शिव भक्तों की कथा, शिवरात्रि का व्रत विधान ,शिवरात्रि व्रत उद्यापन की विधि Story of Shiva devotees, Shivratri fasting method, method of Shivaratri fasting Udyapan

शिव भक्तों की कथा, शिवरात्रि का व्रत विधान ,शिवरात्रि व्रत उद्यापन की विधि

शिव भक्तों की कथा

सूत जी बोले- हे मुनियो ! अब मैं आपको भगवान शिव की उपासना की एक कथा बताता हूं। यह कथा एक बार ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद को सुनाई थी। ब्रह्माजी ने कहा- हे देवर्षि नारद! एक बार मैंने, विष्णुजी एवं देवी लक्ष्मी ने मिलकर भगवान शिव का पूजन किया, जिसके फलस्वरूप हमारी सभी कामनाएं पूरी हुईं। भगवान शिव का पूजन तो दुर्वासा, विश्वामित्र, दधीचि, शक्ति, गौतम, कर्णाद, भार्गव, बृहस्पति, वैशंपायन, पाराशर, व्यास, उपमन्यु, याज्ञवल्क्य, जैमिनी, गर्ज आदि अनेक महामुनि सदा किया करते हैं। यही नहीं, शौनक, अतिथि एवं देवराज इंद्र, बसु, साध्य, गंधर्व, किन्नर आदि देवता ही नहीं हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष, बाणासुर, वृषपर्वादनु आदि महादानव भी त्रिलोकीनाथ भगवान शिव की भक्ति में मग्न रहते हैं। वासुकि, शेष, तक्षक, गरुड़ आदि पक्षीगण भी शिवजी के परम भक्त हैं और उनका पूजन करते हैं। सूर्य, चंद्र, स्वायंभुव राजा मनु, उत्तानपाद, ध्रुव, ऋषभ, भरत आदि अनेक गणमान्य, कीर्तिप्राप्त महाराज और सम्राट भी शिवजी के परम भक्त हुए हैं।  राजा दिलीप रघु नीतिज्ञ गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ ने अपनी रानियों के साथ भगवान शिवजी का पूजन किया था। तब सर्वेश्वर शिव ने अपनी कृपादृष्टि उन पर कर अपना आशीर्वाद प्रदान किया था। शिवजी के पूजन के फलस्वरूप ही राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से श्रीविष्णु के अवतार श्रीराम, सुमित्रा से शेषावतार लक्ष्मण और शत्रुघ्न एवं कैकेयी के गर्भ से भरत ने जन्म लिया। श्रीराम भगवान शिव के परम भक्त थे और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करते थे।  महर्षि वशिष्ठ ने अपनी तपस्या के बल से सुद्युम्न को पुत्र प्राप्त होने का वरदान प्रदान किया था। एक दिन सुद्युम्न घूमते-घूमते उस वन में पहुंच गए, जहां पहुंचकर प्रत्येक पुरुष स्त्री हो जाता था। ऐसा भगवान शिव के पार्वती जी को दिए गए वरदान के कारण होता था। उस वन में पहुंचकर सुद्युम्न भी स्त्री बन गए। स्त्री भाव को प्राप्त हो जाने के कारण वे बहुत दुखी थे, तब उन्होंने भक्तिभाव से भगवान शिव की आराधना की। उन्होंने शिवजी का पार्थिव लिंग स्थापित किया और उसका पूजन करके आराधना आरंभ कर दी। शिवजी ने प्रसन्न होकर उनके दुख को दूर किया। शिवजी की कृपा से सुद्युम्न एक माह पुरुष और एक माह स्त्री बन जाते थे। कुछ समय पश्चात उन्होंने वन में जाकर शिवजी की घोर तपस्या की तब भगवान शिव की कृपा से उन्हें शिव भक्ति द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसी प्रकार, श्रीविष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण ने त्रिलोकीनाथ भगवान शिव की बदरीगिरि नामक पर्वत पर सात महीने तक अखण्ड तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था। देवाधिदेव महादेवजी ने उन पर अपनी कृपा की, जिसके फलस्वरूप श्रीकृष्ण ने पूरे ब्रह्माण्ड को अपने वश में कर लिया था। यही नहीं, उन्होंने अनेक राक्षसों एवं दैत्यों का संहार भी किया था। इस संसार में वे गुरु के रूप में पूजित हुए। श्रीकृष्ण के वंश में उत्पन्न प्रद्युम्न, सांब भी भगवान शिव के परम भक्त हुए। मुनियो ! भक्तवत्सल कल्याणकारी भगवान शिव की आराधना में देवता, ऋषि, मुनि, मनुष्य और राक्षस भी सदा तत्पर रहते हैं शिवजी के भक्तों की गणना असंभव है।
शिव पुराण श्रीकोटिरुद्र संहिता सैंतीसवां अध्याय

