हनुमान साधना और प्रयोग विधि,Hanumat Sadhana And Prayog Vidhi

हनुमान साधना और प्रयोग विधि,Hanumat Sadhana And Prayog Vidhi

हनुमत साधना 

भगवान परमात्मा एक ही है परन्तु उसके अनेक रूप हैं और जिसको जो रुचे उसी ओर प्रयत्न करना चाहिए। इसलिए अब मैं आगे श्री हनुमान जी का एक अनुष्ठान लिख रहा हूं जिसको मैंने स्वयं भी तथा मेरे बताये अनुसार २-४ अन्य व्यक्तियों ने भी सफलतापूर्वक किया है। हनुमान जी की उपासना में एक बात तो ध्यान मे रखने की यह है कि हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं। उनसे स्त्री की मांग करने या विवाह की प्रार्थना करने से वे नाराज होते हैं। विवाहित स्त्रियो को भी उनकी पूजा नहीं करना चाहिए, करे तो पूर्ण संयम से रह कर करे। दूसरे उन्हें धन का लोभ नहीं है। माता सीता जी ने मणियो की माला उन्हें दी तो उन्होने उसे तोड़कर यह देखने का प्रयत्न किया कि इनमें श्री राम की छवि है या नहीं। उनके लिए स्वर्ण रन धूल के समान हैं।

