Chetichand : चेटीचंड पर्व कब और क्यों मनाया जाता है,Chetichand Parv Kab Aur Kyon Manaaya Jaata Hai

(Chetichand)चेटीचंड पर्व कब और क्यों मनाया जाता है

सिंधी समाज के लिए चेटीचंड पर्व का विशेष महत्व है. यह पर्व हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. साल 2024 में यह पर्व 9 अप्रैल को मनाया गया. इस दिन सिंधी समाज के लोग भगवान झूलेलाल की शोभा यात्रा निकालते हैं और उनसे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं चेटीचंड पर्व भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन से सिंधी लोगों का नववर्ष शुरू होता है. भगवान झूलेलाल को लाल साईं, उडेरो लाल, वरुण देव और ज़िंदा पीर के नाम से भी जाना जाता है

Chetichand Parv Kab Aur Kyon Manaaya Jaata Hai

चेटीचंड का पर्व कैसे मनाया जाता है ?

भगवान झूलेलाल को दरिया लाल, लाल साई,ख्वाजा खिज्र जिंदह पीर, उदेरों लाल आदि नाम से भी जाना जाता है। भगवान झूलेलाल की जयंती देश-विदेश मे पूरे उत्साह एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन कई जगहो पर मेले भी लगते है।  भगवान झूलेलाल के इस पावन पर्व पर जल की आराधना की जाती है। कहा जाता है की जो लोग चालीस दिन तक पूरे विधि-विधान से भगवान झूलेलाल की पुजा- अर्चना करते है, उनका कल्याण होता है, और सभी दुख दूर होते है।  चेटीचंड के दिन सभी लोग अपने से बड़े बुजुर्गो से आशीर्वाद लेते है और टिकण (मंदिर)के दर्शन करते है। इस दिन भक्तो द्वारा भगवान झुलेलाल की विशेष शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। पूरे दिन पूजा-अर्चना के बाद मे सभी लोग यात्रा मे शामिल होते है। सभी सिंधी परिवार अपने अपने घरो मे पाँच दीपक जलाते है, और अपने इस पर्व को खुशहाल बनाते है।

चेटीचंड के इस पर्व के पीछे एक कथा बहुत प्रचलित है।

चेटीचंड के विषय मे कई किवदंतिया प्रचलित है। सिंध प्रदेश मे ठट्ठा नामक एक नगर था। उस नगर मे मीरखशाह नामका राजा राज्य करता था। जोकि वह पापी और अत्याचारी था। वो हिन्दुओ धर्म के लोगो पर अत्याचार करता था।  उस पापी राजा ने सभी लोगो को धर्म परिवर्तन के लिए सात दिन का समय दिया। सभी लोग परेशान हो गए। कुछ लोग भूखे-प्यासे सिंधु नदी के किनारे जा कर वरुण देवता की उपासना करने लगे।  भगवान सभी की भक्ति से प्रसन्न हो कर एक दिव्य पुरुष के रूप मे मछली पर अवतरित होगाए । सभी ने अपनी व्यथा सुनाई। भगवान वरुण देव ने सभी भक्तो को सहायता देने का वादा किया, और कहा की “में खुद अपने परम भक्त रत्नराय के घर माता देवकी के गर्भ से जन्म लूँगा”। तुम सब बिना डरे जाओ। सभी भक्तगण खुश होकर घर वापस गए। विक्रम सवंत 1007, सन 951ई मे सिंध समुदाय के नसरपुर नगर मे रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से प्रभु खुद एक तेजस्वी बालक उदय चंद्र के रूप मे जन्म लिया। राजा मिरखशाह को यह खबर मिली। उस अत्याचारी राजा ने उस बाल स्वरूप भगवान को मारने के लिए अपने सैनिकों को भेजा है। जब सैनिक मारने गए तो भगवान का तेजस्वी स्वरूप देखकर चकित रह गए, और माफी मांग ने लगे। और अपने प्रभाव से उस दुष्ट राजा को भी अपने शरण मे आने पर मजबूर कर दिया। और धर्म की रक्षा की। तभी से वह सभी के लिया भगवान झूलेलाल बन गए। और सभी लोग मिलजुल कर रहने लगे।

चेटीचंड से जुड़ी कुछ और बातें

  • चेटीचंड को अवतारी युगपुरुष भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
  • भगवान झूलेलाल को लाल साईं, उडेरो लाल, वरुण देव, ज़िंदा पीर, घोड़ेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से भी जाना जाता है.
  • सिंधियों का मानना है कि भगवान झूलेलाल का जन्म 1007 में हुआ था.
  • भगवान झूलेलाल को जल और ज्योति का अवतार माना गया है.
  • चेटीचंड के दिन, सिंधी समुदाय के लोग भगवान झूलेलाल की शोभा यात्रा निकालते हैं और उनसे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.
  • चेटीचंड पर कई जगहों पर भव्य मेले भरते हैं और शोभायात्रा निकाली जाती है.
  • चेटीचंड पर पारम्परिक नृत्य और लोक कलाओं के ज़रिए यह त्योहार मनाया जाता है

टिप्पणियाँ