शिव स्तुति अर्थ सहित ! Shiva stuti Arth Sahit

शिव स्तुति अर्थ सहित ! Shiva stuti Arth Sahit

शिव स्तुति का पाठ करने से कई तरह के लाभ मिलते हैं. मान्यता है कि शिव स्तुति का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर उनकी कृपा बरसती है. शिव स्तुति के पाठ से भक्तों को कई तरह के लाभ मिलते हैं, जैसे:-
  • मन प्रसन्न और आनंदित रहता है
  • किसी चीज़ को लेकर तनाव या चिंता नहीं होती
  • मानसिक बीमारियां पास नहीं आतीं
  • आत्मविश्वास बढ़ता है और हर क्षेत्र में सफलता मिलती है
  • मन में बैठा किसी तरह का डर दूर होता है
  • शत्रु का हृदय बदल जाता है
  • परिवार में सुख-शांति बनी रहती है
  • पति-पत्नी के साथ में शिव स्तुति करने से वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहता है
Shiva stuti Arth Sahit

शिव स्तुति अर्थ सहित ! Shiva stuti Arth Sahit

  • दो०- 
श्री गिरिजापति वंदिकर, चरण मध्य शिरनाय ।
 कहत अयोध्यादास तुम, मो पर होहु सहाय ।।

मैं अयोध्यादास माता पार्वती के पति भगवान शंकर की वंदना करता हूं व उनके चरणों में शीश नवाकर प्रार्थना करता हूं कि वे मेरी सहायता करें। 

नंदी की सवारी, नाग अंगीकार धारी,नित संत सुखकारी, नीलकंठ त्रिपुरारी हैं।
गले मुण्डमाला धारी, सिर सोहे जटाधारी, वाम अंग में बिहारी, गिरिजा सुतवारी हैं ।। 

नंदी जिनका वाहन है, नागों को जिन्होंने अपने अंगों पर धारण किया हुआ है, जो नित्यप्रति संतजनों को सुख प्रदान करने वाले हैं, ऐसे नीलकंठ भगवान शंकर जी हैं। उन्हें हमारा प्रणाम स्वीकार हो। जिनके गले में मुंडों की माला है, जो सिर पर जटा धारण किए हुए हैं; वाम अंग में पार्वती जी विराजमान हैं, ऐसे पर्वतों के राजा भगवान शंकर जी हैं। 

दानी देख भारी शेष शारदा पुकारी,काशीपति मदनारी कर शूल चक्रधारी हैं। 
कला उजियारी लख देव सो निहारी, यश गावें वेद चारी सो हमारी रखवारी हैं।।१।।

शारदा और शेष द्वारा महादानी के रूप में स्तुत्य, काम-शत्रु,काशीपति शिव हाथ में त्रिशूल और चक्र धारण किए हुए हैं। जिनकी उज्ज्वल कला को देवता भी निहारा करते हैं, चारों वेदों द्वारा स्तुत्य भगवान शंकर हमारी रक्षा करते हैं।

 शंभु बैठे हैं विशाला, भंग पीवें सो निराला, नित रहें मतवाला, अहि अंग पै चढ़ाए हैं।
 गले सोहे मुण्डमाला, कर डमरू विशाला, अरु ओढ़े मृगछाला, भस्म अंग में लगाए हैं ।। 

जो निराली भांग को पीकर नित्यप्रति मदहोश रहते हैं, वे शंभु समाधि में लीन हैं, उनके अंगों पर सर्प शोभायमान हैं। जिनके गले में मुंडों की माला शोभा दे रही है, जो हाथ में विशाल डमरू लिए हैं, मृगछाला को जिन्होंने अपने शरीर पर लपेट रखा है और शरीर पर भस्म लगाए हुए हैं। 

 संग सुरभी सुतशाला, करें भक्त प्रतिपाला, मृत्यु हरें अकाला, शीश जटा को बढ़ाए हैं। 
कहैं रामलला करो मोहि तुम निहाला, गिरिजापति कसाला, जैसे काम को जलाए हैं ।। 

देवों की शरणरूप, भक्त पालक, अकाल मृत्युहर्ता शिव सिर पर जटाओं को बढ़ाए हुए हैं। हे गिरिजापति! जैसे आपने काम को जलाया था, वैसे ही मेरी तृष्णा को जलाकर मुझे निहाल करें, यह रामलला का निवेदन है। 

मारा है जलंधर और त्रिपुर को संहारा जिन, जारा है काम जाके शीश गंगधारा है। 
धारा है अपार जासु महिमा है तीनों लोक, भाल सोहै इंदु जाके, सुषमा की सारा है ।।

