मैना का विलाप एवं हठ 'शिव का सुंदर व दिव्य स्वरूप दर्शन Maina's lamentation and stubbornness 'Darshan of the beautiful and divine form of Shiva

मैना का विलाप एवं हठ 'शिव का सुंदर व दिव्य स्वरूप दर्शन

मैना का विलाप एवं हठ

ब्रह्माजी बोले-नारद! जब हिमालय पत्नी मैना को होश आया तब वे बड़ी दुखी थीं और रोए जा रही थीं। उनका जोर-जोर से दहाड़े मार-मारकर रोना रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। वे रोते हुए अपने पुत्रों, पुत्री तथा अपने पति गिरिराज हिमालय सहित देवर्षि नारद व सप्तऋषियों की निंदा करते हुए उन्हें कोस रही थीं। मैना बोलीं- हे नारद मुनि ! आपने ही हमारे घर आकर यह कहा था कि शिवा शिव का वरण करेंगी। तुम्हारी बातों को मानकर हम सबने अपनी पुत्री पार्वती को भगवान शिव की तपस्या करने के लिए वनों में भेज दिया। मेरी बेटी ने अपने तप के द्वारा सभी को प्रसन्न कर दिया। उसने ऐसी तपस्या की जो कि बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के लिए भी कठिन है। परंतु उसकी इतनी पूजा-आराधना का यह फल उसे मिला, जो कि देखने में भी दुख देने वाला है। इसे देखकर हमें अत्यंत दुख और भय प्राप्त हुआ है। हे भगवान! मैं क्या करूं? कहाँ जाऊँ? भला कौन मुझे इस असह्य दुख से छुटकारा दिला सकता है? मैं तो किसी को भी अपना मुंह दिखाने योग्य नहीं रही। भला कोई देखो वे दिव्य सप्तऋषि और उनकी वो धूर्त पत्नी अरुंधती कहां चली गईं, जो मुझे समझाने आई थीं जिसने मुझे झूठ-सच कह कहकर जबरदस्ती इस विवाह के लिए मेरी स्वीकृति ले ली थी। यदि वे मेरे सामने आ जाएं तो मैं उन ऋषियों की दाढ़ी-मूंछ नोच लूं। हाय! मेरा तो सबकुछ लुट गया। मैं तो पूरी तरह से बरबाद हो गई हूं। यह कहकर देवी मैना अपनी पुत्री पार्वती से बोलीं- तूने हमसे कौन से जन्म का बदला लिया है? तूने यह क्या कार्य कर दिया, जो तेरे माता-पिता के लिए अत्यंत दुख का कारण बन गया है। इस प्रकार मैना पार्वती को खूब खरी-खोटी सुनाने लगीं। वे कहने लगीं कि नासमझ तूने सोने के बदले कांच खरीद लिया है। सुंदर सुगंधित चंदन को छोड़कर अपने शरीर पर कीचड़ का लेप कर लिया है। यह मूर्खा तो यह भी नहीं समझती कि इसने हंस को उड़ाकर उसके स्थान पर कौए को पाल लिया है। गंगाजल, जिसे सबसे पवित्र समझा जाता है, उसको फेंककर कुएं के जल को पी लिया है। उजाले को पाने की चाह लेकर उसके स्रोत सूर्य को छोड़कर जुगनू को पकड़ने के लिए दौड़ रही है। चावल के भूसे को रखकर अच्छे चावलों को फेंक रही है। बेटी, तूने हमारे कुल के यश का सर्वनाश करने की इच्छा कर ली है। तभी तो, मंगलमयी विभूति को फेंककर घर में चिता की अमंगलमयी राख को लाना चाहती है। जानवरों के सिरमौर सिंह को त्याग कर सियार के पीछे पड़ी है। पार्वती! तूने बड़ी भारी मूर्खता कर दी है, जो सूर्य, चंद्रमा, श्रीहरि विष्णु और देवराज इंद्र जैसे