होली की कहानियां और होली पौराणिक गाथाओं से जुडा हुआ है,Holi stories and Holi is associated with mythological stories
होली की कहानियां और होली पौराणिक गाथाओं से जुडा हुआ है
- होली का पूरा नाम क्या था?
इतिहास होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है। इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था।
होली क्या है?
होली एक हिंदू त्यौहार है जो हर वसंत ऋतु में मनाया जाता है। यह सब नई शुरुआत के बारे में है - होली वसंत ऋतु का स्वागत करती है और सर्दियों के अंत का जश्न मनाती है। होली का त्योहार हमेशा पूर्णिमा या पूर्णिमा के दिन पड़ता है। दो दिन की छुट्टी है; पूर्णिमा से एक दिन पहले होलिका दहन होता है। तभी पूजा (या प्रार्थना) के लिए अलाव जलाया जाता है। अलाव शुद्धिकरण है और इसका उद्देश्य सभी बुराइयों और बुराइयों को जलाना है। पूर्णिमा के ठीक बाद अगले दिन, रंगों का त्योहार मनाया जाता है।
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होली का त्यौहार कई पौराणिक गाथाओं से जुडा
होली का त्यौहार कई पौराणिक गाथाओं से जुडा हुआ है। इनमें कामदेव प्रह्लाद और पूतना की कहानियां प्रमुख है। प्रत्येक कहानी के अंत में सत्य की विजय होती है और राक्षसी प्रवृत्तियों का अंत होता है। पहली कहानी शिव और पार्वती की है। हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आये। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिवजी को बडा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यपु नास्तिक थे। वह चाहते थे कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड दे। परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद के साथ आग में बैठने को कहा। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। होली का त्यौहार कई पौराणिक गाथाओं से जुडा हुआ है। इनमें कामदेव प्रह्लाद और पूतना की कहानियां प्रमुख है। प्रत्येक कहानी के अंत में सत्य की विजय होती है और राक्षसी प्रवृत्तियों का अंत होता है। पहली कहानी शिव और पार्वती की है। हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आये। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिवजी को बडा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यपु नास्तिक थे। वह चाहते थे कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड दे। परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद के साथ आग में बैठने को कहा। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। कुछ लोग इस उत्सव का सम्बन्ध भगवान कृष्ण से मानते हैं। राक्षसी पूतना एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर बालक कृष्ण के पास गयी। वह उनको अपना जहरीला दूध पिला कर मारना चाहती थी। दूध के साथ साथ बालक कृष्ण ने उसके प्राण भी ले लिये। कहते हैं मृत्यु के पश्चात पूतना का शरीर लुप्त हो गया इसलिये ग्वालों ने उसका पुतला बना कर जला डाला। मथुरा तब से होली का प्रमुख केन्द्र है। होली का त्योहार राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कहानी से भी जुडा हुआ है। वसंत के सुंदर मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है। वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है।
- भारत में होली का इतिहास क्या है?
हिरण्यकश्यपु के कहने पर होलिका प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कर कई। किंतु भगवान विष्णु की कृपा से तब भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन होने लगा और ये त्योहार मनाया जाने लगा।
- होलिका किसकी पत्नी थी?
राजस्थान के कई शहरों और गांवों में आज भी लोकदेवता इलोजी महाराज की पूजा की जाती है. इलोजी, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका से प्रेम करते थे और शादी के बंधन में बंधने ही वाले थे
- होलिका के कितने पुत्र थे?
यह "हिरण्यकरण वन" नामक स्थान का राजा था৷ हिरण्याक्ष उसका छोटा भाई था जिसका वध वाराह रूपी भगवान विष्णु ने किया था। हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे जिनके नाम हैं प्रह्लाद , अनुहलाद , सह्ल्लाद और हल्लाद जिनमें प्रह्लाद सबसे वृद्ध और हलाद सबसे युवा था। उसकी पत्नी का नाम कयाधु और उसकी छोटी बहन का नाम होलिका था।
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