शिव चालीसा का पाठ अर्थ साहित हिंदी में ,shiv chaaleesa ka paath arth saahit hindee mein

शिव चालीसा का पाठ अर्थ साहित हिंदी में

शिव चालीसा पढ़ने के  लाभ

  • शिव चालीसा के पाठ से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • शिव चालीसा के पाठ करने से जातक के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
  • शिव चालीसा के पाठ विधि और नियम के अनुसार करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।
  • शिव चालीसा का जाप करने से मन व शरीर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  • शिव चालीसा का रोजाना पाठ करने से ग्रहों के बुरे प्रभाव दूर होते हैं।
  • रोज शिव चालीसा का पाठ करने से से घर में खुशहाली आती है।
  • रोगों से मुक्ति के लिए भी शिव चालीसा का निरंतर पाठ करना चाहिए।
  • पाठ करने से शत्रु बाधा का निवारण होता है।
  • संतान की प्राप्ति के लिए शिव चालीसा का नियमित पाठ करना चाहिए।
shiv chaaleesa ka paath arth saahit hindee mein

सूर्योदय से पूर्व स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करें, तत्पश्चात मृगचर्म या कुश के आसन पर बैठकर, भगवान शंकर की मूर्ति या चित्र तथा इस पुस्तक में बने शिव यंत्र को ताम्र पत्र पर खुदवाकर सामने रखें। फिर चंदन, चावल, आक के सफेद पुष्प, धूप, दीप, धतूरे का फल, बेल-पत्र तथा काली मिर्च आदि से पूजन करके शिवजी का ध्यान करते हुए निम्न श्लोक पढ़कर पुष्प समर्पित करें।

 कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसार सारं भुजगेंद्रहारम् । 
सदा वसंतं हृदयारविंदे, भवं भवानी सहितं नमामि ।।
इसके बाद पुष्प अर्पण करें फिर चालीसा का पाठ करें। पाठ के अंत में 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का १०८ बार तुलसी या सफेद चंदन की माला से जप करें। जप के साथ अर्थ की भावना करने से कार्यसिद्धि जल्दी होती है। 

