जानिए भगवान श्री राम नाम की माहिम,
भगवान राम के जन्म से पूर्व इस नाम का उपयोग ईश्वर के लिए होता था, अर्थात् ब्रह्म, परमेश्वर, ईश्वर आदि की जगह पहले 'राम' शब्द का ही उपयोग होता था, इसलिए इस शब्द की महिमा और बढ़ जाती है, तभी तो कहते हैं कि राम से बड़ा राम का नाम।
परब्रह्म श्री राम ने स्वायम्भुव मनु और महारानी शतरूपा की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छा पूर्ण करने के लिए उनका पुत्र होना स्वीकार किया था। इसी वरदान के अनुसार मनु ने अयोध्या में राजा दशरथ के रूप में तथा शतरूपा ने कौसल्या के रूप में जन्म ग्रहण किया और साक्षात् नारायण ने धर्म की रक्षा और राक्षसों के विनाश के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में अवतार लिया।
वनवास काल में सीता हरण के बाद श्रीराम जंगल में विरहाकुल होकर विचरण कर रहे थे, उन्हें देखकर नारदजी को अपना शाप याद आ गया जो उन्होंने भगवान विष्णु को दिया था कि ‘जैसे आपने स्त्री के सम्बन्ध में मेरा उपहास किया है, वैसे ही आप भी नारी विरह से परेशान रहेंगे।दूसरों का उपहास करने की सजा आपको भुगतनी होगी।’
मोर साप करि अंगीकारा।
सहत राम नाना दुख भारा।। (राचमा ३।४१।६)
नारदजी पंपा सरोवर के किनारे आये जहां श्रीराम भाई लक्ष्मण के साथ वृक्ष की छाया में विश्राम कर रहे थे। श्रीराम ने नारदजी को हृदय से ऐसे चिपका लिया मानो जीव और ब्रह्म एक हो गए हों। नारद जी ने श्रीराम से कहा ‘आप अन्तर्यामी होने के कारण मेरे मन की सब बात जानते हैं, मैं आपसे एक वर मांगता हूँ।’
जद्यपि प्रभु के नाम अनेका।
श्रुति कह अधिक एक तें एका।।
राम सकल नामन्ह ते अधिका।
होउ नाथ अघ खग गन बधिका।। (राचमा ३।४२। ७-८)
‘हे भगवन् ! यद्यपि आपके अनेक नाम हैं। वेद कहते हैं कि उन नामों में एक-से-एक बढ़कर महत्व पूर्ण नाम हैं तो भी हे नाथ ! ‘राम’ नाम सब नामों से बढ़कर शान्ति, शक्ति और सांसारिक दु:ख-दारिद्रय को दूर करने वाला हो। वह पाप रूपी पक्षियों के समूह को नष्ट करने के लिए वधिक (शिकारी) के समान हो। मुझे ‘राम’ की भक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए, वही मेरी शक्ति है, मुझे ‘राम’ नाम ही दीजिए।’ भगवान राम ने ‘एवमस्तु’ कह दिया किन्तु आश्चर्य में पड़ कर नारदजी से पूछा ‘तुमने ‘राम’ नाम को ही क्यों चुना?’
भगवान का सर्वश्रेष्ठ नाम है ‘राम’
- नारदजी ने कहा
‘राम’ शब्द में विशालता, भव्यता, रमणीयता, मधुरता आदि सभी गुण आ जाते हैं। राम शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है, ‘र’ अग्नि या तेज का प्रतीक है, ‘आ’ आकाश का अर्थात् विशालता का और ‘म’ चन्द्र का यानी शीतलता और शान्ति का।
- ‘राम’ शब्द में अद्भुत शक्ति है, मन में राम नाम को धारण करने से सूर्य के समान तेजस्वी श्रीराम की शक्ति का उदय होता है और ‘राम’ शब्द उस रूप को नेत्रों के सामने लाकर खड़ा करता है।
- पृथ्वी पर राजा के रूप में सुशोभित होकर भक्तजनों के सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं।
- राक्षस जिनके द्वारा मरण को प्राप्त होते हैं।
- जो सबके मन को रमाने वाले (लोकाभिराम) हैं।
- वे राज्य पाने के अधिकारी राजाओं को अपने आदर्श चरित्र के द्वारा धर्म का उपदेश देते हैं।
- नाम जप करने पर ज्ञान की प्राप्ति कराते हैं।
- ध्यान करने पर वैराग्य देते हैं।
- पूजा करने पर ऐश्वर्य प्रदान करते हैं, और उसी चिन्मय ब्रह्म श्रीराम में योगीजन रमण करते है।
पारस रूपी राम है, लोहा रूपी जीव।
जब यह पारस भेटि है, तव जिव होवे शिव।।
- अर्थात्
जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है उसी प्रकार राम नाम रूपी पारस के स्पर्श से जीव शिव बन जाता है।
राम नाम मन्त्र है, सकल मन्त्र को राज।।
यह सभी मन्त्रों का बीज है, इसी में ऋद्धि-सिद्धि सब भरी हुई हैं, विश्वास न हो तो रात-दिन जप करके देख लो।सब काम हो जाएगा, कोई काम बाकी नहीं रहेगा।
नाम राम को अंक है सब साधन हैं सून।
अंक गएं कछु हाथ नहिं अंक रहें दस गून।।
तुलसीदासजी ने राम नाम की महिमा बतलाते हुए कहते है कि जिस प्रकार किसी अंक के साथ शून्य की महिमा बढ़ जाती है, अंक हटा देने पर शून्य बेकार हो जाता है; उसी प्रकार राम-नामरूपी अंक के साथ यदि साधन रूपी शून्य को लगाते जाएं तो हमें हर शून्य के साथ उसका दसगुना, सौगुना, हजार गुना, लाखगुना फल प्राप्त होता है।
तुलसी ‘रा’ के कहत ही निकसत पाप पहार।
पुनि आवन पावत नहीं देत ‘म’कार किवार।।
स्कन्द पुराण में कहा गया है इस भूतल पर रामनाम से बढ़कर कोई नाम नहीं है। यह मन्त्रराज समस्त भय व व्याधियों का नाश करने वाला, युद्ध में विजय देने वाला (आन्तरिक युद्ध जो मनुष्य के मन में हर समय चलता रहता है अत: युद्ध में विजय का एक अर्थ है शांत मन) और समस्तकार्यों व मनोरथों को सिद्ध करने वाला है।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।। (रामरक्षास्तोत्र )
- भगवान शंकर पार्वतीजी से कहते हैं - राम नाम विष्णुसहस्त्रनाम के तुल्य है।
- मैं सदैव ‘राम, राम, राम’ - इस प्रकार मनोरम राम नाम में ही रमण करता हूँ।
- ‘राम’ इस मन्त्र का जाप अनन्त फल देने वाला है।
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