विष्णु पुराण द्वितीय अंश का 10 अध्याय,Vishnu Purana Dviteey Ansh Ka 10 Chapter

विष्णु पुराण द्वितीय अंश का 10 अध्याय संस्कृत और हिंदी में ,Vishnu Purana Dviteey Ansh Ka 10 Chapter  in Sanskrit and Hindi

दसवाँ अध्याय - द्वादश सूर्योके नाम एवं अधिकारियोंका वर्णन !
  • श्रीपराशर उवाच 
साशीतिमण्डलशतं काष्ठयोरन्तरं द्वयोः । 
आरोहणावरोहाभ्यां भानोरब्देन या गतिः ॥ १ 
स रथोऽधिष्ठितो देवैरादित्यैर्ऋषिभिस्तथा ।
गन्धर्वैरप्सरोभिश्च ग्रामणीसर्पराक्षसैः ॥ २
धाता क्रतुस्थला चैव पुलस्त्यो वासुकिस्तथा। 
रथभृग्रामणीर्हेतिस्तुम्बुरुश्चैव सप्तमः ॥ ३
एते वसन्ति वै चैत्रे मधुमासे सदैव हि। 
मैत्रेय स्यन्दने भानोः सप्त मासाधिकारिणः ॥ ४
अर्यमा पुलहश्चैव रथौजाः पुञ्जिकस्थला। 
प्रहेतिः कच्छवीरश्च नारदश्च रथे रवेः ॥ ५
माधवे निवसन्त्येते शुचिसंज्ञे निबोध मे ॥ ६

Vishnu Purana Dviteey Ansh Ka 10 Chapter

श्रीपराशरजी बोले- आरोह और अवरोहके द्वारा सूर्यकी एक वर्षमें जितनी गति है उस सम्पूर्ण मार्गकी दोनों काष्ठाओंका अन्तर एक सौ अस्सी मण्डल हैअस्सी मण्डल है सूर्यका रथ [प्रति मास] भिन्न-भिन्न आदित्य, ऋषि, गन्धर्व, अप्सरा, यक्ष,सर्प और राक्षसगणोंसे अधिष्ठित होता है हे मैत्रेय ! मधुमास चैत्रमें सूर्यके रथमें सर्वदा धाता नामक आदित्य, क्रतुस्थला अप्सरा, पुलस्त्य ऋषि, वासुकि सर्प, रथभृत् यक्ष, हेति राक्षस और तुम्बुरु गन्धर्व- ये सात मासाधिकारी रहते हैं तथा अर्यमा नामक आदित्य, पुलह ऋषि, रथौजा यक्ष, पुंजिकस्थला अप्सरा, प्रहेति राक्षस, कच्छवीर सर्प और नारद नामक गन्धर्व- ये वैशाख मासमें सूर्यके रथपर निवास करते हैं। हे मैत्रेय! अब ज्येष्ठ-मास में [ निवास करनेवालोंके नाम सुनो ॥ १ - ६ ॥

मित्रोऽत्रिस्तक्षको रक्षः पौरुषेयोऽथ मेनका।
हाहा रथस्वनश्चैव मैत्रेयैते वसन्ति वै ॥ ७
वरुणो वसिष्ठो नागश्च सहजन्या हूहू रथः ।
रथचित्रस्तथा शुक्रे वसन्त्याषाढसंज्ञके ॥ ८
इन्द्रो विश्वावसुः स्त्रोत एलापुत्रस्तथा‌ङ्ङ्गिराः । 
प्रम्लोचा च नभस्येते सर्पिश्चार्के वसन्ति वै ॥ ९
विवस्वानुग्रसेनश्च भृगुरापूरणस्तथा। 
अनुम्लोचा शङ्खपालो व्याघ्घ्रो भाद्रपदे तथा ॥ १०
पूषा वसुरुचिर्वातो गौतमोऽथ धनञ्जयः । 
सुषेणोऽन्यो घृताची च वसन्त्याश्वयुजे रवौ ॥ ११
विश्वावसुर्भरद्वाजः पर्जन्यैरावतौ तथा । 
विश्वाची सेनजिच्चापः कार्तिके च वसन्ति वै ॥ १२
अंशकाश्यपतार्थ्यास्तु महापद्मस्तथोर्वशी। 
चित्रसेनस्तथा विद्युन्मार्गशीर्षेऽधिकारिणः ।। १३
क्रतुर्भगस्तथोर्णायुः स्फूर्जः कर्कोटकस्तथा । 
अरिष्टनेमिश्चैवान्या पूर्वचित्तिर्वराप्सराः ॥ १४
पौषमासे वसन्त्येते सप्त भास्करमण्डले। 
लोकप्रकाशनार्थाय विप्रवर्याधिकारिणः ॥ १५
त्वष्टाथ जमदग्निश्च कम्बलोऽथ तिलोत्तमा । 
ब्रह्मोपेतोऽथ ऋतजिद् धृतराष्ट्रोऽथ सप्तमः ॥ १६
माघमासे वसन्त्येते सप्त मैत्रेय भास्करे।
श्रूयतां चापरे सूर्ये फाल्गुने निवसन्ति ये ॥ १७ 
विष्णुरश्वतरो रम्भा सूर्यवर्चाश्च सत्यजित् । 
विश्वामित्रस्तथा रक्षो यज्ञोपेतो महामुने । १८
मासेष्वेतेषु मैत्रेय वसन्त्येते तु सप्तकाः । 
सवितुर्मण्डले ब्रह्मन्विष्णुशक्त्युपबृंहिताः ॥ १९
स्तुवन्ति मुनयः सूर्य गन्धर्वैर्गीयते पुरः । 

