Nav Durga : नवरात्रि के अष्टमं मां महागौरी पूजा विधान और,मंत्र,Navratri Ke Eighth Maa Mahagauri Pooja Vidhaan Aur,Mantr,
Nav Durga : नवरात्रि के अष्टमं मां महागौरी पूजा विधान और,मंत्र
नारी शक्ति के रूप में पूजनीय महागौरी देवी की आठवीं मूर्ति के रूप में स्थापित है। भगवान शिव को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए पर्णकुटी में रहकर कठिन तपस्या की और भगवान शिव को प्राप्त किया। महागौरी का स्वरूप गौरवर्ण है। नेत्रों से पुत्रों (सांसारिक प्राणियों) के लिए सदैव अमृतरूपी प्रेम बरसता है। जो प्राणी उस प्रेम को प्राप्त करने के लिए दरबार तक पहुंचता है और महागौरी के चरणों का ध्यान करता है उसे भौतिक सुखों की प्राप्ति तो होती ही है परलोक में भी वह उत्तम स्थान प्राप्त करता है।
Navratri Ke Eighth Maa Mahagauri Pooja Vidhaan Aur,Mantr, |
एक समय मर्त्यलोक में मानवों द्वारा, यज्ञं-यज्ञादि कर्मों के न होने से इन्द्रादि देव चिंतित हुए। ब्रह्मदेव के आदेशानुसार उन लोगों ने श्री महालक्ष्मी की आराधना की। श्री महालक्ष्मी ने अपने पुत्र कामदेव को देवकार्य में सहायता के लिए भेजा। कामदेव से और भूलोकाधिपति राजा वीरव्रत के सैनिकों से घोर युद्ध हुआ था। कामदेव ने सबको भगाया। राजा वीरव्रत ने इस आपत्ति के शमनार्थ शंकर जी की आराधना की। शंकर जी से विजयश्री प्राप्ति का वरदान पाकर राजा ने कामदेव से युद्ध करते हुए शंकर-प्रेषित त्रिशूलात्मक बाण कामदेव पर चलाकर उसको मार डाला। लक्ष्मी के दूतों ने कामदेव का निश्चिष्ट शरीर लक्ष्मी के पास पहुंचाया। लक्ष्मी ने श्री. त्रिपुराम्बा प्रसाद से अमृत द्वारा उसको पुनरुज्जीवित किया। शंकर के प्रभाव से अपना भराजय तथा मृत्यु होने का वृत्तान्त सुनकर उसी क्षण कामदेव के मन में शंकर जी के प्रति द्वेषग्रन्थि पड़ गयी। त्रिपुराम्बा की आराधना से वल संचय कर शंकर जी को हटाने की कामदेव ने मन में प्रतिज्ञा की। इतने ही में श्री महालक्ष्मी ने त्रिपुराम्बा की प्रार्थना की। तद्नुसार त्रिपुराम्बा द्वारा प्रेषित गौरी वहां पर प्रकट हुई। श्री महालक्ष्मी ने कामदेव की पराजय तथा प्रतिज्ञा आदि का वृत्तान्त गौरी को सुनाकर उपाय पूछा। गौरी ने लक्ष्मी तथा कामदेव को समझाया कि शंकर जी सर्वश्रेष्ठ हैं उनसे स्पर्धा करना योग्य नहीं है; उनकी हीं आराधना कर अपना अभीष्ट प्राप्त करना उचित है।
गौरी की उक्ति सुनकर कामदेव रुष्ट हो गया और शंकर जी को जीतने का अपना अभिप्राय उसने प्रकट किया। यह सुनकर गौरी ने क्रुद्ध होकर - "तुम शिवजी के द्वारा दग्ध होंगे।" ऐसा कामदेव को शाप दिया। अपने प्रिय पुत्र को गौरी ने शाप दिया, यह सुनकर महालक्ष्मी ने गौरी को शाप दिया, "तुम भी, पति-निन्दा सुनकर दग्ध होंगी।" यह सुनकर गौरी ने भी लक्ष्मी को शाप दिया- "तुम पति-विरह का दुःख तथा सपलियों से क्लेश प्राप्त करोगी।" अनन्तर लक्ष्मी और गौरी में युद्ध आंरम्भ हुआ। परस्पर के प्रहार से दोनों मूर्च्छित होने लगीं। ब्रह्मा और सरस्वती. की मध्यस्थता से किसी तरह यह युद्ध शान्त हुआ। शिवजी के जीतने की अभिलाषा से कामदेव ने अपनी माता लक्ष्मी से त्रिपुराम्बा के सौभाग्याष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र उपदेश प्राप्त किया। मन्दराचल की गुहा में बैठकर उसने आराधना आरम्भ की। भगवती ने प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष दर्शन दिया। 'हे काम! आज से तुम अजेय हुए' ऐसा कहकर श्री माताजी ने अपने धनुःशरों से धनुःशर उत्पन्न किए और कामदेव को दिए।
