श्री हनुमत् द्वादशाक्षर मंत्र हनुमान अष्टादशाक्षर मन्त्र प्रयोग, Shri Hanumat Dwadashakshar Mantra Hanuman Ashtadashakshar Mantra Prayog
श्री हनुमत् द्वादशाक्षर मंत्र हनुमान अष्टादशाक्षर मन्त्र प्रयोग,
श्री हनुमत् द्वादशाक्षर मंत्र
'मन्त्र महोदधि' में हनुमान द्वादशाक्षर मन्त्र का स्वरूप इस प्रकार है- हाँ हस्फ्रें खह स्त्रौह स्ख्केंह सौ हनुमते नमः । हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़ते हुए जल को भूमि पर डाल दें।- विनियोग
ऋष्यादिन्यास
ॐ रामचन्द्र ऋषये नम: शिरसि । ॐ ह्सौं बीजाय नमः, गुह्ये ।ॐ जगती छन्दसे नमः, मुखे । ॐ ह्स्फ्रें शक्तये नमः, पादयोः ।
ॐ हनुमद्देवतायै नमः हृदि । ॐ विनियोगाय नमः, सर्वांगे ।
तत्पश्चात हृदयादि अंगन्यास करें।
- हृदयाद्यंगन्साय
ॐ ह्स्फ्रें शिरसे स्वाहा । ॐ ह्स्खकें नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ खफ्रें शिखायै नमः । ॐ ह्सौं अस्त्राय फट् ।
- करन्यास
ॐ ह्स्फ्रें तर्जनीभ्यां नमः । ॐ हरखों कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ खफ्रें मध्यामाभ्यां नमः । ॐ ह्सौं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
- तत्पश्चात मन्त्र के बारह अक्षरों का बारह अंगों में न्यास करें :
ॐ हस्फ्रें नमः, भाले । ॐ नुं नमः, कुक्षौ ।
ॐ खों नमः, नेत्रयोः । ॐ सं नमः, नाभौ ।
ॐ हस्त्रौं नमः, मुखे। ॐ ते नमः, लिंगे।
ॐ ह्स्खों नमः, कण्ठे । ॐ नं नमः, जानुद्वये ।
ॐ हस्त्रौं नमः, बाहवोः । ॐ मं नमः, पादयोः ।
उपरोक्त विधि से न्यास करने के बाद ध्यान करें
ॐ गुरुभ्यो नमः, ॐ परमगुरुभ्यो नमः, ॐ परात्पर गुरुभ्यो नमः, ॐ परमेष्ठिगुरुभ्यो नमः ।
तत्पश्चात् पीठ के दक्षिण में गणेशजी का आवाहन कर पूजन करें: 'गणपतये नमः गणपतिमावाहयामि' । इसके बाद पीठ के मध्य में इष्टदेव को नमन करें : हनुमद्देवतायै नमः ।
फिर हनुमानजी के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान करें
संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः ।
अनुज्ञां हनुमन् देहि परिवारार्चनाय मे ॥
षट्कोणात्मक केसरों में आग्नेयादि क्रम से हृदयादि छह अंगों की पूजा की जाती है :
ॐ ह्रौं हृदयाम नमः । हृदय श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ॐ हस्फ्रें शिरसे स्वाहा। शिरः श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ ख्फ्रें शिखायै वषट् । शिखा श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥
ॐ ह्स्त्रौं कवचाय हुम्। कवचश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ ह्स्खों नेत्र त्रयाय वौषट् । नेत्रत्रय श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥
ॐ ह्स्त्रौं अस्त्राय फट् । अस्त्र श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
तत्पश्चात् पुष्पांजलि लेकर मूलमन्त्र का उच्चारण कर बोलें :
अभीष्टसिद्धि में देहि शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् ॥
ॐ रामभक्ताय नमः । रामभक्त श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ महातेजसे नमः। महातेजः श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ कपिराजाय नमः । कपिराज श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ महाबलाय नमः । महाबल श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ द्रोणाद्रिहारकाय नमः ॥
ॐ मेरुपीठार्चनकारकाय नमः । मेरुपीठार्चनकारक श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ दक्षिणाशाभास्कराय नमः । दक्षिणाशाभास्कर श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ सर्वविघ्ननिवारकाय नमः । सर्वविघ्न निवारक श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
इस प्रकार नाम मन्त्रों से पूजन करके पुष्पांजलि दें। यह द्वितीय आवरण की पूजा हुई।
तत्पश्चात् आठ दलों के अग्रभागों में पूवादिक्रम से सुग्रीव आदि की पूजा करें- यथा :
ॐ अंगदाय नमः । अंगद श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ नीलाय नमः । नील श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ जाम्बवते नमः। जाम्बवच्छी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ नलाय नमः । नल श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ सुषेणाय नमः । सुषेण श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ द्विविदाय नमः । द्विविद श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥
