संतोषी मां की व्रत कथा संतोषी माता का जन्म Santoshi Mata's fast story Birth of Santoshi Mata

संतोषी मां की व्रत कथा संतोषी माता का जन्म

संतोषी माता का जन्म

देवी के जन्म के बारे में बताने वाली कोई प्रामाणिक कहानी नहीं है, लेकिन फिल्म जय संतोषी मां में इस बारे में एक कहानी है। रक्षा बंधन के दिन, भगवान गणेश की बहन मनसा ने उनकी कलाई पर राखी बांधी और उन्होंने उन्हें उपहार दिए। यह देखकर उनके बेटों ने उनसे कहा कि वे भी उनके जैसी बहन चाहते हैं। हालाँकि शुरुआत में भगवान गणेश ने इनकार कर दिया, लेकिन अपनी पत्नियों और ऋषि नारद के लगातार अनुरोध पर वे सहमत हो गए। इसलिए, उन्होंने अपनी पत्नियों की छाती से उठती दो ज्वालाओं के माध्यम से संतोषी माता को बनाया।
शुक्रवार के दिन रसोईघर से संबंधित कोई भी सामान नहीं खरीदना चाहिए. इससे मां लक्ष्मी के साथ मां अन्नपूर्णा नाराज हो जाती हैं
Santoshi Mata's fast story Birth of Santoshi Mata

इस दिन पूजा-पाठ से जुड़ी चीजें भी नहीं खरीदना चाहिए. ये शुभ नहीं होता है.

  • इस दिन किसी को भी पैसे उधार देने से बचें, वरना आपसे मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं.
  • अगर आप प्रॉपर्टी खरीदने की सोच रहे हैं, तो शुक्रवार के दिन प्रॉपर्टी खरीदने से बचें. वरना आप खुद मुसीबत में पड़ सकते हैं. 
  • इस दिन किसी से चीनी न लें और न ही दें. इससे शुक्र ग्रह कमजोर हो जाता है. 

