शाबर मंत्र साधना,Shaabar Mantr Saadhana

शाबर मंत्र साधना Shaabar Mantr Saadhana

शाबर मन्त्र भगवान शंकर के मुख से निकले हुए ऐसे मन्त्र हैं जिनकी शब्द योजना अक्षर योजना बिल्कुल बेमेल और अटपटी होती है। इनका कोई स्पष्ट अर्थ हो यह आवश्यक नहीं होता और इनको सिद्ध करने के लिए विशेष अनुष्ठान, पुरश्चरण, हवन आदि भी नहीं करने पड़ते । गोस्वामी तुलसीदास जी ने शाबर मंत्रों के विषय में कहा है- 
  • अनमिल आखर अरथ नजापू प्रकट प्रभाव महेसप्रतापू ।। 
भगवान शंकर के आशीर्वाद से ये मंत्र स्वयं सिद्ध स्वतः प्रभावोत्पादक होते हैं और निष्फल नहीं जाते। जैसे वेदोक्त तन्त्रोक्त मंत्रों को गुरु दीक्षा, पुरश्चरण, अनुष्ठान, न्यास, मुद्रा द्वारा पहले सिद्ध करना होता है वैसे इन शाबर मंत्रों के लिए इन सब की आवश्यकता नहीं होती। ऐसा लगता हे कि शाबर मंत्र जनता में प्रचलित भाषा में जनसाधारण के उपयोग के लिए रचे गए हैं। इनमें विशेष ध्यान ध्वनि संयोजन पर दिया जाता है और प्रयोजन के 'अनुसार अक्षर योजना की जाती है। इनके बोलने का विशेष ढंग होता है जिसे गुरु मुख से सुनकर समझ लेना अच्छा रहता है। इनको सिद्ध करने के लिए हजारों लाखों की संख्या मे जप करने की आवश्यकता भी नहीं होती । होली, दिवाली, शिवरात्रि की रात को १२ बजे से ३ बजे तक ग्रहण कात में, अमावस्या की रात्रि पर्व काल आदि विशेष मुहुतों में जप कर सिद्ध किया जाता है। तीन-चार घंटे में जितनी संख्या का जप हो जाता है उतने में ही मत्र सिद्ध हो जाता है। इतनी देर के जप मे यह मुखाग्र यानी मुंह जबानी याद हो जाते हैं। फिर प्रत्येक होती दिवाली ग्रहण काल मे जपकर इनको और शक्ति सम्पन्न तथा जाग्रत कर लिया जाता है। शाबर मंत्रों को सिद्ध करने के लिए निर्जन स्थान मे शिव, काली, हनुमान जी या भैरव जी का मन्दिर अथवा शमशान ठीक रहता है।