दक्ष यज्ञ में पतिनिन्दा श्रवण कर भस्मीभूत गौर नमोरूप में स्थित रहीं। हिमाचल की आराधना से प्रसन्न होकर गौरी रूप में उसकी कन्या हुई। तारकासुर वध में शिवपुत्र को सेनापति समझकर इन्द्र ने शिवतपो भंग करने के लिए काम को आज्ञा दी। गौरी के समक्ष शिवजी ने अपने तृतीय नेत्र से काम का दाह किया था। भगवती महागौरी वृषभ की पीठ पर विराजमान हैं। इनके मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है। मणिकान्ति मणि के समान कान्ति वाली अपनी चार भुजाओं जाओं में शंख, चक्र-धनुष और वाण लिये हुए हैं, जिनके कानों में रत्नजटित कुण्डल झिलमिलाते हैं, ऐसी भगवती गौरी हैं।
गौरी पूजा विधान
पूर्व में दिये गये स्थान के आधार पर समस्त पूजा सामग्री यथास्थान रखें। आसन पर प्रांमुख होकर बैठें। जल से प्रोक्षण कर शिखा बांधें। तिलक लगाकर आचमन एवं प्राणायाम करें। संकल्प करें। हाथ से फूल लेकर अञ्जलि बांधकर श्री जगदम्बा गौरी की पूजा करें।
- आवाहन-
संकर सुमन है तो सुमति समान संग, सिव जो सुमन है सुगंध सुखदा सी तू।
कामतरु कंत है तो कामलतिका 'वशिष्ठ' कामरिपु कंज है तो मधुपी पियासी तू।।
तरनी त्रिलोचन मरीचि रुचिका सी चंड, चंद्रचूड चंद्र है तो चारु चंद्रिका सी तू।
सुख के समंद-संभू सांति सरिता सी सुद्ध, ज्ञान है गिरीश सक्ति!
भक्ति-मुक्तिदा सी तू ।। ॐ भूर्भुवः स्वः गौर्यै नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च।
इस मंत्र से गौरी का आवाहन करें। यदि प्रतिष्ठित प्रतिमा हो तो गौरीमावाहयामि स्थापयामि के स्थान पर गौरीं ध्यायामि अर्चयामि बोलें।
- प्रतिष्ठा-
लाल वस्त्र को चौकी पर बिछाकर चंद्राकार आकृति चावल से बनाएं, उसके ऊपर विल्वपत्र रखकर निम्न मंत्र से भगवती महागौरी को आसन दें- जय हो श्री आदिशक्ति ! गति है अपार तेरी, तू ही मूल कारन महागौरी महारानी है। तेरो ही बनाव ब्याप्त संकल चराचर में आसन विराजो गौरी तू ही ऋत बानी है।। प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि महागौयै नमः। निम्न मंत्रों से चार बार पाद्य, अर्घ्य, आचमन तथा स्नान हेतु जल अर्पित करें-
पाद्यं समर्पयामि। ॐ महागौर्यै नमः ॥ (दोनों पैरों पर जल चढ़ायें।) अर्घ्य समर्पयामि। ॐ महागौर्यै नमः ॥ (दोनों हाथों को जल से धुलायें।) आचमनं समर्पयामि। ॐ महागौर्यै नमः ॥ (जल को अपनी अञ्जलि में रखकर देवी के मुख से स्पर्श करें, पुनः हाथ धो लें।) स्नानं समर्पयामि। ॐ महागौर्यै नमः ॥ (इस मंत्र द्वारा देवी को सुगंधित जल से स्नान करायें।)
- पञ्चामृत स्नानं