सुंदर, सर्वगुण संपन्न, परम ऐश्वर्य और वैभव के स्वामियों को छोड़कर दुष्ट नारद की बातों में आकर एक महा-कुरूप शिव के लिए रात-दिन वनों की खाक छानती रही और घोर तपस्या करती रही । तुझे, तेरी बुद्धि, तेरे रूप तथा तेरी सहायता करने वाले प्रत्येक उस मनुष्य को धिक्कार हैं, जिसने तुझे गलत राह पर चलने में मदद की। हमको भी धिक्कार है जो मैंने और तेरे पिता ने तुझे जन्म दिया। सुबुद्धि देने वाले उन सप्तऋषियों को भी मैं धिक्कारती हूं, जिन्होंने गलत उपदेश देकर मुझे गलत रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया। उन्होंने तो मेरा घर जलाने का पूरा प्रबंध कर दिया है। मेरे कुल को सर्वनाश की कगार पर ले आए हैं। पार्वती ! मैंने तुझे कितना समझाया, पर तू अपनी जिद पर अड़ी रही। पर अब और नहीं, अब मैं तेरी एक भी नहीं सुनूंगी। मैं तो अभी तुझे मार डालूंगी, तुझे जीवित रखने का अब कोई प्रयोजन नहीं है। तुझे मारकर खुद की जीवन लीला भी समाप्त कर दूंगी। भले ही मुझे नरक का भागी क्यों न होना पड़े। मेरा दिल करता है कि मैं तेरा सिर काट दूं तेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दूं। तुझे छोड़कर कहीं चली जाऊं। यह कहकर देवी मैना मूर्छित होकर फर्श पर गिर पड़ीं। तब उस समय उनकी ऐसी हालत देखकर सभी देवता उन्हें समझाने के लिए उनके पास गए। सबसे पहले मैं (ब्रह्मा) उनके पास पहुंचा। तब मुझे वहां देखकर नारद तुमने कहा- 'देवी! आपको इस बात का ज्ञान नहीं है कि शिवजी बहुत सुंदर हैं। अभी तुमने उनका सही स्वरूप देखा ही कहां है? अभी जो कुछ तुमने देखा है, वह उनकी लीला मात्र है। देवी! आप अपने क्रोध को त्याग दें और स्वस्थ होकर शुद्ध हृदय से विवाह का कार्य आरंभ करें। इतना सुनना था कि मैना के क्रोध की अग्नि भभक उठी, वे बोलीं दुष्ट नारद ! यहां से इसी समय चला जा तू दुष्टों का भी दुष्ट और नीच है। तू मेरे सामने भूलकर भी मत आना। इसी समय यहां से निकल जा । मैं तेरी सूरत तक देखना नहीं चाहती। मैना के ये वचन सुनकर इंद्रादि देवता दौड़कर वहां चले आए और बोले—हे पितरों की कन्या मैना! भगवान शिव तो इस समस्त चराचर जगत के स्वामी हैं। वे तो सबको सुख देने वाले तथा सबको मनोवांछित वर देने वाले सर्वेश्वर हैं। वे तो भक्तवत्सल हैं और सदा ही अपने भक्तों के अधीन रहते हैं। आपकी पुत्री पार्वती ने कठिन तप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया है तथा वरदान के रूप में उनको अपना पति होने का वर प्राप्त किया है। तभी तो आज वे अपने दिए वरदान को पूरा करने के लिए उनका पाणिग्रहण करने के लिए यहां पधारे हैं। यह सुनकर मैना और अधिक रोने लगीं और बोलीं- शिव तो बहुत भयंकर हैं। अपनी पुत्री पार्वती कदापि उन्हें नहीं दूंगी। आप सब देवता क्यों ये षडयंत्र रच रहे हैं? आप मेरी प्राणप्रिय फूलों के समान कोमल पुत्री को क्यों इन भूत-प्रेतों के हवाले करना चाहते हैं? इस प्रकार देवी मैना सब देवताओं पर क्रोधित होकर उन्हें फटकारने लगीं।
