पार्वती जी कैसे उत्पन्न हुई और भगवान शिव को किस प्रकार पति रूप में प्राप्त किया। How Parvati ji was born from Myna and how she got Lord Shiva as her husband

पार्वती जी कैसे उत्पन्न हुई और भगवान शिव को किस प्रकार पति रूप में प्राप्त किया।

देवताओं की स्तुति के पश्चात्, देवी जगदंबा उमा ने प्रसन्नता भरी मुस्कान के साथ उन्हें आशीर्वाद दिया। देवी ने कहा- "हे देवताओं! आप सभी की भक्ति और पूजा के लिए मैं हमेशा आपके साथ हूं। आपकी प्रार्थनाओं को मैं हमेशा सुनती हूं और आपकी सेवा में सन्तुष्ट हूं। अब मैं हिमालय राजा के घर आई हूं और उनकी पुत्री के रूप में प्रकट होने का संकल्प किया है। मैं शिवप्रिया हूं और अगले कुछ समय तक मैं तपस्या करके शिवजी को प्राप्त करने के लिए यहां रहूंगी।"

पार्वती जी कैसे उत्पन्न हुई

नारद जी बोले- हे ब्रह्माजी! हे महामते! आपने अपने श्रीमुख से मैना के पूर्व जन्म की कथा कही, जो कि अद्भुत व अलौकिक थी। भगवन्! अब आप मुझे यह बताइए कि पार्वती जी मैना से कैसे उत्पन्न हुई और उन्होंने त्रिलोकीनाथ भगवान शिव को किस प्रकार पति रूप में प्राप्त किया।  

देवताओं का हिमालय के पास जाना

ब्रह्माजी बोले- हे नारद! मैना और हिमवान के विवाह पर बहुत उत्सव मनाया गया। विवाह के पश्चात वे दोनों अपने घर पहुंचे। तब हिमालय और मैना सुखपूर्वक अपने घर में निवास करने लगे। तब श्रीहरि अन्य देवताओं को अपने साथ लेकर हिमालय के पास गए। सब देवताओं को अपने राजदरबार में आया देखकर हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सभी देवताओं को प्रणाम कर उनकी स्तुति की। वे भक्तिभाव से उनका आदर-सत्कार करने लगे। वे देवताओं की सेवा करके अपने को धन्य मान रहे थे। मुने! हिमालय दोनों हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो गए और बोले- भगवन्! आप सबको एक साथ अपने घर आया देखकर मैं प्रसन्न हूं। सच कहूं तो आज मेरा जीवन सफल हो गया है। आज मैं धन्य हो गया हूं। मेरा राज्य और मेरा पूरा कुल आपके दर्शन मात्र से ही धन्य हो गया। आज मेरा तप, ज्ञान और सभी कार्य सफल हो गए हैं। भगवन्! आप मुझे अपना सेवक समझें और मुझे आज्ञा दें कि मैं आपकी क्या सेवा करूं? मुझे बताइए कि मेरे योग्य क्या सेवा है? गिरिराज हिमालय के ये वचन सुनकर देवतागण प्रसन्नतापूर्वक बोले- हे हिमालय ! हे गिरिराज ! देवी जगदंबा उमा ही प्रजापति दक्ष के यहां उनकी कन्या सती के रूप में प्रकट हुई। घोर तपस्या करने के बाद उन्होंने शिवजी को पति रूप में प्राप्त किया, परंतु अपने पिता दक्ष के यज्ञ में वे अपने पति का अपमान सह न सकीं और उन्होंने योगाग्नि में अपना शरीर भस्म कर दिया। यह सारी कथा तो आप भी जानते ही हैं। अब देवी जगदंबा पुनः धरती पर अवतरित होकर शिवजी की अर्द्धांगिनी बनना चाहती हैं। हे हिमालय ! हम सभी यह चाहते हैं। कि देवी सती पुनः आपके घर में अवतरित हों। श्रीविष्णु जी की यह बात सुनकर हिमालय बहुत प्रसन्न हुए और आदरपूर्वक बोले- भगवन्! यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि देवी मेरे घर आंगन को पवित्र करने के लिए मेरी पुत्री के रूप में प्रकट होंगी। तब हिमालय अपनी पत्नी के साथ और देवताओं को लेकर देवी जगदंबा की शरण में गए। उन्होंने देवी का स्मरण किया और श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति करने लगे। देवता बोले- हे जगदंबे ! हे उमे! हे शिवलोक में निवास करने वाली देवी । हे दुर्गे ! हे महेश्वरी! हम सब आपको भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं। आप परम कल्याणकारी हैं। आप पावन और शांतिस्वरूप आदिशक्ति हैं। आप ही परम ज्ञानमयी शिवप्रिया जगदंबा हैं। आप इस संसार में हर जगह व्याप्त हैं। सूर्य की तेजस्वी किरण आप ही हैं। आप ही अपने तेज से इस संसार को प्रकाशित करती हैं। आप ही जगत का पालन करती हैं। आप ही गायत्री, सावित्री और सरस्वती हैं। आप धर्मस्वरूपा और वेदों की ज्ञाता हैं। आप ही प्यास और आप ही तृप्ति हैं। आपकी पुण्यभक्ति भक्तों को निर्मल आनंद प्रदान करती है। आप ही पुण्यात्माओं के घर में लक्ष्मी के रूप में और पापियों के घर में दरिद्रता और निर्धनता बनकर निवास करती हैं। आपके दर्शनों से शांति प्राप्त होती है। आप ही प्राणियों का पोषण करती हैं तथा पंचभूतों के सारतत्व से तत्वस्वरूपा हैं। आप ही नीति हैं और सामवेद की गीति हैं। आप ही ऋग्वेद और अथर्वेद की गति हैं। आप ही मनुष्यों के नाक, कान, आंख, मुंह और हृदय में विराजमान होकर उनके घर में सुखों का विस्तार करती हैं। हे देवी जगदंबा ! इस संपूर्ण जगत के कल्याण एवं पालन के लिए हमारी पूजा स्वीकार करके आप हम पर प्रसन्न हों। इस प्रकार जगज्जननी सती-साध्वी देवी जगदंबा उमा की अनेकों बार स्तुति करके सभी देवता उनके साक्षात दर्शनों के लिए दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो गए। यह कथा हिमालय और देवी जगदंबा के बीच के भक्ति और पूजा की महत्त्वपूर्णता को दर्शाती है, जिससे वे देवी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इसके माध्यम से हमें दिखाया जाता है कि भगवान के प्रति श्रद्धा, भक्ति और सेवा का महत्त्व कितना है। 

🙏🏿श्रीरुद्र संहिता तृतीय खण्ड तीसरा अध्याय 🙏🏿

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