राम भक्त ‘हनुमान’ जी से सीखें जीवन प्रबंधन के ये दस सूत्र!
हनुमान जी
गवान हनुमान हिंदू धर्म में सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं। उन्हें उनके साहस, शक्ति और उनकी सुरक्षा की दिव्यता के लिए माना जाता है। उनकी पौराणिक कथाओं का वर्णन रामायण में विस्तार से मिलता है और उनकी भूमिका सम्पूर्ण रामायण प्रसंग में मुख्य थी। उनके बारे में प्रचलित मान्यताओं में उनकी श्री राम के प्रति अटूट भक्ति, श्रद्धा भावना, उनकी बचपन की शरारतें और माता सीता को खोजने में प्रभु श्री राम की सहायता करना मुख्य रूप से वर्णित हैं।
हनुमान जी भगवान शिव के अवतार थे
पौराणिक कथाओं में इस बात का जिक्र है कि केसरी और अंजना के पुत्र,थे लेकिन वास्तविकता यह भी है कि वो भगवान शिव का अवतार थे और उन्हें शिव जी के अंश के रूप में भी पूजा जाता है। हनुमान जी को पवन पुत्र के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर राम अवतार लिया तब भगवान शिव ने उनके साथ रहने के लिए पृथ्वी पर हनुमान रूप में अवतार लिया। सिर्फ रामायण ही नहीं बल्कि महाभारत और अन्य पुराणों में भी हनुमान जी की भक्ति का वर्णन किया गया है। ऐसी मान्यता है कि उनका जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इसलिए इसी दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। हनुमान जी को पवनसुत, केसरी नंदन, बजरंगबली जैसे कई नामों से भी जाना जाता है।
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राम भक्त ‘हनुमान’ जी से सीखें जीवन प्रबंधन के ये दस सूत्र!
- संवाद कौशल-सीता जी से हनुमान पहली बार रावण की ‘अशोक वाटिका’ में मिले, इस कारण सीता उन्हें नहीं पहचानती थीं। एक वानर से श्रीराम का समाचार सुन वे आशंकित भी हुईं, परन्तु हनुमान जी ने अपने ‘संवाद कौशल’ से उन्हें यह भरोसा दिला ही दिया की वे राम के ही दूत हैं। सुंदरकांड में इस प्रसंग को इस तरह व्यक्त किया गया हैः
कपि के वचन सप्रेम सुनि, उपजा मन बिस्वास।
जाना मन क्रम बचन यह, कृपासिंधु कर दास।
विनम्रता- समुद्र लांघते वक्त देवताओं ने ‘सुरसा’ को उनकी परीक्षा लेने के लिए भेजा। सुरसा ने मार्ग अवरुद्ध करने के लिए अपने शरीर का विस्तार करना शुरू कर दिया। प्रत्युत्तर में श्री हनुमान ने भी अपने आकार को उनका दोगुना कर दिया। “जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा, तासु दून कपि रूप देखावा।” इसके बाद उन्होंने स्वयं को लघु रूप में कर लिया, जिससे सुरसा प्रसन्न और संतुष्ट हो गईं। अर्थात केवल सामर्थ्य से ही जीत नहीं मिलती है, “विनम्रता” से समस्त कार्य सुगमतापूर्वक पूर्ण किए जा सकते हैं।
आदर्शों से कोई समझौता नहीं:- लंका में रावण के उपवन में हनुमान जी और मेघनाथ के मध्य हुए युद्ध में मेघनाथ ने ‘ब्रह्मास्त्र’ का प्रयोग किया। हनुमान जी चाहते, तो वे इसका तोड़ निकाल सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह उसका महत्व कम नहीं करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने ब्रह्मास्त्र का तीव्र आघात सह लिया। हालांकि, यह प्राणघातक भी हो सकता था। यहां गुरु हनुमान हमें सिखाते हैं कि अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं करना चाहिए । तुलसीदास जी ने हनुमानजी की मानसिकता का सूक्ष्म चित्रण इस पर किया हैः
ब्रह्मा अस्त्र तेंहि साँधा, कपि मन कीन्ह विचार।
जौ न ब्रहासर मानऊँ, महिमा मिटाई अपार।
बहुमुखी भूमिका में हनुमान:- हम अक्सर अपनी शक्ति और ज्ञान का प्रदर्शन करते रहते हैं, कई बार तो वहां भी जहां उसकी आवश्यकता भी नहीं होती। तुलसीदास जी हनुमान चालीसा में लिखते हैंः “सूक्ष्म रूप धरी सियंहि दिखावा, विकट रूप धरी लंक जरावा।”सीता के सामने उन्होंने खुद को लघु रूप में रखा, क्योंकि यहां वह पुत्र की भूमिका में थे, परन्तु संहारक के रूप में वे राक्षसों के लिए काल बन गए। एक ही स्थान पर अपनी शक्ति का दो अलग अलग तरीके से प्रयोग करना हनुमान जी से सीखा जा सकता है।