Hanumat Sadhana And Prayog Vidhi

अतएव धनवान बनने की प्रार्थना भी उनसे नहीं करनी चाहिए। हाँ भक्ति ज्ञान वैराग्य विद्या बुद्धि माँगो ! तुम्हारा कोई शत्रु तुम्हें तंग कर रहा हो तो उससे रक्षा मांगो तो अवश्य देते हैं। गृहस्थ धर्म मे गुजारे लायक जीविका की मांग भी की जा सकती है। आपने 'हनुमान चालीसा' अवश्य देखी होगी। बहुत सरल हिन्दी अवधी भाषा मे है और ५-१० मिनट में एक पाठ हो जाता है। उसमें अन्त में यह चौपाइयां आती हैं- "यह शत बार पाठ कर जोई, छूटे बंध महा सुख हनुमान जी की उपासना की अनेको विधिया हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, कटमोचन हनुमानाष्टक, एक मुखी-पंचमुखी तथा एकादश मुखी, हनुमत स्तोत्र, हनुमान जी के सिद्ध मन्त्र और यत्र तथा सम्पूर्ण हनुमत सहस्रनाम स्तोत्र ( भाषा टीका सहित ) वर्ल्ड बुक कम्पनी, ३०१ - चावड़ी बाजार, दिल्ली- ६ की पुस्तक 'हनुमान उपासना' में दिए गए हैं।होई । जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा" इन चौपाइयो मे ही अनुष्ठान बता दिया गया है। अर्थात् इस हनुमान चालीसा का जो १०० बार पाठ करेगा उसके सभी बन्धन छूट जायेंगे और उसे महासुख होगा, कार्य सिद्धि होगी। इस बात की गवाही, साक्षी स्वयं गौरीश महादेव जी करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी की बात भी कुछ कम वजनी नहीं है। और फिर शंकर जी आपको आश्वासन दे रहे हैं कि इस अनुष्ठान के करने से आपको अवश्य सिद्धि प्राप्त होगी, फिर भी आपको विश्वास न हो तो क्या किया जा सकता है। इसमे शत की संख्या से १०८ की संख्या लेनी चाहिए। क्योकि मला १०८ मनको की होती है और पूरा अनुष्ठान १०८ आवृत्तियो का है । यह १०८ आवृत्तिया एक ही बैठक मे एक साथ करनी होती हैं। इसलिए यदि हनुमान चालीसा आपको अच्छी तरह याद नहीं है तो पहले उते १००-५० बार पड़ कर याद कर लो। ताकि सरलता से कम से कम समय मे १०८ 'आवृत्तिया कर सको। फिर किसी मंगलवार को इस अनुष्ठान को कर सकते हो । किसी दूसरे के लिए करो तो अनुष्ठान से पहले उससे संकल्प बुलवा कर प्रारम्भ करो। यानी उसके कार्य का पुरोहित्व ले लो, पावर आफ एटोरनी प्राप्त कर लो। संकल्प मंत्र पहले दिया जा चुका है उसमे उस व्यक्ति का नाम, गोत्र, कार्य का विवरण, अपने नाम, गोत्र के साथ मिलाकर संकल्प करा लो। हिन्दी में कहना है तो इस प्रकार कह दो 'मैं अमुक व्यक्ति के लिए अमुक कार्य की सिद्धि के लिए इस अनुष्ठान के करने का सकल्प करता हूं " अन्य बातें सब वही रहती है, स्थान समय आदि के बारे मे ! सबसे पहले तो रामचद्र जी की पंचायतन का ऐसा चित्र लो जिसमे श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, माता सीता पाचों के चित्र के साथ ही हनुमान जी का चित्र भी हो।
 साथ ही हनुमान जी का एक बड़ा सा चित्र भी लेकर पूजा में रखो । पहले विधिपूर्वक पूजा करो, उसी विधि से जो बताई गई है। हनुमान जी को कन्दमूल फल तथा मिष्ठानो मे लड्डू मोती चूर का, बेसन के पदार्थ रोट पूये आदि प्रिय हैं। फूलो मे जगली पीले, लाल, सुनहरी फूल प्रिय हैं। सिदूर का टीका और लाल लंगोट प्रिय है। आपके वस्त्र भी इन्हीं रंगो के होने चाहिए। ॐ व बजरंगाय नमः, ॐ मं महावीराय नमः ओ३म् हं हनुमताये नम. कहकर तीन बार आचमन करो और शरीर शुद्धि करो और ओश्म रामरामाय नमः कहकर हाथ धो लो । ओ३म अपवित्रो पवित्रोवा मंत्र कहकर अपने मस्तक पर जल डालो आसपास छिड़को। पांच बार फिर आसन शुद्धि पाच बार चक पूरक कुम्भक करके श्री राम मंत्र