विविध यन्त्र, मन्त्र और तन्त्र,Vividh Yantr, Mantr Aur Tantr
- गण्डे बनाना
बहुधा बच्चों को डरने, नींद मे चौंकने की शिकायत हो जाती है। उनको हवा का भी असर हो जाता है। प्रेतात्माओं से रक्षा के लिए, आपदा विपदाओं से रक्षा के लिए, आरोग्य लाभ के लिए तथा बने हुए ताबीजों को, रक्षा कवचों को धारण करने के लिए भी मामूली डोरे के स्थान पर गण्डो की जरूरत होती है। यह गण्डे लाल या काली पेचक के डोरों की आठ लड़ मे करीब दो फुट लम्बे बेट कर बना लिए जाते हैं। पेचक के डोरे की करीब पांच फुट लम्बी आठ लड़े करो । उनको बट दो और उनको दुब्बर करके फिर बढ दो तो तैयार डोरा दो फुट के करीब रह जायेगा। नवदुर्गाओं में जब आप नवचण्डी या शतचण्डी का हवन करो या आप न कर सको तो जहां पर शतचण्डी का यज्ञ हो रहा हो वहां पहुंच जाओ । सप्तशती मे १३ अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय की समाप्ति पर खड़े होकर विशेष आहुति दी जाती है । उस समय आप अपने गण्डे में एक-एक गांठ लगाते जाओ।
विविध यन्त्र, मन्त्र और तन्त्र,Vividh Yantr, Mantr Aur Tantr |
जब तक . की समाप्ति पर यज्ञ में विशेष सामग्री और पैसे हवन में डाते जाते हैं। जय यज्ञ की अग्नि शान्त हो जाती है तब उन पैसों को निकाल कर रख लिया जाती है और उनमें छेद करा के गले में पहनाने से बच्चों व बड़ों की रोगों तथा भूत-प्रेत बाधाओं से रक्षा होती है। यदि चण्डी यज्ञ की सुविधा न मिले तो स्वयं ही छोटा-मोटा यज्ञ हवन कर लो । यह भी न कर सको तो अपने किसी भी इष्ट मन्त्र की माला से जप करो और प्रत्येक माला के अन्त मे गण्डे में या बहुत से बनाने हैं तं उनमें एक-एक गांठ लगाते जाओ। यह काम यदि महारात्रि मोहरात्रि कालरात्रि ग्रहण के समय या अमावस्या की रात्रि को करो तो और भी अच्छ रहता है । तुम्हारे बनाये गये गण्डे अधिक प्रभावशाली बनेगे। इन गण्डो के जब किसी को दो तो उसके नाम के साथ इष्ट मन्त्र की कुछ आवृत्तिया करके धूप दो और भगवती की मूर्ति या चित्र के सामने रखकर मनौती मनवा कर भेट चढ़वा कर दे दो । विना दक्षिणा के गण्डे ताबीज देना निरर्थक होता है। अपने सगे सम्बन्धियों से भी धर्मार्थ कुछ न कुछ दक्षिणा जरूर रखवानी चाहिए।
भस्म विभूति बनाना
भगवती के चण्डी यज्ञ की भस्म या अन्य यज्ञों की भस्म हवन के बाद गंगा मे या यमुना मे या किसी नदी तालाब में प्रवाहित कर दी जाती है। उसमें से कुछ भस्म रख लेनी चाहिए और किसी भी महामन्त्र से किए गए हवन यज्ञ की भस्म से भी बहुत प्रभाव होता है। जैसे गायत्री मन्त्र का हवन हुआ हो या आपको इन पाठों में बताये गए किसी भी महामन्त्र का हवन हुआ हो या आप नित्य हवन करते हैं तो उसकी भी भस्म को लोगों को रोग निवृत्ति बाधा शान्ति के लिए दिया जा सकता है। वशीकरण मन्त्र से किए गए हवन की भस्म तिलक के रूप में लगाने से वशीकरण होता है। जब भी किसी को यह भस्म या विभूति दो तो उसको एक कागज की पुड़िया में रखकर भगवती की मूर्ति या चित्र के सामने रखकर सम्बन्धित व्यक्ति के नाम के साथ मन्त्र पढ़ कर उसको अभिमन्त्रित करो। उससे कुछ द्रव्य भेट चढ़वा कर उससे कार्य सिद्ध होने पर मनौती मनवा कर उससे प्रार्थना करवा कर दे दो। रोगी के शरीर पर लगाने से आरोग्य लाभ होता है । विद्यार्थी का यदि पढ़ने में मन नहीं लगता हो तो उसको पिलाने से बुद्धि निर्मल होती है। पढ़ने में मन लगने लगता है। विद्या समझने में आने लगती है। स्वरण शक्ति तीव्रं होती है। पूजा का बचा हुआ या अभिमन्त्रित इसके साथ दिया जा सकता है। विद्यार्थियों को-साथ इलायची मिश्री आदि भी खाने के लिए मन्त्र !
