भगवान गणेश का विवाह रिद्धि और सिद्धि जानिए विवाह की मुख्यत: दो कथा Lord Ganesha's marriage: Riddhi and Siddhi. Know the main two stories of marriage

भगवान गणेश का विवाह रिद्धि और सिद्धि जानिए विवाह की मुख्यत दो कथा 

भगवान गणेश का विवाह 

रिद्धि और सिद्धि : श्रीगणेश के साथ-साथ उनकी दोनों पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि एवं उनके पुत्र शुभ-लाभ (लाभ व क्षेम) का पूजन भी किया जाता है। ऋद्धि (बुद्धि- विवेक की देवी) और सिद्धि (सफलता की देवी) हैं। स्वास्तिक की दोनों अलग-अलग रेखाएं गणपति जी की पत्नी रिद्धि-सिद्धि को दर्शाती हैं। रिद्धि और सिद्धि की निम्न मंत्र से उपासना करने से दरिद्रता और अशांति का नाश हो जाता है।

  • गणेश मंत्र- ॐ गं गणपतये नम:।
  • ऋद्धि मंत्र- ॐ हेमवर्णायै ऋद्धये नम:
  • सिद्धि मंत्र- ॐ सर्वज्ञानभूषितायै नम:।
  • शुभ मंत्र- ॐ पूर्णाय पूर्णमदाय शुभाय नम:।
  • लाभ मंत्र- ॐ सौभाग्य प्रदाय धन-धान्ययुक्ताय लाभाय नम:।
Lord Ganesha's marriage: Riddhi and Siddhi. Know the main two stories of marriage

सिद्धि का अर्थ :
 ्सिद्धि अर्थात किसी कार्य विशेष में पारंगत होना। समान्यतया सिद्धि शब्द का अर्थ चमत्कार या रहस्य समझा जाता है, लेकिन योगानुसार सिद्धि का अर्थ इंद्रियों की पुष्टता और व्यापकता होती है। अर्थात, देखने, सुनने और समझने की क्षमता का विकास। सिद्धियां दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी अपरा। विषय संबंधी सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियां अपरा सिद्धि कहलाती है। यह मुमुक्षुओं के लिए है।गणपति की महिमा को सभी जानते हैं और यह भी जानते हैं कि वे माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। लेकिन बहुत कम लोग हैं जो इससे आगे गणेश के परिवार के बारे में जानते हैं, उनकी पत्नी और बच्चों के बारे में जानते हैं। जी हां भगवान श्री गणेश की पत्नियां भी हुई और बच्चे भी। मान्यता है कि यदि बुधवार के दिन इनके परिवार की पूजा की जाये तो भगवान श्री गणेश की कृपा अवश्य मिलती है।

भगवान श्री गणेश की पत्नियां और पुत्र

किसी भी मांगलिक कार्य में, घरों के द्वार पर, पूजाघर में, धार्मिक तस्वीरों, पोस्टरों आदि में अक्सर आपने शुभ और लाभ लिखा देखा होगा। दरअसल इन्हें भगवान गणेश की संतान माना जाता है।शास्त्रों के अनुसार शुभ और क्षेम भगवान गणेश की संतान है जिन्हें शुभ-लाभ भी कहा जाता है। रिद्धी और सिद्धी भगवान गणेश की पत्नियां मानी जाती हैं। कुछ कथाओं में संतोषी मां को भी भगवान गणेश की पुत्री बताया गया है।

कैसे हुआ भगवान गणेश का विवाह

भगवान गणेश के विवाह की मुख्यत: दो कथायें प्रचलित हैं।
पहली कहानी कुछ इस प्रकार है- जैसे-जैसे भगवान शिव और माता पार्वती की संतानें (कार्तिकेय और गणेश) बड़े हो रहे थे वैसे-वैसे उन्हें इनके विवाह की चिंता भी होने लगी थी। अब सवाल यह उठा कि पहले किसका विवाह किया जाये। इसका निर्णय करने के लिये दोनों में प्रतियोगिता आयोजित करवाई गयी और पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर आने की कही, जो भी चक्कर लगाकर पहले लौटा उसका विवाह पहले किया जायेगा।इस पर कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर बैठे और दुनिया का चक्कर लगाने निकल पड़े। वहीं गणेश जी को एक युक्ति सूझी उन्होंने माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की और अपने वाहन मूषक पर सवार होकर उनकी परिक्रमा करने लगे।सात बार परिक्रमा की इतने में कार्तिकेय भी वहां आ पंहुचे। अब कार्तिकेय ने कहा कि वे दुनिया का चक्कर लगा आये हैं इसलिये पहले उनका विवाह होना चाहिये। वहीं भगवान गणेश ने अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए कहा कि बालक के लिये तो माता-पिता ही उसकी दुनिया होते हैं इसलिये माता-पिता की परिक्रमा दुनिया का चक्कर लगाने के समान है। इस पर माता पार्वती और भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और गणेश का विवाह पहले करने का निर्णय लिया गया। तब प्रजापति विश्वरुप की दो कन्याओं ऋद्धि-सिद्धि का विवाह गणेश जी के साथ करवाया गया जिससे उनकी दो संताने हुई शुभ और क्षेम।

