णतः दूर हो गया और वे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु को देखने लगे। तब श्रीहरि विष्णु सभी देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हुए भगवान शिव से बोले - भगवान शंकर ! तारकासुर नामक दानव ने हम सभी देवताओं को बहुत दुखी कर रखा है। उसने हमें अपने-अपने स्थानों से भी निकाल दिया है। यही सब बताने के लिए हम सब देवता आपके पास आए हैं। भगवन्! ब्रह्माजी द्वारा प्राप्त वरदान के फलस्वरूप उस तारकासुर की मृत्यु आपके पुत्र के द्वारा निश्चित है। हे स्वामी! आप उस दुष्ट का नाश कर हम सबकी रक्षा करें। हम सबका उद्धार कीजिए । प्रभो! आप हिमालय पुत्री पार्वती का पाणिग्रहण कीजिए। आपका विवाह ही हमारे कष्टों को दूर कर सकता है। आप भक्तवत्सल हैं। अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए आप देवी पार्वती से शीघ्र विवाह कर लीजिए ।
विष्णुजी के ये वचन सुनकर भगवान शिव बोले ;- देवताओ! यदि मैं आपके कहे अनु परम सुंदरी देवी पार्वती से विवाह कर लूं तो इस धरती पर सभी मनुष्य देवता और ऋषि-मुनि कामी हो जाएंगे। तब वे परमार्थ पद पर नहीं चल सकेंगे। देवी दुर्गा अपने विवाह से कामदेव को पुनः जीवित कर देंगी। मैंने कामदेव को भस्म करके देवताओं के हित का ही कार्य किया था। सभी देव निष्काम भाव से उत्तम तपस्या कर रहे थे, ताकि विशिष्ट प्रयोजन को पूर्ण कर सकें। कामदेव के न होने से सभी देवता निर्विकार होकर शांत भाव से समाधि में ध्यानमग्न होकर बैठ सकेंगे। काम से क्रोध होता है। क्रोध से मोह हो जाता है और मोह के फलस्वरूप तपस्या नष्ट हो जाती है। इसलिए मैं तो आप सबसे भी यही कहता हूं कि आप भी काम और क्रोध को त्यागकर तपस्या करें । ब्रह्माजी बोले ;- हे नारद! त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के मुख से इस प्रकार की बातें सुनकर हम सभी हत्प्रभ से उन्हें देखते रहे और वे हम सब देवताओं और मुनियों को निष्काम होने का उपदेश देकर चुप हो गए और पुनः पहले की भांति सुस्थिर होकर ध्यान में लीन हो गए। भगवान शिव ब्रह्म स्वरूप आत्मचिंतन में लग गए। श्रीहरि विष्णु सहित अन्य देवताओं ने जब परमेश्वर शिव को ध्यान में मग्न देखा तब सब देवता नंदीश्वर से कहने लगे- नंदीश्वर जी! हम अब क्या करें? हमें भगवान शिव को प्रसन्न करने का कोई मार्ग सुझाइए। तब नंदीश्वर सभी देवताओं को संबोधित करते हुए बोले - आप भक्तवत्सल भगवान शिव की प्रार्थना करते रहो। वे सदैव ही अपने भक्तों के वश में रहते हैं। तब नंदीश्वर की बात सुनकर देवता पुनः भगवान शिव की स्तुति करने लगे। वे बोले - हे देवाधिदेव! महादेव! करुणानिधान! भगवान शिव शंकर! हम दोनों हाथ जोड़कर आपकी शरण में आए हैं। आप हम सबके सभी दुखों और कष्टों को दूर कीजिए और हम सबका उद्धार कीजिए। इस प्रकार देवताओं ने भगवान शिव की अनेकों बार स्तुति की। इसके बाद भी जब भगवान ने आंखें नहीं खोलीं तो सब देवता उनकी करुण स्वर में स्तुति करते हुए रोने लगे। तब श्रीहरि विष्णु मन ही मन भगवान शिव का स्मरण करने लगे और करुण स्वर में अपना निवेदन करने लगे। देवताओ, मेरे और श्रीहरि विष्णु के बार-बार निवेदन करने पर भगवान शिव की तंद्रा टूटी और उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक अपनी आंखें खोल दीं। तब भगवान शिव बोले- तुम सब एक साथ यहां किसलिए आए हो? मुझे इससे अवगत कराओ।
