माँ मातंगी स्तोत्र ! स्तुति ! Maa Matangi Stotra ! Stuti
मातंगी देवी को प्रकृति की देवी माना जाता है. इनकी आराधना से व्यक्तित्व में आकर्षण बनता है. मातंगी देवी को वचन, तंत्र, और कला की देवी भी माना गया है. मान्यता है कि मातंगी देवी केवल मन और वचन से ही तृप्त हो जाती हैं. मातंगी मंत्र का प्रयोग मुख्य रूप से शारीरिक सुंदरता बढ़ाने, शीघ्र विवाह, और गृहस्थ जीवन को सुखमय बनाने के लिए किया जाता है
Maa Matangi Stotra ! Stuti |
मातंगी स्तोत्र का महत्व
- मातंगी शब्द जीवन के हर पक्ष को उजागर करने की क्रिया का नाम है, जिससे जीवन के दोनों पक्षों को पूर्णता मिलती है.
- मातंगी साधना से जीवन में उमंग और उल्लास का वातावरण बना रहता है.
- मातंगी साधना से शीघ्र विवाह में भी लाभ मिलता है.
- मातंगी साधना से सांसारिक जीवन में सर्व अनुकूलता और भोगमय सुखद जीवन की प्राप्ति होती है.
- मातंगी साधना से आराधक के सारे विघ्न, उपद्रव, बाधाएं नष्ट हो जाती हैं.
- मातंगी साधना से भगवती मातंगी अपने भक्त को सुंदर आकर्षक वाणी, विद्या, और प्रचुर धन प्रदान करती हैं.
- मातंगी साधना से देवी की कृपा से दुर्योग भी सुयोग में बदल जाता है.
- मातंगी साधना से देवी का आराधक सहज ही मोक्ष भी पा जाता है.
माँ मातंगी स्तोत्र Maa Matangi Stotra
मातङ्गीं मधुपानमत्तनयनां मातङ्ग सञ्चारिणींकुम्भीकुम्भविवृत्तपीवरकुचां कुम्भादिपात्राञ्चिताम् ।
ध्यायेऽहं मधुमारणैकसहजां ध्यातुस्सुपुत्रप्रदां
शर्वाणीं सुरसिद्धसाध्यवनिता संसेविता पादुकाम् ॥ १॥
मातङ्गी महिषादिराक्षसकृतध्वान्तैकदीपो मणिः
मन्वादिस्तुत मन्त्रराजविलसत्सद्भक्त चिन्तामणिः ।
श्रीमत्कौलिकदानहास्यरचना चातुर्य राकामणिः
देवित्वं हृदये वसाद्यमहिमे मद्भाग्य रक्षामणिः ॥ २॥
जयदेवि विशालाक्षि जय सर्वेश्वरि जय ।
जयाञ्जनगिरिप्रख्ये महादेव प्रियङ्करि ॥ ३॥
महाविश्वेश दयिते जय ब्रह्मादि पूजिते ।
पुष्पाञ्जलिं प्रदास्यामि गृहाण कुलनायिके ॥ ४॥
जयमातर्महाकृष्णे जय नीलोत्पलप्रभे ।
मनोहारि नमस्तेऽस्तु नमस्तुभ्यं वशङ्करि ॥ ५॥
जय सौभाग्यदे नॄणां लोकमोहिनि ते नमः ।
सर्वैश्वर्यप्रदे पुंसां सर्वविद्याप्रदे नमः ॥ ६॥
सर्वापदां नाशकरीं सर्वदारिद्रयनाशिनीम् ।
नमो मातङ्गतनये नमश्चाण्डालि कामदे ॥ ७॥
नीलाम्बरे नमस्तुभ्यं नीलालकसमन्विते ।
नमस्तुभ्यं महावाणि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥ ८॥
महामातङ्गि पादाब्जं तव नित्यं नमाम्यहम् ।
एतदुक्तं महादेव्या मातङ्गयाः स्तोत्रमुत्तमम् ॥ ९॥
सर्वकामप्रदं नित्यं यः पठेन्मानवोत्तमः ।
विमुक्तस्सकलैः पापैः समग्रं पुण्यमश्नुते ॥ १०॥
राजानो दासतां यान्ति नार्यो दासीत्वमाप्नुयुः ।
दासीभूतं जगत्सर्वं शीघ्रं तस्य भवेद् ध्रुवम् ॥ ११॥
महाकवीभवेद्वाग्भिः साक्षाद् वागीश्वरो भवेत् ।
अचलां श्रियमाप्नोति अणिमाद्यष्टकं लभेत् ॥ १२॥
लभेन्मनोरथान् सर्वान् त्रैलोक्ये नापि दुर्लभान् ।
अन्ते शिवत्वमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥ १३॥
श्रीराजमातङगी पादुकार्पणमस्तु ।
। इति श्रीमातङ्गीस्तोत्रं सपूर्णम् ।
माँ मातंगी स्तुति ! Maa Matangi Stuti
श्यामवर्णा, त्रिनयना मस्तक पर चंद्रमा
चतुर्भुजा, दिव्यास्त्र लिये रत्नाभूषण धारिणी
गजगामिनी ,महाचांडालनीमाँ मातंगी !
सर्व लोक वशकारिणी, महापिशाचिनी
कला, विद्या, ज्ञान प्रदायिनीमतन्ग कन्या माँ मातंगी
हम साधक शुक जैसे हैंज्ञान दिला दो हमको माँ
हम करते तेरा ध्यान निरंतर आपका हे माँ मातंगी!!
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