- सन्तान तन्त्र
इस तन्त्र का प्रयोग मैंने सफलतापूर्वक कई जगह पर किया है। एक टेलीविजन इंजीनियर यहां पास ही नागलराय मे रहते हैं। उनके विवाह को १० वर्ष के लगभग हो गए थे । सन्तान नहीं हुई थी। मेरा टी. वी. ठीक करने आये थे। अपने ग्राहकों से जो बातें मैं कह रहा था उसको सुनकर प्रभावित हुए और कहने लगे कि वह तो जिन ज्योतिषियों के पास गये हैं. वे काफी दान दक्षिणा माँगते हैं कोई मुर्गा और शराब मंगवाता है आप तो कुछ भी नहीं मागते । वह बहुत प्रभावित हुआ और अपनी फीस नहीं ली। कहा कि उनको सन्तान तंत्र दूं। पहली बार प्रयोग करने पर तन्त्र का कोई लाभ नहीं हुआ । परन्तु उनको विश्वास था इसलिए दूसरी बार ले गए और भगवती की कृपा से अब वह एक पुत्र के पिता हैं जो इस समय ५-६ वर्ष का होगा। इस तन्त्र को गर्मी के महीनो मे नहीं करना चाहिए क्योकि इसमे अजवायन का प्रयोग है जो कुछ गर्म तासीर की होती है। करें भी तो मात्रा कम रखें। सम्बन्धित व्यक्ति को आप १०० ग्राम अजवायन लाने के लिए कहिए । मामिक धर्म की समाप्ति के बाद से उसमें से २ ग्राम के करीब रोज रात्रि को सोने से पहले सन्तान की इच्छा रखने वाली स्त्री दूध के साथ ले । २५-३० दिन बाद यदि दूसरा मासिक धर्म न हो तो आगे लेना बन्द कर दे । मासिक धर्म हो जाए तो लेती रहें। यह प्रयोग ४० दिन तक करना होता है। आशा तो यही होती है कि आगे मासिक धर्म नहीं होगा और गर्भ रह 'जाएगा। परन्तु जैसा मैंने ऊपर बताया कभी-कभी दुबारा भी यही ४० दिन का प्रयोग करना पड़ता है। इस तन्त्र में प्रयुक्त की जाने वाली अजवायन को जिस मन्त्र से अभिषिक्त करना होता है वह प्रसिद्ध सन्तान गोपाल मन्त्र है । इसको विधि से सिद्ध किया हो तो अचूक फल देता है। नहीं तो महारात्रि मोहरात्रि कालरात्रि आदि के अवसर पर कुछ जप कर लेना चाहिए। जिस समय आप किसी को मन्त्र अभिषिक्त करके अजवायन दो उससे पहले २१ बार इस मन्त्र को पढ़ो और उसमे फूंक मारकर अभिषिक्त कर दो। भगवती सामने रखकर प्रार्थना करो भेट चढ़ावा दो मनौती मनवा दो कि सन्तान होगी या पुत्र होगा तो यह चढ़ावा चढ़ायेंगे और अजवायन दे दो । रोज कितनी खानी है इसकी मात्रा बता दो। मात्रा अजवायन के १०० दानों के लगभग 'हो। गर्मी में ५० दाने की मात्रा काफी है।
सन्तान गोपाल मन्त्र :
- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते,
- देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥
इस तन्त्र को देने से पहले यह पूछ लो कि पति पत्नी दोनों ने डाक्टरी . परीक्षा करा ली है और उनकी जननेन्द्रियां प्रजनन के योग्य हैं। कहीं कोई शारीरिक खराबी तो नहीं है शुक्राणु ठीक है। व्यावसायिक रूप से मैं यह कार्य १९७५ से ही कर रहा हूं और इस बीच सन्तान के इच्छुक लोग आये हैं जिनमें से बहुतो को सफलता मिली है। एक महिला को कन्यायें ही हुई थीं परन्तु पुत्र नहीं हुआ था। वे बहुत मोटी थीं और उनके गर्भाशय पर अवश्य चर्बी चढ़ी होगी । उनको कोई लाभ नहीं हुआ। गर्भ भी नहीं रहा। मैं इसका कोई विशेष रूप से प्रचार या विज्ञापन नहीं करता। एक दूसरे की सफलता के समाचार