हवन सृष्टि वर्णन,मनु पुत्रों का कुल वर्णन ,Havan Srishti description, complete description of Manu's sons

हवन सृष्टि वर्णन,मनु पुत्रों का कुल वर्णन

हवन सृष्टि वर्णन

सूत जी बोले-हे मुनियो ! वैवस्वान मन्वंतर में हवन करने वाली सृष्टि का वर्णन है। इस सृष्टि में सात ऋषि हुए जिन्हें ब्रह्माजी ने अपना पुत्र माना । दिति ने कश्यप ऋषि की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने दिति को वरदान मांगने के लिए कहा। वरदान में दिति ने इंद्र को मारने वाला पराक्रमी पुत्र मांगा। उनकी इच्छा कश्यप मुनि ने पूरी की। वरदान देकर वे तप करने चले गए। इंद्रदेव को दिति के इस वरदान के बारे में पता चल गया। वे उस अवसर की प्रतीक्षा करने लगे जिसमें वे दिति के व्रत को भंग कर सके। एक दिन इंद्र को अवसर मिल ही गया। दिति बिना हाथ मुंह धोए जूठे मुंह सो गई। इंद्र ने उसके गर्भ में प्रवेश कर उसके गर्भ के वज्र द्वारा सात टुकड़े कर दिए परंतु टुकड़े होने पर भी वे जीवित रहे और इंद्र से प्रार्थना करते हुए बोले- हम आपके भ्राता हैं। आप हमसे कैसी शत्रुता कर रहे हैं। यह सुनकर इंद्रदेव ने शत्रुता त्याग दी। इस प्रकार वे मरुद्गण के रूप में हुए। ब्रह्माजी ने पृथु को आधा राज्य दिया। सोम को ब्राह्मण, वृक्ष, नक्षत्र, ग्रह एवं भूतों का राजा बनाया। वरुण को जल, विष्णु को आदित्य, पावक वसुओं के, प्रजापतियों के इंद्र, मरुद्गणों के प्रह्लाद, दैत्यों के वैवस्वत, यत पितरों के राजा हुए। हिमालय पर्वतों के, समुद्र नदियों के, सिंह पशुओं के, वट वृक्ष वनस्पति व अन्य वृक्षों के राजा हुए। तब ब्रह्माजी ने सभी राजाओं का अभिषेक किया।
शिव पुराण श्रीउमा संहिता तेतीसवां अध्याय