दूध, दही, घी, बूरा, शहद-इन पांचों अमृत का नाम पंचामृत है। भूलवश लोग इसे चरणामृत भी कहते हैं। वास्तव में जब यह देवता पर चढ़ने के बाद जो चरणों के स्पर्श होने पर प्राप्त होता है या स्नान कराने के बाद शेष रहता है, तब यही चरणामृत हो जाता है। पंचामृत दिव्य औषधि है। लोग पंचामृत से भगवती को दो रूपों पों में में स्नान कराते हैं- प्रथम, समस्त अमृतरसों के मिश्रण से तथा द्वितीय प्रत्येक रस को अलग-अलग लेकर। यहां दो विधि दी जा रही हैं-
- प्रथम विधि-
दूध, दही, घी, बूरा और शहद एक पात्र में एकत्र करें और माँ भगवती गौरी को निम्न मंत्र से स्नान करायें। पंचामृत की मात्रा गणना पूर्व में बता दी गई है।
दूध दही घी मधुर मधु संकरा सो बना ऐसे पंचामृत को जग में कोऊ नहीं सानी है। इत प्रकटावनी औ पालन-प्रलयकारी तू ही, भुक्ति-मुक्ति पराभक्तिहू की पटरानी है। जगत की जननी महारानी गौरा रानी तू ही
पंचामृत चरणामृत बने मेरा ऐसा मन ठानी है।
'वाशिष्ठ' की सर्वशक्ति अमृत-सी तेरी परमभक्ति सकल चराचर में गौरी तू तू मेरी मेरी ही हीर तो वाणी है।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीमहागौर्यै नमः। पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि। (भगवती महागौरी को पहले पञ्चामृत से स्नान करायें, उसके बाद जल से साफ कर स्वच्छ वस्त्र से पोंछ दें।)
- गन्धोदक स्नान
निम्न मंत्र से गंगाजल में गंगारज या सफेद चंदन मिलाकर भगवती महागौरी को स्नान करायें। द्रव द्रव्य से समुत्पन्न यह मृग कस्तूरी गंध भरा है। दिव्य गंधोदक तुमको देकर माँ तन-मन हरा-भरा है।। ॐ भूर्भुवः स्वः महागौर्यै नमः। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि।
- शुद्धोदक स्नान-
गङ्गा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती । नर्मदा सिन्धुकावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः महागौर्यै नमः। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ॥ आचमन-शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॥ (आचमन के लिए जल दें।)
- वस्त्र-
जल द्वारा अभिमंत्रित कर वस्त्रों को अपने दाहिने हाथ में रखकर निम्न मंत्र पढ़ें- शीत उष्ण से सदा बचाये,
लोक-लाज की रक्षा। है महागौरी यह दिव्यवस्त्र, अर्पित करता, दो शुभ शिक्षा ।। श्री जगदम्बायै महागौर्यै नमः वस्त्रं च समर्पयामि। (वस्त्र या पांच कलावा सूत्र अर्पित करें, पुनः आचमन करायें।)
- उपवस्त्र-
जल द्वारा अभिमंत्रित कर ओढ़नी या चुनरी को अपने दाहिने हाथ में रखकर निम्न मंत्र पढ़ें- धारण कीजै कञ्चुकी सारी।
अरज सुनो जगदम्ब हमारी ।।
तुम्हें बिराजो जब कैलासा।
पीर हरो पीड़ा कर नासा ।।
महागौर्यै नमः, उपवस्त्रं (उपवस्त्राभावे रक्तसूत्रम् : ॐ भूर्भुवः स्वः समर्पयामि) । (उपवस्त्र समर्पित करें।)
- सौभाग्यसूत्र-
हाथ में कलावा लेकर उसको हार का रूप दें। पुनः उसे जल से अभिमंत्रित निम्न मंत्र से करें- सौभाग्य सूत्र धारण कर गौरी।
करें स्तुति हम नित तोरी ।।
दुर्भागी को सौभागी कर दो।।
सुख का सागर घर में भर दो ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः जगदम्बायै महागौर्यै नमः। सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि।