Shaabar Mantr Saadhana

भय की आशंका हो तो गुरु या अन्य साधक मित्र को साथ लिया जा सकता है । मंत्र देवता के अनुसार कुछ पूजा सामग्री फल-फूल, सिन्दूर, धूप दीप नेवैद्य साथ में रखना होता है। फूलों में आक के, कनेर के या लाल गेंदे के फूल, फलों मे बेलपत्र, बेर, करौंदा जैसे वनफल, नैवैद्य मे बूंदी के लड्डू, बेसन के पदार्थ, मीठे पूये,. गेहूं के आटे व गुड़ से बने गुलगुले पूये अपूप आदि सिन्दूर, धूप, दीप सब अन्डी के पते पर रखकर पूजा स्थल पर रखा जाता है। देवता का दीपक घी का आटे से बनाते हैं । यह मन्त्र जब सिद्ध हो जाते हैं तो पूरी तरह प्रभावी होते हैं । जैसे दांत दर्द को बन्द करने का मंत्र सिद्ध है तो मंत्र से झाड़ने पर दर्द तुरन्त बन्द हो जायेगा । बिच्छू झाड़ने का मंत्र सिद्ध है तो मंत्र द्वारा झाड़ने से बिच्छू का विष दूर हो जायेगा। परन्तु एक समय मे एक ही मत्र सिद्ध होता है । एक व्यक्ति जितने चाहे शाबर मंत्र सिद्ध कर सकता है। इनमें शर्त यही होती है कि मंत्र सिद्ध व्यक्ति इसके द्वारा धन नहीं कुमायेगा, परोपकार की भावना से कार्य करेगा, लोभ लालच आने पर सिद्धि चली जाती है। जिस समय भी जरूरतमन्द या रोगी व्यक्ति उसके पास आयेगा सब काम छोड़कर उसका काम करेगा। आने जाने का खर्चा और कोई गंडा तावीज दवा का खर्चा ले सकता है। देवी देवता पर प्रसाद चढ़वा सकता है परन्तु अपने लिए धन लाभ नहीं कर सकता । शाबर मंत्र सिद्ध करने के लिए बहुधा रात का समय ही ठीक रहता है । 
चन्द्र ग्रहण भी रात मे पड़ता है। सूर्य ग्रहण दिन में होता है। रात के समय मंत्र को सिद्ध करने से पहले उसको अच्छी तरह याद कर लेना चाहिए ताकि उसे आप ठीक से जप कर सके 2 किसी भी शाबर मंत्र को सिद्ध करने से पहले निम्न मंत्र का ५ बार या ७ बार पाठ करके देवता गुरु जनों को प्रसन्न किया जाता है जिससे साधना निर्विघ्न पूर्ण होती है। जैसे प्रत्येक पूजा से पहले गणेशजी का पूजन किया जाता है वैसे ही शावर साधना मे यह मंत्र पाठ है।
  •  "गुरु सठ गुरु सठ गुरु है वीर गुरु साहब सुमरों बड़ी भाँत  सिगी टोरों बन कहाँ मन नाऊ करतार सकल गुरुन को हर भजै घट्टा कर उठ जाग चेत संभार श्री परम हंस । 
शाबर मंत्रों का ध्वनि संयोजन ही इनका मुख्य आधार है । अतएव इनकी शब्द योजना मे कोई संशोधन परिवर्धन परिवर्तन नहीं करना चाहिए । 

ग्रह बाधा शांति के लिए मंत्र

जिस घर में भूत प्रेत बाधा हो अथवा उसके निवासी बीमार रहते हो,. लड़ाई झगड़ा क्लेश रहता हो, धन, सन्तान, पशु की वृद्धि न होती हो, आमद मे बरकत न हो, किसी ने टोना टोटका करके वृद्धि रोक दी हो तो इन सब आधिव्याधियों को दूर करने के लिए निम्न शाबर मंत्र अद्वितीय है। इसको किसी मन्दिर या निर्जन स्थान में सिद्ध किया जा सकता है। निर्जन स्थान इसलिए उपयुक्त समझा जाता है कि साधना काल मे विघ्न उपस्थित न हो । बस्ती में पूजा स्थान होने से आसपास के लोग कौतुहलवश विघ्न पैदा कर सकते हैं। घर मे जितने द्वार दों उतनी लोहे की कीले ले लो। जितने कमरे हो प्रति कमरा दस ग्राम के हिसाब से साबत काले उड़द ले लो। थोड़ा सिंदूर तेल या घी में मिलाकर कीलो पर लगा लो। कमरे की चौखट लकड़ी की है या ईंट चूने की है तो उसमें ठोकने के लिए दो इंच की कील काफी होगी । परन्तु यदि फर्श सीमेन्ट या चिप्स का है तो दरवाजे में ठोकने के लिए आघा इंच की कील पर्याप्त होगी। निम्न मंत्र को सिद्ध करने के बाद व्याधिग्रस्त घर के प्रत्येक कमरे मे जाकर मन्त्र पढ़कर उड़द के दाने सब कमरों में चारों फोनो में आंगन बरामदे में बिखेर दो और द्वार पर कील ठोंक दो। इसी प्रकार मुख्य द्वार की चौखट पर भी अभिमन्त्रित कील मंत्र पढ़कर ठोक दो ।