सुनकर ही लोगबाग आते हैं। बहुत आग्रह करके मन्त्र तन्त्र ले जाते हैं । तो यह अनुभूत तन्त्र है। इसमें सन्तान गोपाल मन्त्र को सिद्ध करना आवश्यक है। इसकी ११००० आवृत्तियां करके पुरुश्चरण किया हो अथवा ग्रहण आदि के अवसर पर १०८ मालायें की हों तो फल देने वाला हो जाता है। यदि इस प्रकार से इसे सिद्ध नहीं किया जा सका है तो जो मन्त्र आपने सिद्ध किया हुआ है उसके साथ इस सन्तान गोपाल मन्त्र को लिखकर स्त्री-पुरुष दोनो का नाम लिख कर सन्तान इच्छा या पुत्र इच्छा, तिखकर यन्त्र भी दे दो जिसे सन्तान की इच्छुक महिला अपने शरीर पर धारण करें। जब मासिक धर्म बन्द हो जाए तो अजवायन खाना बन्द कर देना चाहिए और गर्भ रक्षा के लिए शरीर पर रक्षा कवच गले में या बाहु पर बांधना चाहिए तथा कमर मे अभिमन्त्रित करके गण्डा बांध देना चाहिए। इसका विचार नहीं करना चाहिए कि कमर मे बाधने से गण्डा दूषित हो जाएगा। अन्य वैद्यक इलाज उपाय जब जैसे आवश्यक हो करते रहना चाहिए। मनौती. सन्तान होने पर ही चढ़वानी चाहिए।
- सरस्वती तन्त्र
विद्या प्राप्ति के लिए विद्या की उन्नति के लिए परीक्षा में उत्तम सफलता के लिए, वक्तृता में पटु होने के लिये, धारा प्रवाह भाषण देने के लिए, कविता कहानी साहित्य में धुरंधर होने के लिये तथा वाक् सिद्धि के लिये सरस्वती मन्त्र का जाप किया जाता है। माता सरस्वती की सिद्धि के लिए अनेक मन्त्र हैं परन्तु मुझे गुरु ने जो तन्त्र यन्त्र मन्त्र बताये तथा जिसको मैंने सिद्ध किया और लाभ पाया वह मैं यहां पर दे रहा हूं। इन के प्रभाव से मैंने ज भी परीक्षायें दीं सब में थोड़े से ही प्रयास से अच्छे अंकों से सफल हुआ । प्रभाकर की परीक्षा दी, साहित्यरत्न किया, बी० ए० किया, एकाउन्टेंसी की, लन्दन की बड़ी कठिन परीक्षायें दी और सबसे बड़ी लन्दन की ही बीमा सम्बन्धी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की। जिनके बारे में मेरे अग्रेज अफसर तक यह कहते थे कि वे स्वयं जिनके प्रथम भाग को ही कई बार प्रयत्न करने पर भी पास नहीं कर सके, मैं कैसे दो-दो भाग एक बार मे पास कर लेता हूं। में उन दिनों ब्रिटेन की सबसे बड़ी बीमा कम्पनी प्रूडेन्शल में नौकर था । नौकरी के लिये भी तथा तरक्की के लिये जब भी साक्षात्कार में गया कभी असफल नहीं रहा और जीवन बीमा निगम के ऑफिसर ट्रेनिग कालिज में अखिल भारतीय परीक्षाओं में प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त किये। कोई भी विषय हो एक बार पढ़ने पर समझ मे आ जाता था और याद हो जाता था । यह भी माता सरस्वती की ही कृपा है कि अब तक १० पुस्तके प्रकशित हो चुकी हैं और पाठकों ने पसन्द की हैं। यह सब कहने का मतलब यही है कि सरस्वती देवी के मन्त्र तन्त्र को सिद्ध करने से क्या और कैसे-कैसे लाभ मिलते हैं। यह तन्त्र मैंने कई सज्जनों को बताया और उन्होने भी लाभ पाया है। मां सरस्वती का मुख्य मन्त्र इस प्रकार है-
ॐ ह्रीं सरस्वत्यै मया दृष्टवा बीणा पुस्तक धारिणी ।
इस युक्त विमानूढा विद्या दान ददातु मे ह्रीं नमः ॥