जब वशिष्ठ आदि सप्तऋषियों ने देवी मैना के इस प्रकार के वचन सुने तो वे भी मैना को समझाने के लिए उनके निकट आ गए। तब वे बोले-हें पितरों की कन्या मैना ! हम तो तुम्हारा कार्य सिद्ध करने के लिए यहां आए हैं। भगवान शिव का दर्शन तो सभी पापों का नाश करने वाला है और यहां तो वे स्वयं आपके घर पधारे हैं। इस बात को सुनकर भी देवी मैना को कोई संतोष नहीं हुआ। उनका क्रोध यथावत रहा तथा उन्होंने फिर कहा कि मैं पार्वती के टुकड़े-टुकड़े कर दूंगी परंतु उसको शिव के साथ नहीं भेजूंगी। दूसरी ओर देवी मैना के इस व्यवहार से चारों ओर हाहाकार मच गया। जब शैलराज हिमालय को मैना के इस व्यवहार की सूचना मिली तो वे फौरन दौड़ते हुए अपनी पत्नी के पास आए और बोले - हे प्रिये ! तुम इतनी क्रोधित क्यों हो रही हो? देखो, हमारे घर में कौन-कौन से महात्मा पधारे हैं और तुम इनका अपमान कर रही हो। तुम भगवान शंकर के भयानक रूप को देखकर भयभीत हो गई हो। देवी! वे तो सर्वेश्वर हैं। भय करना छोड़कर उनके मंगलमय रूप का दर्शन करो। विवाह के शुभ कार्यों का शुभारंभ करो। अपने हठ को छोड़ो और क्रोध का त्याग कर शिव-पार्वती विवाह के मंगलमय कार्यों को संपन्न करो। देवी! तुम जानती हो कि भगवान शिव अनुपम लीलाएं करते हैं। यह भी उनकी लीला का एक भाग ही है। अतः तुम अपने मन के डर को दूर करके यथाशीघ्र पूर्ववत कार्य करो। शैलराज हिमालय के ये वचन सुनकर उनकी पत्नी मैना अत्यंत क्रोधित हो गईं और बोलीं - हे स्वामी! आप ऐसा करिए कि पार्वती के गले में रस्सी बांधकर उसे पर्वत से नीचे गिरा दीजिए या फिर उसे समुद्र में डुबो दीजिए। चाहे कुछ भी करके उसकी जीवन लीला समाप्त कर दीजिए। मैं आपको कुछ नहीं कहूंगी, परंतु मैं पार्वती का हाथ किसी भी परिस्थिति में शिव को नहीं सौपूंगी। यदि फिर भी आपने हठपूर्वक पार्वती का विवाह शिव से करने की ठान ली है, तो मैं अपने प्राणों को त्याग दूंगी। अपनी माता मैना के ऐसे वचन सुनकर पार्वती उनके करीब आकर बोलीं- माता ! आप तो ज्ञान की प्रतिमूर्ति हैं। आप सदा ही धर्म के पथ का अनुसरण करने वाली हैं। भला आज ऐसा क्या हो गया है, जो आप धर्म के मार्ग से विमुख हो रही हैं। है माता। महादेवजी तो देवों के देव हैं। वे निर्गुण निराकार हैं। वे तो परब्रह्म परमात्मा हैं और सबके सर्वेश्वर हैं। वे तो इस संसार की उत्पत्ति के आधार हैं। भगवान शिव भक्तवत्सल हैं एवं अपने भक्तों को सदैव सुख प्रदान करने वाले हैं। भगवान शिव सब अनुष्ठानों के अधिष्ठाता हैं। वे ही सबके कर्ता, हर्ता और स्वामी हैं। ब्रह्मा, विष्णु भी सदा उनकी सेवा में तत्पर रहते हैं। हे माता। आपको तो इस बात का गर्व होना चाहिए कि आपकी पुत्री का हाथ मांगने के लिए देवता भी याचक की भांति आपके दरवाजे पर पधारे हैं। अतः आप बेकार