शिव चालीसा का पाठ अर्थ साहित

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । 
कहत अयोध्यादास तुम, देउ अभय वरदान ।। 
अर्थ ;- 
समस्त मंगलों के ज्ञाता गिरिजा सुत श्री गणेश की जय हो। मैं अयोध्यादास आपसे अभय होने का वर मांगता हूं।
 जय गिरिजापति दीनदयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला ।
भाल चंद्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के ।।
अर्थ ;- 
दीनों पर दया करने वाले तथा संतों की रक्षा करने वाले, पार्वती के पति शंकर भगवान की जय हो। जिनके मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है और जिन्होंने कानों में नागफनी के कुण्डल धारण किए हुए हैं।
अंग गौर सिर गंग बहाए। मुण्डमाल तन क्षार लगाए ।
वस्त्र खाल बाघंबर सोहै । छवि को देखि नाग मुनि मोहै ॥
अर्थ ;- 
जिनके अंग गौरवर्ण हैं, सिर से गंगा बह रही है, गले में मुण्डमाला है और शरीर पर भस्म लगी हुई है। जिन्होंने बाघंबर धारण किया हुआ है, ऐसे शिव की शोभा देखकर नाग और मुनि भी मोहित हो जाते हैं।
 मैना मातु कि हवै दुलारी वाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
 कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ।। 
अर्थ ;- 
महारानी मैना की दुलारी पुत्री पार्वती उनके वाम भाग में सुशोभित हो रही हैं। जिनके हाथ का त्रिशूल अत्यंत सुंदर प्रतीत हो रहा है, वही निरंतर शत्रुओं का विनाश करता रहता है।
 नंदि गणेश सोहैं तहं कैसे सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥ 
कार्तिक श्याम और गणराऊ या छवि को कहि जात न काऊ ।। 
अर्थ ;- 
भगवान शंकर के समीप नंदी व गणेशजी ऐसे सुंदर लगते हैं, जैसे सागर के मध्य कमल । श्याम, कार्तिकेय और उनके करोड़ों गणों की छवि का बखान करना किसी के लिए भी संभव नहीं है।
 देवन जबहीं जाय पुकारा । तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा ||
 कियो उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ||
अर्थ ;- 
 हे प्रभु! जब-जब भी देवताओं ने पुकार की, तब-तब आपने उनके दुखों का निवारण किया है। जब तारकासुर ने उत्पात किया, तब सब देवताओं ने मिलकर रक्षा करने के लिए आपकी गुहार की। 
तुरत षडानन आप पठायउ। लव निमेष महं मारि गिरायउ ।।
 आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 
अर्थ ;- 
तब आपने तुरंत स्वामी कार्तिकेय को भेजा जिन्होंने क्षणमात्र में ही तारकासुर राक्षस को मार गिराया। आपने स्वयं जलंधर का संहार किया, जिससे आपके यश तथा बल को सारा संसार जानता है।
 त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा करि लीन बचाई ।।
 किया तपहिं भागीरथ भारी पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
अर्थ ;- 
त्रिपुर नामक असुर से युद्ध कर आपने देवताओं पर कृपा की, उन सभी को आपने बचा लिया। आपने अपनी जटाओं से गंगा की धारा को छोड़कर भागीरथ के तप की प्रतिज्ञा को पूरा किया था।
 दानिन महं तुम सम कोइ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं । 
वेद माहि महिमा तब गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई ।।
अर्थ ;- 
संसार के सभी दानियों में आपके समान कोई दानी नहीं है। भक्त आपकी सदा ही वंदना करते रहते हैं। आपके अनादि होने का भेद कोई बता नहीं सका। वेदों में भी आपके नाम की महिमा गाई गई है। 
प्रकटी उदधि मथन ते ज्वाला जरत सुरासुर भए विहाला ।। 
कीन्ह दया तह करी सहाई। नीलकंठ तव नाम कहाई ।।
अर्थ ;- 
समुद्र-मंथन करने से जब विष उत्पन्न हुआ, तब देवता और राक्षस दोनों ही बेहाल हो गए। तब आपने दया करके उनकी सहायता की और ज्वाला पान किया। तभी से आपका नाम नीलकंठ पड़ा।
 पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा ।। 
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
अर्थ ;- 
रामचंद्रजी ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले आपका पूजन किया और विजयी हो लंका विभीषण को दे दी। भगवान रामचंद्र ने जब सहस्र कमल के द्वारा पूजन किया तो आपने फूलों में विराजमान हो परीक्षा ली।
 एक कमल प्रभु राखेउ गोई । कमल नैन पूजन चहं सोई ।। 
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर भये प्रसन्न दिये इच्छित वर ।।
अर्थ ;- 
आपने एक कमलपुष्प माया से लुप्त कर दिया तो श्रीराम ने अपने कमलनयन से पूजन करना चाहा। जब आपने राघवेंद्र की इस प्रकार की कठोर भक्ति देखी तो प्रसन्न होकर उन्हें मनवांछित वर प्रदान किया। 