इस मन्त्र का ग्यारह हजार जाप करने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। इसका पुरश्चरण पहले बताई विधि से ११०० हवन आहुतियां, ११० तर्पण ११ मार्जन तथा १ से ११ ब्राह्मण भोजन के द्वारा किया जाता है । अंगन्यास करन्यास निवारण मन्त्र के अनुसार ही हैं जो पहले बताये गये है ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै मन्त्र के साथ, यही करना चाहिए। दुर्गा सप्तशती का प्रथम चरित महाकाली का दूसरा महालक्ष्मी का तथा तीसरा चरित चौथे अध्याय से १३वे अध्याय तक महा सरस्वती के लिए हैं। उसका पाठ कर सको तो उत्तम है। नहीं तो केवल ग्यारहवे अध्याय का पाठ पुरश्चरण अवृद्धि में नित्य कर लेना चाहिए। महासरस्वती का ध्यान मन्त्र इस प्रकार है-
घण्टा शूल हलानि शख मुसले चक्र धनुः सायक
हस्ताब्जैर्दधतीं धनान्त विलसच्छीतां शुतुल्य प्रभाम् ।
गौरी देह समुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम् ।।
यदि किसी को विद्या सम्बन्धी कार्यों के लिए यन्त्र देना है तो १५ या २० का यन्त्र जो भी आपने सिद्ध किया हो उसको उपरोक्त श्लोक के साथ लिखकर भोजपत्र पर या सफेद कागज पर श्वेत चन्दन की बहुलता वाले अष्टगन्ध से अनार की कलम से लिखकर दिया जाता है। यदि माता सरस्वती का यन्त्र सिद्ध करना चाहो तो वह नीचे दे रहा हूँ। यह यन्त्र अभी तक मुझे किसी पुस्तक मे नहीं मिला है। मुझे मेरे गुरु ने जैसा बताया था लिल रहा हूँ । मन्त्र सिद्ध करने की विधि बताई जा चुकी है। इसको माता सरस्वती की मूर्ति या चित्र के सम्मुख बैठकर सिद्ध किया जाता है । महारात्रि मोहरात्रि काल रात्रि ग्रहण के समय अथवा बृहस्पतिवार के दिन पुष्य नक्षत्र मे गुरु पूर्णिमा को शुभ मुहूर्ती मे शुभ योगों में कर सकते हो । समय रात्रि का तीसरा प्रहर सर्वोत्तम होता है। माता सरस्वती के हवन मे चीनी, चावल, सफेद तिल विशेष होते हैं। श्वेत रंग के पुष्प श्वेत वस्त्र श्वेत मिष्ठान प्रसाद नैवेद्य श्वेत चन्दन की ही प्रधानता होती है। मालां तुलसी की या मोती की या चादी की होती है । आसन भी श्वेत रंग का लिया जाता है।
सरस्वती यन्त्र :
यन्त्र सिद्ध करते समय पहले त्रिकोण बनाओ फिर बांयें तरफ का अर्ध वृत्त फिर सीधी ओर का अर्ध वृत्त उसके बाद नीचे का अर्ध वृत्त बनाओ । पहले ॐ फिर श्रीं फिर हीं फिर क्लीं और अन्त मे नमः लिखो। इस प्रकार ११००० यंत्र लिखने पर यह यन्त्र सिद्ध हो जाता है। यथा विधि हवन आदि कराना चाहियें। पुरश्चरण की अवधि से ही मन्त्र के साथ यन्त्र भी सिद्ध | कर सकते हो | अलग सिद्ध करो तो इसका हवन आदि अलग से करना चाहिए
सरस्वती तन्त्र :
बृहस्पतिवार के दिन विद्यार्थी के हाथो से इन सात वस्तुओ को मनौती मान कर बिना किसी को कहे सुने बिना टोके उठवाकर रख देना चाहिये । परीक्षा साक्षात्कार मे अवश्य सफलता प्राप्त होती है। जब सफल हो जाय तो उसको मनौती पूरी कर देनी चाहिये ।
- सफेद चावल, साबुत दाने अक्षत - ७ तोते,
- सफेद फूल-७,
- सफेद कपड़े का टुकड़ा - ७० सेमी०,
- जनेऊ का जोड़ा-७,
- कोई धार्मिक पुस्तक-७,
- सफेद तिल - ७ तोते,
- सफेद चन्दन सात टुकड़े पतले-पतले,
- छोटे-छोटे शंख-७,