जिन्होंने मगरमच्छ, त्रिपुर राक्षस का वध किया, जिन्होंने काम को जला डाला, जिनके शीश पर गंगा की धारा भी है। गंगधार - सी अपार महिमा वाले, जिनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है, वे समस्त सुखों के स्वामी शिव हमारे रक्षक हैं। 

सारा अहिबात सब, खायो हलाहल जानि, भक्तन के अधारा, जाहि वेदन उचारा है। 
चारों हैं भाग जाके, द्वार हैं गिरीश कन्या, कहत अयोध्या सोई, मालिक हमारा है ।।

जिन्होंने बात ही बात में सारा जहर पी लिया, वे भक्तों के रखवाले भगवान शंकर हैं, जिनका वेदों ने गान किया है। अयोध्यादास कहते हैं कि जो यज्ञ के चारों भागों के स्वामी हैं, गिरिराज सुता जिनके साथ हैं, वही हमारे स्वामी हैं। 

अष्ट गुरु ज्ञानी जाके, मुख वेदबानी शुभ, सोहै भवन में भवानी, सुख संपत्ति लहा करें।
 मुण्डन की माला जाके, चंद्रमा ललाट सोहै, दासन के दास जाके, दारिद दहा करें । 

आठों गुरु जानते हैं, जिनका मुख ही चारों वेदों की वाणी का रूप है, जिनके भवन की स्वामिनी माता भवानी हैं, वह शिव सुख और संपत्ति के दाता हैं। मुंडमालाधारी, मस्तक पर चंद्रधारी शिव, सेवकों के सेवक की भी दरिद्रता का नाश (दाह) करने वाले हैं।

चारों द्वार बंदी, जाके द्वारपाल नंदी, कहत कवि अनंदी, नर नाहक हा हा करें।
जगत रिसाय, यमराज की कहा बसाय, शंकर सहाय, तो भयंकर कहा करें ।।

जिन्होंने नरक के चारों द्वार बंद करवा दिए हैं, जिनके द्वारपाल के रूप में नंदी विराजमान हैं, कवि आनंद कहते हैं कि ऐसे आनंद को देने वाले देवता के होते हुए भी लोग व्यर्थ ही हाहाकार करते हैं, क्योंकि सांसारिक लोगों की थोड़ी-सी पूजा-अर्चना से जो प्रसन्न हो जाते हैं और शंकरजी उनकी सहायता करते हैं तो ऐसे में यमराज की क्या आवश्यकता है, अर्थात आप भयंकर यमराज की यातना से बचना चाहते हैं तो शंकरजी की शरण में जाओ।

॥ सवैया ॥

गौर शरीर में गौर विराजत, मौर जटा सिर सोहत जाके । 
नागन को उपवीत लसै अरु, भाल विराजत है शशि ताके ।। 

गौर वर्णवाली पार्वती जिनके वाम विराज रही हैं और जिन के शीश पर जटाओं का मुकुट सुशोभित है। जिन्होंने सर्पों का उपवीत (जनेऊ) पहन रखा है और चंद्रमा जिनके मस्तक पर विराजमान है।

दान करै पल में फल चारि, और टारत अंक लिखे विधना के । 
शंकर नाम निःशंक सदा ही, भरोसे रहैं निशिवासर ताके ।।

 जो पल भर में चारों फल (धर्म, अर्थ, मोक्ष और काम) को देने वाले हैं और भाग्य में लिखे को बदल सकते हैं-उनका नाम भगवान शंकर है और बिना किसी शंका के निरंतर उनके भरोसे पर रहना चाहिए।

॥ दोहा ॥

मंगसर मास हेमंत ऋतु, छठा दिन है शुभ बुद्ध ।
कहत अयोध्यादास तुम, शिव के विनय समुद्ध !

अयोध्यादास जी कहते हैं कि भगवान शिव की महान कृपा से मार्गशीर्ष मास की षष्ठी तिथि, बुधवार के शुभ दिन यह कार्य संपन्न हुआ।

शिव स्तुति का पाठ करने का तरीका:-

  • सुबह शिवलिंग पर जल, दूध या पंचामृत से स्नान करें !
  • फिर फूल और श्रीफल अर्पित करें !
  • शाम के समय भगवान भोलेनाथ की पंचोपचार पूजा करें !
  • पूजा में बिल्वपत्र, धतूरा, आंकड़ा, अक्षत, सफ़ेद और केसर चंदन, और मिठाई का भोग लगाएं.
  • फिर मंत्र स्तुति का पाठ करें और प्रसाद ग्रहण करें

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