Navratri : नवरात्रि के सप्तमं दिन मां कालरात्रि के स्तोत्र चालीसा मंत्र एवं आरती सहित,Navratri Ke Seventh Din Maa Kaalaraatri Ke Stotr Chalisa Mantr Evan Aarti Sahit

Navratri : नवरात्रि के सप्तमं दिन मां कालरात्रि के स्तोत्र चालीसा मंत्र एवं आरती सहित

नवरात्रि के सप्तमं दिन मां कालरात्रि

शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के अवतार मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. मां कालरात्रि को अंधकार और बुराई का नाश करने वाली देवी माना जाता है. कहा जाता है कि इस रूप में मां ने शुंभ और निशुंभ राक्षसों का वध किया था

Navratri Ke Seventh Din Maa Kaalaraatri Ke Stotr Chalisa Mantr Evan Aarti Sahit

नवरात्रि के सातवां दिन मां कालरात्रि स्तोत्र

हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
  • ध्यान-स्तोत्र
ध्यायेत् कालीं महामायां त्रिनेत्रां बहुरूपिणीम्।
चतुर्भुजां ललज्जिह्वां पूर्णचंद्र निभाननाम्॥ 
नीलोत्पलदलप्रख्यां शत्रुसंघविदारिणीम्॥ 
नरमुंड तथा खड्गं कमलं च वरं तथा ।
विभ्राणां रक्तवसनां दंष्ट्रया घोररूपिणीम्॥
अटाट्टहास निरतां सर्वदा च दिगम्बराम्।
शवासनस्थितां देवीं मुंडमाला विभूषिताम् ॥

मूल कवच-पाठ- इति ध्यात्वामहादेवीं पुनस्तु कवचं पठेत्। 

ॐ कालिका घोररूपाढ्या सर्वकामप्रदा शुभा॥
सर्वदेव-स्तुतां देवी शत्रुनाशं करोतु मे। 
ह्रीं ह्रीं स्वरूपिणीं चैव ह्रीं ह्रीं हीं हूं रूपिणीं तथा॥ 
ह्रीं ह्रीं सें सें स्वरूपा-सा सदा शत्रून्विदारयेत्। 
श्रीं ह्रीं ऐं रूपिणी देवी भवबंधविमोचिनी ॥ 
हसकल ह्रीं ह्रीं रिपून् सा हरतु देवी सर्वदा। 
यथा शंभो हतो दैत्यों निशुंभश्च महासुरः॥ 
'वैरिनाशाय वन्दे तां कालिकां शंकरप्रियाम्। 
ब्राह्मी शैवी वैष्णवी च वाराही नारसिंहका ॥ 
कौमार्यैन्द्री च चामुंडा खादयन्तु मम द्विषः॥ 
सुरेश्वरी घोररूपा चंड-मुंड विनाशिनी ॥

श्री काली चालीसा

  • ॥ दोहे ॥
जय जय सीता राम के, मध्य वासिनी अब ।
देहु दरश जगदंब अब, करो न मातु विलंब॥

प्रातःकाल उठ  जो पढ़े, दुपहरिया या शाम।
 दुख दरिद्रता दूर हों, सिद्ध होंय सब काम॥