इन सात चीजो को सफेद कपड़े में बांध कर सरस्वती यन्त्र के साथ सरस्वती के चित्र के पीछे या किसी सुरक्षित स्थान में उठाकर रख दो। ज इच्छा पूरी हो जाय तो इन वस्तुओं को किसी विद्वान ब्राह्मण को या मन्दि मे दान कर दो। यंत्र को वापस ले लो, दूसरो के काम आ सकता है। मे द्रव्य रख दो। इसके साथ मे जो सरस्वती मन्त्र व यन्त्र भी लिख क रखा हो तो सोने में सुहागे का काम करता है ।
कुछ मन्त्र
- गायत्री मन्त्र -
गायत्री मन्त्र भक्ति ज्ञान वैराग्य विद्या बुद्धि उत्तम, विवेक के देने वाला मोक्ष देने वाला है। इसको सकाम उपासना में प्रयोग करने " के बारे में मेरा मत यह है कि नहीं करना चाहिये । हाँ विद्या बुद्धि की उन्नति के लिए लेखन वाचन भक्ति संगीत स्वर साधना आदि मे प्रयोग किया जा सकता है। इसके जप का पूरा विधान सहज उपलब्ध है। केवल जप से या इस मन्त्र से नित्य ही अग्निहोत्र हवन करने से सब प्रकार का कल्याण होता है ।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुरवरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।- श्रीराम का पंचाक्षरी महामन्त्र-
ॐ रामरामाय नमः
- श्रीकृष्ण भगवान का मन्त्र -
ॐ एं क्लींकृष्णाय ह्रीं गोविदाय श्री गोपीजनवल्लभय स्वाहा: ॐ नमः
- श्री गणेशजी का मन्त्र -
ॐ वक्रतुण्डेक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं रींग गणपतये वर वरद सर्वजने मे वशमानय स्वाहा ।
यह त्रैलोक्य मोहन गणेश मन्त्र चमत्कारी सिद्ध मन्त्र है ।
- भगवान विष्णु का द्वादश अक्षर वाला मन्त्र -
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । इसे ध्रुव जी ने जप कर भगवान का दर्शन प्राप्त किया था।
- महामृत्युंजय मन्त्र -
ॐ दो जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्रयम्बकं यजामहे ॐ तत्सवितुर्वरेण्य ॐ सुगन्धिं पुष्टवर्धनम ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि उपरमिव बन्धना ॐ धियो यो नः प्रचोदयात ॐ मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूँ हों ॐ ।।
असाध्य रोग से निवृत्ति पाने के लिए इस मन्त्र का स्वयं या विद्वान आचार्य से जप कराने से तथा शिवलिंग पर मट्ठे से अभिषेक कराने से शीघ्र आरोग्य लाभ होता है । उपरोक्त सिद्ध मन्त्रों का जाप करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है अब तक जितने मन्त्र अनुष्ठान आदि बताये गये हैं उनको स्वयं थोड़ा करके अनुभव करके देखा है। गुरु के बताये हुए हैं।
दरिद्रता नाशक अंगूठी
शुक्ल पक्ष में रविवार को या शुक्रवार को जब पुष्प नक्षत्र आवै तो उस समय इस अंगूठी को बनवावे। ताँबा तीन माशे, चाँदी ४ माशे, सोना ढाई माशे लेकर तीनों के अलग-अलग तार बनवावे और तीनों तारों को बट कर अंगूठी अपने नाप की उसी दिन पुष्य नक्षत्र में बनवा लें तथा उसी दिन पूजन करके दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली में धारण कर लें तो रोजगार धन्धे में लाभ उन्नति होगी, दखिता का नाश होगा | शरीर भी आरोग्य रहेगा ।। निश्चित है। भगवती की लक्ष्मी देवी की आराधना प्रार्थना अवश्य करना चाहिए। धर्मार्थ दान भी करना चाहिए।
