कामदा एकादशी व्रत कथा और महत्व (चैत्र शुक्ल एकादशी)
चैत्र शुक्ला एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान् वासुदेव का पूजन किया जाता है। प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात् भगवान् की पूजा अर्चना करें। तदुपरान्त गरीबों तथा ब्राह्मणों को भोजन करायें व दान आदि दें। तत्पश्चात् स्वयं फलाहार करें। इस व्रत में अन्न व नमक नहीं खाया जाता।
कामदा एकादशी का महत्व
कामदा एकादशी वैदिक पंचांग की पहली एकादशी है। इस व्रत को करने से मनुष्य ब्रह्म हत्या जैसे बड़े से बड़े पाप से भी बच जाता है। साथ ही, व्यक्ति खुद को या परिवार के किसी अन्य सदस्य को सभी श्रापों से मुक्त कर लेता है।नारद पुराण में ऋषि वशिष्ठ ने कहा है कि गंगा, गया, काशी, पुष्कर, यमुना और चंद्रभागा जैसी कोई भी चीज एकादशी के व्रत के बराबर नहीं है। हे राजा! यदि कोई भूल से भी यह व्रत कर ले तो उसके सारे पाप जलकर भस्म हो जाते हैं।
Kamada Ekadashi fasting story and significance |
एकादशी क्या है
एकादशी शब्द का अर्थ हिंदू महीने के अनुसार चंद्रमा के बढ़ने और घटने का ग्यारहवां दिन है। वैदिक संस्कृति में इसे बहुत शुभ माना जाता है। प्रत्येक माह में दो बार दोनों पक्षों, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में एकादशी आती है । पूर्णिमा से अमावस्या तक के 15 दिन कृष्ण पक्ष कहलाते हैं और उसके बाद के 15 दिन शुक्ल पक्ष कहलाते हैं । दोनों पक्षों के ग्यारहवें दिन को एकादशी कहा जाता है। इस दिन को हरिप्रिया तिथि भी कहा जाता है क्योंकि यह भगवान को अत्यंत प्रिय है।
कामदा एकादशी पूजा विधि
कामदा एकादशी व्रत का बड़ा ही महत्व है. लेकिन अगर किसी कारण आप एकादशी का व्रत ना कर पाएं तो भी आपको एकादशी के व्रत का पुण्य मिलसकता है. कामदा एकादशी पर्व पूजा-उपासना का अलग विधान है. सही विधि-विधान से पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. चलिए आपको पूजा विधि के बारे में बताते हैं.
इस व्रत को रखने वाले सभी व्यक्ति प्रात: जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर साफ वस्त्र धारण करे और भगवान विष्णु जी का नाम लेकर कामदा एकादशी व्रत का सकल्प करें. जिसके बाद भगवान सत्यनाराण को जल चढ़ाकर पीपल व तुलसी के वृक्ष में जल जरूर चढ़ाए. इसके बाद एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान विष्णु जी की तस्वीर को विराजमान कराऐं और दोनो ओर केल या आम के पत्ते रखे.
- सबसे पहले भगवान विष्णु जी के सामन घी का दीपकर जलाकर उनकी पूजा करे, पूजा में फल, पुष्प, चन्दन, चावल, धूप, दीप, पंचामृत, तिल, दूध, जल, माला, नैवेद्य, फूलो की माला आदि से पूजा करे.
- पूजा करने के बाद कामदा एकादशी व्रत की कथा सुने जिसके बाद भगवान विष्णु जी की आरती उतारे और प्रसाद भोग लगाना चाहिए.
- स्नान के बाद पहले सूर्य को अर्घ्य दें,फिर भगवान कृष्ण की आराधना करें
- कान्हा को पीले फूल, फल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें
- भगवान कृष्ण का ध्यान करें और उनके मन्त्रों का जाप करें
- इस दिन जलीय आहार या फलाहार लें तो इस व्रत के उत्तम परिणाम मिलेंगे
- अगले दिन किसी निर्धन को एक वेला का भोजन या अन्न दान करें
- मन को ईश्वर में लगाएं
कथा
प्राचीन समय में पुण्डरीक नामक एक राजा नागलोक में राज्य करता था। उसका दरबार किन्नरों व गंधर्वों से भरा रहता था। एक दिन गन्धर्व ललित दरबार में गाना कर रहा था कि अचानक उसे अपनी पत्नी की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को ललित पर बड़ा क्रोध आया। राजा ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। ललित सहस्त्रों वर्ष तक राक्षस योनि में अनेक लोकों में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुकरण करती रही। अपने पति को इस हालत में देखकर वह बड़ी दुःखी होती। एक दिन घूमते-घूमते ललित की पत्नी ललिता विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमूक ऋषि के पास गई और अपने श्रापित पति के उद्धार का उपाय पूछने लगी। ऋषि को उन पर दया आ गई। उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी व्रत करने का आदेश दिया। एकादशी व्रत के प्रभाव से इनका श्राप मिट गया और अपने गंधर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए।इस व्रत की कथा को सुनकर हमें ज्ञात होता है कि कभी-कभी छोटी-छोटी भूलों की बहुत बड़ी सजा मिलती है। ऐसे में यदि हम साहस व धैर्य से काम लें तो उन पर विजय पाई जा सकती है।
पूजा के समय विष्णु मंत्र का जाप करें
- ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:
- ऊँ नमो नारायणाय नम:
- ऊँ विष्णवे नम:
- ऊॅ नारायणाय विझ्हे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु प्रचोदयात
- श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेवाय
कामदा एकादशी व्रत कथा
कामदा एकादशी व्रत के महत्व के सम्बन्ध में सबसे पहले राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने बताया था। भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। कथा के मुताबिक धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि हे भगवन! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूं। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का क्या महत्व है बताए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं आपको बताता हूँ। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर व गन्धर्व निवास करते थे। उनमें से एक जगह ललित और ललिता नाम के पुरुष- स्त्री सुन्दर घर में निवास करते थे। उन दोनों में बहुत प्रेम था। जब कभी दोनों एक दूसरे से अलग हो जाते थे तो दोनों एक दूसरे के लिए व्याकुल हो जाते थे। पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण राक्षस बन गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त और मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे और भुजाएं अत्यंत लंबी हो गईं। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दु:ख भोगने लगा। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई, जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले – हे सुभगे! तुम कौन हो और यहाँ किसलिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से राक्षस हो गया है। इसी शोक से मैं संतप्त हूं। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। मुनि के मुख्य से ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी – हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है, इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप में आ गया। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक चले गए। वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि हे राजन! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं व राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके समान अन्य कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढऩे या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
एकादशी का महत्व
पद्म पुराण के अनुसार, एकादशी की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई जब वे विश्राम कर रहे थे। जब मुर नामक राक्षस ने आकर भगवान पर आक्रमण कर दिया। तब भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी प्रकट हुईं और शैतान से युद्ध करने लगीं और अंततः उसे मार डाला। यह देखकर भगवान बहुत प्रसन्न हुए और देवी को वरदान दिया कि जो लोग एकादशी का व्रत रखेंगे वे सभी पापों से मुक्त होकर भगवान के धाम को प्राप्त करेंगे। तभी से जो कोई भी श्री विष्णु को प्रसन्न करना चाहता है वह इस व्रत को बड़ी श्रद्धा से करता है।
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