श्रीहरि विष्णु बोले ;- हे देवेश्वर ! हे शिव शंकर! आप सर्वज्ञ हैं। सबके अंतर्यामी ईश्वर हैं। आप तो सबकुछ जानते हैं। भगवन्, आप हमारे मन की बात भी अवश्य ही जानते होंगे। फिर भी यदि आप हमारे मुख से सुनना चाहते हैं तो सुनें। तारक नामक असुर आजकल बड़ा बलशाली हो गया है। वह देवताओं को अनेकों प्रकार के कष्ट देता है। इसलिए हम सभी देवताओं ने देवी जगदंबा से प्रार्थना कर उन्हें गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में अवतार ग्रहण कराया है। इसलिए ही हम बार-बार आपकी प्रार्थना कर रहे हैं कि आप देवी पार्वती को पत्नी रूप में प्राप्त करें। ब्रह्माजी के वरदान के अनुसार भगवान शिव और देवी पार्वती का पुत्र ही तारकासुर का वध कर हमें उसके आतंक से मुक्त करा सकता है। मुनिश्रेष्ठ नारद के उपदेश के अनुसार देवी पार्वती कठोर तपस्या कर रही हैं। उनकी तपस्या के तेज के प्रभाव से समस्त चराचर जगत संतप्त हो गया है। इसलिए हे भगवन्! आप पार्वती को वरदान देने के लिए जाइए हे प्रभु! देवताओं पर आए इस संकट और उनके दुखों को मिटाने  के लिए आप देवी पार्वती पर अपनी कृपादृष्टि कीजिए। आपका विवाह उत्सव देखने के लिए हम सभी बहुत उत्साहित हैं। अतः प्रभु, आप शीघ्र ही विवाह बंधन में बंधकर हमारी इस इच्छा को भी पूरा करें। भगवन्! आपने रति को जो वरदान प्रदान किया था, उसके पूरा होने का भी अवसर आ गया है। अतः महेश्वर! आप अपनी प्रतिज्ञा को शीघ्र ही पूरा करें।
ब्रह्माजी बोले ;- हे नारद! ऐसा कहकर और प्रणाम करके विष्णुजी और अन्य देवताओं ने पुनः शिवजी की स्तुति की। तत्पश्चात वे सब हाथ जोड़कर खड़े हो गए। तब उन्हें देखकर वेद मर्यादाओं के रक्षक भगवान शिव हंसकर बोले-'हे हरे! हे विधे! और हे देवताओ! मेरे अनुसार विवाह करना उचित कार्य नहीं है क्योंकि विवाह मनुष्य को बांधकर रखने वाली बेड़ी है। जगत में अनेक कुरीतियां हैं। स्त्री का साथ उनमें से एक है। मनुष्य सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो सकता है परंतु स्त्री के बंधन से वह कभी मुक्त नहीं हो सकता। एक बार को लोहे और लकड़ी की बनी जंजीरों से मुक्ति मिल सकती है परंतु विवाह एक ऐसी कैद है, जिससे छुटकारा पाना असंभव है। विवाह मन को विषयों के वशीभूत कर देता है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति असंभव हो जाती है। मनुष्य यदि सुख की इच्छा रखता है तो उसे इन विषयों को त्याग देना चाहिए। विषयों को विष के समान माना जाता है। इन सब बातों का ज्ञान होते हुए भी, मैं आप सबकी प्रार्थना को सफल करूंगा क्योंकि मैं सदैव ही अपने भक्तों के अधीन रहता हूं। मैंने अपने भक्तों की रक्षा के लिए अनेक कष्ट सहे हैं।
हे हरे! और हे विधे! आप तो सबकुछ जानते ही हैं। मेरे भक्तों पर जब-जब विपत्ति आती हैं, तब-तब मैं उनके सभी कष्टों को दूर करता हूं। भक्तों के अधीन होने के कारण मैं उनके हित में अनुचित कार्य भी कर बैठता हूं। भक्तों के दुखों को मैं हमेशा दूर करता हूं। तारकासुर ने तुम्हें जो दुख दिए हैं, उन्हें मैं भलीभांति जानता हूं। उनको मैं अवश्य ही दूर करूंगा। जैसा कि आप सभी जानते हैं, मेरे मन में विवाह करने की कोई इच्छा नहीं है फिर भी पुत्र प्राप्ति हेतु मैं देवी पार्वती का पाणिग्रहण अवश्य करूंगा। अब तुम सब देवता निर्भय और निडर होकर अपने-अपने धाम को लौट जाओ। मैं तुम्हारे कार्य की सिद्धि अवश्य करूंगा। इसलिए अपनी सभी चिंताओं को त्यागकर सभी सहर्ष अपने घर जाओ। ऐसा कहकर भगवान शिव शंकर पुनः मौन हो गए और समाधि में बैठकर ध्यान में मग्न हो गए। तत्पश्चात, विष्णुजी और मैं देवराज इंद्र सहित सभी देवता अपने-अपने धामों को खुशी से लौट आए।
श्रीरुद्र संहिता तृतीय खण्ड तेईसवाँ अध्याय 

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