  • चालीसा

जय काली कंकाल मालिनी, जय मंगला महा कपालिनी। 
रक्तबीज वध कारिणी माता, सदा भक्तन को सुखदाता।
शिरो मालिका भूषित अंगे, जय काली मधु मध्य मतंगे।
हर हृदयारविंद सुबिलासिनी, जय जगदंब सकल दुखनाशिनी।
ह्रीं काली श्री महाकाली, क्रीं कल्याणी दक्षिण काली। 
जय कलावती जय विद्यावती, जय तारा सुंदरी जय महामती।
देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट, होहु भक्त के आगे परगट। 
जय ओंकारे जय हृ कारे, महाशक्ति जय अपरंपारे ।
कमला कलियुग दर्प विनाशिनी, सदा भक्तजन के भयनाशिनी। 
अब जगदंब न देर लगावहू, दुख दरिद्रता मोर हटावहु। 
जयति कराल काल की माता, कालानल समान द्युतिगाता।
जय शंकरी सुरेशि सनातनि, कोटि सिद्धि कविमातु पुरातन।
कर्पिदनी कलिकल्मष मोचन, जय विकसित नवनलिन विलोचनि ।
आनंदा आनंद निधाना, देहे मातु मोहिं निर्मल ज्ञाना।
करुणामृत सागर कृपामयी, होहु दुष्टजन पर अब निर्दयी।
सकल जीव तोहिं समान प्यारा, सकल विश्व तोरे सहारा।
प्रलयकाल में नर्तनकारिणी, जगजननि सब जग की पालिनी ।
महोदरी माहेश्वरी माया, हिमगिरि सुता विश्व की छाया।
जय स्वच्छंद मराद धुनिमाहीं, गर्जत तूहिं और कोउ नाहीं।
स्फुरति मणि गणकार प्रताने, तारागण तू व्योम विताने ।
श्रीराधा संतन हितकारी, अग्निनसमान अतिदुष्ट विदारणि ।
धूम्रविलोचन प्रण विमोचनि, शुंभनिशुंभ मद निबर लोचनि।
सहस्त्र भुजी सरोरुह मालिनी, चामुण्डे मरघट की वासिनी ।
खप्पर मध्य सुशोणित साजी, मारेउ माँ महिषासुर पाजी।
अंब अंबिका चण्ड चंडिका, सब एके तुम आदिकालिका ।
अजा एक रूपा बहु रूपा, अकथ चरित्र और शक्ति अनूपा।
कलकत्ते के दक्षिण द्वारे मूरति तौर महेश अगारे।
कादंबरी पानरत श्यामा, जय मातंगि काम के धामा।
कमलासनवासनि कमलायनि, जयश्याम जय-जय श्यामायनि।
रासरते नवरसे प्रकृतिहे, जयति भक्त उर कुमति सुमतिहे।
कोटि ब्रह्म-शिव-विष्णु कर्मदा, जयति अहिंसा धर्म जन्मदा।
जल-थल-नभमंडल में व्यापिनी, सौदामिनी मध्य अलापिनी।
झनना तख्छुमरनि रिननादिन, जय सरस्वती वीणावादनि ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै, कलित गले कोमल रुण्डायै ।
जय ब्रह्माण्ड सिद्धकवि माता, कामाख्या औ काली माता ।
हिंगलाज विंध्याचल वासिनी, अट्टहासिनि अघ नाशिनि ।
कितनी स्तुति करो अखण्डे, तू ब्रह्माण्ड शक्ति जितखण्डे
यह चालीसा जो जब गावे, मातु भक्त वांछित फल पावे। 
केला और फल फूल चढ़ावे, मांस खून कछु नहीं छुवावे। 
सबकी तुम समान महतारी, काहे कोई बकरा को मारी।

मां कालरात्रि के कुछ मंत्र

  • ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायाये स्वाहा
  • ॐ ऐं सर्वप्रशमनं त्रैलोक्यस्य अखिलेश्वरी
  • ॐ कालरात्र्यै नम:
  • ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम
  • कालरात्रि के जपनीय मंत्र
पञ्चाक्षर कालीमंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं हूं फट् भद्रकाली मंत्र-ॐ ह्रौं कालि महाकाली किलि फट् स्वाहा। 
  • मंत्र-प्रकरण
माता काली समस्त प्रकार को रोगों,  उपद्रवों तथा भूतादि द्वारा किए गए उपद्रवों को दूर करने में समर्थ हैं। वे समस्त विश्व का कल्याण करती हैं। नीचे सप्तमी तिथि को विशेष फलदायी मंत्रों को दिया जा रहा है-
सामूहिक कल्याण के लिए- जगज्जननी माँ काली समस्त चराचर प्राणियों का कल्याण करती हैं। इस मंत्र द्वारा चराचर जीवों के कल्याण की कामना करने से भगवती महाकाली उसका कल्याण करती हैं। नीचे दिए गए मंत्र का चैत्र अथवा आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से आने वाले कृष्ण पक्ष की सप्तमी तक़ प्रतिदिन 21 माला का जप किया जाता है-
  • देव्या यया तदमिदं जगदात्मशक्त्या,निश्शेष देवगण शक्तिसमूह मूर्त्या । 
  • तामम्बिकामाखिल-देव महर्षि पूज्यां,भक्त्या नताः स्भ विदधातु शुभानि सा नः ॥ 
रोगनाशक मंत्र-

रोगी के रोग के प्रभाव के अनुसार इस मंत्र का संकल्प लेकर इस मंत्र का जप किया जाता है। इस मंत्र का कम से कम 11 माला प्रतिदिन जप करना चाहिए। संकल्पित संख्या का दशांश गिलोय या काली मिर्च सामग्री में डालकर हवन को दशांश तर्पण तथा मार्जन करना चाहिए।
  • रोगानशेषान पहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । 
  • त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥
  • ॥ दोहा ॥
सब जीवों के जीव में, व्यापक तू ही अंब।
 कहत भक्त सब जगत में, तोरे सुत जगदंब॥

