श्री सीता अष्टाक्षर स्तोत्र ! Shri Sita Ashtakshar Stotra

श्री सीता अष्टाक्षर स्तोत्र  ! Shri Sita Ashtakshar Stotra

श्री सीता अष्टाक्षर स्तोत्र का उल्लेख धर्मायण में है. इसमें श्री सीता के अष्टाक्षर मंत्र का उल्लेख है, “ह्रीं श्रीं सीतायै नमः”. कहा जाता है कि इस मंत्र का 10,000 बार जप करने से सिद्धि मिलती है. वहीं, वटवृक्ष के नीचे केवल 1,800 बार जप करने से भी सिद्धि मिलती है. श्रीराम की पूजा के समय इस कवच के पाठ का विधान है

श्री सीता अष्टाक्षर स्तोत्र के लाभ

  • जो व्यक्ति सीता राम, सीता राम का जाप करता है, उसे कोई कमी नहीं होती और उसकी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं.
  • मनपसंद जीवनसाथी मिलता है
  • दाम्पत्य जीवन में प्रेम बढ़ता है
  • जीवन में खुशहाली आती है
  • जीवन के सभी कष्ट खत्म हो जाते हैं
  • रुके हुए काम पूरे होते हैं
  • धन-धान्य और संपत्ति में वृद्धि होती है
  • आत्मविश्वास बढ़ता है 
  • सीता मंत्र का जाप करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
  • सीता मंत्र का जाप करने से रुके हुए काम पूरे होते हैं.
  • सीता मंत्र का जाप करने से आत्मविश्वास बढ़ता है.
  • सीता मंत्र का जाप करने से धन-धान्य और संपत्ति में वृद्धि होती है.
  • अष्टाक्षर मंत्र का जाप करने से महान पाप भी मिट जाते हैं.
  • अष्टाक्षर मंत्र का जाप करने से सभी कार्यों से पहले और बाद में लाभ मिलता है
Shri Sita Ashtakshar Stotra

श्रीसीताष्टाक्षरस्तोत्रम्  ! Shri Sita Ashtakshar Stotra

श्रीसीताराम चरणौ शरणं प्रपद्ये ।

अङ्गद उवाच –
लङ्काया हि प्रचण्डोग्रेर्यत्पाठाद् रक्षितोऽसि तत् ।
श्रीसीताष्टाक्षरस्तोत्रं वक्तुमर्हसि मारुते ॥ १॥

हनुमान उवाच –
रामभक्त महाभाग सन्मते वालिनन्दन ।
श्रीसीताष्टाक्षरस्तोत्रं सर्वभीतिहरं शृणु ॥ २॥

श्रीमद् रामप्रिया पुण्या श्रीमद् रामपरायणा ।
श्रीमद् रामादभिन्ना च श्रीसीता शरणं मम ॥ ३॥

शरणाश्रित रक्षित्री भास्करार्देविभासिता ।
आकार त्रय शिक्षित्री श्रीसीता शरणं मम ॥ ४॥

शक्तिदा शक्तिहीनानां भक्तिदा भक्तिकामिनाम् ।
मुक्तिदा मुक्तिकामानां श्रीसीता शरणं मम ॥ ५॥

ब्रह्माण्युमारमाराध्या ब्रह्मेशादि सुरस्तुता ।
वेदवेद्या गुणाम्भोधिः श्रीसीता शरणं मम ॥ ६॥

शुन्या हि निग्रहेण्यानुग्रहाब्धिः सुवत्सलाः ।
जननी सर्वलोकानां श्रीसीता शरणं मम ॥ ७॥

चिदचिदाभ्यां विशिष्टा च सच्चिदानन्दरूपिणी ।
कार्यकारणरूपा च श्रीसीता शरणं मम ॥ ८॥

विशोका दिव्यलोका च बिम्बी दिव्या च भूषणा ।
दिव्याम्बरा च दिव्यांगी श्रीसीता शरणं मम ॥ ९॥

भर्त्री च जगतः कर्त्री हर्त्री जनकनन्दिनी ।
जगद्धर्त्री जगद्योनीः श्रीसीता शरणं मम ॥
सर्वकर्मसमाराध्या सर्वकर्मफलप्रदा ।
सर्वेश्वरी च सर्वज्ञा श्रीसीता शरणं मम ॥ १०॥

नित्यमुक्तस्तुता स्तुत्या सेविता विमलादिभिः ।
अमोघपूजन स्तोत्रा श्रीसीता शरणं मम ॥
कल्पवल्ली हि दीनानां सर्वदारिद्र्यनाशिनी ।
भूमिजा शान्तिदा शान्ता श्रीसीता शरणं मम ॥ ११॥

आपदाहारिणी चाथकारिणी सर्वसम्पदाम् ।
भवाब्धितारिणी सेव्या श्रीसीता शरणं मम ॥ १२॥

वसिष्ठ उवाच –
पाठाद् हनुमता प्रोक्तं नित्य मुक्तन सदा (?) ।
श्रीसीताष्टाक्षरस्तोत्रं भुक्तिमुक्ति प्रदान् सदा ॥ १३॥

ॐ ह्रीं श्रीं सीतायै नमः ।

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