शिवरात्रि का व्रत विधान

ऋषि बोले- हे महामुने सूत जी ! जिस व्रत के करने से त्रिलोकीनाथ कल्याणकारी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, वह व्रत हमें सुनाइए। तब ऋषियों के प्रश्न को सुनकर सूत जी बोले- हे ऋषिगणो! पूर्वकाल में एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से यह प्रश्न पूछा कि स्वामी! किस विधि एवं व्रत से संतुष्ट होकर आप अपने भक्तों को भोग और मोक्ष प्रदान करते हैं? तब सर्वेश्वर शिव बोले- हे देवी! मुझे प्रसन्न करने एवं भोग-मोक्ष प्राप्त करने के लिए तो अनेकों व्रत हैं। वेदों को जानने वाले उत्तम महर्षि दस उपवासों को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। इन व्रतों का विधि-विधान मैं आपको बताता हूं। प्रत्येक महीने की अष्टमी को व्रत करें तथा रात के समय ही व्रत को खोलकर भोजन ग्रहण करें परंतु कालाष्टमी पर रात में भी भोजन न करें। दिन के समय व्रत रखकर मेरा पूजन करें और रात्रि के समय भोजन लें। शुक्ल पक्ष की एकादशी को रात में भी भोजन न करें। इसी प्रकार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में रात को भोजन करें परंतु कृष्णपक्ष की त्रयोदशी पर रात में भी भोजन न करें। इन सभी व्रतों में शिवरात्रि का व्रत सर्वोत्तम माना गया है। शिवरात्रि का व्रत फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में होता है। इस दिन प्रातःकाल जल्दी जागें । नित्य कर्म करने के पश्चात शिव मंदिर में जाकर विधिपूर्वक भगवान शिव का पूजन करने के पश्चात उनसे प्रार्थना करें कि हे नीलकण्ठ ! मैं आज इस शिवरात्रि के उत्तम व्रत को धारण कर रहा हूं। आपसे मेरी कामना है। कि आप मेरे व्रत को निर्विघ्न पूर्ण करें। काम, क्रोध, शत्रु आदि मेरा कुछ न बिगाड़ सकें। भगवन्! आप सदा मेरी रक्षा करें। इस प्रकार संकल्प लें। तत्पश्चात रात होने पर पूजन की सभी सामग्री को एकत्रित कर ऐसे शिव मंदिर में जाएं जहां शिवलिंग की प्रतिष्ठा शास्त्रों के अनुसार की गई हो। शरीर को स्नान से शुद्ध करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर आसन पर बैठकर भगवान शिव का पूजन करें। एक सौ आठ बार शिवमंत्र का उच्चारण करते हुए जलधारा शिवजी को अर्पित करें। इसी जलधारा से अर्पित की गई वस्तुओं को नीचे उतारें। तत्पश्चात गुरु मंत्र का जाप करते हुए शिवजी को काले तिल चढ़ाएं। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र भीम, महान, भीम, ईशान नामक आठ शिव नामों का उच्चारण करते हुए कमल और कनेर के फूल शिवजी पर चढ़ाएं। फिर धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर उन्हें नमस्कार करें। जप हो जाने पर धेनुमुद्रा दिखाकर जल से उसका तर्पण करें। तत्पश्चात विधिपूर्वक विसर्जन करें। इस प्रकार रात्रि के पहले पहर में पूजन करें। रात्रि का दूसरा पहर होने पर पुनः शिवलिंग पर गंध, पुष्प आदि द्रव्यों द्वारा सर्वेश्वर शिव का पूजन करें। दो सौ सोलह शिव मंत्र का जाप करते हुए पार्थिव लिंग पर जल धारा चढ़ाएं। तिल, जौ, चावल, बेलपत्र, अर्घ्य, बिजौर आदि वस्तुओं से पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात से खीर का नैवेद्य अर्पित करें तथा पुनः शिव मंत्र का जाप करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और संकल्प करें। फल और फूल अर्पित कर उसका विसर्जन करें। तीसरे पहर में ही विधि-विधान से पूजन करें परंतु इस पहर में जौ की जगह गेहूं और आक के फूलों से पूजन करें। पूजन के पश्चात कपूर से आरती करें। अर्घ्य के रूप में अनार अर्पित करें। फिर ब्राह्मण को भोजन कराएं और संकल्प लें। चौथा प्रहर आरंभ होने पर शिवजी का आवाह्न करके उड़द, कंगनी, मूंग व सात धातुओं, शंख फूल एवं बिल्व अदि को मंत्र जाप करते हुए अर्पित करें। तत्पश्चात केले एवं अन्य फल मिष्ठान अर्पित करें और जप करें। फिर सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प करें। सूर्योदय तक उत्सव करें। फिर स्नान करके भगवान शिव का पूजन करें। तत्पश्चात संकल्प किए हुए ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन कराएं, फिर शिवजी से प्रार्थना करें। हे दयानिधान! कृपानिधान! देवाधिदेव भगवान शिव! मैंने जाने-अनजाने आपकी भक्ति में तत्पर हो आपका व्रत और पूजन किया है। आप मुझ पर कृपा कर इस पूजन को स्वीकार करें। हे प्रभु! मैं चाहे जहां भी रहूं मेरी भक्ति सदा आप में रहे, यह कहकर पुष्पांजलि अर्पित कर ब्राह्मण को तिलक लगाएं और उसके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें। इस प्रकार विधिपूर्वक किए गए शिवरात्रि के व्रत का बहुत अधिक माहात्म्य है। इस व्रत से शिवजी के सान्निध्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष पाकर वह मनुष्य सांसारिक बंधनों से छूट जाता है। इस उत्तम व्रत का माहात्म्य श्रीपार्वती जी एवं श्रीहरि विष्णु ने भी सुना। फिर शिव महिमा का गुणगान करते हुए वे बैकुंठलोक को चले गए और वहां जाकर विष्णुजी ने लोक कल्याण हेतु इस महाव्रत को किया।
शिव पुराण श्रीकोटिरुद्र संहिता अड़तीसवां अध्याय