की बातों को छोड़कर उत्तम कार्य करो। मुझे भगवान शिव के हाथों में सौंपकर अपने जीवन को सफल कर लो। माता! मेरी छोटी-सी विनती स्वीकार कर लो और मुझे भगवान शिव के चरणों में उनकी सेवा के लिए समर्पित कर दो। मां! मैंने मन, वाणी और क्रिया द्वारा भगवान शिव को अपना पति मान लिया है। अब मैं किसी और का वरण नहीं कर सकती। मैं सिर्फ महादेवजी का ही स्मरण करती हूं। उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा लेकर ही मैंने अपने जिंदगी के इतने वर्ष बिताए हैं। भला, आज मैं कैसे अपने वचन से पीछे हट जाऊं। पार्वती जी के कहे वचनों को सुनकर मैना क्रोध के आधिक्य से उद्वेलित हो गई और उसे डांटने तथा बुरे वचन कहने लगी। मैना रोती जा रही थीं। मैंने और वहां उपस्थित सभी महानतम सिद्धों ने देवी मैना को समझाने का बहुत प्रयत्न किया परंतु सब निरर्थक सिद्ध हुआ। वे किसी भी स्थिति में समझने को तैयार नहीं थीं। तभी उनके हठ की बातें सुनकर परम शिव भक्त भगवान श्रीविष्णु वहां आ पहुंचे और बोले—हे पितरों की मानसी पुत्री एवं शैलराज हिमालय की पत्नी मैना! आप ब्रह्माजी के कुल से संबंधित हैं। इसी कारण आपका सीधा संबंध धर्म से हैं। आप धर्म की आधारशिला हैं। फिर भला कैसे धर्म का त्याग कर सकती हैं? इस प्रकार हठ करना आपको शोभा नहीं देता। स्वयं सोचिए, भला सभी देवता, ऋषि-मुनि और स्वयं ब्रह्माजी और मैं आपसे असत्य वचन क्यों कहेंगे। भगवान शिव निर्गुण और सगुण दोनों ही हैं। वे कुरूप हैं, तो सुरूप भी हैं। सभी उनका पूजन करते हैं। वे ही सज्जनों की गति हैं। मूल प्रकृति रूपी देवी एवं पुरुषोत्तम का निर्माण भगवान शिव ने ही किया है। मेरी और ब्रह्माजी की उत्पत्ति भी भगवान शिव के द्वारा ही हुई है। उसके बाद सारे लोकों का हित करने के लिए उन्होंने स्वयं भी रुद्र का अवतार धारण कर लिया है। तत्पश्चात वेद, देवता तथा इस जल एवं थल में जो भी चराचर वस्तु या प्राणी दिखाई देता है, उस सारे जगत की रचना भगवान शिव ने ही की है। हे देवी! कोई भी उनके रूप को नहीं जानता है। और न ही जान सकता है। यहां तक कि मैं और ब्रह्माजी भी उनकी समस्त लीलाओं को आज तक नहीं जान पाए हैं। इस संसार में जो कुछ भी विद्यमान है, वह भगवान शिव का ही स्वरूप है। यह तो भगवान शिव की ही माया है, जो वे स्वयं आपको अपना रूप इस प्रकार दिखा रहे हैं। हे देवी! आप सबकुछ भूलकर, सच्चे मन से शिवजी का स्मरण करके उनके चरणों में अपना ध्यान लगाए आपके सारे दुख और क्लेश मिट जाएंगे और आपको परम सुख की प्राप्ति होगी। श्रीहरि विष्णु द्वारा जब मैना को इस प्रकार समझाया गया तो देवी मैना का क्रोध कुछ कम हुआ। वस्तुतः शिवजी की माया से मोहित होने के कारण ही वे यह सब कर रही थीं। कुछ शांत होने पर उन्होंने कुछ देर मन में विचार किया। तत्पश्चात मैना श्रीहरि विष्णुजी से बोली- प्रभु! मैं आपकी हर बात समझ गई हूं। मैं