मुनियों का नैमिषारण्य गमन ,मुनियों को मोक्ष The sages go to Naimisharanya, the sages get salvation

मुनियों का नैमिषारण्य गमन ,मुनियों को मोक्ष

मुनियों का नैमिषारण्य गमन 

सूत जी बोले – हे मुनियो ! महर्षि उपमन्यु ने भगवान श्रीकृष्ण को ज्ञान योग का उपदेश दिया। वही उपदेश वायुदेव ने ऋषिगणों को सुनाया था जिसे सुनकर वे बहुत हर्षित हुए थे। प्रातःकाल होने पर नैमिष तीर्थ में निवास करने वाले मुनिजन यज्ञांत स्नान के लिए परम पवित्र नदी को ढूंढ़ने लगे। उस समय ब्रह्माजी की आज्ञा से परम पवित्रा सरस्वती नदी वहां बहने लगी। तब सब ऋषिगणों ने वहां यज्ञांत स्नान कर संध्या पितृ तर्पण किया और वहां से काशी के लिए निकल पड़े। काशी पहुंचकर उन्होंने पतित पावनी भागीरथी गंगा में स्नान किया एवं बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर विधिनुसार पूजन किया। काशी से वे चल पड़े। रास्ते में उन्हें एक अद्भुत दिव्य प्रकाश चारों और फैला दिखाई दिया जिसमें पाशुपत व्रत की सिद्धियां प्राप्त भस्मधारी मुनिजन विलीन हो रहे थे। फिर शीघ्र ही वह तेज भी विलीन हो गया। यह देखकर नैमिषारण्य के सभी मुनिजन ब्रह्माजी से मिलने ब्रह्मलोक चल दिए। वहां पहुंचकर उन्होंने ब्रह्माजी को प्रणाम कर उनकी स्तुति की। मुनिश्वर बोले- हे जगतपिता ब्रह्माजी! वायुदेव ज्ञानोपदेश देकर वहां से चले आए, तब हम सबने यज्ञ कर यज्ञांत स्नान से निवृत्त हो काशी नगरी की ओर प्रस्थान किया। वहां गंगा में स्नान कर बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए। वहां हमें एक अद्भुत तेज के दर्शन हुए। उस तेज में अनेक तपस्वी विलीन हो रहे थे। कुछ समय पश्चात वह तेज स्वयं विलीन हो गया। उसे देखकर में बहुत आश्चर्य हुआ। भगवन् वह क्या था? ऋषिगणों के प्रश्न को सुनकर ब्रह्माजी बोले- हे ऋषिगणो! आपने बहुत समय यह करके देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न किया है। उस दिव्य तेज में प्रवेश करने वाले पाशुपत व्रतधारी मुनि थे। उसके दर्शन का यही अर्थ है कि आपको शीघ्र ही दिव्य लोक की प्राप्ति होने वाली है। इसलिए आप मोक्ष प्राप्त करने हेतु पाशुपत व्रत धारण करें। अब आप सब यहां से सुमेरु पर्वत पर चले जाएं। वहां सनत्कुमार जी आपके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे पूर्व में अपने अहंकार के कारण मिले शाप से मुक्ति पाने के लिए वहां तपस्या कर रहे हैं। वहां उन्हें ज्ञान प्राप्त होगा।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता  उत्तरार्द्ध चालीसवां अध्याय

मुनियों को मोक्ष

सूत जी बोले- हे मुनिवर ! ब्रह्माजी के वचन सुनकर ऋषिगण उन्हें प्रणाम कर सुमेरु पर्वत पर चले गए। वहां उन्होंने पर्वत शिखर पर एक सुंदर तालाब की उत्तर दिशा में तपस्या करते सनत्कुमार जी को देखा। मुनि उन्हें प्रणाम कर उनके पास बैठ गए। सनत्कुमार जी ने आंखें खोलकर अपने पास बैठे मुनियों को देखकर उनसे प्रश्न किया- हे ऋषिवर! आप कौन हैं और यहां क्या कर रहे हैं? यह सुनकर ऋषिगणों ने सारी बातें उन्हें बता दीं। उसी समय नंदीश्वर भी वहां आ गए। नंदीश्वर को अपने सामने पाकर सभी मुनियों और सनत्कुमार जी ने आसन से उठकर उन्हें दंडवत प्रणाम किया और हाथ जोड़कर प्रणाम करने लगे। सनत्कुमार जी बोले- हे नंदीश्वर ! इन मुनियों ने, जो कि नैमिषारण्य में निवास करते हैं, दस हजार वर्षों तक यज्ञ किया है। उस महायज्ञ के समाप्त होने पर ब्रह्माजी ने इन्हें आपकी शरण में भेजा है। आप इनका कल्याण करें और इन्हें दिव्य अद्भुत ज्ञान प्रदान करें। सनत्कुमार जी के वचन सुनकर नंदीश्वर ने अपनी कृपादृष्टि ऋषिगणों पर कर दी। नंदीश्वर ने परम दिव्य शिवतत्व का उपदेश उन्हें दिया। तब उपदेश देकर वे बोले-यह परम ज्ञान धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी प्रदान करने वाला है। अब आप मुझे जाने की आज्ञा प्रदान करें। यह कहकर नंदीश्वर वहां से चले गए। इसके पश्चात सभी ऋषिगण प्रयाग तीर्थ चले गए और वहां उन्होंने अपना महान योग पूरा किया। योग पूर्ण होने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि कलियुग आ रहा है। यह देखकर वे नैमिषारण्य मुनि काशी चले गए। वहां मुक्ति की कामना करते हुए उन्होंने पाशुपत व्रत धारण किया। उनकी सिद्धि सफल हुई और वे शिव पद को प्राप्त हुए। श्री व्यासजी बोले- इस प्रकार यह शिव पुराण पूर्ण हुआ। इस शिव पुराण को आदरपूर्वक पढ़ने अथवा सुनने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसे प्रथम बार पढ़ने या सुनने से सारे पाप भस्म हो जाते हैं। दुबारा श्रवण से भक्तिहीन को भक्ति व भक्त को भक्ति की समृद्धि प्राप्त होती है। तीसरी बार श्रवण करने से मुक्ति मिल जाती है। अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु इसका पांच बार पाठ करना चाहिए। प्राचीन काल में शिव पुराण का सात बार पाठ कर अनेक राजाओं, ब्राह्मणों और वैश्यों ने साक्षात शिव दर्शन किए। इस पवित्र ग्रंथ को भक्तिपूर्वक सुनने वाला मनुष्य संसार में सभी सुखों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। शिव पुराण भगवान शिव को बहुत प्रिय है। यह वेदों के समान भोग और मोक्ष देने वाला है। शिव पुराण का पाठ करने वाले मनुष्य पर देवाधिदेव महादेव की सदा कृपादृष्टि रहती है। वे सदा सबका कल्याण करते हैं।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता  उत्तरार्द्ध इकतालीसवां अध्याय
॥ श्रीवायवीय संहिता संपूर्ण ॥
|| शिव पुराण संपूर्ण ॥
॥ ॐ नमः शिवाय ॥

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