श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध (उत्तरार्धम्) श्लोक १६ से २० तक अर्थ सहित Srimad Bhagwat Mahapuran Dasham Skandh (Uttaradham) Verses 16 to 20 with meaning

श्रीमद्भागवत महापुराण श्लोक १६ से २० तक अर्थ सहित

श्रीमद्भागवत महापुराण हिन्दू धर्म में 

श्रीमद्भागवत पुराण हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और यह संपूर्ण भारतीय संस्कृति में उच्च स्थान रखता है। इस पुराण के पाठन और सुनने से मन को शांति, ध्यान, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। भगवान के भक्ति और सेवा में लगने से जीवन को पूर्णता, सुख, और आनंद मिलता है। श्रीमद्भागवत पुराण हिन्दी और संस्कृत भाषा में उपलब्ध है और इसे पढ़कर और सुनकर आप भगवान के लीलाओं, उपदेशों, और भक्ति के रस का आनंद ले सकतेहैं। यह पुराण जीवन को समर्पित करने, ईश्वरीय भक्ति को समझने, और आध्यात्मिक सफलता की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित 18 पुराणों में श्रीमद्भागवत सबसे श्रेष्ठ एवं पवित्र पुराण है। इस पुराण में भगवान श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं और कथाओं का सुंदर वर्णन विस्तार से किया गया है। 'श्रीमद्भागवत पुराण' में भगवान श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का दिव्य वर्णन किया गया है। कथाओं के अलावा इस महापुराण में भगवान के भक्तों और उनकी मुक्ति की कथाओं का भी विस्तार से वर्णन किया गया है।
Srimad Bhagwat Mahapuran Dasham Skandh (Uttaradham) Verses 16 to 20 with meaning

इस महापुराण में 18 हजार श्लोक, 12 स्कन्ध और 335 अध्याय हैं। हिंदू समाज और वैष्णव संप्रदाय का यह एक प्रमुख धार्मिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में र्वेदों, उपनिषदों तथा दर्शन शास्त्र के गूढ़ एवं रहस्यमय विषयों को अत्यन्त सरलता के साथ निरूपित किया गया है। श्रीमद भागवत महापुराण को भारतीय धर्म और संस्कृति का विश्वकोश कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। सैकड़ों वर्षों से यह पुराण हिन्दू समाज की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इस पुराण में भगवान के लीलावतार, और अन्य कथाएं सुंदरता के साथ वर्णित की गई हैं। श्रीमद्भागवत पुराण में जीवन के मूल्यों, धर्म के महत्व, भक्ति के पथ, और मुक्ति की प्राप्ति के लिए उपदेश दिए गए हैं। इस पुराण के अनुसार, भगवान के भक्त के सम्पूर्ण समर्पण और आत्मनिर्भरता के माध्यम से संसार से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। यह पुराण संसार के दुःखों से मुक्ति, आत्मसात, और आनंद की प्राप्ति के मार्ग का बोध कराता है।

श्रीमद्भागवत पुराण श्लोक १६ से २० तक अर्थ सहित

श्लोक-
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः ॥ १६॥
अर्थ-
प्रणाम करने वालों के क्लेश का नाश करने वाले श्रीकृष्ण, वासुदेव, हरि, परमात्मा एवं गोविन्द के प्रति हमारा बार-बार नमस्कार है। ॥ १६॥
श्लोक-श्रीशुक उवाच
संस्तूयमानो भगवान् राजभिर्मुक्तबन्धनैः ।
तानाह करुणस्तात शरण्यः श्लक्ष्णया गिरा ॥ १७॥
अर्थ-
श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! कारागार से मुक्त राजाओं ने जब इस प्रकार करुणावरुणालय भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति की, तब शरणागत रक्षक प्रभु ने बड़ी मधुर वाणी से उनसे कहा। ॥ १७॥
श्लोक- श्रीभगवानुवाचअद्य
प्रभृति वो भूपा मय्यात्मन्यखिलेश्वरे ।
सुदृढा जायते भक्तिर्बाढमाशंसितं तथा ॥ १८॥
अर्थ-
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- नरपतियों! तुम लोगों ने जैसी इच्छा प्रकट की है, उसके अनुसार आज से मुझमें तुम लोगों की निश्चय ही सुदृढ़ भक्ति होगी। यह जान लो कि मैं सबका आत्मा और सबका स्वामी हूँ। ॥ १८॥
श्लोक-
दिष्ट्या व्यवसितं भूपा भवन्त ऋतभाषिणः ।
श्रियैश्वर्यमदोन्नाहं पश्य उन्मादकं नृणाम् ॥ १९॥
अर्थ-
नरपतियों! तुम लोगों ने जो निश्चय किया है, वह सचमुच तुम्हारे लिये बड़े सौभाग्य और आनन्द की बात है। तुम लोगों ने मुझसे जो कुछ कहा है, वह बिलकुल ठीक है। क्योंकि मैं देखता हूँ, धन-सम्पत्ति और ऐश्वर्य के मद से चूर होकर बहुत-से लोग उच्छ्रंखल और मतवाले हो जाते हैं। ॥ १९॥
श्लोक-
हैहयो नहुषो वेनो रावणो नरकोऽपरे ।
श्रीमदाद्भ्रंशिताः स्थानाद्देवदैत्यनरेश्वराः ॥ २०॥
अर्थ-
हैहय, नहुष, वेन, रावण, नरकासुर आदि अनेकों देवता, दैत्य और नरपति श्रीमद के कारण अपने स्थान से, पद से च्युत हो गये।॥ २०॥

!!श्रीकृष्ण प्रात:स्मरणम्ॐ!!

नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव ।
प्रद्युम्न दामोदर विश्वनाथ 
मुकुंद विष्णो: भगवन् नमस्ते ॥

करारविन्देन पदारविन्दम्  
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं ।
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः 
नमोस्त्वनन्ताय सहस्त्रमूर्तये
सहस्त्रपादाक्षिशिरोरूबाहवे।
सहस्त्रनाम्ने पुरूषाय शाश्वते
सहस्त्रकोटी युग धारिणे नम:॥
भवे भवे यथा भक्ति: पादयोस्तव जायते ।
तथा कुरूष्व देवेश नाथस्त्वं नो यत: प्रभो ॥
नामसंकीर्तनं यस्य सर्वपाप प्रणाशनम् ।
प्रणामो दु:खशमनस्तं नमामि हरिं परम् ॥

!!जय श्री कृष्णा!!

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