यह भी जानती हूं कि भगवान शिव सर्वेश्वर हैं और इस जगत के कण-कण में व्याप्त हैं। मैं आपकी इच्छानुसार भगवान शिव को अपनी पुत्री सौंप सकती हूं, पर मेरी एक शर्त है। तब विष्णुजी के आग्रह करने पर देवी मैना ने कहा, यदि महादेव जी सुंदर शरीर धारण कर लें, तो मैं सहर्ष अपनी पुत्री पार्वती का विवाह उनसे कर दूंगी। ऐसा कहकर देवी मैना चुप हो गई। धन्य हैं भक्तवत्सल त्रिलोकीनाथ भगवान शिव की माया, जो सबको मोह में डालने वाली है।
श्रीरुद्र संहिता (तृतीय खण्ड) चवालीसवां अध्याय 

शिव का सुंदर व दिव्य स्वरूप दर्शन

ब्रह्माजी बोले- हे नारद! उस समय जब देवी मैना ने विष्णुजी के सामने इस प्रकार की शर्त रखी, तब मैंने तुमको भगवान शिव के पास जाने का आदेश दिया। तुमने वहां जाकर उनकी स्तुति की और उन्हें संतुष्ट किया। तब तुम्हारी बात मानकर तथा देवताओं का कार्य सिद्ध करने की इच्छा से भगवान शिव ने प्रसन्नतापवूक अद्भुत, उत्तम और दिव्य रूप धारण कर लिया। उस समय भगवान शिव कामदेव से अधिक रूपवान लग रहे थे। उनके सुंदर रूप- लावण्य को देखकर तुम प्रसन्न होते हुए तुरंत देवी मैना के पास उन्हें यह शुभ समाचार देने के लिए चले गए। वहां पहुंचकर, जहां देवी मैना बैठी थीं उन्हें देखकर, तुम बोले- हे शैलराज की पत्नी और पार्वती की माता मैना! आप चलकर स्वयं भगवान शिव के सुंदर और मनोहारी रूप का दर्शन करें। यह समाचार पाकर देवी मैना की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। वे आपको अपने साथ लेकर भगवान शिव के दर्शन करने के लिए गईं। वहां पहुंचकर मैना ने भगवान शिव के परम आनंददायक सुंदर रूप के दर्शन किए। शिवजी का मुखारविंद करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी, सुंदर एवं दिव्य था । उनके विशाल मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित था। सूर्य ने उनके सिर पर छत्र धारण कर रखा था। भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में थे। वे ललित लावण्य से युक्त मनोहर, गौरवर्ण, चंद्रलेखा से अलंकृत होकर बिजली की भांति चमक रहे थे। विष्णु सहित सभी देवता एवं ऋषि-मुनि उनकी प्रेमपूर्वक सेवा कर रहे थे। उनके शरीर पर दिव्य अलौकिक सुंदर वस्त्र व आभूषण शोभा पा रहे थे। गंगा और यमुना चंवर झुला रही थीं और अणिमा आदि आठों सिद्धियां मुग्ध होकर नाच-गा रही थीं। इस प्रकार भगवान शंकर सुंदर व दिव्य रूप धारण करके बारात लेकर हिमालय के घर की ओर आ रहे थे। उनके साथ-साथ मैं, विष्णुजी तथा देवराज इंद्र भी विभूषित होकर चल रहे थे। उनके पीछे-पीछे सुंदर एवं अनेकों रूपों वाले गण, सिद्ध मुनि व समस्त देवता जय-जयकार करते हुए चल रहे थे। समस्त देवता इस विवाह को देखने के लिए बड़े ही उत्कंठित थे और अपने परिवार के साथ शिवजी के विवाह में सम्मिलित होने के लिए आए थे। विश्ववसु आदि गंधर्व व सुंदर अप्सराएं भगवान शिव के यश का गान