ॐ रामरामाय नमः का प्राणायाम से जाप करो। इसके बाद हनुमान जी के चित्र के सामने ॐ रामरामाय नमः मत्र को भोजपत्र पर लिखकर रखो और उनको गुरु मानकर मंत्र दीक्षा लो । फिर सस्कृत या हिन्दी मे संकल्प लो कि आप अमुक कार्य के लिए हनुमान के १०८ पाठ करने का अमुक समय अमुक स्थान पर संकल्प लेते है, 'अमुक कार्य सिद्धार्थ हनुमान चालीसा अनुष्ठान कर्म करिष्ये' और के अक्षत आदि अन्य पात्र में छोड़ दो। संकल्प मंत्र आपको बताया जा चुका है। उसी मे उपयुक्त संशोधन करके पढ़ी। शिखा बन्धन, यज्ञोपवीत धारण सिंदूर का तिलक टीका लगाओ और हनुमान जी की तथा रामपंचायतन के सभी देवताओं की श्रीराम लक्ष्मण माता सीतां भरत शत्रुघ्न जी की | षोडषोपचार से पूजा करो। शुद्ध जल से स्नान करके शुद्धं वस्त्र पहन कर, पद्मासन या स्वास्तिकासन पर बैठो। आचमन और प्राणायाम के बाद गुरु का या गुरु रूप में बजरगबली का स्मरण करो । प्रणाम करो | तत्वमुद्रा बनाकर ॐ गुं गुरुभ्यो नमः से मस्तक काॐ गणपतये नमः से दाये कधे का, ओश्म बं बजरंगाय नमः से बाई का, ओम् क्षेत्रपालाय नमः से दांई जांघ का, ॐ राम रामाय नमः अस्त्राय फट् कहकर दोनो कोहनियों का स्पर्श करो और ताली बजाओ ।
ओ३म् रामरामाय नमः मंत्र से चुढ़की बजाते हुए दशों दिशाओं का दिग्बन्धन करो। उसके बाद बांये पैर की ऐड़ी से तीन बार पृथ्वी पर हल्के से आघात करो। दक्षिण भाग मे दीपक की स्थापना करो। हनुमान जी का चित्र इस प्रकार रखो कि उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर हो। निम्नलिखित मंत्र से हनुमान जी का ध्यान आवाहन करो। अतुलित बत धामं हेमशैलाभदेहं दनुज बन कृशानं ज्ञान नामग्र ग । सफल गुण निघानं बानराणामधीशं रघुपति प्रिय भक्त बाजात नमामि । फिर बाद मे श्रीरामचन्द्रजी का आवाहन मंत्र पढ़ो और उनका ध्यान करो। मित्र आ जाये । कोई अन्य आवश्यक कार्य का समाचार आ जाये। यह भी हो सकता है कि बीच में ही समाचार आ जाये कि जिस काम के लिए आप अनुष्ठान कर रहे हैं यह हो गया है। एक बार मेरे साथ यही हुआ था । कि अनुष्ठान पूरा भी नहीं हुआ था कि कार्य सिद्ध होने का समाचार प्राप्त हो गया। परन्तु मैंने अनुष्ठान को पूरा करके ही आसन छोड़ा था। एक बार मेरे बहुत निकट के सम्बन्धी बाहर गांव से आ गये और मुझसे बिना मिले ही चले गये, परन्तु मैंने कह रक्खा था कि मुझे न छेड़ा जाय चाहे कोई भी परिस्थिति हो।
इसलिए रात का समय ९-१० बजे से आरम्भ करने का ठीक रहता है। हनुमान चालीसा शुद्ध पाठ वाला बड़े अक्षरो के छापे वाला लावें । गिनती का प्रबन्ध कर लें, आवश्यकता के सभी सामान अपने पास रख लें, किसी प्रकार की घण्टी आदि से ऐसा भी प्रबन्ध कर लें कि बुलाने पर यानी घण्टी बजाने पर कोई आपके पास आ जाए। उसको इशारे से या लिखकर अरनी बात कहें परन्तु बोलें नहीं। गला सूखने लगे तो पास में पा गिलास रख लो और थोड़ा-थोड़ा पाठ की समाप्ति पर अर्थात् एक पाठ हो ए और दूसरा शुरू करने से पहले ले सकते हो । १०८ आवृत्तियां हो जायें तब हनुमान जी की आरती (हनुमान तता वाली आरती) उतारो। हो सके तो संकटमोचन हनुमान अष्टक तथा हनुमान बाहुक का एक-एक पाठ भी कर दो । यदि शक्ति सामर्थ्य हो तो नहीं तो भारती उतार दो और अपराध क्षमा कराओ। कहो कि दास से कोई भूल चूक रह गई हो तो स्वामी क्षमा करें। किसी को हानि पहुँचाने का अभिप्राय नहीं है और अपने किसी लाभ व कल्याण कामना से ही किया है तो भूल चूक हो जाने से किसी प्रकार के भय अनिष्ट की कोई आशंका नहीं होती। 