शिवरात्रि व्रत उद्यापन की विधि

सूत जी बोले- हे ऋषिगणो! अब मैं आपको शिवरात्रि के महाव्रत की उद्यापन विधि बताता हूं। चौदह वर्षों तक शिवरात्रि के व्रत का नियमपूर्वक पालन करना चाहिए। त्रयोदशी के दिन सिर्फ एक बार भोजन करें। शिव चतुर्दशी को निराहार व्रत को पूरा करें। रात को शिवालय में गौरीतिलक मण्डप की रचना करें। उसके बीच में लिंग व भद्र मण्डल की रचना करें। उसी स्थान पर प्रजापत्य नामक कलशों की स्थापना करें। उस कलश के वाम भाग में पार्वती जी एवं दक्षिण में शिवजी की प्रतिमा स्थापित करें एवं उनका पूजन करें। व्रत करने वाले मनुष्यों को ऋत्विजों के साथ आचार्य का वरण करके उनकी आज्ञा से शिवजी का आवाहन करके विसर्जन तक पूरी रात्रि शिवजी का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए। भगवत संबंधी कीर्तन, गीत व नृत्य करते हुए रात बितानी चाहिए। प्रातः स्नानादि से निवृत्त हो विधि के अनुसार होम करें फिर प्रजापत्य का पूजन कर ब्राह्मणों को भक्तिपूर्वक भोजन कराएं। भोजन कराने के पश्चात ऋत्विजों को वस्त्र, आभूषण दें तथा बछड़े सहित गौ का दान आचार्य को करें। तत्पश्चात शिवजी से प्रार्थना करें कि हे देवाधिदेव ! आप हम पर प्रसन्न हों और हमारी पूजा स्वीकार करें। यह कहकर मण्डप की सब सामग्री भी आचार्य को दान कर दें। तत्पश्चात नम्रतापूर्वक दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर प्रेम से महाप्रभु देवाधिदेव भक्तवत्सल भगवान शिव से प्रार्थना करें। हे देवाधिदेव ! महादेव! देवेश्वर ! शरणागतवत्सल ! शिवरात्रि के इस महाव्रत से संतुष्ट होकर आप मुझ पर कृपा करें। प्रभो ! मैंने भक्तिपूर्वक विधिनुसार इस शुभ व्रत को पूर्ण किया है, फिर भी यदि कहीं कोई त्रुटि रह गई हो या कुछ कमी रह गई हो तो उसे क्षमा करें और मुझ पर अपनी कृपादृष्टि करें। मैंने जाने-अनजाने में जो भी जप पूजन किया है, उसे सफल कर स्वीकार करें। इस तरह शिवजी से प्रार्थना कर उन्हें नमस्कार करें। जो मनुष्य इस विधि के अनुसार इस शुभ व्रत को पूर्ण करता है, उसका व्रत अवश्य ही सफल होता है। इस व्रत के प्रभाव से उस मनुष्य को मनवांछित सिद्धि प्राप्त होती है।
शिव पुराण श्रीकोटिरुद्र संहिता उनतालीसवां अध्याय

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