तारक का स्वर्ग त्याग 'कामदेव का शिव को मोहने के लिए प्रस्थान,Tarak's departure to heaven 'Kamadeva's departure to woo Shiva

तारक का स्वर्ग त्याग 'कामदेव का शिव को मोहने के लिए प्रस्थान

तारक का स्वर्ग त्याग

ब्रह्माजी बोले - नारद जी ! सभी देवता तारकासुर के डर के कारण मारे-मारे इधर-उधर भटक रहे थे। इंद्र ने सभी देवताओं को मेरे पास आने की सलाह दी। सभी मेरे पास आए। सभी देवताओं ने मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम किया और मेरी अनेकों प्रकार से स्तुति करने लगे । अपना दुख दर्द बताते हुए देवता कहने लगे - हे विधाता! हे ब्रह्माजी ! आपने ही तारकासुर को अभय का वरदान दिया है। तभी से तारक त्रिलोकों को जीतकर अभिमानी होता जा रहा है। उसने लोगों को डरा-धमकाकर उन्हें अपने अधीन कर लिया है। तारक ने स्वर्ग पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया है और हम सभी को स्वर्ग से निकाल दिया है। उसने इंद्र के सिंहासन पर भी अपना अधिकार कर लिया है। अब उसके आदेश से उसके असुर हमारे प्राणों के प्यासे बनकर हमें ही ढूंढ़ रहे हैं। तभी हम अपने प्राणों की रक्षा के लिए आपकी शरण में आए हैं। हे प्रभु! हमारे दुखों को दूर कीजिए। देवताओं के कष्टों को सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ।  मैंने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा ;- मैं इस संबंध में कुछ भी नहीं कर सकता, क्योंकि तारकासुर के घोर तप से प्रसन्न होकर ही मैंने उसे अतुल्य बलशाली होने का वर प्रदान किया था, परंतु उसने मदांध होकर सभी देवताओं और मनुष्यों को प्रताड़ित किया है और उनकी संपत्तियों पर जबरदस्ती अपना अधिकार कर लिया है, इसलिए अब आप सभी इस बात से निश्चिंत रहिए कि एक दिन तारकासुर का विनाश अवश्य ही होगा। उसकी मृत्यु जरूर होगी पर इस समय हम विवश हैं। इस समय तारक को मैं, विष्णुजी और शिवजी इन तीनों में से कोई भी नहीं मार सकता क्योंकि उसने मुझसे वर पाया है कि उसका वध शिवजी के वीर्य से उत्पन्न उनके पुत्र के द्वारा ही हो सकता है। इसलिए तुम सबको शिवजी के विवाह के पश्चात उनके पिता बनने तक प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी। प्रतीक्षा के अलावा अन्य कोई भी उपाय संभव नहीं है।यह सुनकर इंद्र सहित सभी देवता असमंजस में पड़ गए तथा पूछने लगे कि प्रभु महादेव जी की प्रिय पत्नी सती ने तो अपना शरीर योगाग्नि में नष्ट कर दिया है। अब वे कैसे और किससे विवाह करेंगे और यह कैसे संभव हो सकेगा? तब मैंने उन्हें बताया कि प्रजापति दक्ष की पुत्री और त्रिलोकीनाथ शिवजी की प्राणवल्लभा सती हिमालय पत्नी मैना के गर्भ से जन्म लेकर बड़ी हो गई हैं। उनका नाम पार्वती है। पार्वती ही भगवान शिव की पत्नी बनने का गौरव प्राप्त करेंगी। अतः अब तुम भगवान शिव के पास जाकर उन्हें विवाह के लिए राजी करने की कोशिश करो। शिव-पार्वती का पुत्र ही तुम्हें तारकासुर के भय से मुक्त करा सकता है। अतएव तुम भगवान शिव से प्रार्थना करो कि वे पार्वती के साथ विवाह करने के लिए राजी हो जाएं। इस बात को अच्छे से जान लो कि शिवपुत्र ही तुम्हारा उद्धार कर सकता है। अब मैं तारकासुर को समझाता हूं कि वह व्यर्थ में देवताओं को तंग करना बंद कर दे और उन्हें उनका भाग वापिस दे दे और स्वयं भी शांति से जीवन यापन करे। यह कहकर मैंने इंद्र व अन्य देवताओं को वहां से विदा किया। तत्पश्चात मैं स्वयं तारकासुर को समझाने के लिए उसके पास गया। तारकासुर ने मुझे प्रणाम किया और मेरी स्तुति एवं वंदना करने लगा। मैंने तारकासुर से कहा ;- हे पुत्र तारक! मैंने तुम्हारी भक्तिभाव से की गई तपस्या से प्रसन्न होकर तुम्हें मनोवांछित वर प्रदान किए थे। वे वरदान मैंने खुशी से तुम्हारी बेहतरी के लिए दिए थे परंतु तुम उन वरदानों का गलत उपयोग कर रहे हो। वर प्राप्त करने के उपरांत तुम अपनी सीमाओं को भूल गए हो। अनावश्यक अभिमान के नशे में चूर होकर तुम्हें यह भी याद नहीं रहा कि देवता सर्वथा पूजनीय और वंदनीय होते हैं। तुमने उन्हें भी कष्ट पहुंचाया है। साथ ही उन्हें स्वर्ग से निकालकर बेघर कर दिया है। तुम्हारे सशस्त्र सैनिक अभी भी देवताओं को मारने के लिए ढूंढ़ रहे हैं। तारकासुर, स्वर्ग पर सिर्फ देवताओं का ही अधिकार है। वहां से उन्हें निकालने की तुम्हारी कैसे हिम्मत हुई? स्वर्ग का राज्य छोड़कर वापिस पृथ्वी पर लौट जाओ और वहीं पर शासन करो। यह मेरी आज्ञा है।तारकासुर को यह आदेश देकर मैं वहां से लौट आया। तत्पश्चात तारकासुर ने मेरी का सम्मान करते हुए स्वर्ग का राज्य छोड़ दिया। वह पृथ्वी पर आकर शोणित नामक नगर पर शासन करने लगा। मेरी आज्ञा पाकर देवताओं सहित देवेंद्र स्वर्गलोक को चले गए और पूर्व की भांति पुनः स्वर्ग का शासन करने लगे।
 श्रीरुद्र संहिता तृतीय खण्ड सोलहवाँ अध्याय 