हनुमत साधना साधना का अन्य अनुभवसिद्ध प्रयोग  

हनुमान जी को सिद्ध करने की एक अनुभव पूर्ण विधि श्री श्याम सुन्दर - जी कसेरा, एडवोकेट ने कल्याण के एक अंक में इस प्रकार दी हैं । सिद्ध अचूक प्रयोग लेख रूप में लिपिबद्ध किया जा रहा है, आगा है सहृदय हमारे कुल देवता श्रीहनुमान जी की उपासना से सम्बन्धित एक अनुभव शास्तिक पाठकगण श्रद्धा, विश्वासपूर्वक इससे अवश्य लाभ उठायेंगे। प्रस्तुत प्रयोग मेरी पूचीमा स्व० दादी श्री जी को लगभग २५ वर्ष पूर्व मेरी जन्मभूमि रामगढ़ (शेखावाटी, राजस्थान में एक सिद्ध महात्मा जी से आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त हुआ था, जिसका प्रत्यक्ष चमत्कार अचूक रामवाण की तरह में आज तक देखता आ रहा हूँ। कई बार मेरे परिवार के तथा कई अन्य व्यक्तियों ने इससे लाभ उठाया है। किसी भी परोपकार - भावना या उचित एवं योग्य स्वीकार्य की सिद्धि के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता हैं। किसी भी मास में शुक्लपक्ष के मंगलवार को इसका श्रीगणेश कर सकते हैं, परंतु उस दिन रिक्ता (४-९-१४). तिथि एवं प्रयोग कर्ता की राशि से ४ थे, ८ वें या १२वें चन्द्रमा का होना. निषिद्ध है। जननाशीच या मरणाशीच में भी इसका प्रारम्भ नहीं करना चाहिये । यदि प्रयोग काल मे ऐसा कोई संयोग आ ही जाय तो किसी कर्मनिष्ठ कुलीन ब्राह्मण के द्वारा इसे पूर्ण कराना चाहिये, बीच में छोड़ना उचित नहीं है। के साथ ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। एक ही समय भोजन किया जाय तो अति उत्तम है, पर यह अनिवार्य नहीं है, परंतु दो बार से अधिक अन्न ग्रहण करना वर्जित है। प्रयोग कात के बीच में ही यदि देव कृपा वंश संकल्पित कार्य की सिद्धि हो जाय तो भी प्रयोग को पूरा करना ही चाहिये; अन्यथा बने हुए कार्य के बिगड़ने की सम्भावना रहती है।