ओम नमो आदेश गुरन को, ईश्वर वाचा अजरी बजरी बाड़ा, बज्जरी 
में बजरी, बांधा दस दुआर, छ्वा और के पालों, तो पलट हनुमन्त . 
बीर उसी को मारे। पहली चौकी गनपती, दूजी चौकी हनुमन्त, तीजी 
चौकी में भैरी, चौथी चौकी देत रक्षा करन को आवै सिरी नरसिंहदेव जी । 
शब्द साँचा पिण्ड काँचा फुरै मत्र ईश्वरी वाचा । 

भूत प्रेत बाधा शान्त करने के लिए शाबर मंत्र

"जय हनुमान बारह बरस को जवान हाथ में लड़ मुख में पान 
हॉक भारत आप बाबा हनुमान ,मेरी भक्ति गुरु की शक्ति , 
फुरै मन्त्र ईश्वरी वाचा" ।।

यह हनुमान जी का शाबर मंत्र है। इसे हनुमान जी के मन्दिर में ही सिद्ध किया जाना चाहिए। सिद्ध करने के बाद इस मंत्र को पढ़कर फूँक मारने या झाड़ने से भूत प्रेत बाधा दूर हो जाती है। प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति को इस मंत्र से अभिमंत्रित जल पिलाना चाहिए। इस मंत्र से धूप की धूनी देनी चाहिए। शरीर से धूप भभूत लगाना तथा तनिक सी खिलाना भी चाहिए और मोरपंख से २१ वार झाड़ा देना चाहिये। अधिक से अधिक तीन दिन इस प्रकार झड़ने से सब प्रकार की प्रेत बाधा दूर हो जाती है। जिसको यह बीर का मंत्र सिद्ध हो वह कभी यदि बहुत से शत्रुओं से घिर जाय तो भी उसका बाल बाँका नहीं होता। तीन बार इस मंत्र को जोर-जोर से उच्चारण करने पर शत्रुओ का स्तम्भन हो जाता है, उन्हें उस सिद्ध पुरुष मे हनुमान जी विकराल रूप में खड़े दिखाई देगे और वे आक्रमण का इरादा छोड़ भाग खड़े होगे। जंगली हिंसक जन्तुओं से घिर जाने पर भी युद्ध मन्त्र रक्षा करता है। 

रोग दोष भूत वाघा के लिए अन्य मंत्र

"आगे दो झिलमिली पीछे दो नन्द 
रक्षा सीताराम की रखवारे हनुमन्त हनुमान
हनुमन्ता आवत मूठ करो नौसण्डा 
सॉकर टोरी लोह की फायै बजर किंवार 
अज्जर कीले बज्जर  कीलै  ऐसे  
रोग  हाथ से ढीलै मेरी  भक्ति 
गुरु की शक्ति  फुरै  मंत्र  ईश्वर वाचा 
उपरोक्त शाबर मन्त्र रोग दोष भूत प्रेत बाधा शान्त करने ग्रह शान्ति प्रयोग किया जाता है। शत्रु भय निवारण करने के लिए भी अचूक है । मंत्र को सिद्ध करने के बाद भूत प्रेत बाधा मे झाड़ा दिया जाता है। अन्य स्थितियों में गण्डा ताबीज बनाकर पहनाया जाता है।

शाबर मंत्रों का गण्डा ताबीज बनाने की रीति 

लम्बा मोटा गा ले लो । शाबर मन्त्र को पढ़ो और उस धागे मे एक गाँठ लगा दो। इस प्रकार मंत्र पढ़कर ७, ११, १३ गांठें लगा लो। इस प्रकार एक गण्डा बन जाता है जिसे गले में पहनने या भुजा मे बाधने से बाधा दूर होती है। ताबीज बनाने के लिए भोजपत्र पर मंत्र लिखते हैं और तावीज में रखकर बन्द कर देते हैं। अनार की कलम अष्टगन्ध या लाल चंदन की स्याही प्रयोग में लाते हैं।