भगवान गणेश पाठ

सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए। 
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।1।।
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:। 
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।2।।
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:। 
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।3।।
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:। 
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।4।।
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:। 
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।5।।
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।6।।
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।7।।
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।8।।

वहीं दूसरी कथा के अनुसार 

चूंकि भगवान श्री गणेश का शरीर विशालकाय और मुंह की जगह हाथी का मुख लगा हुआ था तो कोई सुशील कन्या श्री गणेश से विवाह को तैयार न थी। इस पर भगवान गणेश बहुत बिगड़ गये और अपने वाहन मूषक को समस्त देवी-देवताओं के विवाह में विघ्न डालने की कही।
सारे देवता परेशान हो गये किसी का विवाह भी ठीक ठाक संपन्न नहीं हो रहा था। कभी मंडप जमींदोज हो जाते कभी बारात को आगे प्रस्थान करने के लिये रास्ता ही नहीं बचता। तंग आये देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से कोई उपाय करने की गुहार लगाई तब ब्रह्मा ने दो कन्याओं ऋद्धि और सिद्धी का सृजन किया और भगवान गणेश से उनका विवाह करवाया। इसी कथा को थोड़ा अलग अंदाज में भी प्रस्तुत किया जाता है उसके अनुसार गणेश जी ने यह संकल्प लिया कि अगर उनका विवाह नहीं हुआ तो वे किसा का भी विवाह नहीं होने देंगें। भगवान शिव और पार्वती के पास इसकी शिकायत पंहुचने लगी। तब माता पार्वती ने कहा कि ब्रह्मा जी से इस समस्या का समाधान निकलवाना चाहिये।ब्रह्मा जी योग में लीन हुए जिससे दो कन्याएं अवतरित हुई। इन्हें ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया। ब्रह्मा जी ने इन्हें गणेश के पास शिक्षा के लिये छोड़ दिया। अब जैसे ही किसी के विवाह की सूचना मूषक लेकर आता तो रिद्धि-सिद्धि उनका ध्यान कहीं और लगवा देती इस तरह फिर से विवाह होने लगे जब इस बात का पता भगवान गणेश को चला तो वे फिर से नाराज हुए लेकिन तभी ब्रह्मा जी स्वयं वहां आये और भगवान गणेश के सामने रिद्धि और सिद्धि के विवाह का प्रस्ताव रखा। इस तरह बुद्धि और विवेक की देवी रिद्धि और सफलता की देवी सिद्धी का विवाह भगवान गणेश जी से हुआ जिनसे शुभ और लाभ नामक दो पुत्र भी हुए।

कैसे करें पूजा

भगवान गणेश जहां विघ्नहर्ता हैं वहीं रिद्धि और सिद्धि से विवेक और समृद्धि मिलती है। शुभ और लाभ घर में सुख सौभाग्य लाते हैं और समृद्धि को स्थायी और सुरक्षित बनाते हैं।
सुख सौभाग्य की चाहत पूरी करने के लिये बुधवार को गणेश जी के पूजन के साथ ऋद्धि-सिद्धि व लाभ-क्षेम की पूजा भी विशेष मंत्रोच्चरण से करना शुभ माना जाता है।
इसके लिये सुबह या शाम को स्नानादि के पश्चात ऋद्धि-सिद्धि सहित गणेश जी की मूर्ति को स्वच्छ या पवित्र जल से स्नान करवायें, लाभ-क्षेम के स्वरुप दो स्वस्तिक बनाएं, गणेश जी व परिवार को केसरिया, चंदन, सिंदूर, अक्षत और दूर्वा अर्पित कर सकते हैं। कम देखें
मान्यता है कि गणेश पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और साथ ही हर कार्य में सफलता मिलती है। गणपति जी भक्तों की हर संकट से रक्षा करते हैं। इतना ही नहीं, आर्थिक संकट में फंसे भक्तों का बेड़ा पार भी करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार क़र्ज़ के बोझ से छुटकारा पाने के लिए बुधवार के दिन गणेश जी के ‘ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र’ का पाठ करना चाहिए।

‘ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र’ पाठ-विधि -

बुधवार को स्तोत्र का पाठ करने के लिए सुबह स्नान के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करें। गणेश जी को लाल फूल, चंदन, कुमकुम, फल, फूल माला, वस्त्र, दूर्वा आदि अर्पित करें। और फिर इसके बाद गणेश पूजन करें और पाठ करें।

ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र

ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्। ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।

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