प्रयोग विधि :- 

प्रयोग प्रारम्भ के लिये शुक्लपक्ष के जिस मंगलवार का निश्चय किया जाम, उसके पहले दिन सोमवार को सवा पाव अच्छा गुड़, एक छटाँक भूने हुए अच्छे चने और सवा पाव गाय का शुद्ध घी संग्रह कर ले। गुड़ के छोटे-छोटे इक्कीस टुकड़े कर लें, शेष वैसे ही रहने दे। स्वच्छ कई की २२ स्कूल बत्तियाँ बनाकर घी में भिगो दें। तीनो वस्तुएँ अर्थात् गुड़, चने और बत्ती सहित घी अलग-अलग तीन स्वच्छ एवं शुद्ध पात्रो में रखकर घर के किसी एक स्वच्छ ऊँचे स्थान या अलमारी में ढक्कर रख दे, जहाँ बच्चों के हाथ न पहुँच सकें। उनके पास ही एक दियासलाई और एक अन्य छोटा पात्र छन्नी आदि, जिसमें प्रतिदिन उपर्युक्त वस्तुएँ ले जायी जा सकें, भी रल दे, जिससे प्रतिदिन इधर-उधर पात्र की खोज न करनी पड़े। बस, सामग्री तैयार है। शेष रहा केवल एक स्वच्छ पवित्र श्री हनुमानजी का मन्दिर जो गाँव या शहर के कोलाहल से दूर जितने भी निर्जन एवं एकान्त स्थान मे हो, उतना ही अच्छा है; अन्यथा अपने निवास स्थान से कम-से-कम सवा डेढ़ फर्लांग दूर होना तो अनिवार्य ही है ।  जिस मंगलवार से प्रयोग आरम्भ करना हो, उस दिन हो सके तो ब्राह्म मुहूर्त में अन्यथा सूर्योदय के पहले अवश्य उठ जाना चाहिये। फिर शोचादि से निवृत्त हो स्नान कर कपड़े पहन ललाट पर रोली- चन्दन आदि लगाकर सबसे पहले वहाँ जाय जहाँ तीनो पात्रो मे गुड़, चने और घी-बत्ती रखी है। वहाँ पहले से ही रखे हुए छन्नी आदि खाली पात्र में एक गुड़ की डली, ११ चने, एक घृत- बत्ती और दियासलाई लेकर पवित्र घुली हुई मा आदि किसी स्वच्छ पवित्र वस्त्र से उसे ढक ले। वहाँ से लौटते समय मन्दिर श्रीहनुमानजी की मूर्ति के सम्मुख पहुँचने तक न तो पीछे न दायें-बाये ही घूमकर देखें ओर न छन्नी उठाने के बाद घर में, रास्ते में या मन्दिर में किसी से एक शब्द भी बोले, चाहे कोई कितने भी आवश्यक कार्य के लिये' आवाज क्यों न देता हो। इस प्रकार पूर्ण रूप से एकदम मौन रहे । बिना जूता-चप्पल पहने श्री हनुमान जी के सम्मुख पहुँचकर बिना इधर-उधर देखे मीन धारण किये हुए ही पहले घी-बत्ती जलाये, फिरं ११ चने और १ गुड़ की डली श्रीहनुमान जी के सामने रखकर साष्टांग प्रणाम कर हाथ जोड़ पूर्व संकल्पित अपनी मन कामना की सिद्धि के लिए मन-ही-मन श्रद्धा, विश्वास, भक्ति एवं प्रेमपूर्वक उनसे प्रार्थना करे ।
फिर यदि कोई अन्य प्रार्थना, स्तुति, श्रीहनुमानचालीसा आदि का पाठ करना चाहे तो मौन ही रहकर करे। घर की और जाने के लिये मूर्ति के सामने से हटने के बाद जबतक पने घर पहुँचकर वह लाली पात्र निश्चित स्थान पर न रख दे, तवत्तक छे या दायें-बायें घूमकर न तो देखे और न किसी से एक शब्द भी बोले, नी ही बना रहे। फिर छन्नी रखकर सात बार 'राम-राम' कहकर मौन ग करे। इसी क्रम से २१ दिनो तक लगातार एक-सा प्रयोग करता रहेग त्रि मे सोते समय श्रीहनुमान चालीसा का ११ पाठ करके अपनी मन कामना द्धि के लिये प्रार्थना करना अनिवार्य है । बाईसवे दिन मंगलवार को नित्यकर्म से निवृत्त हो सवा सेर आटे का क रोट बनाकर गोबर की अग्नि में सेंककर पका ले, यदि असुविधा हो तो व-पाव की पाँच रोटी बनाकर उनमें आवश्यकतानुसार गाय का शुद्ध घी और अच्छा गुड़ मिलाकर उनका चूरमा बना ले। २१ डलियों के बाद जो गुड़ बचा हो, उसे चूरमें मे मिला दें। फिर चूरमे को थाली में रखकर बचे ए सारे चने तथा शेष घी सहित २२वीं अन्तिम बत्ती लेकर प्रतिदिन की तरह ही मौनपूर्वक बिना पीछे या दायें-बाये देखे मन्दिर में जाय और बत्ती जलाकर श्रीहनुमानजी को चने एवं चूरमे का भोग लगाकर उसी प्रकार घर. को वापस आये और घर में प्रवेश करने के बाद ही मौन भंग करे। प्रयोगकर्त्ता उस दिन दोनो समय केवल उसी चूरमे का भोजन करे। शेष चूरमे को प्रसाद रूप में बाँट दे ।
ऐसा करने से श्रीहनुमान जी की कृपा से मनोरथ अवश्य सिद्ध होता है। किसी कारणवश प्रयोग मे भूल भी हो जाय तो निराश न हो, उसे फिर करे। श्रीहनुमान जी श्रद्धालु, विश्वासी, आस्तिक, सच्चे साधक की मनकामना अवश्य पूर्ण करते हैं, यह परीक्षित अनुभव सिद्ध अचूक प्रयोग है। 
(२) दूसरी अनुभवपूर्ण साधना इस प्रकार है कि प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र पहन कर शुद्ध पात्र मे कुएं या नदी का जल लेकर हनुमान जी को जल चढ़ाओ और उड़द का एक दाना हनुमान जी के सिर पर चढ़ा कर ग्यारह प्रदक्षिणा करो। अर्थात् मूर्ति के चारों ओर ११ बार परिक्रमा लगाओ । प्रदक्षिणा करने के पश्चात् मूर्ति के सामने दण्डवत् प्रणाम करके अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिये निवेदन करो। हनुमान जी पर जो उड़द का दाना पढ़ाया है उसे लाकर घर में अलग पात्र में शुद्ध स्थान . में रस दो। इस प्रकार प्रतिदिन एक-एक दाना उड़द का बढ़ाते जाओ। अर्थात् दूसरे दिन दो तीसरे दिन तीन दाने हनुमान जी पर चढ़ाओ और उनको नित्य घर लाकर उसी स्थान पर इकट्ठे रखते जाओ। ४१वें दिन ४१ दाने रखकर लाओ । ४२ वे दिन से एक-एक दाना कम करते-करते ८१वे दिन एक दाना उद का चढ़ाया जायेगा । ८१ये दिन मह अनुष्ठान पूरा हो जायेगा। उड़द के सब दानो को नदी में प्रवाहित कर देना चाहिये। रात को स्वप्न मे हनुमान जी दर्शन देकर मनोकामना पूर्ति के बारे में निर्देश देते हैं।

श्रीमानजी की आरती

आरती कीजै हनुमानललाफी। दुष्टदलन रघुनाथ कलाकी ॥ 
जाके थलसे गिरिवर काँपे रोग दोष जाके निकट न झाँपै ।। 
अंजनिपुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ।। 
दे वीरा रघुनाथ  पठाये । लंका जारि सीय सुधि लाये ।।
लका - सो कोट समुद्र-सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ||
लंका जारि असुर सहारे । सीतारामजीके काज संवारे ॥ 
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे । आनि सजीवन प्रान उबारे ।। 
पैठि पताल तोरि जम कारे । अहिरावनकी भुजा उखारे ।। 
बामें भुजा असुरदल मारे । दाहिने भुजा सतंजन तारे ।। 
सुर नर मुनि आरति उतारे । जय जय जय हनुमान उचारे ।। 
कंचन थार कपूर ली छाई । आरति करत अंजना माई || 
जो हनुमानजी की आरती गावे । बसि बैकुण्ठ परम पद पावै ।

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