बालक तन्त्र
बालक के गले मे मूँगा पहनाने से प्रेत आघा उसका स्वप्न में डरना । चोट लगना बन्द हो जाता है। बालक की जन्म कुंडली में चन्द्रमा अष्टम पडा हो तो उसके गले में चाँदी का चन्द्रमा बनवा कर पहनानां चाहिए । शेर के नाखून चाँदी मे मढ़वा कर पहनाने से भी नजर नहीं लगती और बच्चा डरता भी नहीं। शनिवार के दिन शेर के दाँत गले में बाँधने से बच्चे के दाँत बिना कष्ट के निकलते हैं और मजबूत होते हैं
खोये हुए व्यक्ति की वापसी के लिए तन्त्र
जब किसी का कोई प्रियजन कहीं चला जाय और पता न लगे तो उसकी वापसी के लिए यह तन्त्र करें। उसके पहने हुए वस्त्र पर निम्न मन्त्र को लिख कर उस वस्त्र को चरखे की भाल के साथ लपेट दो और चरखे को उल्टा घुमाओ । उस व्यक्ति का ही कोई प्रियजन सम्बन्धी उस चरखे को प्रतिदिन एक आध घण्टा घुमावे और यह मन्त्र पढ़ता जावे। तीन दिन के अन्दर वह व्यक्ति लौट आता है या उसका कोई समाचार आ जाता है। मन्त्र यह है और इसको ग्रहण काल में १०० माला जप कर सिद्ध करके ही कपड़े पर लिखना चाहिए। ओ३म् क्लीं कीर्तवीर्यार्जुनो नाम राजाबाहु सहस्रदान । यस्य स्मरण मात्रेण गतं नष्ट व्यक्तिं च लभ्यते । व्यक्ति के स्थान पर उसका नाम लिख देना चाहिये ।
संतान तन्त्र
रविवार के दिन या गुरुवार के दिन जब पुष्य नक्षत्र हो तब सफेद फूल वाली कटेरी की जड़ उखाड़कर लावें। इस प्रकार की कटेरी कहां लगी है यह पहले से देख लें। जब स्त्री मासिक धर्म से हो और ऋतु स्नान कर ले तो चौथे पाँचवे दिन एक तोला ( १० ग्राम) जड़ को बछड़े वाली गाय के दूध में पीसकर पिलावे । छठे दिन पति के पास जाय तो पुत्र सन्तान होगी । कटेरी एक जड़ी बूटी होती है और इसमें कांटे होते हैं। इस कारण कटेरी कहते हैं। पीले फूल वाली भी होती है।
कर्ण पिशाचिनी सिद्धि
इसका मन्त्र ११००० जप के बाद सिद्ध होता है। साधक को एकान्त में एक स्वतन्त्र कमरे की व्यवस्था करनी होगी जिसमें ४० दिन तक कोई दूसरा व्यक्ति पशु-पक्षी तक न जा सके। इस कमरे मे ४० दिन तक अखण्ड दीपक जलाना होगा। इस दीपक पर भी किसी अन्य की दृष्टि नहीं पड़नी' चाहिए। अपनी राशि से तीसरा छठा या ग्यारहवाँ चन्द्रमा हो तब शुभ मुहूर्त देखकर साधक उक्त कमरे का दरवाजा बन्द करके दीपक के सम्मुख यंत्रि को आसन बिछा कर बैठ जावे और कर्ण पिशाचिनी के मन्त्र की पचास माला. नित्य जप करे । जप समाप्त हो जाने पर दीपक के तेल को अपने बीसों नसों से लगाकर वहीं जमीन पर सो जावे। दिन मे काम पर जाते समय दरवाजा बन्द करके जाय और दीपक पर जाती आदि इस प्रकार ढक दे कि वायु के अभाव में दीपक बुझ न जाये और कोई चूहा आदि जन्तु उसे बुझा न दे । दीपक जलता रहना चाहिए जुंन गया तो प्रयोग खण्डित हो जायेगा और फिर प्रारम्भ करना होगा । चालीस दिन में मन्त्र सिद्ध हो जाता है और कर्ण पिशाचिनी प्रत्येक प्रश्न का सही उत्तर कान में टेलीफोन की तरह सुनायेगी। भूत भविष्य वर्तमान की प्रत्येक बात बताने में साधक समर्थ हो जायेगा ।
- मन्त्र-
