श्रीकृष्ण की पुत्र प्राप्ति ,अष्टमूर्ति वर्णन ,गौरी शंकर की विभूति Shri Krishna's birth of a son, description of Ashtamurti, glory of Gauri Shankar

श्रीकृष्ण की पुत्र प्राप्ति ,अष्टमूर्ति वर्णन ,गौरी शंकर की विभूति

श्रीकृष्ण की पुत्र प्राप्ति

संसार के सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता भगवान शिव को प्रणाम कर सूत जी बोले- हे ऋषिगणो! मैंने आपके द्वारा पूछी गई हर कथा आपको सविस्तार सुनाई है। ये सभी कथाएं अंतःकरण की कालिमा को नष्ट करने वाली हैं। शुद्ध अंतःकरण द्वारा ही देव लीलाओं के रहस्य खुलते हैं, तथा उनके प्रति निष्ठा जागती है। बिना देवोपासना के शिवतत्व को नहीं जाना जा सकता है। ऋषिगणो! आप कथारसिक हैं, यह मैं जान गया हूं। अब आगे आप किस कथा के विषय में सुनना चाहते हैं? सूत जी के प्रश्न को सुनकर ऋषि बोले- हे सूत जी ! भगवान श्रीकृष्ण ने उपमन्यु को दर्शन देकर उन्हें पाशुपत व्रत करने की आज्ञा प्रदान की परंतु इस व्रत का ज्ञान उन्हें कैसे मिला? यह बात सुनकर वायुदेव बोले- हे ऋषियो ! श्रीकृष्ण ने अपनी इच्छानुसार अवतार लिया और फिर सांसारिक मनुष्यों की भांति पुत्र कामना की प्राप्ति हेतु तपस्या करने मुनियों के आश्रम में पहुंचे। वहां उन्होंने जटाजूट धारण कर भस्म रमाए त्रिपुण्ड का तिलक लगाए मुनि उपमन्यु को देखा। श्रीकृष्ण ने उनकी तीन परिक्रमा की तथा प्रणाम करके उनकी स्तुति करने लगे। उपमन्यु जी ने श्रीकृष्ण को 'त्रायुषं जमदग्ने' मंत्र देकर बारह महीने तक पाशुपत व्रत धारण कराया और पाशुपत व्रत का ज्ञान दिया। श्रीकृष्ण ने आश्रम में रहकर एक वर्ष तक कठोर तप किया। तब प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवी पार्वती सहित उन्हें दर्शन दिए । शिवजी ने श्रीकृष्ण की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और अंतर्धान हो गए। वर के प्रभाव से श्रीकृष्ण को अपनी पत्नी जांबवती से सांब नामक पुत्र की प्राप्ति हुई।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध प्रथम अध्याय

शिवगुणों का वर्णन

वायुदेव बोले- हे मुनियो ! एक दिन श्रीकृष्ण जी ने उपमन्यु मुनि से कहा- हे महर्षे! आप मुझे देवाधिदेव भगवान शिव के पाशुपत व्रत के ज्ञान को बताइए। पशु कौन है और वे किस रस्सी से बंधे हैं और उससे कैसे मुक्त होते हैं? शिवजी पशुपति कैसे कहलाए ? कृपाकर मेरी इन जिज्ञासाओं को शांत करें। श्रीकृष्ण जी के इन प्रश्नों को सुनकर उपमन्यु बोले- हे श्रीकृष्ण ! इस संसार में ब्रह्मा से लेकर सभी स्थावर जीव सर्वेश्वर शिव के ही पशु हैं। शिवजी ही उनके स्वामी हैं। इसलिए उनके अधिपति होने के कारण वे पशुपति कहलाते हैं। भगवान शिव द्वारा रचित सभी पशु मोह-माया की दृढ़ रस्सियों से बंधे हैं। इसी रूप में संसारी व्यक्ति जब मोह-ममता आदि के पाश से मुक्त होने का प्रयास करता है, तो वह और भी बुरी तरह उसमें बंधता और फंसता जाता है। कोई केवल सांसारिक साधनों द्वारा पाश से मुक्त नहीं हो पाता। इसके लिए भगवान शिव की कृपा आवश्यक है। अपने भक्तों की आस्था, श्रद्धा और भक्तिपूर्ण उपासना देखकर वे उन्हें माया रूपी रस्सियों से मुक्त कर देते हैं। माया के चौबीस तत्वों से ही जीव बंधा रहता है। अपने जीवों को इन बंधनों में बांधने वाले स्वयं भगवान शिव ही हैं। वे उन्हें विषयों में बांधकर उनसे अपने कार्य कराते हैं। जो इन विषयों में आसक्त होकर भोगों की कामना से व्यवहार करता रहता है, वह पशुता से मुक्त नहीं हो पाता। जिसे संसार के भोगों में रस नहीं मिलता वह शिव कृपा से इन पाशों से मुक्त हो जाता है। महेश्वर संसार का अनुशासन चलाते हैं तो बाह्य जगत का बाहर से पालन करते हैं और हव्यकव्य भी ग्रहण करते हैं। जल जगत में जीवन भरता है और पृथ्वी जगत को धारण करती है। दैत्यों का संहार स्वयं भगवान शंकर करते हैं। देवेंद्र स्वर्ग का संचालन करते हैं। वरुण जल पर शासन करते हैं। ये सब कार्य त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के बताए मार्ग पर चलकर संपन्न होते हैं। शिवजी का पूजन सद्गति प्रदान करता है। निष्काम भाव से की गई शिव आराधना मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ मुक्ति का साधन भी बनती है।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध दूसरा अध्याय