जय जय जय अनंत अविनासी करत कृपा सबके घटवासी ।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ।। 
अर्थ ;- 
अनंत और अविनाशी शिव की जय हो, सबके हृदय में निवास करने वाले आप सब पर कृपा करते हैं। हे शंकरजी! अनेक दुष्ट मुझे प्रतिदिन सताते हैं। जिससे मैं भ्रमित हो जाता हूं और मुझे चैन नहीं मिलता। 
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारौं । यहि अवसर मोहि आन उबारौ ।। 
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो संकट ते मोहि आन उबारो ।।
अर्थ ;- 
हे नाथ! इन सांसारिक बाधाओं से दुखी होकर मैं आपका स्मरण करता हूं। आप मेरा उद्धार कीजिए। आप अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं को नष्ट कर, मुझे इस संकट से बचाकर, भवसागर से उबार लीजिए। 
मात-पिता भ्राता सब होई संकट में पूछत नहिं कोई ।। 
स्वामी एक है आस तुम्हारी आय हरहु मम संकट भारी ।। 
अर्थ ;- 
माता-पिता और भाई आदि सुख में ही साथी होते हैं, संकट आने पर कोई पूछता भी नहीं । हे जगत के स्वामी! आप पर ही मेरी आशा टिकी हैं, आप मेरे इस घोर संकट को दूर कीजिए। 
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोइ जांचे सो फल पाहीं ।। 
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ।। 
अर्थ ;- 
आप सदा ही निर्धनों की सहायता करते हैं। जिसने भी आपको जैसा जाना उसने वैसा ही फल प्राप्त किया। मैं प्रार्थना स्तुति करने की विधि नहीं जानता। इसलिए कैसे करूं? मेरी सभी भूलों को क्षमा करें। 
शंकर को संकट के नाशन। विघ्न विनाशन मंगल कारन || 
योगी यति मुनि ध्यान लगावें। नारद सारद शीश नवावें ॥
अर्थ ;- 
आप ही संकट का नाश करने वाले, समस्त शुभ कार्यों को कराने वाले और विघ्नहर्ता हैं। योगीजन, यति व मुनिजन आपका ही ध्यान करते हैं। नारद और सरस्वतीजी आपको ही शीश नवाते हैं।
 नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ।।
 जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत हैं शंभु सहाई ।।
अर्थ ;- 
'ॐ नमः शिवाय' पंचाक्षर मंत्र का निरंतर जप करके भी देवताओं ने आपका पार नहीं पाया। जो इस शिव चालीसा का निष्ठा से पाठ करता है, भगवान शंकर उसकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।
 ऋनियां जो कोइ हो अधिकारी पाठ करे सो पावनहारी ।। 
पुत्र होन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ।।
अर्थ ;- 
 यदि ऋणी (कर्जदार) इसका पाठ करे तो वह ऋणमुक्त हो जाता है। पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो इसका पाठ करेगा, निश्चय ही शिव की कृपा से उसे पुत्र प्राप्त होगा। 
पण्डित त्रयोदशी को लावै। ध्यान पूर्वक होम करावे ।।
 त्रयोदशी व्रत करै हमेशा तन नहिं ताके रहै कलेशा ।। 
अर्थ ;- 
प्रत्येक मास की त्रयोदशी को घर पर पण्डित को बुलाकर श्रद्धापूर्वक पूजन व हवन करना चाहिए। त्रयोदशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के शरीर और मन को कभी कोई क्लेश (दुख) नहीं रहता।   
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावै । शंकर सम्मुख पाठ सुनावै ॥ 
जन्म-जन्म के पाप नसावे। अंत धाम शिवपुर में पावै ।।
अर्थ ;- 
धूप, दीप और नैवेद्य से पूजन करके शंकरजी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर यह पाठ करना चाहिए। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में शिव लोक में वास होता है। अर्थात् मुक्ति हो जाती है। 
कहत अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ।। 
॥ दोहा ॥
नित्य नेम कर प्रात ही, पाठ करो चालीस । 
तुम मेरी मनोकामना पूर्ण करो जगदीस ।। 
मंगसर छठि हेमंत ऋतु, संवत् चौसठ जान । 
अस्तुति चालीसा शिवहिं पूर्ण कीन कल्याण ।।
दिन के सभी कर्तव्यों को पूरा करने के बाद, मैं इस चालीस पद्य की कविता गाता हूं । कृपया मेरी सारी मनो कामनाओं को ध्यान में रखें, और उन्हें पूरा करें, हे भगवान् जगदीश ॥ शिव चालीसा गा कर, ध्यान करने से, पूर्ण पूर्ती प्राप्त होती है । ॥ हेमंत ऋतु, मार्गशीर्ष मास की छठी तिथि संवत् 64 में यह चालीसा लोककल्याण के लिए पूर्ण हुई। कृपया मुझे आशीर्वाद दें, हे भगवान् शिव, ताकि मेरी सभी आध्यात्मिक और भौतिक इच्छाएं पूरी हो जाएं !

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