काली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ! Kali Ashtottara Shatnam Stotram
श्री काली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्, देवी काली के 108 नामों या गुणों की एक सूची है. इसका उपयोग पूजा और भक्ति के रूप में किया जाता है. माना जाता है कि इस स्तोत्र का जाप करने से देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और भक्त को शांति, समृद्धि और सुरक्षा मिलती है. इस स्तोत्र को सुबह, दोपहर, शाम और रात में पढ़ने से घर में काली का वास होता है !
श्री काली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् के बारे में कुछ और जानकारीः-
- इस स्तोत्र के रचयिता श्री भैरव ऋषि हैं.
- इसका छंद अनुष्टुप है.
- इस स्तोत्र का पाठ कालिका देवता को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है.
- इस स्तोत्र का विनियोग इस तरह है: काली कपालिनी कान्ता कामदा कामसुन्दरी, कालरात्रिः कालिका च कालभैरवपूजिता, कुरुकुल्ला कामिनी च कमनीयस्वभाविनी !
- इस स्तोत्र का एक वाक्य है: भैरव उवाच- शतनाम प्रवक्ष्यामि कालिकाया वरानने! । यस्य प्रपठनाद् वाग्मी सर्वत्र विजयी भवेत् ॥१॥
Kali Ashtottara Shatnam Stotram |
काली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ! Kali Ashtottara Shatnam Stotram
श्री भैरव उवाच
शतनाम प्रवक्ष्यामि कालिकाया वरानने |
यस्य प्रपठानाद्वाग्मी सर्वत्र विजयी भवेत् || १ ||
काली कपालिनी कान्ता कामदा कामसुन्दरी |
कालरात्रिः कालिका च कालभैरव पूजिता || २ ||
कुरुकुल्ला कामिनी च कमनीय स्वभाविनी |
कुलीना कुलकर्त्री च कुलवर्त्म प्रकाशिनी || ३ ||
कस्तूरिरसनीला च काम्या कामस्वरूपिणी |
ककारवर्ण निलया कामधेनुः करालिका || ४ ||
कुलकान्ता करालस्या कामार्त्ता च कलावती |
कृशोदरी च कामाख्या कौमारी कुलपालिनी || ५ ||
कुलजा कुलमन्या च कलहा कुलपूजिता |
कामेश्वरी कामकान्ता कुञ्जरेश्वरगामिनी || ६ ||
कामदात्री कामहर्त्री कृष्णा चैव कपर्दिनी |
कुमुदा कॄष्णदेहा च कालिन्दी कुलपूजिता || ७ ||
काश्यपी कृष्णमाता च कुलिशांगी कला तथा |
क्रीं रूपा कुलगम्या च कमला कृष्णपूजिता || ८ ||
कृशाँगि किन्नरी कर्त्री कलकण्ठी च कार्तिकी |
कम्बुकण्ठी कौलिनी च कुमुदा कामजीविनी || ९ ||
कलस्त्री कीर्तिका कृत्या कीर्तिश्च कुलपालिका |
कामदेवकला कल्पलता कामाङ्गवर्द्धिनी || १० ||
कुन्ता च कुमुदप्रीता कदम्बकुसुमोत्सुका |
कादम्बिनी कमलिनी कृष्णानन्दप्रदायिनी || ११ ||
कुमारीपूजनरता कुमारीगणशोभिता |
कुमारीरञ्जनरता कुमारीव्रतधारिणी || १२ ||
कंकाळी कमनीया च कामशास्त्रविशारदा |
कपालखट्वाङ्गधारा कालभैरवरूपिणी || १३ ||
कोटरी कोटराक्षी च काशीकैलासवासिनी |
कात्यायनी कार्य्यकरी काव्यशास्त्रप्रमोदिनी || १४ ||
कामाकर्षणरूपा च कामपीठनिवासिनी |
कङ्किनी काकिनी क्रीड़ा कुत्सिता फलहप्रिया || १५ ||
कुण्डगोलोद्भवप्राणा कौशिकी कीर्तिवर्द्धिनी |
कुम्भस्तनी कलाक्षा च काव्या कोकनदप्रिया || १६ ||
कान्तारवासि कान्तिः कठिना कृष्ण वल्लभा
इति ते कथितं देवि गुह्याद्गुह्यतरं परम् || १७ ||
प्रपठेद्य इदं नित्यं कालीनाम शताष्टकम्
त्रिषु लोकेषु देवेशि तस्पासाध्यं न विद्यते || १८ ||
प्रातःकाले च मध्याह्ने सायाह्ने च सदा निशि
यः पठेत्परया भक्त्या कालीनाम शताष्टकम् | | १९||
कालिका तस्य गेहे च संस्थानम् कुरुते सदा |
शून्यागारे श्मशाने वा प्रान्तरे जलमध्यतः || १० ||
वह्निमध्ये च सङ्ग्रामे तथा प्राणस्य संशये
शताष्टकं जपेन्मन्त्री लभते क्षेम मुत्तमम् || २९ ||
कालीं संस्थाप्य विधिवत्सुत्वा नामशताष्टकैः |
साधकः सिद्धिमाप्नोति कालिकायाः प्रसादतः || २२ ||
! श्री महाकाली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम | Shri Mahakali Ashtottara Shatnama !
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