(अभिमंत्रित कलांवा सूत्र को माँ के गले में धारण करायें। पुरुष दाहिने हाथ में पहनाये।)
- चन्दन
श्रीखण्ड चंदन-सा है तेरा रूप सलौना ।
श्वेत चंदन को अर्पण करने आसा तेरा छौना ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः भगवती महागौर्यै नमः। विलेपनार्थं चन्दनं समर्पयामि। उपरोक्त चन्दन के अभाव में लाल यां सफेद चन्दन लगायें।
- हरिद्रा चूर्ण-
हल्दी चूर्ण का प्रयोग सौभाग्यवती स्त्रियां ही करें। निम्न मंत्र से हरिद्रा को जल में डालकर गाढ़ा लेप तैयार करें- हल्दी से सज्जित हो शैला सुख-सौभाग्य देती हो। 'सुख-शान्ति का बहाकर सागर मन उज्ज्वल कर देती हो।। ॐ भूर्भुवः स्वः महागौर्यै नमः हरिद्रां समर्पयामि। (हल्दी का लेप कर हाथ जोड़ें।)
- कुमकुम-
हाथ में रोली लेकर निम्न मंत्र से मस्तक पर लगायें- कुमकुम कामिनी के मस्तक पर जो कुमकुम सुशोभित होता है। उस कुमकुम अर्पण करने को तेरा भक्त उपस्थित होता है।। ॐ भूर्भुवः स्वः भगवती महागौर्यै नमः। मस्तके कुंकुमं समर्पयामि ॥ (इस मंत्र से रोली या बिंदी लगायें।)
- सिन्दूर-
जपा प्रसून सम लडू कांति का, सिंदूर तुम्हारे चरणों में।
सूर्य-रश्मि सम कांति ज्ञान की दो, मैं आया तेरे चरणों में ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै महागौर्यै नमः। सौभाग्य सिंदूरं समर्पयामि ॥ (जंगज्जननी महागौरी की मांग में चांदी या सोने की सलाई से सिंदूर लगायें। इसके अभाव में विल्वपत्र की डण्डी से सिंदूर लगायें।)
नानापरिमलद्रव्य-लाल-हरा-आदिगुलाल के साथ अबीर आदि भगवती को चढ़ायें-
नानापरिमल द्रव्यों में अबीर भरा गुलाल भरा।
भुड़भुड़ की दी चमकन इसमें अर्पण करने को पात्र धरा ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः महागौर्यै नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि। काजल (कज्जल)-काजल ग्रहण करो हे शैले जो है शान्ति का कारक । कर्पूर ज्योति से उत्पन्न हुआ बना हमेशा ज्योतिवर्धक ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै महागौर्यै नमः। (माँ महागौरी की आंखों में चांदी या सोने की सलाई से काजल लगायें अथवा अपने दाहिने हाथ की मध्यमा से दाहिनी तथा अनामिका अंगुली से बायीं आंख में काजल लगायें।)
दूर्वाकुर-'गणेशं तुलसी पत्रैर्दुर्गा नैव तु दूर्वया' अर्थात् कार्तिक महात्म्य के अनुसार गणेश जी को तुलसी पत्र से और दुर्गा (महागौरी) की दूर्वा से पूजा न करें। ऐसा कहकर कुछ विद्वान दुर्वांकुर के लिए निषेध करते हैं तथापि दूर्वा को निम्न मंत्र से चरणों में अर्पित करना चाहिए-
दूर्वा के अंकुर संग्रहीत कर मैं मंगल कामना करता हूं।
सिद्धिदा दूर्वा सिद्धि को आज समर्पित करता हूं।।
ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै महागौर्यै नमः, दूर्वाङ्करान् समर्पयामि।
- पुष्पमाला -