"कामदेव का शिव को मोहने के लिए प्रस्थान"

ब्रह्माजी बोले ;- नारद! स्वर्ग में सब देवता मिलकर सलाह करने लगे कि किस प्रकार से भगवान रुद्र काम से सम्मोहित हो सकते हैं? शिवजी किस प्रकार पार्वती जी का पाणिग्रहण करेंगे? यह सब सोचकर देवराज इंद्र ने कामदेव को याद किया। कामदेव तुरंत ही वहां पहुंच गए। तब इंद्र ने कामदेव से कहा- हे मित्र ! मुझ पर बहुत बड़ा दुख आ गया है। उस दुख का निवारण सिर्फ तुम्हीं कर सकते हो। हे काम। जिस प्रकार वीर की परीक्षा रणभूमि में, स्त्रियों के कुल की परीक्षा पति के असमर्थ हो जाने पर होती है, उसी प्रकार सच्चे मित्र की परीक्षा विपत्ति काल में ही होती है। इस समय मैं भी बहुत बड़ी मुसीबत में फंसा हुआ हूं और इस विपत्ति से आप ही मुझे बचा सकते हैं। यह कार्य देव हित के लिए है। इसमें कोई संशय नहीं है।देवराज इंद्र की बातें सुनकर कामदेव मुस्कुराए और बोले ;- हे देवराज! इस संसार में कौन मित्र है और कौन शत्रु, यह तो वाकई देखने की वस्तु है । इसे कहकर कोई लाभ नहीं है। देवराज, मैं आपका मित्र हूं और आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश अवश्य ही करूंगा। इंद्रदेव, जिसने आपके पद और राज्य को छीनकर आपको परेशान किया है मैं उसे दण्ड देने के लिए आपकी हर संभव मदद अवश्य करूंगा। अतः जो कार्य मेरे योग्य है, मुझे अवश्य बताइए। कामदेव के इस कथन को सुनकर इंद्रदेव बड़े प्रसन्न हुए और उनसे बोले ;- हे तात! मैं जो कार्य करना चाहता हूं उसे सिर्फ आप ही पूरा कर सकते हैं। आपके अतिरिक्त कोई भी उस कार्य को करने के विषय में सोच भी नहीं सकता। तारक नाम का एक प्रसिद्ध दैत्य है। तारक ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या करके वरदान प्राप्त किया है। तारक अजेय हो गया है। अब वह पूर्णतः निश्चिंत होकर पूरे संसार को कष्ट दे रहा है। वह धर्म का नाश करने को आतुर है। उसने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को दुखी कर रखा है। हम देवताओं ने उससे युद्ध किया परंतु उस पर अस्त्र-शस्त्रों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यही नहीं, स्वयं श्रीहरि का सुदर्शन चक्र भी तारक का कुछ नहीं बिगाड़ सका। मित्र, भगवान शिव के वीर्य से उत्पन्न हुआ बालक ही तारकासुर का वध कर सकता है। अतः तुम्हें भगवान शिव के हृदय में आसक्ति पैदा करनी है।भगवान शंकर इस समय हिमालय पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं और देवी पार्वती अपनी सखियों के साथ मिलकर महादेव जी की सेवा कर रही हैं। ऐसा करने के पीछे देवी पार्वती का उद्देश्य प्रभु शिव को पति रूप में प्राप्त करना है परंतु भगवान शिव तो परम योगी हैं। उनका मन सदैव ही उनके वश में है। हे कामदेव! आप कुछ ऐसा उपाय करें कि भगवान शंकर के हृदय में पार्वती का निवास हो जाए और वे उन्हें अपनी प्राणवल्लभा बना उनका पाणिग्रहण कर लें। आप कुछ ऐसा कार्य करें जिससे देवताओं के सभी कष्ट दूर हो जाएं और हम सभी को तारकासुर नामक दैत्य से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए। यदि कामदेव आप ऐसा करने में सफल हो जाएंगे तो हम सभी आपके सदैव आभारी रहेंगे। 
ब्रह्माजी बोले ;- नारद! देवराज इंद्र के कथन को सुनकर कामदेव का मुख प्रसन्नता से खिल गया। तब कामदेव देवराज से कहने लगे कि मैं इस कार्य को अवश्य करूंगा। इंद्रदेव को कार्य करने का आश्वासन देकर कामदेव अपनी पत्नी रति और वसंत को अपने साथ लेकर हिमालय पर्वत पर चल दिए, जहां शिवजी तपस्या कर रहे थे।
श्रीरुद्र संहिता तृतीय खण्ड सत्रहवाँ अध्याय

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