भगवती माँ काली की आरती

ओ अंबे, तू है जगदंबे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली। 
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ॥ 
तेरे जगत के भक्त जनों पर पीर पड़ी है भारी, 
दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी, 
सौ-सौ सिंहों-सी तू बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली, 
दुष्टों को तू ही ललकारंती, औ मैया...।
माँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता, 
पूत कपूत सुने हैं पर न माता सुनी कुमाता, 
सब पर करुणा दर्शाने वाली, 
सबको हरशाने वाली, नैया भंवर से उबारती, ओ मैया...।
नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना,
हम तो मांगें माँ तेरे मन में एक छोटा-सा कोना, 
सब पर अमृत बरसाने वाली, विपदा मिटाने वाली, 
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया...।
आदि शक्ति भगवती भवानी, हो जग की हितकारी, 
जिसने याद किया आई माँ, करके सिंह सवारी, 
मैया करती कृपा किरपाली, रखती जन की रखवाली, 
दुष्टों को पल में माता मारती, ओ मैया...।
भक्त तुम्हारे निशदिन मैया, तेरे ही गुण गावैं, 
मनवांछित वर दे दे इनको, तुझसे ही ध्यान लगावैं, 
मैया तू ही वर देने वाली, जाय न कोई खाली, 
दर पै तुम्हारे माता मांगती, ओ मैया...।
चरण-शरण में खड़े तुम्हारी, ले पूजा की थाली, 
वरद हस्त सर पर रख दो, माँ संकट हरने वाली, 
मैया भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओं वाली, 
भक्तों के कारज तू ही सारती, ओ मैया...।

पौराणिक कथा

शिव पुराण के अनुसार आद्य देवी माँ दुर्गा का काली के रूप में अवतार, मधु और कैटभ दो असुरों का अंत करने के लिये हुआ था। कालिका पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार हिमालय पर अवस्थित मतंग मुनि के आश्रम में जाकर देवताओं ने महामाया की स्तुति की। स्तुति से प्रसन्न होकर मतंग-वनिता के रूप में भगवती ने देवताओं को दर्शन दिया और पूछा कि तुम लोग किसकी स्तुति कर रहे हो? उसी समय देवी के शरीर से काले पहाड़ के समान वर्ण वाली एक और दिव्या नारी का प्राकट्य हुआ। उस महातेजस्विनी ने स्वयं ही देवताओं की ओर से उत्तर दिया कि ये लोग मेरी स्तुति कर रहे हैं। वह दिव्या नारी काजल के समान कृष्णा थीं, इसलिये उनका नाम काली पड़ा। इनके बिना शिव भी संहार करने में असमर्थ हैं। काली का भी विनाश कर देने वाली होने के कारण 'कालविनाशिनी' कही गई हैं। काली जी ओज, तेज, पराक्रम और विजय-वैभव की अधिष्ठात्री देवी हैं। ये रूपाकृति में महा भयानक हैं, किन्तु भक्तों का संकट दूर करने में सबसे आगे रहती हैं। संकटग्रस्त मनुष्य इनकी उपासना करके निर्भर और निरापद हो जाते हैं। यह योद्धाओं, वीर पुरुषों और संघर्षप्रिय जनों की उपास्य देवी हैं। युद्ध, आतंक, बीमारी, दुर्घटना आपदा, शत्रुभय जैसे अवसरों पर इनकी आराधना करके विजय प्राप्त की जाती है।

कालरात्रि (काली) के वाहन का रहस्य

सप्तम शक्ति ऐन्द्री है। हस्तेन्द्रिय के अधिपति का इन्द्र है इस हेतु इन्द्रियाधिष्ठित चैतन्य वर्ग के अधिपति को इन्द्र कह सकते हैं। इनका नाम गजराज ऐरावत है। ईर् धातु का अर्थ गति या वेग है अतः 'रावान्' शब्द का अर्थ गति विशिष्ट होता है। रावान् सम्बंधी वस्तु को ऐरावत कहते हैं। यह ऐरावत ऐन्द्री का वाहन है। इन्द्र की शक्ति तडित् शक्ति है इसलिए तड़ित शक्ति ही ऐन्द्री है।

टिप्पणियाँ