संतोषी मां शुक्रवार की व्रत कथा

शुक्रवार के दिन माँ संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है। इस पूजा के दौरान माता की आरती, पूजन तथा अंत में माता की कथा सुनी जाती है। आइए जानें! शुक्रवार के दिन की जाने वाली संतोषी माता व्रत कथा..
एक बुढ़िया थी, उसके सात बेटे थे, जिसमें छः काम करने वाले और एक निकम्मा था। परन्तु उसकी माता उसे भी उसी में से किसी प्रकार खिलाती-पिलाती थी। एक दिन वह अपमानवश वह परदेश चल पड़ा। जाते समय उसने अपने बहू से भेंट की, जो गौशाले में कण्डे थाप रही थी। वह वहाँ जाकर बोला-'हम जावें परदेश को, आयेंगे कछु काल। तुम रहियो संतोष से, धर्म आपनो पाल।।'
बहू बोली-जाउ पिया आनन्द ते, मन से सोच हटाय। 
राम भरोसे हम रहें, ईश्वर तुम्हें सहाय।।
देउ निशानी आपुनी, देख धरूँ मैं धीर। 
सुधि मति हमरी बिसारियो, रखियो मन गंभीर।।'
यह सुन उसने अँगूठी दे दी और बहू से अपने लिये कुछ निशानी माँगी। वह बोली- मेरे पास क्या है? यह गोबर भरा मेरा हाथ है, यह कह उसकी पीठ पर गोबर की थाप मार दी, वह चल दिया और परदेश में पहुँचकर सेठ के यहाँ नौकरी कर उसे ऐसा मुनाफा दिखाया कि सेठ मुनाफे में आधा-साझा कर लिया और बारह वर्षों में वह नामी सेठ बन गया। इधर सास-ससुर उसकी बहू से गृहस्थी का सारा कार्य करा लकड़ी लेने को जंगल में भेजते। इस बीच में भूसी की रोटी बनाकर उसके लिये रख दी जाती और फूटे नारियल की नरेली में पानी। बहू को इस प्रकार गुजर करते कुछ दिन बीता कि एक दिन उसने रास्ते में स्त्रियों को शुक्रवार का व्रत अर्थात् संतोषी माता का व्रत करते देख पूछा- बहनों! यह किस देवता का व्रत करती हो? इसके करने से क्या फल होता है? यह सुनकर एक स्त्री बोली- यह शुक्रवार व्रत अर्थात् संतोषी माता का व्रत है, इसके करने से निर्धनता का नाश होकर लक्ष्मी घर में आती है। मन की चिंताओं का भार दूर होता है और घर में सुख आता है, निपुत्री को पुत्र मिले, स्वामी बाहर गया हो तो शीघ्र घर आ जावे, कन्या को मन पसन्द पति मिले, बहुत साल से मुकदमा चलता हो तो शीघ्र निपट जाय, क्लेश जाय, सुख-शान्ति आवे, घर में धन जमा हो, जायदाद का लाभ हो, रोग दूर हो। इस प्रकार सभी मनोकामनायें संतोषी माता की कृपा से पूरी हो जाती है।
बहू ने व्रत की विधि पूछा, उस स्त्री ने कहा- सवा आने का गुड़-
चना लेना। इच्छा हो तो सवा पाँच आने का लेना सा सवा रुपये का भी सहूलियत के अनुसार लेना। तात्पर्य यह कि बिना परेशानी श्रद्धा और प्रेम से जितना भी बन सके सवाया लेना। प्रत्येक शुक्रवार को निराहार रह कथा सुने, क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना। सुननेवाला न मिले तो घी का दीपक जला उसे सामने रख अथवा जल का पात्र आगे रख कथा कहनी चाहिए पर नियम नहीं टूटे, जब तक कार्य सिद्ध न हो जाय नियम पालन करना, कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना। तीन मास में माता फल पूरा करती हैं। यदि किसी के ग्रह खोटे हों तो भी तीन वर्षों में माता अवश्य कार्य सिद्धि करती हैं। इस व्रत को करने वाले कथा कहते-सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने चने रखें और 'संतोषी मातां की जय-संतोषी माता की जय' प्रारम्भ, अन्त और बीच में बोलते जावें। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़-चना गाय को खिला दें और कटोरे का गुड़- चना प्रसाद रूप में बाँट दें, कलश के जल को घर में सब जगह छिड़के और बचा तुलसी की क्यारी में छोड़ दे। कार्य सिद्धि होने पर उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा (मोयनदार पूड़ी) इसी प्रमाण से खीर तथा चने का शाक बनाना और आठ लड़कों को इसमें भोजन कराना, जहाँ तक बने कुटुम्ब के लड़के बुलाना, न मिलें तो रिश्तेदार, पड़ोसियों के लड़के बुलाना, उन्हें भोजन करा यथा-शक्ति दक्षिणा दे मात्ता का नियम पूरा करना। उस दिन घर में कोई खटाई न खावें। यह सब व्रत का विधान सुन बुढ़िया के लड़के की बहू चल दी और रास्ते में लकड़ी का गट्ठा बेचकर व्रत प्रारम्भ कर दिया और माता के मन्दिर में जा दीन हो विनती करने लगी। माता को दया आई। एक शुक्रवार बीता कि दूसरे शुक्रवार को उसके पति का पत्र आ गया और तीसरे शुक्रवार को पति का भेजा हुआ पैसा पहुँचा। यह देख जेठ-जिठानी व्यङ्ग वचन बोलने लगे, बहू माता से प्रार्थना की कि, हे माता! अपने सुहाग से काम है। फिर तो संतोषी माता की कृपा से उसका पति असंख्य सम्पत्ति तथा बहू के वास्ते गहना, कपड़ा आदि लेकर परदेश से तुरंत घर को रवाना हो गया। यहाँ बिचारी बहू जब जङ्गल से लकड़ी लेकर माता के मन्दिर पर पहुँची तो कुछ दूर पर धूल उड़ती देख माताजी से पूछने लगी हे माता! यह धूल कैसी उड़ रही है? माता कहने लगीं- पुत्री! तेरा धनी ही तो आ रहा है। अब लकड़ियों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख, एक मेरे मंदिर पर रख, एक अपने सिर पर रख। यहाँ लकड़ी का बोझ देख तेरे धनी को मोह उत्पन्न होगा और वह यहाँ नाश्ता-पानी बना-खाकर घर जायेगा। तब तू लकड़ियों का बोझ आँगन में पटक देना और सासु से भूसी की रोटी और नरेली में पानी माँगना। फिर तो बहू ने वैसा ही किया। बुढ़िया पुत्र मन्दिर से विश्राम कर अपने घर पहुँचा एवं अपने परिवार में बहू की दुर्दशा देख दूसरे घर में चला गया। पश्चात् अपने धनी के साथ अलग महल में तीन मंजिले पर रहने लगी और शुक्रवार आने पर सविधि उद्यापन किया। इसमें कुटुम्ब के लड़के औरों के सिखाने से दक्षिणा में पैसे ले इमली खटाई खरीदकर खाये। जिससे माता कुपित हो गई। फिर बहू ने क्षमा-याचना कर दुबारा उद्यापन किया और इसमें ब्राह्मणों के लड़कों को भोजन कराया, दक्षिणा में एक-एक मीठा फल प्रदान किया, जिससे माताजी प्रसन्न होकर बहू को बड़ां ही सुन्दर पुत्र प्रदान की। जैसे बहू को प्रसन्न होकर माता ने फल दिया। वैसे ही माता सबको फल दें। जो इस कथा को पढ़े-सुने अथवा सुनावे उसके मनोरथ पूर्ण करो करुणामयी माँ!

संतोषी माँ महामंत्र:

जय माँ संतोषिये देवी नमो नमः
श्री संतोषी देव्व्ये नमः
ॐ श्री गजोदेवोपुत्रिया नमः
ॐ सर्वनिवार्नाये देविभुता नमः
ॐ संतोषी महादेव्व्ये नमः
ॐ सर्वकाम फलप्रदाय नमः
ॐ ललिताये नमः
इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता आती है। साथ ही जीवन की सभी नकारात्मकता खत्म भी हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि मंत्र के उच्चारण के बाद व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिक शांति महसूस होती है।

टिप्पणियाँ