भूत बाधा निवारण का मन्त्र 

ओम हिरीम भिरीम फट् स्वाहा। परवतहत परबत स्वामी । आतम रक्षा सदा भवेत । नौनाथ चौरासी सिद्ध । याकी दोहाई हाथ में भूत, पाँव में भूत, भभूत मेरा धारण माथे राखो अनाड की जोत । को करो सिंगार गुरु की शक्ति मेरी भक्ति । फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा, दोहाई भैरव की ।।. इस मंत्र को शिवालय या भैरव मन्दिर में सिद्ध किया जाना चाहिये । सिद्ध होने पर भूत प्रेत बाधा दूर करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है । वाधा ग्रस्त व्यक्ति पुरुष स्त्री बालक जो भी हो उसे सामने बिठाकर मंत्र पढ़ कर झाड़ा देने से जोत जगा कर मंत्र की आहुति देने, धूप धूनी देने से, भस्म भभूत शरीर पर लगाने खिताने से भूत प्रेत का प्रभाव दूर हो जाता है। मंत्र को भोजपत्र पर अनार या चन्दन की लेखनी से रोती तिदूर या लाल चन्दन की स्याही द्वारा लिख कर तांबे के ताबीज मे रलकर पहनने से प्रेत बाधा दूर होती है। जब तक ताबीज या गण्डा बंधा रहेगा भूत प्रेत का असर उस व्यक्ति पर नहीं होगा। गण्डा बनाना बताया जा चुका है उसी  तरह इस मंत्र को पढ़ कर गांठें लगा कर गण्डा बनाया जाता है। गण्डे तावीज को बाधा ग्रस्त व्यक्ति के समक्ष हवन पर घुमा कर धूपित करके जाग्रत करके पहना देना चाहिए।

चमत्कारी शाबर मन्त्र प्रेत सिद्धि

गोस्वामी तुलसीदास जी शौच से बचा हुआ जल नित्य एक बबूल के पेड़ पर चढ़ाया करते थे । बबूल के पेड़ पर प्रेत रहता था। उसने प्रसन्न होकर दर्शन दिये और फिर उसी के द्वारा गोसाईं जी को हनुमान जी के दर्शन हुये और हनुमान जी के द्वारा श्री राम, लक्ष्मण के दर्शन चित्रकूट के घाट पर हुये। इस कथा से ज्ञात होता है कि बबूल के पेड़ पर प्रेत का वास होता है । बस्ती के बाहर कहीं पर अकेला यानी एक ही बबूल का पेड़ हो उस पर ७ दिन तक पानी चढ़ाओ। फिर शनिवार की आधी रात के समय उस पेड़ के नीचे बैठ कर हवन करो। नीचे लिखे मंत्र को पढ़ कर १०८ आहुतियां दी जायेगी। हवन से पहले मंत्र को अच्छी तरह याद कर लो। आम की लकड़ियो की समिधा, काले तिल व साबत उड़द मिलाकर हवन सामग्री वित के तेल या वनस्पति घी मे बनाई हुई हो। पेड़ के नीचे मिट्टी की बेदी बनाकर उसके सामने सब कपड़े उतार कर नगा होकर बैठकर हवन करना होगा । 

मन्त्र- 

ओम साल सलीता सोसल बाई फान पढ़ता 
 घाई आई ओम तं लं लं ठः ठः ठः स्वाहा ।। 

हवन के बीच में या समाप्ति पर प्रेत प्रकट होगा। उस समयं निर्भय हो कर बंधि हाथ की कनिष्ठा उंगली में ब्लेड से थोड़ा काटकर सात बूँद रक्त जमीन पर गिरा दो। जल्दी मे या घबराहट में रक्त शीघ्र न गिरा सको तो कुछ कच्चा मांस साथ में ले जाना चाहिये ताकि अपना रक्त देने में कुछ देर हो भी जाय तो साथ में लाया मासं प्रेत को अर्पण कर सको। यह साधना 

स्त्रियों के दूध उतारने का मन्त्र 

ॐ दसुंदनी शाह दुग्धं कुरु कुरु स्वाहा सन्तानवती माताएं जिनकी गोद मे दूध पीता बच्चा हो ऐसी स्त्रियों के स्तन का दूध कभी-कभी किसी कारण वश सूख जाता है ऐसी स्थिति में उपरोक्त मंत्र के प्रयोग से फिर से दूध उतर आता है। एक पाव था आधा किलो दूध अथवा एक गिलास मट्ठा (छाछ) लेकर उसमें उपरोक्त मंत्र से इक्कीस बार फूँक कर उस दूध या छाछ को सन्तानवती माता को तीन दिन तक पिलाने से दूध आ जाता है। 'गाय भैंस बकरी आदि दूध देने वाले पशुओ पर भी यह प्रयोग सफल रहता है । 