ॐ हल कर्ण पिशाचिनी मे कर्णे कथय हुँ फट् स्वाहा । दीपक अखंड रहे। कमरे में किसी अन्य का प्रवेश न हो। इसकी सावधानी रखनी होगी। इसमें जन्म राशि लेनी पड़ती है। जन्म राशि पता न हो तो नाम राशि से काम चलाया जाता है। जैसे आपसी राशि अगर मेष है तो मिथुन तीसरी, कन्या छठी, कुम्भ ग्यारहवीं हुई। चन्द्रमा जब इन राशियों हो तब शुभ मुहूर्त देखकर इस अनुष्ठान को आरम्भ करना चाहिए। आत्म बल, साहस की जरूरत है । डरावने दृश्य आवाजें बाधा विघ्न आते हैं । भगवती का, भैरव का या कोई दूसरा इष्ट सिद्ध कर लिया हो तो भय नहीं है। नहीं तो गुरु के निर्देशन में ही सिद्ध करने से लाभ होता है सफलता मिलती है।
- विविध तन्त्र
- प्रसव में कष्ट व देरी हो रही हो तो चिरचिटे का पत्ता गर्भिणी की जांघ में बांध दो तुरन्त प्रसव होगा। प्रसव के बाद पत्ता फौरन खोल देना चाहिए। चिरचिटा झाड़ियों के रूप में छोटा पौधा होता है, पास से निकलने पर कपड़ों पर चिपट जाता है। बहुत छोटा चने के बराबर होता है और उसमें चारों ओर छोटे-छोटे कांटे होते हैं।
- बवासीर के मस्सो पर सांप की केंचुली बांधने से तीन दिन में बवासीर ठीक हो जाती है।
- गाय के बांयें सींग की अंगूठी बनवा कर दाहिने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पहनने से मिरगी का रोग ठीक हो जाता है।
- गूलर की लकड़ी की चार अंगुल लम्बी-कील बना कर शत्रु के घर मैं गाढ़ दो या दीवार में छिपाकर ठोक दो उसका उच्चाटन हो जायेगा । वहां से चला जायेगा ।
- पीपल की दातुन से पुष्य नक्षत्र में दाँत साफ करने से ज्वर की शिकायत नहीं होती । पुष्य नक्षत्र एक चन्द्र मास में एक बार आता है। जब पुष्य नक्षत्र आवै तब पीपल की पतली सी डाली लेकर उससे दातुन करें। नक्षत्र लगभग २४ घण्टे तक रहता है। उस अवधि में कभी भी हो सके तो प्रातःकाल प्रति मास करता रहे। ज्वर की शिकायत कभी नहीं होगी । यदि हो तो ज्वर काल मे दातुन करने से ज्वर उतर जायेगा ।
- किसी पर कोई जादू मन्त्र किया हो डरावने सपने आते हों या कोई मन्त्र पढ़ी चीज खिला दी हो तो छोटी इलायची, काकड़ासिंगी, काली मिर्च, नीम के पत्ते बराबर बराबर भाग लेकर पीस लें। गौधूलि बेला में सात बार रोगी के ऊपर से उतारकर मिट्टी के सकोरे में अग्नि लेकर उस पर चूरण की धूनी करे। उस व्यक्ति को घूनी सुंघावें तो ३ दिन में लाभ होता है। जादू का प्रभाव दूर हो जाता है।
- पत्नी पति से या पति पत्नी से नाराज हो गया हो तो छत्री का पुष्प शहद में मिला कर खिलाने से (एक माशा के बराबर) मेल-मिलाप हो जाता है। छत्री को खुम्बी भी कहते हैं। बरसात में कूड़े-कबाड़ मे सड़ती हुई लकड़ी पर छत्री जैसे छोटे पीछे पैदा हो जाते हैं उन्हें ही छत्री पुज्य कहा जाता है। तोड़ कर रख ले और जरूरत के वक्त प्रयोग करे।
- रांग की अंगूठी पहनने से मोटापा कम होता है
- रुद्राक्ष के पांच असली दाने लाल डोरे में पहनने से रक्तचाप ठीक रहता है। असली रुद्राक्ष पानी में डालने से डूब जाता है । तैरता नहीं है।
- नागफनी की जड़ को बालक के गले में बाघने से जिगर व तिल्ती के रोग समाप्त हो जाते हैं।
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