भगवान शिव के दसवें रुद्र का नाम कपाली जानिए कथा के अनुसार शिव मंत्र Know the name of tenth Rudra of Lord Shiva, Kapali, Shiva Mantra according to the story.

 कपाली - भगवान शिव के अवतार

शिव मंत्र

  1. कपाली - 'ओम हम हम सतरुस्तंभनय हम हम ओम फट'
  2. पिंगला - 'ओम श्रीं ह्रीं श्रीं सर्व मंगलाय पिंगालय ओम नमः'
  3. भीम - 'ओम ऐं मनो वंचिता सिद्धाय ऐम ऐं ओम'
  4. विरुपाक्ष - 'ओम रुद्राय रोगनाशय आगाचा चा राम ओम नमः'
  5. विलोहिता - 'ओम श्रीं ह्रीं सैम सैम ह्रीं श्रीं शंकरशनाय ओम'
  6. षष्ठ - 'ओम ह्रीं ह्रीं सफलायै सिद्धये ओम नमः'
  7. अजपाड़ा - 'ओम श्रीं बम सोफ बलवर्धनाय बालेश्वराय रुद्राय फूट ओम'
  8. अहिर्भुदन्या - 'ओम हरं ह्रीं हम समस्त ग्रह दोष विनाश ओम'
  9. शंभु - 'ओम गम ह्लुआं शौं ग्लौं गम ओम नमः'

शैवागम के अनुसार दसवें रुद्र का नाम कपाली है ।

पद्मपुराण के अनुसार एक बार भगवान कपाली ब्रह्मा के यज्ञ में कपाल धारण करके गए, जिसके कारण उन्हें यज्ञ के प्रवेश द्वार पर ही रोक दिया गया । उसके बाद भगवान कपाली रुद्र ने अपने अनंत प्रभाव का दर्शम कराया । फिर सब लोगों ने उनसे क्षमा मांगी और यज्ञ में उन्हें ब्रह्मा के उत्तर में बहुमान का स्थान प्रदान किया । ऐसी कथा है कि इन्होंने एक बार ब्रह्मा को दण्ड देने के लिए उनका पांचवा मस्तक काट लिया था । कपाल धारण करने के कारण ही दसवें रुद्र को कपाली कहा जाता है । इसी रूप में भगवान रुद्र ने क्रोधित होकर दक्ष - यज्ञ को विध्वंस किया था ।एक बार प्रयागराज में मुनियों का एक महान समागम हुआ । उसमें ब्रह्मा के साथ सभी देवता सम्मिलित हुए । भगवान कपाली रुद्र भी वहां उपस्थित थे । पीछे से प्रजापतियों के पति दक्ष प्रजापति भी उस सभा में आएं । उन्हें देखकर सभी लोगों ने उठकर उऩका सम्मान किया । केवल आत्माराम रुद्र अपने आसनपर ही बैठे रहे । दामाद को अभिवादन न करते देखकर दक्ष क्रोधित हो गए और रुद्र को अनेक दुर्वचन कहने के साथ उनको यज्ञ में भाग न मिलने का शाप दिया तथा सभा से उठकर चल दिए । बाद में रुद्र को अपमानित करने के उद्देश्य से उन्होंने कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया । उस यज्ञ में उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, केवल भगवान रुद्र को नहीं बुलाया । रुद्र पत्नी सती ने जब यज्ञ का वृतांत सुना तो बिना बुलाए ही पिता के यज्ञ में जाने के लिए भगवान रुद्र से अनुमति मांगी । भगवान रुद्र के समझाने पर भी उन्होंने यज्ञ में वहां जाने का हठ नहीं छोड़ा । फिर भगवान रुद्र ने उन्हें राजोचित ठाट - बाट से अपने मुख्य गणों के साथ दक्ष - यज्ञ में भेज दिया । यज्ञ में रुद्र का भाग न देखकर सती ने दक्ष के साथ वहां उपस्थित सभी लोगों की जमकर कड़ी भर्त्सना की और दक्ष के द्वारा उत्पन्न अपने शरीर को योगाग्नि में भस्म कर दीं ।

इधर जब भगवान कपाली रुद्र को यह दु:खपूर्ण संवाद मिला तो उन्होंने क्रोधित होकर अपनी एक जटा उखाड़कर पत्थर पर पटक दी, जिससे उसके दो टुकड़े हो गए । एक टुकड़े से प्रलयाग्नि के समान वीरभद्र प्रकट हुए और दूसरे से महाकाली प्रकट हुईं । इन दोनों ने भगवान कपाली रुद्र की आज्ञा से दक्ष - यज्ञ का विध्वंस कर दिया । इनके सामने देवता, मुनि कोई भी नहीं ठहर सके । कुछ धराशायी हो गए और कुछ के अंग - भंग हो गए । वीरभद्र ने दक्ष के सिर को काटकर महाकाली को सौंप दिया । महाकाली उससे गेंद के समान खेलने लगी और बाद में उसे यज्ञ कुण्ड में डाल दिया । दक्षसहित दक्ष - यज्ञ को नष्ट करके वे दोनों भगवान कपाली रुद्र के पास लौट आएं । उसके बाद सभी देवगण ब्रह्मा और विष्णु के साथ भगवान कपाली रुद्र के पास गए । सब लोगों ने हाथ जोड़कर कपाली रुद्र की स्तुति की तथा दक्ष के अपराध को क्षमा करके उसे जीवन दान देने की और यज्ञ को पूर्ण कराने की प्रार्थना की । भगवान कपाली ने प्रसन्न होकर दक्ष के सिर की जगह बकरे का सिर जोड़कर उसके यज्ञ को पूर्ण करा दिया । कपाली रुद्र के आधिभौतिक स्वरूप को पावक कहा जाता है ।

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