Shiva element knowledge description, glory of time, age of trinity शिव तत्व ज्ञान वर्णन ,काल महिमा ,त्रिदेवों की आयु

शिव तत्व ज्ञान वर्णन ,काल महिमा ,त्रिदेवों की आयु

ऋषि बोले- हे वासुदेव! पशु और पाश के स्वामी कौन हैं? तब ऋषिगणों का प्रश्न सुनकर वायुदेव बोले- हे ऋषियो! पशु और पास के निवारक परमेश्वर हैं। परमेश्वर सर्वव्यापक है। उसने ही संसार का निर्माण किया है। ईश्वर की प्रेरणा से ही जीव संसार में जन्म लेता है। परमात्मा ही सबका कर्ता है। जिस प्रकार अंधे मनुष्य को कुछ दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार मनुष्य भी परमेश्वर को नहीं देख पाता। पशु एवं पाश को जब ज्ञान प्राप्त होता है तो ब्रह्मज्ञानियों को मुक्ति मिल जाती है। परमेश्वर महाज्ञानी और मायावी हैं। वह सारे संसार को अपने अधीन कर लेते हैं। वही संसार की सृष्टि, पालन और संहार करने वाले हैं। त्रिलोकीनाथ देवाधिदेव भगवान शिव ही परमेश्वर हैं। उन्होंने ही आकाश और पृथ्वी की रचना की है। उन्होंने ही सभी जीवों एवं देवताओं को रचा है। अतः वे ही पुराण पुरुष है। अपनी अपार अलौकिक शक्ति से उन्होंने पूरे त्रिलोक की रचना की और उसका पालन करते हैं तथा समय आने पर इसका विनाश भी स्वयं कर देते हैं। संसार रूपी वृक्ष के दो पत्ते हैं- जीवात्मा और परमात्मा जीवात्मा अपने कर्म के फल को भोगती है और परमात्मा उसका लेखा-जोखा रखते हैं। परमात्मा का प्रकाश एवं तेज चारों ओर फैला हुआ है। गुह्योपनिषद के अनुसार परब्रह्म को जानने वाला मनुष्य जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाता है। इसलिए सदाशिव की भक्ति कर मोक्ष प्राप्ति की इच्छा करनी चाहिए। वे कल्याणकारी सदाशिव ही सब कामनाओं को पूरा करने वाले हैं। उनके अमृतरूपी ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं है। अतः सर्व व्यापक सर्वेश्वर शिव का ही ध्यान और स्मरण करना चाहिए।

शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) छठवां अध्याय

काल महिमा

ऋषि बोले- हे देव! इस विश्व की सृष्टि, पालन और संहार रूपी चक्र के निरंतर चलने से ही जीव की उत्पत्ति एवं विनाश होता है। हमें इस काल को अपने अधीन रखने वाले के विषय में बताइए! तब ऋषिगणों के प्रश्न का उत्तर देते हुए वायुदेव बोले- हे मुनियो ! जिस काल के विषय में आप जानना चाहते हैं, वह भगवान शिव का ही तेज और दिव्य रूप है। काल को कालात्मा नाम से भी जाना जाता है। इस चराचर जगत में कोई भी काल के सामने रुकावट नहीं डाल सकता। त्रिलोकीनाथ कल्याणकारी भगवान शिव की अंशांश शक्ति ही इस कालात्मा में कार्य कर रही है। इस काल शक्ति ने पूरे विश्व को अपने अधीन कर रखा है। यह काल सिर्फ भगवान शिव के ही अधीन है क्योंकि इसमें स्वयं शिव शक्ति विद्यमान है। इस काल को रोक पाना किसी के वश में नहीं है। कोई इसका उल्लंघन नहीं कर सकता। अपनी अथाह बल शक्ति के कारण ही यह त्रिलोक पर अपना अखंड राज्य कर रहा है। भगवान शिव की शक्ति से ही यह सब जीवों को उनके सुख-दुख का फल देता है। काल के अनुसार ही वायु, धूप, ठंड और मेघ द्वारा जल प्रदान करता है। समय पर सूर्यदेव अपनी तेज किरणों से जगत को तृप्त करते हैं, खेतों में अन्न पैदा करते हैं तथा फल-फूल प्रदान करते हैं। जब मनुष्यगण इस काल तत्त्व को भली-भांति समझ लेते हैं, तब उन्हें परमेश्वर शिव के दर्शन प्राप्त होते हैं। काल के स्वरूप को जान लेने पर ही शिवकृपा से काल का अतिक्रमण किया जा सकता है। इसे ही तो अमरता कहते हैं, यही मुक्ति है।

शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) सातवां अध्याय

त्रिदेवों की आयु

ऋषिगण बोले- हे वायुदेव! अब आप हम पर कृपा करके आयु का परिमाण और संख्या के बारे में बताइए । वायुदेव बोले- हे ऋषिगण! प्रलय काल आने तक की अवधि ही पूर्ण काल की अवधि है। पंद्रह निमेष की काठा होती है। तीस काष्ठाओं का एक मुहूर्त अर्थात दिन-रात, पंद्रह दिन-रातों का एक पक्ष होता है। इस प्रकार महीने में दो पक्ष - शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं। पितरों के दिन और रात क्रमशः शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं। छः महीने का एक अयन होता है। दो अयन पूरे होने पर एक वर्ष पूरा हो जाता है। मनुष्यों का एक वर्ष देवताओं के एक दिन और रात के बराबर होता है। मनुष्यों की एक अयन के दक्षिण होने पर दक्षिणायन अर्थात देवताओं की रात और उत्तर होने पर उत्तरायण अर्थात देवताओं का दिन होता है। इस प्रकार मनुष्यों के तीन सौ आठ वर्ष पूरे दोने पर देवताओं का एक वर्ष पूरा होता है। देवताओं के वर्षों से युग की गणना होती है। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग नामक चार युग कहे गए हैं। इसमें सतयुग देवताओं के चार सहस्र वर्षों का होता है। जिसमें चार सौ वर्ष संध्या तथा चार सौ वर्ष संध्यांश के होते हैं। त्रेता युग में तीस हजार वर्ष, द्वापर में दो हजार वर्ष और कलियुग में एक हजार वर्ष होते हैं। चारों युगों के एक हजार वर्ष बीतने पर एक कल्प पूरा होता है। इकहत्तर चतुर्युगी का एक मन्वंतर होता है। ब्रह्माजी का एक दिन एक कल्प के बराबर होता है। आठ हजार वर्षों का एक वर्ष और आठ हजार वर्षों का एक युग होता है। हजारों वर्षों का एक सवन बनता है। ब्रह्माजी की आयु तीस हजार सवन का समय बीतने पर पूरी हो जाएगी। इस प्रकार, ब्रह्माजी की पूरी आयु श्रीहरि विष्णु के एक दिन के बराबर है। श्रीहरि विष्णु की आयु रुद्र के एक दिन के बराबर मानी गई है। रुद्र की आयु पूरी होने पर ही काल की गणना पूरी होती है। त्रिलोकीनाथ भगवान शिव की कृपा से ही पांच लाख चालीस हजार वर्षों की उनकी आयु में सृष्टि का आरंभ से अंत हो जाता है परंतु भगवान शिव अविनाशी हैं। काल उनको अपने वश में नहीं कर सकता। ईश्वर का एक दिन सृष्टि की उत्पत्ति तथा रात उसका संहार होती है।

शिव पुराण श्री वायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध) आठवां अध्याय

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