ॐ मयन्दाय नमः । मयन्द श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
उपरोक्त रीति से आठ वानरों की पूजा कर पुष्पांजलि अर्पित करें। यह तीसरे आवरण की पूजा हुई।
तदनन्तर भूपुर- चक्र की दस दिशाओं में इन्द्रादि दस दिक्पालों की पूर्ववत् पूजा करें ।
यथा :
(पूर्व दिशा में) ॐ इन्द्राय नमः इन्द्र श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ इसी प्रकार अन्य दिक्पालों के लिए भी वाक्यों का विचार कर पुष्पांजलि अर्पित करें। यह चतुर्थ आवरण की पूजा हुई। तदनन्तर भुपूर चक्र के बाह्य भाग में पूर्वादि दिशाओं में वज्र आदि आयुधों की पूजा करें। यथा :
ॐ वं वज्राय नमः । वज्र श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
हनुमदष्टादशाक्षर मन्त्र प्रयोग
'मन्त्र महोदधि' में यह मन्त्र इस प्रकार उल्लिखित है- 'ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा।' इस अष्टादशाक्षर मन्त्र का प्रयोग स्नान एवं सन्ध्यादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर करना चाहिए।- विनियोग
इसके अनन्तर ऋष्यादिन्यास करें-
- ऋष्यादिन्यास
ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमः, मुखे । ॐ हनुमद्देवतायै नमः हृदि ।
ॐ स्वाहा शक्तये नमः, पादयोः । ॐ विनियोगाय नमः, सर्वांगे ।
इसके अनन्तर हृदयादिन्यास करें।
- हृदयादिन्यास
ॐ रुद्रमूर्तये नमः शिरसे स्वाहा । ॐ रामदूताय नमः, नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ वायुपुत्राय नमः, शिखायै वषट् । ॐ ब्रह्मास्त्रनिवारकाय नमः, अस्त्राय फट् ।
इस प्रकार अंगन्यास करने के अन्तर उपर्युक्त मन्त्रों के करन्यास भी कर लेना चाहिए।
तत्पश्चात् हनुमान जी का ध्यान करे-
ध्यानदहनतप्तसुवर्णसमप्रभं भयहरं हृदये विहिताञ्जलिम् ।
श्रवण कुण्डलशोभिमुखाम्बुजं नमत वानराज महद्भुतम्॥
ॐ विमलायै नमः (पूर्व में ), ॐ प्रह्व्यै नमः (वायुकोण में),
ॐ उत्कर्षिण्यै नमः (अग्निकोण में), ॐ सत्यायै नमः ( उत्तर में ),
ॐ ज्ञानायै नमः (दक्षिण में), ॐ ईशानायै नमः (नैर्ऋत्यकोण में),
ॐ क्रियायै नमः (ईशानकोण में), ॐ अनुग्रहायै नमः (मध्य में),
ॐ योगायै नमः (पश्चिम में) ।
ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः ।
अनुज्ञां हनुमन् देहि परिवारार्चनाय में ॥
ॐ आञ्जनेयाय हृदयाय नमः, हृदय श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः (अग्निकोण में),
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा, शिरः श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः (दक्षिण में),
ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट्, शिखा श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्, नेत्रत्रय श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः
(वायुकोण में),
ॐ ब्रह्मास्त्रनिवारकाय अस्त्राय फट् अस्त्र श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि
नमः (उत्तर में ) ।
इसके पश्चात् हाथ में पुष्प लेकर मूलमन्त्र का उच्चारण कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए पुष्पांजलि समर्पित करना चाहिए-
ॐ अभीष्टसिद्धि में देहि शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् ॥
ॐ रामभक्ताय नमः (पूर्व में), ॐ द्रोणाद्रिहारकाय नमः (वायुकोण में),
ॐ महातेजसे नमः (अग्निकोण में), ॐ दक्षिणाशाभास्काराय नमः (उत्तर में ),
ॐ कपिराजाय नमः (दक्षिण में), ॐ सर्वविघ्ननिवारकाय नमः (नैर्ऋत्य में),
ॐ महाबलाय नमः ( ईशानकोण में)
तृतीयावरण का पूजन अष्टकोण के अग्रभाग पर पहले की ही भांति पूर्व से आरम्भ कर अन्य दिशाओं में पूजन करते हुए निम्नोक्त प्रकार से करना चाहिए
- ॐ सुग्रीवाय नमः (पूर्व में अष्टकोण के अग्रभाग पर ),
- ॐ अंगदाय नमः (अग्निकोण में ),
- ॐ नीलाय नमः (दक्षिण में)
- ॐ जाम्बवते नमः (ईशानकोण में),
- ॐ नलाय नमः (पश्चिम में),
- ॐ सुषेणाय नमः (वायुकोण में),
- ॐ द्विविदाय नमः (उत्तर में), ॐ मयन्दाय नमः (नैर्ऋत्य में),
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