झूलेलाल जयंती संत झूलेलाल जी के चमत्कार,अन्य नाम,Jhulelal Jayanti Miracles of Saint Jhulelal Ji, other names
झूलेलाल जयंती संत झूलेलाल जी के चमत्कार,अन्य नाम
चूंकि भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है, इसलिए काष्ठ का एक मंदिर बनाकर उसमें एक लोटी से जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु चेटीचंड के दिन अपने सिर पर उठाकर, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है, भगवान वरुणदेव का स्तुति गान करते हैं एवं समाज का परंपरागत नृत्य छेज करते हैं।
Jhulelal Jayanti Miracles of Saint Jhulelal Ji, other names |
- झूलेलाल जयंती क्यों मनाते हैं?
यह दिन सिंधी लोगों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन वरुण देव सिंधी समुदाय को एक राजा से बचाने के लिए झूलेलाल के रूप में उभरे थे जो सिंधी संस्कृति को नष्ट करना चाहते थे । नए उद्यम शुरू करने के लिए दिन शुभ और अनुकूल माना जाता है।
- झूलेलाल जयंती
झूलेलाल जयंती एक हिंदू त्योहार है, जो सिंधी समुदाय के संरक्षक संत झूलेलाल के सम्मान में मनाया जाता है। झूलेलाल को सिंधी लोगों के बीच एकता और शक्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है और यह त्योहार सिंधी मूल के लोगों के लिए एक साथ आने और अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को श्रद्धांजलि देने का एक अवसर है। झूलेलाल सिंधी समाज के इष्टदेव हैं। झूलेलाल जयंती सिंधी समाज के लोग बहुत ही उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार झूलेलाल जयंती चैत्र मास की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। झूलेलाल भगवान वरुणदेव के अवतार है। भगवान झूलेलाल की जयंती को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है। जिसे सिंधी नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। चेटीचंड हिंदू कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि के दूसरे दिन अर्थात चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी समाज में मान्यता है कि जल से ही सभी सुखों और मंगलकामना की प्राप्ति होती है इसलिए इसका विशेष महत्त्व है।
संत झूलेलाल जी के चमत्कार
झूलेलाल संत जी के समय में मुस्लिम राजा मिरखशाह का राज पाकिस्तान के सिंध प्रांत में था और उनके और उनकी सेना के द्वारा बड़े पैमाने पर हिंदू जनता का उत्पीड़न किया जाता था, साथ ही उन्हें परेशान किया जाता था। इसके पीछे वजह थी सभी हिंदू जनता को इस्लाम कबूल करवाना और उनका धर्मांतरण करवाना।
मुस्लिम राजा के अत्याचार से तंग आकर के हिंदू जनता ने 40 दिन तक वरुण देवता की तपस्या करने का निर्णय लिया और इसके बाद वरुण देवता की कठोर तपस्या की गई। उसके पश्चात एक आकाशवाणी हुई। उस आकाशवाणी में यह बताया गया कि भगवान श्री झूलेलाल का जन्म माता देवकी पिता रतन राय के परिवार में होगा। इसके पश्चात आकाशवाणी में कही गई बात को हिंदुओं ने जाकर के मुस्लिम राजा के सामने कहा। इसके साथ ही हिंदुओं ने यह भी कहा कि राजा के द्वारा उन्हें सोचने के लिए 7 दिन का समय दिया जाए क्योंकि उनके यहां पर एक संत का जन्म होने वाला है.
उसके बाद वह सभी इस्लाम कबूल कर लेंगे और मुसलमान बन जाएंगे। हिंदुओं की बात सुनकर के मुस्लिम राजा काफी खुश हुआ और जोर से हंसा और उन्होंने हिंदुओं को 7 दिन का समय दे दिया। इसके पश्चात समय व्यतीत होता गया और 7 दिनों के अंदर संत झूलेलाल जी एक पूरे इंसान के तौर पर प्रगट हो चुके थे। इसके बाद झूलेलाल ने कहा कि बादशाह को इस बात को समझा दिया जाए कि हिंदू जनता के खिलाफ वह अनैतिक काम बिल्कुल भी ना करें। इस पर बादशाह ने जब झूलेलाल की इस बात को जाना तो उन्होंने उल्टा संत झूलेलाल को ही चुनौती दे डाली। इसके पश्चात बादशाह ने जब अपनी आंखों से संत झूलेलाल को देखा तो बादशाह भौचक्के रह गए क्योंकि संत झूलेलाल नीले घोड़े पर पूरी तरह से सुसज्जित होकर सवार थे।
संत झूलेलाल के अन्य नाम
भगवान झूलेलाल के एक ही नहीं बल्कि कई नाम है। इन्हें पाकिस्तान में जिंदा पीर और लाल साह के नाम से भी जाना और पुकारा जाता है। इसके अलावा जो लोग हिंदू धर्म के हैं वह संत झूलेलाल को लाल साईं, अमरलाल, जिंद पीर, उदेरोलाल जैसे नाम से जानते हैं साथ ही इन्हें वरुण देवता का और जल देवता का अवतार भी माना जाता है। भारत के अलग-अलग राज्यों में लोग झूलेलाल को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल जैसे नामों से पूजते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग चैती चांद के त्यौहार के तौर पर भगवान झूलेलाल जी का त्यौहार काफी हंसी खुशी के साथ सेलिब्रेट करते हैं।
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