समस्या नहीं समाधान स्वरूप:- जिस वक़्त लक्ष्मण रण भूमि में मूर्छित हो गए, उनके प्राणों की रक्षा के लिए वे पूरे पहाड़ उठा लाए, क्योंकि वे संजीवनी बूटी नहीं पहचानते थे। हनुमान जी यहां हमें सिखाते हैं कि मनुष्य को शंका स्वरूप नहीं, वरन समाधान स्वरूप होना चाहिए।
भावनाओं का संतुलन:- लंका के दहन के पश्चात् जब वह दोबारा सीता जी का आशीष लेने पहुंचे, तो उन्होंने सीता जी से कहा कि वह चाहें तो उन्हें अभी ले चल सकते हैं, पर “मै रावण की तरह चोरी से नहीं ले जाऊंगा। रावण का वध करने के पश्चात ही यहां से प्रभु श्रीराम आदर सहित आपको ले जाएंगे।” रामभक्त हनुमान अपनी भावनाओं का संतुलन करना जानते थे, इसलिए उन्होंने सीता माता को उचित समय (एक महीने के भीतर) पर आकर ससम्मान वापिस ले जाने को आश्वस्त किया।
आत्ममुग्धता से कोसों दूर -सीता जी का समाचार लेकर सकुशल वापस पहुंचे श्री हनुमान की हर तरफ प्रशंसा हुई, लेकिन उन्होंने अपने पराक्रम का कोई किस्सा प्रभु राम को नहीं सुनाया। यह हनुमान जी का बड़प्पन था,जिसमे वह अपने बल का सारा श्रेय प्रभु राम के आशीर्वाद को दे रहे थे। प्रभू श्रीराम के लंका यात्रा वृत्तांत पूछने पर हनुमान जी जो कहा उससे भगवान राम भी हनुमान जी के आत्ममुग्धताविहीन व्यक्तित्व के कायल हो गए।
ता कहूं प्रभु कछु अगम नहीं, जा पर तुम्ह अनुकूल ।
तव प्रभाव बड़वानलहि, जारि सकइ खलु तूल ।।
नेतृत्व क्षमता- समुद्र में पुल बनाते वक़्त अपेक्षित कमजोर और उच्चश्रृंखल वानर सेना से भी कार्य निकलवाना उनकी विशिष्ठ संगठनात्मक योग्यता का परिचायक है। राम रावण युद्ध के समय उन्होंने पूरी वानरसेना का नेतृत्व संचालन प्रखरता से किया।
बौद्धिक कुशलता और वफादारी- सुग्रीव और बाली के परस्पर संघर्ष के वक़्त प्रभु राम को बाली के वध के लिए राजी करना, क्योंकि एक सुग्रीव ही प्रभु राम की मदद कर सकते थे। इस तरह हनुमान जी ने सुग्रीव और प्रभू श्रीराम दोनों के कार्यों को अपने बुद्धि कौशल और चतुराई से सुगम बना दिया। यहां हनुमान जी की मित्र के प्रति ‘वफादारी’ और ‘आदर्श स्वामीभक्ति’ तारीफ के काबिल है।
समर्पण -हनुमान जी एक आदर्श ब्रह्चारी थे। उनके ब्रह्मचर्य के समक्ष कामदेव भी नतमस्तक थे। यह सत्य है कि श्री हनुमान विवाहित थे, परन्तु उन्होंने यह विवाह एक विद्या की अनिवार्य शर्त को पूरा करने के लिए अपने गुरु भगवान् सूर्यदेव के आदेश पर किया था। श्री हनुमान के व्यक्तित्व का यह आयाम हमें ज्ञान के प्रति ‘समर्पण’ की शिक्षा देता है। इसी के बलबूते हनुमान जी ने अष्ट सिद्धियों और सभी नौ निधियों की प्राप्ति की।
हनुमान निश्चित रूप से युवाओं के लिए सबसे बड़े आदर्श हैं, क्योंकि हनुमान जी का चरित्र अतुलित पराक्रम, ज्ञान और शक्ति के बाद भी अहंकार से विहीन था।आज हमें हनुमान जी की पूजा से अधिक उनके चरित्र को पूजकर उसे आत्मसात करने की आवश्यकता है, जिससे हम भारत को राष्ट्रवाद सरीखे उच्चतम नैतिक मूल्यों के साथ ‘कौशल युक्त’ भी बना सकें।
हनुमान जी की मूर्ति का रंग लाल या नारंगी क्यों होता है
इसकी एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान हनुमान ने सीता जी को माथे पर सिंदूर लगाते हुए देखा और पूछा कि यह उनके दैनिक अनुष्ठानों का हिस्सा क्यों है। तब सीता ने हनुमान को समझाया कि सिंदूर श्रीराम की लंबी उम्र, उनके पति के प्रति उनके प्रेम और सम्मान का प्रतिनिधि है। श्री राम के प्रति निष्ठावान भक्ति की वजह से हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर को इस सिंदूर से लेपने का निर्णय लिया और हनुमान जी को सिंदूर से रंगा देखकर उनकी भक्ति से प्रभावित होकर भगवान श्री राम ने वरदान दिया कि जो लोग भविष्य में सिंदूर से हनुमान जी की पूजा करेंगे, उनकी सारी कठिनाइयां दूर हो जाएंगी और यही कारण है कि मंदिर में आज भी हनुमान जी की मूर्ति सिंदूर से रंगी होती है।
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