अष्टमूर्ति वर्णन

मुनि उपमन्यु बोले – हे श्रीकृष्ण ! भगवान शिव के सगुण-साकार मूर्तरूप का विभिन्न ध्यानों में नाना प्रकार से वर्णन किया गया है। ये शिव के व्यष्टि रूप हैं। भगवान शिव ने स्वयं की अंगभूता आदिशक्ति से जब इस सृष्टि की रचना की, उसके बाद वे संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हो गए। शिव ने ही सृष्टि के रूप में अपना विस्तार किया, इस तरह भी कहा जा सकता है। भगवान शिव अपनी मूर्तियों से ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं। ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, महेश, सदाशिव शिवजी की ही प्रतिमाएं हैं। ईशान, पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात इनकी पांच मूर्तियां हैं। ईशान मूर्ति क्षेत्रज्ञ है। पुरुष स्थाणु मूर्ति है। अघोर मूर्ति बुद्धि तत्व को धारण किए है। देवाधिदेव महादेव की वामदेव मूर्ति अहंकार की अधिष्ठात्री है। सद्योजात मूर्ति शिवजी के हृदय में निवास करती है। ईशान मूर्ति श्रोत्र वाणी और शब्द आकाश की अधिष्ठात्री है। ईश्वरीय मूर्ति हस्त, स्पर्श और वायु की अधिष्ठात्री है। अघोर मूर्ति नेत्र चरण रूप अग्नि की अधिष्ठात्री है । वाममूर्ति रस जल की अधिष्ठात्री है। भगवान शिव की आठ प्रतिमाएं हैं। जिस प्रकार माला में फूल गुंथे होते हैं, उसी प्रकार शिवजी की मूर्तियों में संसार ग्रथित है। शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान, महादेव ये शिवजी की आठ मूर्तियां हैं। इन्होंने पृथ्वी, जल, तेज, पवन, आकाश, क्षेत्रज्ञ, सूर्य और चंद्र को धारण किया हुआ है। शिवजी की शार्वी मूर्ति विश्वधारिका है। वायिका भावी मूर्ति है और जल को धारण किए है। तेजोदीप्त रौद्रमूर्ति जगत में अंदर और बाहर विचरती है। पवन मूर्ति जगत का संचालन करती है। आकाशात्मिका मूर्ति पूरे विश्व में व्याप्त है। पशुपति मूर्ति आत्मा की अधिष्ठात्री हैं। ईशानी मूर्ति जगत को प्रकाश देती है। महादेव जी की मूर्ति अपनी शीतल किरणों से जगत को तृप्त करती है। आठवीं मूर्ति के कारण सारा संसार शिवरूप है। इसलिए शिवजी का पूजन और आराधन ही भय का नाश कर मोक्ष प्रदान करने वाला एवं समस्त कामनाओं को पूरा करने वाला है।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध तीसरा अध्याय

गौरी शंकर की विभूति

उपमन्यु बोले – हे श्रीकृष्ण ! अब मैं आपसे स्त्री-पुरुष, जो महादेव की विभूति हैं, -वर्णन करता हूं। भगवान शिव परम शक्तिमान हैं। देवी पार्वती उनकी शक्ति हैं और विश्व उनकी विभूति है। शुद्ध-अशुद्ध, पर अपर, चेतन-अचेतन सभी स्वाभाविक रूप हैं। शिवजी और देवी पार्वती के वश में यह संसार है। वे ही विश्वेश्वर हैं। भगवान शिव ही संसार के सभी जीवों को भक्ति और मुक्ति देते हैं। माता शक्ति भी शिवजी के समान महाशक्ति है। वे चिद्रूपा शक्ति हैं, जो विश्व को विभक्त करती है। वे ही सभी क्रियात्मक शक्तियों को क्रियान्वित करती हैं। देवी पार्वती ही क्षोभ पाकर नाद को पैदा करती हैं। नाद से बिंदु, बिंदु से सदाशिव उससे महेश्वर और उससे युद्ध विद्या पैदा होती है। ईश्वर की वाणी शक्ति है। इस संसार को रचने वाली शक्ति है। इस संसार में स्त्री व पुरुषों की विभूति भगवान शिव और देवी पार्वती पर आश्रित है। शिव क्षेत्रज्ञ हैं और देवी क्षेत्ररूपा हैं। पार्वती जी पृथ्वी रूप हैं और शिवजी आकार रूप हैं। शिव समुद्र रूप हैं तो पार्वती जी तरंगरूपा हैं। हे श्रीकृष्ण! इस प्रकार मैंने आपको सर्वेश्वर शिव की विभूति सुना दी है। शिव भक्तों को सायुज्य की प्राप्ति होती है और भगवान शिव का भजन-कीर्तन करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध चौथा अध्याय

Comments