बृहस्पति कवच स्तोत्र Jupiter Armor Hymn

बृहस्पति कवच स्तोत्र  Jupiter Armor Hymn

बृहस्पति देव 

बृहस्पति देव ब्राह्मण जाति के अंगिरा गोत्र होते है और सिंधु वतन पर राज्य करने वाले होते हैं। बृहस्पतिदेव के पिता का नाम अंगिरा ऋषि एवं माता सुरुपा हैं। बहिन योग सिद्धा एवं पत्नियां तारा, ममता व शुभा नाम हैं। पीले देह से युक्त होकर पीले रंग के पीताम्बर को धारण करके कमल पर बैठे रहते है। देवताओं को अपने ज्ञान एवं अपनी बुद्धि सामर्थ्य भाव से सही रास्ता बताने वाले होते है, इसलिए देवताओं के गुरु पद से युक्त होते हैं।
बृहस्पति कवचं स्त्रोतं देवता के गुरुदेव बृहस्पति जी का हैं, जिनमें बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए उनके गुणों का आख्यान किया गया हैं। जब गुरु ग्रह शुभ होगा तब मनुष्य को समस्त तरह की ऊँचाई प्रदान करता है, तब मनुष्य को अच्छे कार्य को करने के लिए एवं ज्ञान के क्षेत्र में बढ़ोतरी करता है। गुरु का दूसरा नाम बृहस्पति है, जो कि भृगु ऋषि के पुत्र एवं देवताओं के गुरुदेव बृहस्पति जी है। बृहस्पति जी सबका भला करने वाले होते है। मनुष्य के जीवन के सोलह या बाईस या चालीस वर्ष की उम्र में अपनी महादशा आने पर मनुष्य के भाग्य में चार चांद लगाता है 
बृहस्पति कवच स्तोत्र  Jupiter Armor Hymn

बृहस्पति कवच स्तोत्र brhaspati kavach stotr


ॐ गुरुदेवाय विद्मिहे वाणेशाय धीमहि !
तन्नो: गुरु: प्रचोदयात !ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:। 

ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:। ॐ गुं गुरवे नम:।
 ॐ बृं बृहस्पतये नम:। ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।,,

अस्य श्रीबृहस्पतिकवचस्तोत्रमन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, गुरुर्देवता, गं बीजं, श्रीशक्तिः,
क्लीं कीलकं, गुरुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।

अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञं सुरपूजितम् ।
अक्षमालाधरं शान्तं प्रणमामि बृहस्पतिम्।।

बृहस्पति: शिर: पातु ललाटं पातु में गुरु:।
कर्णौ सुरुगुरु: पातु नेत्रे मेंभीष्टदायक:।।

जिह्वां पातु सुराचायो नासां में वेदपारग:।
मुखं मे पातु सर्वज्ञो कण्ठं मे देवता शुभप्रद:।।

भुजवाङ्गिरस: पातु करौ पातु शुभप्रद:।
स्तनौ मे पातु वागीश: कुक्षिं मे शुभलक्षण:।।

नाभिं देवगुरु: पातु मध्यं सुखप्रद:।
कटिं पातु जगदवन्द्य: ऊरू मे पातु वाक्पति:।।

जानु जङ्गे सुराचायो पादौ विश्वात्मकस्तथा।
अन्यानि यानि चाङ्गानि रक्षेन् मे सर्वतोगुरु:।।

इत्येतत कवचं दिव्यं त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
सर्वान् कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

॥ इति श्रीब्रह्मयामलोक्तं बृहस्पतिकवचं सम्पूर्णम् ॥

गुरुवार व्रत की उद्द्यापन विधि

उद्द्यापन के एक दिन पहले 5 चीजें लाकर रख लीजिये- चने की दाल, गुड़, हल्दी, केले, पपीता और पीला कपड़ा और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा रख दीजिये। फिर गुरुवार के दिन हर व्रत की तरह यथावत पूजा के बाद प्रार्थना करिए की आपने संकल्प के अनुसार अपने व्रत पूरे कर लिए हैं और भगवान आप पर कृपा बनाये रखें, और आज आप पूजन का उद्यापन करने जा रहे हैं । इसके पश्चात पूजा में ये सारी सामग्री भगवान विष्णु को चढ़ाकर किसी ब्राह्मण को दान करके उनका आशीर्वाद लीजिये। बृहस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। पूजा के बाद कथा सुननी चाहिए। इस दिन पीले वस्त्रों, पीले फलों का प्रयोग करना चाहिए। मान्यतानुसार इस दिन एक बार बिना नमक का पीला भोजन करना चाहिए। भोजन में चने की दाल का भी प्रयोग किया जा सकता है। इस दिन प्रात: उठकर भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। अगर बृहस्पतिदेव की पूजा करनी हो तो उनका ध्यान करना चाहिए। इसके बाद फल, फूल, पीले वस्त्रों से भगवान बृहस्पतिदेव और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए। प्रसाद के रूप में केले चढ़ाना शुभ माना जाता है लेकिन इन केलों को दान में ही दे देना चाहिए। शाम के समय बृहस्पतिवार की कथा सुननी चाहिए और बिना नमक का भोजन करना चाहिए।
  • ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:। 
  • ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:।
  • ॐ गुं गुरवे नम:। 
  • ॐ बृं बृहस्पतये नम:। 
  • ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।

Comments