मन्वंतरों की उत्पत्ति

शौनक जी बोले- सूत जी ! अब आप हमें मन्वंतरों एवं मनुओं के बारे में विस्तारपूर्वक बताइए। उनकी बात स्वीकारते हुए सूत जी बोले- हे मुनि जी ! स्वायंभुव स्वारोचिष उत्तम रैवत, चाक्षुष आदि पांच मन्वंतरों का वर्णन मैंने आपको सुना दिया है। अब वैवस्वत मन्वंतर के बारे में सुनो। सावर्णि रोच्य, ब्रह्मा धर्म सावर्णि, रुद्र, सावर्णि देव, सावर्णि इंद्र ये सभी मनु हैं। तीनों काल के मन्वंतर कहे जाते हैं। जिसका हजार युगों तक कल्प बनता है। मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, ऋतू, पूलस्त्य,वशिष्ठ ये सातों व्रभा पुत्र हैं। स्वायंभुव मन्वंतर में यामनायक देवता सात ऋषि उत्तर दिशा में रहते हैं। आग्नीध्र, अग्नि, बाहु, मेधातिथि, बस, ज्योतिष्मान, धृतमान, हव्य,पवन, शुभ ये दस स्वयंभुव मनु पुत्र हैं। इनमें यज्ञ नामक इंद्र कहे गए हैं। दूसरे मन्वंतर में अर्जस्तमा, परस्तंभ, ऋषभ, वसुमान, ज्योतिष्मान, द्युतिमान एवं सातवें रोचिष्मान सात ऋषि हैं। स्वरोचिष मन्वंतर में रोचन, इंद्र तथा तुषिता नामक देवता कहे हैं। हरि, सुकृति, ज्योति, अयोमूर्ति,अयस्मय, प्रथित,मनुष्य,नभ, सूर्य महात्मा, स्वारोचिष के पुत्र हैं। तीसरे मन्वंतर में वशिष्ठ के सातों पुत्र एवं हिरण्यगर्भ के ऊर्जा तेजस्वी पुत्र ऋषि कहलाए।चौथे मन्वंतर में गार्ग्य, पृथु, गम्या, जन्य धाता और कपिनक आदि सात ऋषि हैं। त्रिशिख इंद्र हैं। द्युतिपोत, सौत, पस्यतप, शूल, तापन, तपोरित अकल्याष, धन्वी, खंगी, तामस, मनु दस पुत्र हैं। पांचवें मन्वंतर में देवबाहु, जय मुनि, वेदशिरा, हिरण्य रामा, पर्जन्य, उर्ध्व बाहु एवं सत्व जादिक सात ऋषि कहलाए। विभु नाम के इंद्र तथा रैवत मनु कहलाए। छठे मन्वंतर में रुचि प्रजापति के पुत्र रौच्य मनु, राम, व्यास, अत्रेय, बहश्रुति, भारद्वाज, अश्वत्थामा, शरद्वान, कपाचार्य, कौहिक वंशी गाल्व, रुक, कश्यप आदि ऋषि और देवता कहलाए। इसी प्रकार आने वाले मन्वंतरों में विषांग, नीबासुमत, द्युतिमान, वसु, सूट, सुराविष्णु, राजा, सुमति, सावर्णि, मनु पुत्र होंगे। नवें मन्वंतर में मेधा तिथि, पौलस्त्य वस्तु कश्यप ज्योतिष्मान, भार्गव, अंगिरा तथा सवन, वशिष्ठ आदि रोहित मन्वंतर में होंगे और मनु दक्षसावर्णि होगा। इस प्रकार जब दूसरा मन्वंतर आरंभ होगा तब हविष्मान, प्रकृति, अधोमुक्ति,अव्यय, प्रयाति, भाभार, अनेन ऋषि होंगे। द्विष्मंत नामक देवता होंगे। तृतीय मन्वंतर में ग्यारहवां मनु होगा। उसमें हविष्मान व पुष्पमान वशिष्ठ अनय चारु निखर तेजस अग्नि ब्रह्माजी के वधृत कहलाएंगे। द्युति, सुताया, अंगिरा, भार्गव सात ऋषि एवं ब्रह्मा के पांच मानस पुत्र देवता होंगे। इस मन्वंतर में दिवस्पति इंद्र होंगे। पौलस्त्य, पुलह, चौदहवां सत्य मनु मन्वंतर होगा। इसमें आग्नीध्र, अति ब्राह्य, मागध, शुक्ति, युक्ति,अजित, पुलह नामक सात ऋषि, दाक्षुव देवता एवं शुचि इंद्र होगा। चौदहवें मन्वंतर में पांच देवता होगे। तरंग, भीरू, दुघ्न, अनुग्र, अतिमानी प्रवीण विष्णु संक्रंदन मनु के पुत्र होंगे। इस प्रकार मैंने आपसे भूत, भविष्य काल के पहले कल्प के सभी मनुओं का वर्णन किया। मनु अपने धर्म और तप के प्रभाव से सहस्रों युगों तक प्रजा का पालन करके ब्रह्मलोक को जाते हैं। चौदह मन्वंतर अर्थात इकहत्तर युगों तक स्थिर रहकर सृष्टि का पुनः आरंभ होता है। सो हजार वर्ष पूर्ण होने पर एक 'कल्प' पूरा माना जाता है।
शिव पुराण श्रीउमा संहिता चौतीसवां अध्याय

वैवस्वत मन्वंतर वर्णन

सूत जी बोले- कश्यप मुनि को दक्ष कन्या से विवश्वान सूर्य की प्राप्ति हुई। सूर्य की संज्ञा, त्वष्ट्री, सुरेणुका नामक तीन पत्नियां हुईं। संज्ञा और सूर्य की तीन संतानें हुईं। श्राद्धदेव, मनु और प्रजापति यम। यम के साथ यमुना कन्या के रूप में पैदा हुई। उस समय संज्ञा सूर्य के तेज को सहन न कर सकीं। अपनी माया रूपी छाया प्रकट कर उसे अपनी संतानों का पालन-पोषण करने की आज्ञा देकर संज्ञा अपने पिता के घर चली गई। उसके पिता ने उसे इस प्रकार आया देखकर धिक्कारा, तो संज्ञा वहां से वापस आ गई। घोड़ी का वेश धारण करके वह कुरु देशों का भ्रमण करने लगी। इधर, सूर्य ने संज्ञा की छाया को ही अपनी पत्नी माना। उससे उन्हें सावर्णि मनु नामक पुत्र प्राप्त हुआ। छाया को अपने पुत्र से अधिक प्यार था। वह संज्ञा की संतानों का सही से ध्यान नहीं रखती थी। एक दिन यम को किसी बात पर क्रोध आ गया और उसने छाया को लात मार दी। यह देखकर क्रोधित छाया ने यम को शाप दिया कि तुम्हारा पांव, जिससे तुमने मुझे मारा, वह गिर पड़े। शाप सुनकर यम बहुत चिंतित हुए और उन्होंने सारी बातें जाकर अपने पिता सूर्य को बताईं और शाप से बचाने की प्रार्थना की। सूर्यदेव बोले- बेटा, मैं तुम्हारी माता के शाप को असत्य नहीं कर सकता परंतु उसे कम करने की कोशिश अवश्य करूंगा। सूर्य ने क्रोधित होकर छाया से पूछा, बताओं, तुमने यम को शाप क्यों दिया? क्या कोई मां अपने पुत्रों से ऐसा व्यवहार कर सकती है। तुम्हारा सबसे छोटे पुत्र से विशेष स्नेह है, अन्य सभी को तुम सदा डांटती रहती हो। ऐसा क्यों? इस प्रकार क्रोधित सूर्य के वचन सुनकर घबराई हुई छाया ने सारी बातें सच सच बता दीं। फिर छाया ने सूर्य को शनि चक्र पर चढ़ाकर उनका तेज कम कर दिया। अब सूर्य का रूप सुंदर और शीतल हो गया था। उन्होंने योगदृष्टि से अपनी पत्नी संज्ञा के बारे में जानना चाहा। तब उन्हें ज्ञात हुआ कि संज्ञा घोड़ी के रूप में है। तब सूर्य उसके पास पहुंचे, अपनी पत्नी को वापस पाकर वे बहुत प्रसन्न हुए। संज्ञा भी उन्हें पाकर बहुत खुश हुई। उनके मिलन से वैद्य अश्विनी कुमार की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात खुशी-खुशी संज्ञा और सूर्य अपने घर लौट आए। यमराज धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करने लगे और धर्मराज कहलाए। सावर्णि मनु तपस्वी होने के कारण प्रजापति कहलाए और सावर्णि मन्वंतर में मनु हुए। यमुना, सूर्य की सबसे छोटी कन्या यमलोक को पवित्र करके बहती हुई नदी हुई।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता पैंतीसवां अध्याय