आधासीसी के दर्द को दूर करने  का मन्त्र

  • "वन में ब्याही अंजनी कच्चे बन फल खाय । हाक मारी हनुमंत ने इस पिण्डा से आधा सीसी उतर जाय ।"  
कृष्णापक्ष की चतुर्दशी तिथि को शमशान में जाकर इस मन्त्र का १०००० जप करने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। यह तिथि इस प्रकार की होती है किं प्रात काल सूर्योदय के समय चौदस होती है इससे तिथि तो उस दिन चौदस ही मानी जाती है, परन्तु रात्रि को १२ बजे के आसपास अमावश्या आ जाती है तो रात्रि अमावश्या की ही होती है। रात को शमशान मे जाने से डर लगे तो शमशान के आसपास के शिव या भैरव मन्दिर मे बैठकर भी जप किया जा सकता है। दिन में भी किया जा सकता है। इसमें पूजा प्रसाद हनुमान जी के अनुसार ले जाना चाहिये।  जब मन्त्र सिद्ध हो जाए तो सात बार मत्र का जाप करते हुए रोगी के मस्तक पर भभूत की राख मलने से आधा सीसी का रोग दूर हो जाता है । १०००० जाप एक रात में न हो सके तो २-३ रात में किया जा सकता है। चतुर्दशी तिथि जय से आरम्भ हो तब से लेकर समाप्त काल तक जप किया जा सकता है।

नेत्र पीड़ा

अक्सर बच्चो की आख दुखने आ जाती है ताल हो जाती है दर्द होता है रोहे हो जाते हैं। नेत्र पीड़ा निवारण करने का मन्त्र इस प्रकार है- 
  • "ओम् नमो राम का धनुष लक्ष्मणं का बाण । 
  • आंख दर्द करे तो लक्ष्मण कुमार की आन ।।"
कृष्णपक्ष की चतुर्दशी की रात को शमशान में या शमशान के निकट के किसी शिव भैरव या राम मन्दिर में उपरोक्त मन्त्र की १० माला जपने से ही यह मंन्त्र सिद्ध हो जाता है। ग्रहण काल होती दिवाली शिवरात्रि के पूर्वकाल भी उत्तम होते हैं । मन्त्र सिद्ध करने के बाद किसी आंख दर्द के रोगी की दुखती आंख पर नीम के पत्तों के झोरे (डाली) से २१ बार झाड़ने से आँख ठीक हो जाती है। दो या तीन तक झाड़ा करना चाहिये ।

प्रेत बाधा निवारण मंत्र "

ओम् नमो दीप सोहे दीप जागे पवन चले पानी चते शाकिंनी चले, डाकिनी चले भूत चले प्रेत चले नौ सौ निम्नानवे नदी चले हनुमान वीर की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ।" मन्त्र को हनुमानजी के मन्दिर मे तेल का दीपक जला कर सवा लाख जप करने से ऊपर बताये पर्वकालों में जप करने से सिद्ध होता है । फिर किसी भी भूत प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति पर मोर के पंख से १०८ बार झाड़ा देने से प्रेत बाधा दूर हो जाती है।                                           
  •  दूसरा मन्त्र : 
ओ३म् काला भैरव कपाली जटा रात दिन खेले चौपटा काला मसाण जेहि मागू तेहि पकड़ा आत डाकिनी शखिनी पट्ट सिहारी जरख चढ़ती गोरख मारी। छोड़ि छोड़ि रे पापिन बालक पराया गोरखनाथ का परवाना आया ।" इस मन्त्र को ग्रहण के समय मे जप करके सिद्ध हो जाता है । ग्रहणकांत मैं जितनी संख्या में जप हो जाय उससे सिद्ध हो जाता है । २१ बार बोल कर तीर से या सूजे से झाडा' देने से तथा २१ बार मन्त्र से अभिषिक्त करके  पानी पिलाने से बालक पर आई हुई भूत प्रेत बाधा शान्त हो जाती है । 

