अचला एकादशी ( अपरा एकादशी ) की महिमा | कथा | व्रत विधि,Achala Ekadashi (Apara Ekadashi) Kee Mahima | Katha | Vrat Vidhi

अचला एकादशी ( अपरा एकादशी ) की महिमा | कथा | व्रत विधि

ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी कहते हैं। इसे अपरा एकादशी भी कहते हैं। इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या, परनिन्दा, भूत योनि जैसे निकृष्ट कर्मों से छुटकारा मिल जाता है तथा कीर्ति, पुण्य एवं धन-धान्य में अभिवृद्धि होती है।

Achala Ekadashi (Apara Ekadashi) Kee Mahima | Katha | Vrat Vidhi

अपरा एकादशी की महिमा

धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में अर्थ और काम से ऊपर उठकर धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष को प्राप्त करता है। अपरा एकादशी का व्रत करने से भगवान श्रीहरि विष्णु मनुष्य के जीवन से सभी दुख और परेशानियों को दूर dकर अपार पुण्य प्रदान करते हैं। यह एकादशी बहुत पुण्य प्रदान करने वाली और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा,परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। अपरा को उपवास करके एवं इस महत्व को पड़ने और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता !

अपरा एकादशी की कथा

प्राचीन काल में महीध्वज नामक धर्मात्मा राजा राज्य करता था। विधि की विडम्बना देखिये कि उसी का छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई को अपना वैरी समझता था। उसने एक दिन अवसर पाकर अपने बड़े भाई राजा महीध्वज की हत्या कर दी और उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे गाढ़ दिया। राजा की आत्मा पीपल पर वास करने लगी और आने जाने वालों को सताने लगी। अकस्मात् एक दिन धौम्य ऋषि उधर से निकले। उन्होंने तपोबल से प्रेत के उत्पात का कारण तथा उसके जीवन वृतांत को समझ लिया। ऋषि महोदय ने प्रसन्न होकर प्रेत को पीपल के वृक्ष से उताकर परलोक विद्या का उपदेश दिया। अंत में ऋषि से प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिए अचला एकादशी व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत करने से राजा दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक को चला गया।

अचला एकादशी व्रत विधि

  • एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रणाम करें।
  • इसके बाद दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर पवित्र नदी या नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद आचमन कर खुद को शुद्ध करें और पीले रंग का नया वस्त्र पहनें और भगवान भास्कर को अर्घ्य दें।
  • एकादशी के दिन स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। - इसके बाद भगवान विष्णु, कृष्ण तथा बलराम का धूप, दीप, फल, फूल, तिल आदि से पूजा करना चाहिए। 
  • इस पूरे दिन निर्जल उपवास करना चाहिए। 
  • यदि संभव ना हो तो पानी तथा एक समय फल आहार ले सकते हैं।
  • द्वादशी के दिन यानि पारण के दिन भगवान का पुनः पूजन कर कथा का पाठ करना चाहिए। 
  •  कथा पढ़ने के बाद प्रसाद वितरण, ब्राह्मण को भोजन तथा दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। 
  • अंत में भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

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