श्री परशुराम आरती ! स्तोत्रम,Shri Parshuram Aarti! Stotram
मान्यता है कि भगवान परशुराम की आरती करने से बुद्धि, बल, और शक्ति का आशीर्वाद मिलता है. साथ ही, परशुराम जयंती के दिन विधिवत पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं. परशुराम जयंती पर पूजा करने का तरीका:-
- सुबह ब्रह्म बेला में उठें और स्नान करें !
- व्रत का संकल्प लें !
- घर के मंदिर में साफ़ चौकी पर कपड़ा बिछाएं !
- परशुराम जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें !
- गंगाजल से शुद्ध करें !
- धूप, दीप, फूल, अक्षत अर्पित करें !
- मंत्रों का जाप करें !
- आरती करें !
- परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें!
Shri Parshuram Aarti! Stotram |
भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं. उनका जन्म त्रेता युग में वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था. इनका ज़िक्र रामायण और महाभारत में भी मिलता है. परशुराम को राम जामदग्न्य, राम भार्गव, और विराराम भी कहा जाता है. संस्कृत में परशुराम का शाब्दिक अर्थ है 'कुल्हाड़ी वाले राम'. परशुराम को कई गुणों से सुशोभित किया गया है, जैसे कि वे श्रेष्ठ रथ चलाने वाले, अद्वितीय धनुर्विद, और ब्रह्मचारी थे. उन्हें क्रोध नहीं आता था और उनका मन सदैव शांत रहता था. वे महान तपस्वी थे और भगवान शिव के शिष्य थे
॥ श्री परशुराम आरती ॥ Shri Parshuram Aarti !!
ॐ जय परशुधारी,स्वामी जय परशुधारी।सुर नर मुनिजन सेवत,श्रीपति अवतारी॥
ॐ जय परशुधारी...॥
जमदग्नी सुत नर-सिंह,मां रेणुका जाया।
मार्तण्ड भृगु वंशज,त्रिभुवन यश छाया॥
ॐ जय परशुधारी...॥
कांधे सूत्र जनेऊ,गल रुद्राक्ष माला।
चरण खड़ाऊँ शोभे,तिलक त्रिपुण्ड भाला॥
ॐ जय परशुधारी...॥
ताम्र श्याम घन केशा,शीश जटा बांधी।
सुजन हेतु ऋतु मधुमय,दुष्ट दलन आंधी॥
ॐ जय परशुधारी...॥
मुख रवि तेज विराजत,रक्त वर्ण नैना।
दीन-हीन गो विप्रन,रक्षक दिन रैना॥
ॐ जय परशुधारी...॥
कर शोभित बर परशु,निगमागम ज्ञाता।
कंध चाप-शर वैष्णव,ब्राह्मण कुल त्राता॥
ॐ जय परशुधारी...॥
माता पिता तुम स्वामी,मीत सखा मेरे।
मेरी बिरद संभारो,द्वार पड़ा मैं तेरे॥
ॐ जय परशुधारी...॥
अजर-अमर श्री परशुराम की,आरती जो गावे।
'पूर्णेन्दु' शिव साखि,सुख सम्पति पावे॥
ॐ जय परशुधारी...॥
श्री परशुराम स्तोत्रम ! Shri Parshuram Stotram !
कराभ्यां परशुं चापं दधानं रेणुकात्मजं ।जामदग्न्यं भजे रामं भार्गवं क्षत्रियान्तकं ॥१॥
नमामि भार्गवं रामं रेणुका चित्तनन्दनं ।
मोचितंबार्तिमुत्पातनाशनं क्षत्रनाशनम् ॥२॥
भयार्तस्वजनत्राणतत्परं धर्मतत्परम् ।
गतगर्वप्रियं शूरं जमदग्निसुतं मतम् ॥३॥
वशीकृतमहादेवं दृप्त भूप कुलान्तकम् ।
तेजस्विनं कार्तवीर्यनाशनं भवनाशनम् ॥४॥
परशुं दक्षिणे हस्ते वामे च दधतं धनुः ।
रम्यं भृगुकुलोत्तंसं घनश्यामं मनोहरम् ॥५॥
शुद्धं बुद्धं महाप्रज्ञापण्डितं रणपण्डितं ।
रामं श्रीदत्तकरुणाभाजनं विप्ररंजनम् ॥६॥
मार्गणाशोषिताभ्ध्यंशं पावनं चिरजीवनम् ।
य एतानि जपेन्द्रामनामानि स कृति भवेत् ॥७॥
इति श्री प. प. श्री वासुदेवानंदसरस्वतीविरचितं श्री परशुराम स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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