मोहिनी एकादशी व्रत कथा,महत्व ! Mohini Ekadashi Vrat Katha
मोहिनी एकादशी का व्रत रखने वाला व्यक्ति मोह माया के जंजाल से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने वालों के कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
मोहिनी एकादशी महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार, इस शुभ दिन पर, भगवान विष्णु ने देवताओं को शैतानों से अमृत लेने और उसे पीने में मदद करने के लिए मोहिनी का अवतार लिया था। इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और उनके अवतार मोहिनी रूप की पूजा करने के लिए मनाया जाता है। जो लोग व्रत रखते हैं और मोहिनी एकादशी व्रत कथा सुनते या पढ़ते हैं उन्हें 1000 गायों के दान के बराबर फल मिलता है।
Mohini Ekadashi Vrat Katha,mahatv |
मोहिनी एकादशी व्रत कथा:-Mohini Ekadashi Vrat Katha
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों के बारे में पूछा। भगवान कृष्ण ने कहा कि वह उन्हें वह कहानी सुनाएंगे जो ऋषि वशिष्ठ ने भगवान राम को सुनाई थी भगवान श्री राम में महर्षि वशिष्ठ जी से कहा कि – हे गुरुदेव ! मैंने सीता जी के वियोग में कई सारे दुखों को भोग है| अतः मुझे ऐसे व्रत के बारे में बताइए जिससे समस्त पाप और दुःख नष्ट हो जाए इस पर महर्षि वशिष्ठ जी ने भगवान श्री राम से कहा – हे राम ! आपके द्वारा पूछा गया प्रश्न बहुत ही अच्छा है आपकी बुद्धि अत्यंत ही पवित्र है आपका नाम लेने मात्र से ही भक्तों की आत्मा पवित्र हो जाती है
वैशाख माह के शुक्ल में आने वाली एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है जो भी मनुष्य मोहिनी एकादशी का व्रत करता है उस मनुष्य के जीवन से समस्त दुःख व पाप नष्ट हो जाते है मैं अब इसकी कथा कहता हूँ ! इस ध्यानपूर्वक सुनोप्राचीन समय में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नामक राज्य में द्युतिमान नामक राजा का शासन था ! उस राज्य में ही धन – धान्य से संपन्न धनपाल नाम का एक वैश्य भी रहता था वह भगवान विष्णु का बहुत ही बड़ा भक्त था ! उसने सम्पूर्ण भद्रावती नगरी कई सारे कुँए, धर्मशाला, भोजनालय, सरोवर, प्याऊ आदि का निर्माण एवं सड़कों पर आम, नीम, जामुन इत्यादि विभिन्न प्रकार के कई पेड़ भी लगवाये थे !धनपाल के पांच पुत्र थे – सुमना, मेधावी, सद्बुद्धि, धृष्टबुद्धि एवं सुकृति इन्हें धृष्टबुद्धि नामक पुत्र बहुत ही पापी था धृष्टबुद्धि पितरों को नहीं मानता था| इसके अलावा वह गलत संगतियों में रहकर जुआ खेलता, पर – स्त्री के भोग विलास करता एवं मांस – मदिरा का भी सेवन करता था !
इसी प्रकार गलत कर्मों में वह अपने पिता के धन को नष्ट कर रहा था| जब पिता को इन सब के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने परेशान होकर धृष्टबुद्धि को घर से निकाल दिया !
मोहिनी एकादशी व्रत कथा
पिता के द्वारा घर से निकलने के पश्चात उसने कुछ समय तक अपने वस्त्र एवं गहनों को बेचकर अपना जीवन यापन किया किन्तु जब उसके पास धन समाप्त हो गया तो उसके सभी दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया| इसके बाद वह भूख – प्यास से परेशान हो गया ! कोई मार्ग ना दिखने पर धृष्टबुद्धि ने चोरी करना प्रारम्भ कर दिया जब प्रथम बार वह चोरी करता हुआ पकड़ा गया तो लोगों ने वैश्य का पुत्र जानकार उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया लेकिन जब वह दूसरी बार चोरी करता पकड़ा गया तो राजा की आज्ञा के अनुसार उसे कारागार में डाल दिया गया !
धृष्टबुद्धि को कारागार में बहुत यातनाएं दी गयी| इसके पश्चात राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया इसके पश्चात के वह जंगल की ओर चला गया और वहां पशु – पक्षियों को मारकर खाने लगा कुछ समय के बाद में वह बहेलिया बन गया वह धनुष – बाण लेकर पशु – पक्षियों का शिकार करके उन्हें खाता था एक दिन की बात है वह भोजन की तलाश में इधर – उधर भटक रहा था भोजन की तलाश करते हुए वह ऋषि कौण्डिन्य के आश्रम में पहुँच गए कौण्डिन्य ऋषि गंगा स्नान करके आ रहे थे तो उनके गीले कपड़ों से गंगा जल के छींटे उस पर भी गिरे जिससे उसे सद्बुद्धि प्राप्त हुई !
इसके बाद में धृष्टबुद्धि ने कौण्डिन्य ऋषि के पास जाकर हाथ जोड़ते हुए कहा – हे महामुनि ! मैंने अपने जीवन में कई सारे पाप किये है कृपया आप मुझे इन सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए बिना धन का उपाय बताइए धृष्टबुद्धि के ऐसे वचन सुनकर कौण्डिन्य ऋषि उससे प्रसन्न हुए और उससे कहा कि तुम वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली मोहिनी एकादशी का व्रत करो ! इस व्रत को करने से मनुष्य के पर्वत के समान पाप भी नष्ट हो जाते है !
ऋषि कौण्डिन्य के मुख से यह बात सुनकर वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार उसने मोहिनी एकादशी के व्रत को किया हे राम ! मोहिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से उसके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ जी पर बैठकर विष्णुलोक को गया ! इस व्रत को करने से सभी प्रकार के मोह से छुटकारा मिलता है इस व्रत कथा के महात्म्य को पढने अथवा सुनने से एक हजार गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है !
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