करते हुए चल रहे थे। भगवान शिव के गिरिराज हिमालय के द्वार पर पधारते ही वहां महान उत्सव होने लगा। उस समय महादेव जी की शोभा अद्भुत व निराली थी। उनका सुंदर विलक्षण रूप देखकर पल भर के लिए मैना चित्रलिखित सी होकर रह गई। फिर प्रसन्नतापूर्वक बोली- हे देवाधिदेव! महेश्वर! शिवजी ! मेरी पुत्री पार्वती धन्य है जिसने घोर तपस्या करके आपको प्रसन्न किया। मेरा सौभाग्य है कि परम कल्याणकारी भगवान सदाशिव आज मेरे घर पधारे हैं। भगवन्! मैं अक्षम्य अपराध कर बैठी हूं। मैंने आपकी बहुत निंदा की है। प्रभु! मैं आपसे दोनों हाथ जोड़कर क्षमा याचना करती हूं। कृपा कर मेरी भूल क्षमा करें और मुझ पर प्रसन्न हो जाएं। इस प्रकार चंद्रमौली भगवान शिव की स्तुति करती हुई शैलप्रिया मैना लज्जित होते हुए नतमस्तक हो गई। उस समय पुरवासिनी स्त्रियां सभी घर के कामों को छोड़कर, बाहर आकर भगवान शिव के दर्शन की लालसा लेकर उन्हें देखने का प्रयत्न करने लगीं। चक्की पीसने वाली ने चक्की छोड़ दी, पति की सेवा में लगी हुई पत्नी पति की सेवा छोड़कर भाग गई। कोई-कोई तो दूध पीते हुए बच्चे को छोड़कर भाग आई। इस प्रकार सभी अपने-अपने आवश्यक कार्यों को छोड़कर भगवान शिव के दर्शन के लिए दौड़ आई थीं। भगवान शिव के मनोहर रूप के दर्शन करके सब मोहित हो गई। तब सहर्ष शिवजी की सुंदर मूर्ति को अपने मन मंदिर में धारण करके वे बोली-सखियो ! हम सबके अहोभाग्य हैं। हिमालय नगरी में रहने वाले नर-नारियों के नेत्र आज भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का दर्शन करके सफल हो गए हैं। आज निश्चय ही हमने संसार की हर विषय-वस्तु को पा लिया है। शिव स्वरूप का दर्शन करने मात्र से ही हमारे सारे पाप नष्ट हो गए हैं। उनकी छवि सर्वथा सब क्लेशों व दुखों का नाश करने वाली है। आज उन्हें साक्षात सामने देखकर हमारा जीवन सफल हो गया है। पार्वती ने उत्तम तपस्या द्वारा भगवान शिव को पाकर अपने साथ-साथ हम सबका भी जीवन सार्थक कर दिया है। है पार्वती । तुम निश्चय ही धन्य हो। तुम परब्रह्म परमेश्वर भगवान शिव की अर्द्धांगिनी बनकर इस जगत को सुशोभित करोगी। यदि विधाता पार्वती शिव का इस प्रकार मेल न कराते तो निश्चय ही उनका सारा परिश्रम निष्फल हो जाता। आज शिव-शिवा की इस युगल जोड़ी को साथ देखकर हमारे सारे कार्य सार्थक हो गए हैं। आज वाकई हम सब इनके उत्तम दर्शनों से धन्य हो गए हैं। इस प्रकार कहकर वे पुरवासिनी स्त्रियां अक्षत, कुमकुम और चंदन से शिवजी का पूजन करने लगीं तथा प्रसन्नतापूर्वक उन पर खीलों की वर्षा करने लगीं। वे स्त्रियां देवी मैना के पास खड़ी होकर उनके भाग्य और कुल की सराहना करने लगीं। उनके मुख से इस प्रकार शुभ व मंगलकारी बातें सुनकर सभी देवताओं को बहुत प्रसन्नता हुई।
श्रीरुद्र संहिता (तृतीय खण्ड) पैंतालीसवां अध्याय

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