उस समय मित्र नामक आदित्य, अत्रि ऋषि, तक्षक सर्प, पौरुषेय राक्षस, मेनका अप्सरा, हाहा गन्धर्व और रथस्वन नामक यक्ष- ये उस रथमें वास करते हैं तथा आषाढ़ मासमें वरुण नामक आदित्य, वसिष्ठ ऋषि, नाग सर्प, सहजन्या अप्सरा, हूहू गन्धर्व, रथ राक्षस और रथचित्र नामक यक्ष उसमें रहते हैं  श्रावण-मासमें इन्द्र नामक आदित्य, विश्वावसु गन्धर्व, स्रोत यक्ष, एलापुत्र सर्प, अंगिरा ऋषि, प्रम्लोचा अप्सरा और सर्पि नामक राक्षस सूर्यके रथमें बसते हैं  तथा भाद्रपदमें विवस्वान् नामक आदित्य, उग्रसेन गन्धर्व, भृगु ऋषि, आपूरण यक्ष, अनुम्लोचा अप्सरा, शंखपाल सर्प और व्याघ्र नामक राक्षसका उसमें निवास होता है  आश्विन-मासमें पूषा नामक आदित्य, वसुरुचि गन्धर्व, वात राक्षस, गौतम ऋषि, धनंजय सर्प, सुषेण गन्धर्व और घृताची नामकी अप्सराका उसमें वास होता है कार्तिक मासमें उसमें विश्वावसु नामक गन्धर्व, भरद्वाज ऋषि, पर्जन्य आदित्य, ऐरावत सर्प, विश्वाची अप्सरा, सेनजित् यक्ष तथा आप नामक राक्षस रहते हैं मार्गशीर्षके अधिकारी अंश नामक आदित्य, काश्यप ऋषि, तार्क्ष्य यक्ष, महापद्म सर्प, उर्वशी अप्सरा, चित्रसेन गन्धर्व और विद्युत् नामक राक्षस हैं हे विप्रवर ! पौष-मासमें क्रतु ऋषि, भग आदित्य, ऊर्णायु गन्धर्व, स्फूर्ज राक्षस, कर्कोटक सर्प, अरिष्टनेमि यक्ष तथा पूर्वचित्ति अप्सरा जगत्‌को प्रकाशित करनेके लिये सूर्यमण्डलमें रहते हैं हे मैत्रेय ! त्वष्टा नामक आदित्य, जमदग्नि ऋषि, कम्बल सर्प, तिलोत्तमा अप्सरा, ब्रह्मोपेत राक्षस, ऋतजित् यक्ष और धृतराष्ट्र गन्धर्व- ये सात माघ-मासमें भास्करमण्डलमें रहते हैं। अब, जो फाल्गुन-मासमें सूर्यके रथमें रहते हैं उनके नाम सुनो हे महामुने ! वे विष्णु नामक आदित्य, अश्वतर सर्प, रम्भा अप्सरा, सूर्यवर्चा गन्धर्व, सत्यजित् यक्ष, विश्वामित्र ऋषि और यज्ञोपेत नामक राक्षस हैं हे ब्रह्मन् ! इस प्रकार विष्णुभगवान्‌की शक्तिसे तेजोमय हुए ये सात-सात गण एक-एक मासतक सूर्यमण्डलमें रहते हैं॥ ७ - १९ ॥ 

नृत्यन्त्यप्सरसो यान्ति सूर्यस्यानु निशाचराः ॥ २०
वहन्ति पन्नगा यक्षैः क्रियतेऽभीषुसङ्ग्रहः ॥ २१
बालखिल्यास्तथैवैनं परिवार्य समासते ॥ २२
सोऽयं सप्तगणः सूर्यमण्डले मुनिसत्तम । 
हिमोष्णवारिवृष्टीनां हेतुः स्वसमयं गतः ॥ २३

मुनिगण सूर्यकी स्तुति करते हैं, गन्धर्व सम्मुख रहकर उनका यशोगान करते हैं, अप्सराएँ नृत्य करती हैं, राक्षस रथके पीछे चलते हैं, सर्प वहन करनेके अनुकूल रथको सुसज्जित करते हैं और यक्षगण रथकी बागडोर संभालते हैं !
तथा नित्यसेवक बालखिल्यादि इसे सब ओरसे घेरे रहते है हे मुनिसत्तम! सूर्यमण्डलके ये सात- सात गण ही अपने-अपने समयपर उपस्थित होकर शीत, ग्रीष्म और वर्षा आदिके कारण होते हैं॥ २० - २३ ॥

इति श्रीविष्णुपुराणे द्वितीयेंऽशे दशमोऽध्यायः ॥ १० ॥

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