बवासीर दूर करने का मन्त्र 

ओम काका कता किरोरी करता ओम करता से होय यरसना  दश हूंस प्रगटे सूनी बादी बवासीर न होय मंत्र ज्ञान के न बतावे द्वादस ब्रह्म हत्या का पाप होय लाख जप करे तो उसके बस मे न होय शवद साँचा पिण्ड काचा हनुमान का मन्त्र साँचा फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा | यह मन्त्र ग्रहण काल में जितना अप हो जाय उतना ही जप करने से सिद्ध हो जाता है । २१ बार पढ़ कर पानी को मन्त्र से अभिमन्त्रित करके आबदस्त लेने से बवासीर दूर होती है।

डाढ़ में दर्द का मन्त्र

डाढ़ मे दर्द हो या कीड़ा पड़ गया हो तो निम्न मंत्र से झाड़ने से दर्द कष्ट कीड़ा दूर हो जाता है। 
ओम नमो आदेश गुरु को। ब में आई अंजनी जिन जाया हनुमन्त । कीड़ा मकड़ा मसकड़ा यह तीनो भस्मन्त। गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा । यह मन्त्र भी ग्रहण के समय जितना जपा जा सके उतना ही जप करने से सिद्ध हो जाता है। इसको २१ बार पढ़ कर नीम की डाली से झाड़ने से 'डाढ़ का दर्द पीड़ा आदि दूर होती है।

धरन या नाफ टलने पर उपाय

 नाभि के नीचे एक नाड़ी बोलती है उसे धरन या नाफ कहते हैं। यह जब अपने स्थान से इधर-उधर हो जाती है तो शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है | के होना दस्त हो जाना खाना हजम न होना वायु का बाहर न निकलना आदि शिकायते हो जाती है। यह किसी भी डाक्टरी दवा से ठीक नहीं होती और बहुधा डाक्टर लोग भी इसके लिये किसी मालिश करने वाले के पास जाने की ही सलाह देते हैं। लेकिन ज्यादा मालिश बगैरा भी नहीं करानी चाहिये । योग के २-३ आसन हैं जिनसे यह ठीक हो जाती है। खड़े .होकर या पैर पसार कर बैठ कर हाथ की उंगलियों की नोक से पैर के पजों " को छूने से जिसमें घुटने ने मुड़ें २-४ बार करने से धरन अपने स्थान पर आ जाती है। बिना ज्यादा मालिश के इसी प्रकार से शरीर मोड़ने आदि से जो ठीक करते हो उनसे ठीक करा लेने मे कोई हानि नहीं होती । धरन अपने स्थान से गई है यानी हट गई है इसकी पहले जांच की जाती है। सीधे लेट 'जाओ। दोनों हाथ व पैरों को सीधा डाल दो फिर नाभि के बीच में पांचों गयों को जोड़कर दबाव डालो तो नाभि बोलती धड़कती हुई प्रतीत होगी । जिस प्रकार अन्य नाड़ियाँ बोलती हैं वैसे ही ध्वनि आती है। यह ठीक बीच मे बोत रही हो तो समझो कि नाभि अपने स्थान पर है। यदि ऊपर नीचे दाँये बाँये गई है तो उसी हिसाब से शरीर की नसों को मसलने से अपने स्थान पर आ जाती है । जैसे कि नीचे की ओर गई है बाँई ओर को हो तो सीधी और की भुजा में कलाई के पास की नस को मसल कर ठीक किया जाता है। ऊपर की ओर गई हो तो पैर के पंजो की एड़ी के पास की नसो को मसल कर ठीक किया जाता है। जिस ओर घरन बोलती हो उससे उल्टी दिशा की एड़ी या हथेली की नसों से इसे ठीक किया जाता है। हाथ पैर में झटका दे देकर भी ठीक की जाती है। इसको मन्त्र के द्वारा भी ठीक किया जाता है। इसको ठीक करने का मन्त्र इस प्रकार है-
ओम् नमो नाड़ी नौ सौ नाड़ी बहत दसौ कोठा चले अगाड़ी डिगे न कोठा चले न नाड़ी रक्षा करे जती हनुमान की आन मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ! दश हंस प्रगटे सूनी वादी बवासीर न होय मत्र जान के न बतावे द्वादस ब्रह्म हत्या का पाप होय लाख जप करे तो उसके बस मे न होय शवद साँचा पिण्ड काचा हनुमान का मन्त्र साँचा फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा । यह मन्त्र ग्रहण काल में जितना जय हो जाय उतना ही जप करने से सिद्ध हो जाता है । २१ बार पढ़ कर पानी को मन्त्र से अभिमन्त्रित करके आबदस्त लेने से बवासीर दूर होती है ।