श्री भूर्भुवः स्वः भगवत्यै महागौर्यै नमः । पुष्पमालां समर्पयामि। इस मंत्र से पुष्प और पुष्प माला चढ़ायें। यद्यपि भगवती महागौरी को अनेक पुष्प चढ़ाये जाते हैं तथापि कुछ पुष्प विशेष चढ़ाने से तात्कालिक कष्टों का निवारण होता है। पुष्प चढ़ाते समय सर्वप्रथम राशि के अनुसार दिए गए मंत्र से विषम संख्या (5, 7, 9, 11 आदि) में पुष्प अर्पित करें, उसके बाद शेष बचे तथा अन्य दूसरे पुष्पों को चढ़ाने से धन, मान, ऐश्वर्य तथा सौभाग्य मिलता है।
राशि - मंत्र - विहित श्रेष्ठ पुष्प, पत्र या छाल
मेप - ॐ चपलायै नमः - बेला, आक, मदार, दूर्वा ।
वृष - ॐ चञ्चलायै नमः - पलाश, शंखपुष्पी, मालती, तुलसी ।
मिथुन - ॐ कमलायै नमः - अशोक, भंगरैया, विल्वपत्र ।
कर्क - ॐ कात्यायन्यै नमः - तगर, आक, शीशम, गुलांब ।
सिंह - ॐ जगन्मात्रे नमः - मैलासिरी, तमाल, विल्वछाल, कदम्बं ।
कन्या - ॐ कमलवासिन्यै नमः - केशर, अशोक अमलतास, गुलाब।
तुला - ॐ वृषभवहिन्यै नमः - चंपा, शमी, गुलाब, गूमा।
वृश्चिक - ॐ पद्माननायै नमः - लोध, कनेर, दोपहरिया, अगस्त्य ।
धनु - ॐ विश्वल्लभाय नमः - श्वेत कमल, लाल कमल, वेला, दूर्वा ।
मकर - ॐ दुंदुगायै नमः - चमेली, माधवी, विल्वपत्र, गुलाव ।
कुम्भ - ॐ महागौर्यै नमः - मदार, गुलाब, कनेर, चमेली।
मीन - ॐ उमादेव्यै नमः - कुंद, गुलाब, सफेद कमल, पीला गुलाब।
- सुगंधित द्रव्य-
निम्न मंत्र से सुगंधित द्रव्य भगवती को अर्पित करें- ॐ भूर्भुवः स्वः महागौर्यै नमः, सुगन्धिद्रव्यं समर्पयामि।
- धूपबत्ती-
प्रकृति की उत्तम औषधि से धूप बनी ये गुणकारी।
धूम्र सुवासित ग्रहण करो, महागौरी देवी कल्याणी।।
ॐ भूर्भुवः स्वः महागौर्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि।
भगवती महागौरी को अपने दाहिने हाथ को बायीं ओर ले जाकर पुनः ऊपर की और ले जाते हुए वृत्तक्रम में उपरोक्त मंत्र बोलते हुए घुमायें। घुमाते समय एक बार मुख पर, तीन बार मस्तक पर, तीन बार हृदय पर, चार बार चरणों की ओर घुमाकर पुनः पांच, सात या ग्यारह बार सम्पूर्ण प्रतिमा के चारों ओर घुमायें, बाद में माँ गौरी के बायीं ओर स्थापित करना चाहिए।
- दीपक-
एक विल्वपत्र को नीचे की ओर पलटकर रखें। विल्वपत्र रखते समय माँ भगवती महागौरी, भवानी की आराधना करके विल्वपत्र के दण्ड 5 को अपने अंगूठे तथा अनामिका अंगुली से पकड़कर रखें। पहले दीपक अन्यत्र जलायें तब पत्र के ऊपर दीपक रखकर चावल, पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलें-
हे ज्योति-पुंज दीपक तुम, गौरी की पूजा के साक्षी हो।
पाप की पुंज राशि को, दूर करने के साक्षी हो।।
भूर्भुवः स्वः महागौर्यै, दीपं दर्शयामि। ॐ हाथ में लिये हुए चावल और पुष्प दीपक के पास अर्पित करें। ॐ हृशीकेशाय नमः कहकर हाथ धो लें।
- धूप-
गाय के गोबर से बने उपले को जलाकर माँ भगवती भवानी का ध्यान करके घी में लौंग का जोड़ा भिगोकर जलते उपले पर ॐ महागौर्यै नमः स्वाहा कहकर चढ़ायें। लौंग का जोड़ा शैलपुत्री के पूजन के अनुसार संख्या में चढ़ायें।
- नैवेद्य-
अन्न करें. अर्पित महागौरी सब कर पाऊं अन्नप्रासन। माता आस ही अन्न की देवी ऐसा ही है जग का शासन ।।
- (इस मंत्र से तुलसीदल मंजरी सहित नैवेद्य अर्पण करें।)
- ताम्बूल-
कोमल पात पान सुहावा। लौंग, इलायची जातीफल पावा ।।
ग्रहण करो गणमातृ भवानी। हे गोरी देवी माँ कल्यानी।।