मनु पुत्रों का कुल वर्णन

सूत जी बोले-ऋषिगण! वैवस्वत मनु के नौ पुत्र इक्ष्वाकु शिविन, भाचु, धृष्ट, कार्याति, निष्तंत, कुत्रय, प्रियव्रत और थे। ये सभी महा पराक्रमी, वीर और क्षत्रिय धर्म का पालन करने वाले थे। जब मनु की कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ किया। तब नृग वरुण के अंश से इड़ा की उत्पत्ति हुई। वह वरुण के पास गई और उन्हें बताया कि मैं मनु के यज्ञ में आपके अंश से ही पैदा हुई हूं। बताइए, मेरे लिए क्या आज्ञा है? तब वरुण देव ने उसे मनुवंश को बढ़ाने की आज्ञा प्रदान की। जब इड़ा मनु के घर की ओर जा रही थी तो रास्ते में बुधि से उसका मिलन हुआ और उनसे उसे पुरुरवा नामक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिस पर उर्वशी नामक अप्सरा मोहित हो गई थी। तत्पश्चात भगवान शिव की कृपा से पुरुषत्व प्राप्त कर सुद्युम्न ने परम धर्मात्मा उत्कल, गय एवं विनताश्व नामक पुत्रों को पैदा किया। उत्कल ब्राह्मण होकर वल्कल देश में निवास करने लगे। विनताश्व पश्चिम देश में ब्राह्मण हुआ। आनति पुत्र रैन्य रैभय नाम से जगप्रसिद्ध हुआ । उसका निवास कुशस्थली में हुआ था। उनके सौ पुत्र एवं कुकुदमी सबसे श्रेष्ठ कन्या हुई। इसकी कन्या के रूप में सुंदरी रेवती पैदा हुई। रेवती के बड़े होने पर कुकुदमी को उसके विवाह की चिंता हुई। उन्होंने ब्रह्माजी से व के वर के बारे में जानना चाहा। तब ब्रह्माजी बोले- हे कुकुदमी! अट्ठाईसवें द्वापर में, भगवान श्रीकृष्ण अपने कुटुंबियों सहित द्वारिकापुरी में निवास करेंगे। वहां उनके भाई और वसुदेव जी के पुत्र बलदेव से तुम रेवती का विवाह करना। वही रेवती के लिए सर्वथा योग्य वर है। ब्रह्माजी के कथनानुसार कदमी ने रेवती का विवाह बलदेव जी से किया। स्वयं वे सुमेरु पर्वत पर जाकर तपस्या करने लगे। बलदेव के सौ पुत्र हुए। श्रीकृष्ण जी को भी अनेक पुत्रों की प्राप्ति हुई। वे सभी सारी दिशाओं में जाकर अनेक स्थानों पर बस गए। सूत जी बोले- मनु के पुत्र वृषह्न वशिष्ठ जी के आश्रम में रहने लगे। उन्होंने उन्हें गौरक्षा के काम में लगा दिया। एक रात बाघ ने गौशाला पर आक्रमण कर दिया। गायों की रक्षा के लिए वृषह्न तलवार लेकर गौशाला में चले गए और अंधेरे के कारण उनके वार से गाय कट गई और बाघ भाग खड़ा हुआ। सुबह जब उसने गाय को मरा देखा तो सारी बातें गुरु जी को बताईं। यह सब जानकर वशिष्ठ जी ने उसे शूद्र होने का शाप दे दिया। तब दुख और शोक में डूबे वृषह्न ने अपने शरीर को जला दिया।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता छत्तीसवां अध्याय

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