डाढ़ में दर्द का मन्त्र

डाढ़ मे दर्द हो या कीड़ा पड़ गया हो तो निम्न मन्त्र से झड़ने से दर्द कष्ट कीड़ा दूर हो जाता है !ओम नमो आदेश गुरु को । वन में जाई अजनी जिन जाया हनुमन्त । कीड़ा मकड़ा मसकड़ा यह तीनो भस्मन्त । गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा । यह मन्त्र भी ग्रहण के समय जितना जपा जा सके उतना ही जप करने से सिद्ध हो जाता है। इसको २१ बार पढ़ कर नीम की डाली से झाड़ने से डाढ़ का दर्द पीड़ा आदि दूर होती है।

करवाई

काँख ( बगल ) में होने वाले फोड़े को कखवाई कहते हैं। इसको दूर करने का मन्त्र निम्न प्रकार से है : ओम नमो कखवाई भरी तलाई जहाँ बैठा हनुमन्ता आई पके न फुटे चले न पीड़ा रक्षा करें हनुमन्त वीर दुहाई गोरखनाथ की शब्द साँचा पिण्ड काचा । फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा । उत्यनाम आदेश गुरु को ।। मन्त्र को ग्रहण समय या पर्वकाल में १०० माला जप कर सिद्ध करने के बाद २१ बार झाड़ने से और मोर पस या नीम की डाली से जिस स्थान पर झाड़ा दे उस स्थान की मिट्टी बांधने से तीन दिन में करवाई की गाँठ बैठ जाती है !

रीधनबाय 

कभी-कभी शरीर की नसो में ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर नस में रेगता - सा दर्द होता है। डाक्टरी इलाज में इसमें विटामिन बी देते हैं उससे भी लाभ होता है। विकोसूल के कैपसूल भी लाभदायक रहते हैं। इसको मन्त्र के द्वारा भी दूर किया जाता है । मन्त्र इस प्रकार है- ओम नमो आदेश गुरु को ओम नमो कामरूप देश कामाक्षी देवी जहां बसे मछन्दर जोगी । मछन्दर जोगी के पुत्र तीन एक तोड़े एक बिछोड़े एक धनवाय तोड़े। शब्द सांचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा । इस मन्त्र को ग्रहण काल में जप करके सिद्ध कर लें । फिर मंगलवार या शनिवार को रोगी को मनिहारी (चूड़ी पहनाने वाली ) की मोगरी से या किसी लकड़ी के बैटे से, हथौड़े की लकड़ी के दस्ते से २१ बार बाय से पीड़ित स्थान को मन्त्र पढ़कर झाड़ दे तो रोग २-३ बार झड़ने से ठीक हो जाता है।

कण्ठबेल दूर करने का  मन्त्र

ओम नमो कण्ठवेल तू हुम द्रुम माली । सिर पर जकड़ी बन की ताली । गोरखनाथ जगाता आया। बढ़ती बेल को तुरन्त घटाया ! जो कुछ बची ताहि मुरझाया । घट गई बेल बढ़त नहि बैठी वहां . उठत नाहिं । पके फूटे पीड़ा करे तो गुरु गोरखनाथ की दुहाई । ओम नमो आदेश गुरु को मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा  ग्रहणकाल में अथवा पर्वकाल में १०० माला जप कर इस मन्त्र को सिद्ध करने के बाद कण्ठबेल के रोगी को सात दिन तक चाकू की नोंक से झाड़कर जमीन पर २१ बार लकीरे खीचे तो रोग दूर हो । कण्ठनेल गले पर गर्दन का एक दुसाध्य चर्मरोग होता है। झाड़ने से दूर हो जाता है ।