श्री जगदम्बायै महागौर्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि। (इस मंत्र से इलायची, लौंग, सुपारी तथा जायफल के साथ पान निवेदन करें।)
- ध्यान-
भगवती महागौरी का ध्यान, स्तोत्र और कवच का पाठ करने से 'सोमचक्र' जाग्रत होता है। जिससे चले आ रहे संकट से मुक्ति होती है। पारिवारिक दायित्व की पूर्ति होती है व आर्थिक स्मृद्धि बढ़ती है।
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृत शेखराम।
सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशरवनीम ॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभौतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार, केयूर किंकिणि रत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनां पल्लवाधरां कांत कपोलां षैलोक्यमोहनम् ।
कमनीयां लावण्यां मृणालं चंदन गन्ध लिप्तम्॥
- कवच-
पीली सरसों लेकर अपने चारों ओर डालते हुए इस मंत्र को बोलें-
ओकारः पातुशीर्षा माँ ह्रीं बीजं माँ हृदयो।
क्लीं बीजं यापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटगण हूं बीजं पातु महागौरी माँ नेत्रं घ्राणों।
कपौल चिपुको फट् स्वाहा माँ सर्ववदनो॥
- स्तोत्र-
ध्यान और कवच के बाद निम्न स्तोत्र का पाठ करें-
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम ।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
सुखं शांतिदात्री धन-धान्य प्रदीयनीम् ।
डमरुवाद्य प्रिया अधां महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगला त्वंहि तापत्रय हरिणीम्।
वरदा चेतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
महागौरी के जपनीय मंत्र-
ॐ नमो भगवती महागौरी वृषारूढे श्री ह्रीं क्लीं हूं स्वाहा।
ॐ नमो भगवते महागौर्यै वृषभवाहन्यै नमः।
महागौरी के रूप में अष्टम कन्या का पूजन-महागौरी के रूप में अष्टम नवरात्र को या नवरात्र की अंतिम तिथि को अष्टम कन्या के रूप में 'दुर्गा' का पूजन किया जाता है। दुर्गा के लिए 9 वर्ष की कन्या का पूजन करना चाहिए। निम्न मंत्र से भोज्य पदार्थ अर्पित करें-
दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भव दुःखविनाशिनीम्।
पूजयामि सदा भक्त्या दुर्गा दुर्गार्तिनाशिनीम्॥
- मंत्र प्रकरण-
नवरात्रि माँ भगवती की भक्ति का समय होता है। इसमें अष्टमी और नवमी का लोग अधिक महत्व मानते हैं। नीचे अष्टमी तिथि को किए जाने तथा अत्यन्त प्रभावशाली होने वाले मंत्र दिये जा रहे हैं।
- शुभ फल-प्राप्ति हेतु-
नवरात्र की अष्टमी तिथि को बगुलामुखी का यंत्र लाल कपड़े पर लकड़ी के स्वच्छ फट्टे पर स्थापित कर यंत्र के दोनों ओर गेहूं की ढेरी लगाकर एक ओर (बायीं ओर) सरसों का दीपक तथा दूसरी ओर घी का दीपक जलाकर लाल मूंगे की माला से नीचे लिखे मंत्र का 10 माला प्रति रात्रि कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक जप करें-
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी।
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ।