बिच्छू - झाड़ने का मन्त्र

बिच्छू काटने के बाद उसका जहर जहां तक चढ़ा हो वहाँ में पकड़ कर झाड़ू से झाड़े। जैसे जैसे जहर उतरता जाय वहीं पर पकड़ता रहे और झाड़ते हुए उतारता जाय । डक की जगह तर्क आने पर झाड़ना बन्द कर दे और डंक से ऊपर जहर मोहरा पानी में घिस कर लगाये। जहर मोहरा बाजार में मिल जाता है। शिलाजीत बेचने वालों के पास भी मिल जाता है । मन्त्र को पहले बताये तरीके से ग्रहण के समय या पर्वकाल में १०० माला जप करके सिद्ध किया जाता है। प्रयोग करने से पहले सिद्ध कर लेना चाहिए। ओम नमो आदेश गुरु को । लो बिच्छू कांकर वालो उतर बिच्छू न कर डालो उतरे तो उतारूं चढ़े तो मारूं गरुड़ मोर पंख हकालूं । शब्द साँचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ।

वशीकरण साबरी मंत्र

ओम मोहिनी माता भूत पिता भूत सिर वेताल उड़ ऐ काली नागिन (यहां प्रेमिका या किसी रूठी स्त्री का नाम लें) को लग जाये । ऐसी जा के लगे कि (यहां उसका नाम तो ), को लग जाये हमारी मुहब्बत की आग । न खड़े सुख न लेटे सुख न सोते सुल, सिंदूर चढ़ाऊं मंगलवार कभी न छोड़े हमारा ख्याल । जब तक न देखे हमारा मुखं काया तड़प तड़प मर जाय । चलो मन्त्र फुरो वाचा । दिखाओ रे शब्द अपने गुरु के इलम का तमाशा  यह वशीकरण साबरी मन्न है। शुक्लपक्ष में अष्टमी से पूर्णमासी तक एकांत शांत कमरे में रात को दस ग्यारह बजे के बाद शुद्ध वस्त्रों में कन. के आसन पर बैठकर जल का पात्र अपने पास रख ले धूपबत्ती जला ले और उपरोक्त मन्त्र का जाप करे। रूठी स्त्री या विमुख प्रेमिका का ध्यान करता रहे । उसका फोटो हो तो सामने पास रख ले। इस प्रकार दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ दो घण्टे रोज जप करने से नौ दिन मे या ११ हजार जप करने से मत्र सिद्ध हो जाता है।

पीलिया झाड़ने का मन्त्र

पीलिया रोग मे शरीर पीला पड़ जाता है आंखें पीली हो जाती हैं सब कुछ पीला ही दिखाई देता है। यह पित्ताशय में पित्त की अधिकता हो जाने पर होता है । आजकल तो चिकित्सा विज्ञान में इस रोग के लिए बहुत औषधियाँ उपलब्ध है । परन्तु पहले जमाने मे गावों मे इन बीमारियों का इलाज मन्त्रों के द्वारा होता था । १०० मालाजप कर मन्त्र को सिद्ध कर के रोगी के सिर पर कांसे की कटोरी में तिल का तेल भरकर रखे और डाभ यानी कुशा से उस तेल को चलाते हुए निम्न मन्त्र को सात बार पढ़े। तीन दिन तक ऐसा करते रहने पर तेल पीला पड़ जायेगा और पीलिया रोग दूर हो जायेगा । ओम नमो वीर बेताल असराल नार कहे तू देव खादी तु बादी पीलिया के भिदाती कारे झारे पीतिया रहे न एक निशान जो कहीं रह जाय तो हनुमंत वीर की आन । मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वर वाचा !

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