साधना पूर्ण होने पर रात्रि में यज्ञ को दक्षिण दिशा में किसी पवित्र स्थान पर मिट्टी के नीचे दबा दें और मणियों की माला को नदी में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग के करने से विपत्तियों का नाश होता है।
- व्यापार वृद्धि हेतु प्रयोग-
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूरब दिशा की ओर मुख करके सामने रखे तख्त पर पीला वस्त्र बिछाकर थाली में केशर से "ॐ यक्षाय नमः" लिखें, तत्पश्चात् 'कुबेर यंत्र' स्थापित करके पूजन करें और पीले रंग के पुष्प अर्पित करके नीचे लिखे मंत्र का पाठ करें- ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्री क्रीं श्री कुबेराय अष्ट लक्ष्मी मम गृहेधन पूरय-पूरय नमः ।
उपरोक्त मंत्र का जप स्फटिक की माला से करें। नवरात्रि की अष्टमी में कुबेर यंत्र को सिद्ध कर लें। इस यंत्र को विजयदशमी के दिन पीले वस्त्र में लपेटकर गल्ले में रखें। आपकी समस्त कामनाएँ पूर्ण होंगी और धन का आगमन होगा।
मुकदमा जीतने के लिए
लकड़ी के तख्त पर लाल वस्त्र बिछायें, तत्पश्चात् एक थाली में काजल से 'फट् स्वाहा' लिखकर पुष्प आदि रखकर शत्रुनाशक यंत्र को काले धागे में पिरोकर पारद मोती एवम् कार्यसिद्धि माला रखकर धूप, दीप आदि से पूजन करें, फिर उस माला से प्रतिदिन 7 माला मंत्र का जाप करें। याद रखें, माला जपते समय आपका मुख पूर्व की ओर हो। निश्चित सफलता प्राप्त होगी।
शूलेन पाहि नो देवि पाहिखड्गेन चाम्बिके।
घण्टा स्वनेन नः पाहि चापज्यानिः स्वनेन च।
- बंधन-मुक्ति हेतु-
माता बगुलामुखी के मंत्र का जप अष्टमी से आरम्भ करने से तथा प्रतिदिन 11 भाला कम-से-कम करने से प्राणी बंधन मुक्त हो जाता है। जपकार्य हरिद्रा की माला से करें।
ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ॥
- सम्मोहन प्रयोग-
लकड़ी के तख्त पर वस्त्र बिछाकर एक कटोरी में सियारसिंगी रखें और उस पर केशर से तिलक करें, फिर धूप-दीप करके रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।
ॐ नमो आदेश गुरु को सिद्ध माता स्तम्भनि मोहिनी वशीकरणी अमुकं मोहिनी ममवश्य करि-करि इच्छित कार्यपूर्ति कुरु कुरु स्वाहा।
- विदेश जाने हेतु मंत्र-
चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर श्री हनुमान यंत्र स्थापित करके सिन्दूर, सुपारी आदि चढ़ाकर पूजन करें। तत्पश्चात् श्री रामभक्त हनुमान के स्वरूप का ध्यान करते हुए 54 बार मंत्र पाठ प्रतिदिन करें।
क्षं फट्॥
दसवें दिन समस्त पूजन सामग्री मिट्टी के पात्र में रखकर उसका मुंह लाल वस्त्र से बांधकर रास्ते पर रख आयें।
महागौरी के वाहन का रहस्य
नौ शक्तियों में अष्टम शक्ति महागौरी अर्थात् चामुण्डा हैं। प्रकृति का नाम चण्ड और निवृत्ति का नाम मुण्ड है। ये परस्पर सोदर भाई हैं। इनका विनाश करने वाली प्रलयशक्ति को ही चामुण्डा कहते हैं। 'चण्डमुण्ड' शब्द के अनन्तर हननार्थ बोधक 'आ' धातु से चण्डमुण्ड शब्द बना है और वृषोदरादित्वात् चामुण्डा बन जाता है। चामुण्डा किसी अवलम्ब को लेकर प्रकाशित नहीं होती, बल्कि स्वयं प्रकाश है, इस कारण शास्त्रकारों ने इनका वाहन नहीं लिखा है।
टिप्पणियाँ